
आज हम आपको उत्तर प्रदेश के एक ऐसे नेता से मिलाते है जिनकी पहचान उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण नेता के रूप में आज भी बरकरार है। कभी सोशल इंजीनियरिंग का ब्रांड रही यह शख्सियत की लोकप्रियता का आलम यह है हरदोई, उन्नाव ,लखनऊ सहित उत्तर प्रदेश का कोई भी सामान्य व्यक्ति पूरे अधिकार के साथ इस शख्सियत के आवास पर अपनी समस्याएं लेकर पहुंच जाते है। हम बात कर रहे है उत्तर प्रदेश के राजनीति में ब्रजेश पाठक जो किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं।यूपी की सियासत में बड़ा ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले ब्रजेश पाठक भाजपा में कद्दावर नेता के साथ ही सूबे के बड़े ब्राह्मण चेहरा माने जाते हैं। ब्रजेश पाठक में सादगी,सजगता और सत्ता का संतुलन

उत्तर प्रदेश की राजनीति में जब नेतृत्व, जातीय संतुलन और जनसरोकार एक साथ चर्चा में आएं, तो एक नाम प्रमुखता से सामने आता है – ब्रजेश पाठक। एक छात्र नेता से उपमुख्यमंत्री तक का उनका सफर न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि भारतीय राजनीति में सादगी और व्यवहारिक चतुराई के दुर्लभ मेल का प्रतीक भी है।
सादगी और संस्कारों की जमीन से निकला नेता है ब्रजेश पाठक
25 जून 1964 को सुरेश पाठक के घर हरदोई जनपद में जन्मे ब्रजेश पाठक का जीवन दर्शन “सादा जीवन, उच्च विचार” को समर्पित प्रतीत होता है। ब्रजेश नाम के व्यक्ति का व्यक्तित्व संघर्षशील, तेजस्वी, स्वाभिमानी, माता पिता और गुरु के भक्त होते हैं। ब्रजेश पाठक का जीवन शुद्ध शाकाहारी, नियमित योगाभ्यास और नशा-मुक्त जीवनशैली – ये सब उनके व्यक्तित्व को संतुलन देते हैं।
—— फरियादियों की समस्याओं को व्यक्तिगत जिम्मेदारी समझना और बड़ों का आशीर्वाद एक शक्ति के रूप में लेना, उन्हें राजनेताओं की उस नई पीढ़ी में खड़ा करता है जो संवेदनशीलता और शुचिता के साथ शासन चलाना चाहती है।
छात्र राजनीति से जननेता बनने की यात्रा ब्रजेश पाठक में सादगी,सजगता और सत्ता का संतुलन
ब्रजेश पाठक ने कानून की पढ़ाई की है, लेकिन उन्होंने अपने राजनीति जीवन की शुरुआत अपने छात्र जीवन से की है। 1989 में लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के उपाध्यक्ष और फिर 1990 में अध्यक्ष बनने के बाद ब्रजेश पाठक ने राजनीति के जनपथ की ओर पहला कदम बढ़ाया। 2004 में बसपा से उन्नाव लोकसभा सीट जीतकर संसद पहुंचे और राज्यसभा में पार्टी के उपनेता भी बने। यह एक ऐसा दौर था जब उन्हें ब्राह्मण चेहरा मानकर पार्टी ने प्रमुख भूमिका दी। हालाँकि, 2014 की मोदी लहर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। यही वह मोड़ था जब उन्होंने राजनीतिक दृष्टिकोण में बदलाव किया और 2016 में भाजपा का दामन थामा। यह कदम उनके राजनीतिक कौशल और समय की नब्ज पकड़ने की क्षमता को भी दर्शाता है।
भाजपा में ब्राह्मण चेहरे की पूर्ति या आगे की संभावना…?
ब्रजेश पाठक भाजपा की उस रणनीति का अहम हिस्सा हैं जिसमें ब्राह्मण-ठाकुर समीकरण को संतुलन में रखने की आवश्यकता है। केशव मौर्य के साथ उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाना योगी सरकार की जातीय गणित और राजनीतिक संकेतों की समझदारी को दर्शाता है। ब्रजेश पाठक 2017 में पहली बार लखनऊ मध्य से विधानसभा पहुंचे थे, इसके बाद योगी ने उनके कद को देखते हुए उन्हें अहम मंत्रालय की जिम्मेदारियों से नवाजा था।
2022 में लखनऊ कैंट सीट से भारी मतों से जीत और उपमुख्यमंत्री के रूप में पुनः वापसी, इस बात का प्रमाण है कि वे न केवल संगठन के भरोसेमंद चेहरा बन चुके हैं, बल्कि जनता के बीच भी उनकी स्वीकार्यता बढ़ रही है।
कोरोना काल में एक सजग मंत्री
ब्रजेश पाठक की छवि कोविड महामारी के दौरान और भी मजबूत हुई। COVID-19 के दौरान उनकी लोकप्रियता बढ़ी ओर योगी के निशाने पर भी रहे लेकिन डटे रहे। संकट के समय में अस्पतालों की स्थिति पर सवाल उठाते हुए जो सार्वजनिक पत्र उन्होंने अधिकारियों को भेजे, उसने दिखाया कि वह पार्टी लाइन से ऊपर जाकर जनहित को प्राथमिकता देने वाले नेता हैं। यही कारण है कि योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में उन्हें चिकित्सा स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा जैसे संवेदनशील विभाग की जिम्मेदारी दी गई।
राजनीति में मौलिकता की मिसाल
ब्रजेश पाठक तीन अलग-अलग दलों (कांग्रेस, बसपा, भाजपा) से जुड़ चुके हैं, लेकिन उनकी पहचान कभी अवसरवादी नहीं रही। इसके विपरीत, वह उन विरले राजनेताओं में हैं जिनका व्यवहार, भाषा, और दृष्टिकोण हर समय मर्यादित और संतुलित रहा है। वर्ष 2025 में DNA को लेकर वह सपा सुप्रीमों के निशाने पर रहे। वे नारेबाजी की बजाय ज़मीनी संवाद और जनप्रतिनिधित्व को महत्व देते हैं। उनकी सबसे बड़ी शक्ति यह है कि वे ‘राजनीति को सत्ता की सीढ़ी’ नहीं, बल्कि ‘सेवा का माध्यम’ मानते हैं। यही गुण उन्हें आम नेताओं से अलग खड़ा करता है।
ब्रजेश पाठक: राजनीति के ‘मौसम वैज्ञानिक’ या जनसरोकार का चेहरा…?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में जब बात ब्राह्मण नेतृत्व की होती है, तो एक नाम निर्विवाद रूप से उभरकर सामने आता है – ब्रजेश पाठक। राजनीति में मौसम के बदलते रुख को भांपने की उनकी क्षमता और जनता से उनका गहरा संवाद, उन्हें विशिष्ट बनाता है। मगर क्या उनकी सफलता महज सही समय पर दल बदल लेने की रणनीति है…? या यह एक ऐसे नेता की परिपक्व यात्रा है जो जनता के दिल तक पहुंचना जानता है..?
छात्र राजनीति से सत्ता के शीर्ष तक
ब्रजेश पाठक का राजनीतिक करियर पारंपरिक ‘संघ-प्रशिक्षित’ नेताओं जैसा नहीं रहा। ब्रजेश पाठक ने राजनीति की शुरुआत छात्र जीवन में कांग्रेस हुई। वे लखनऊ विश्वविद्यालय से छात्र राजनीति में सक्रिय हुए और 2004 में बसपा के टिकट पर उन्नाव से लोकसभा पहुंचना उनके करियर की पहली बड़ी छलांग थी। मायावती ने उन्हें राज्यसभा भेजा, पार्टी का मुख्य सचेतक बनाया और उन्हें एक उभरते ब्राह्मण चेहरे के रूप में आगे किया। लेकिन 2014 की मोदी लहर में वह उन्नाव से लोकसभा चुनाव हार गए – और यहीं से उनके राजनीतिक रुख में निर्णायक बदलाव आया।
हवा का रुख पहचानने वाले रणनीतिकार
2017 से पहले भाजपा में प्रवेश और फिर उसी साल लखनऊ मध्य से जीत दर्ज कर लेना, यह बताता है कि ब्रजेश पाठक केवल सियासी मौके की तलाश में नहीं रहते, बल्कि वह ज़मीनी हकीकत को भांपते भी हैं। तत्कालीन मंत्री रविदास मेहरोत्रा को हराकर विधानसभा में पहुंचना और फिर सीधे कैबिनेट मंत्री बन जाना, यह दर्शाता है कि भाजपा नेतृत्व ने भी उनके महत्व को समझा।
यहां यह सवाल उठता है – क्या ब्रजेश पाठक एक अवसरवादी नेता हैं, या वह सही समय पर सही निर्णय लेने वाले यथार्थवादी राजनेता…?
जनता से निकट जुड़ाव: लोकप्रियता की कुंजी
भाजपा के अंदर ब्रजेश पाठक की स्थिति विशिष्ट है। वे पार्टी की पारंपरिक विचारधारा से नहीं आते, फिर भी उपमुख्यमंत्री पद तक पहुंचे। इसके पीछे कारण है – उनकी जनसमर्थन आधारित लोकप्रियता। उनके आवास पर रोज सैकड़ों लोग अपनी समस्याएं लेकर पहुंचते हैं। कोरोना महामारी के दौरान उनकी सक्रियता और स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बनाने वाले सार्वजनिक पत्रों ने जनता के बीच उनकी छवि को और मजबूत किया।
ब्रजेश पाठक की पत्नी नम्रता पाठक भी राजनीतिक रूप से सक्रिय रही हैं और महिला आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं। यह दंपत्ति ‘सामाजिक सेवा के द्वंद्व’ को व्यक्तिगत जीवन में जीता दिखता है।
भाजपा में कल्याण सिंह के बाद नया चेहरा?
उत्तर प्रदेश की भाजपा राजनीति में कल्याण सिंह की लोकप्रियता को लंबे समय तक याद किया जाता रहा है। योगी आदित्यनाथ ने एक नया अध्याय लिखा, लेकिन अब जब योगी का कद राष्ट्रीय हो चला है, तो प्रदेश भाजपा को नया लोकल नेतृत्व चाहिए – और ब्रजेश पाठक को कई लोग उसी संभावना के रूप में देख रहे हैं। सवाल है – क्या वह योगी के बाद भाजपा का ब्राह्मण चेहरा बन सकते हैं…?
जन्म व परिवार- ब्रजेश पाठक का जन्म 25 जून 1964 में हरदोई जिले के मल्लवा कस्बे के मोहल्ला गंगाराम में हुआ था। उनके पिता का नाम सुरेश पाठक है और माता का नाम कमला पाठक है। ब्रजेश पाठक अपने पिता के सात संतानों में से पांचवे नंबर पर हैं। उनके एक बड़े भाई राजेश पाठक मल्लावां में रहते है और दूसरे भाई दिनेश पाठक लखीमपुर में स्कूल चलाते हैं।
शिक्षा- ब्रजेश पाठक ने लखनऊ विश्वविद्यालय से बीकॉम, एमए और एलएलबी की शिक्षा प्राप्त की है। छात्र जीवन से ही उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कर दी थी।
ब्रजेश पाठक की शादी- ब्रजेश पाठक की शादी 8 मार्च 1995 को हुई थी। उनकी पत्नी का नाम नम्रता पाठक है। उनकी दो बेटियां हैं जिनका नाम दीपिका व सांभवी है। वहीं उनका एक बेटा भी है जिनका नाम कार्तिक पाठक है। उनका परिवार लखनऊ के महानगर में ही रहता है।
राजनीति सफर की शुरुआत- राजनीति की शुरुआत छात्र नेता के रूप में की और लखनऊ विश्वविद्यालय से 1989 में उपाध्यक्ष चुने गए। इसके बाद 1990 में ब्रजेश पाठक छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए।
कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की- राजनीति में कदम रखते ही ब्रजेश पाठक ने सबसे पहले कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। साल 2002 में कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने मल्लावां सीट से चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें जीत हासिल नहीं हुई।
सांसद बने ब्रजेश पाठक- 2004 में ब्रजेश पाठक उन्नाव से बसपा के सांसद चुने गए। इसके बाद बसपा ने ब्रजेश पाठक को 2009 में राज्यसभा भेजा। मायावती ने इनकी पत्नी को महिला आयोग का उपाध्यक्ष बनाया। ब्रजेश पाठक यूपी में ब्राह्मणों के बड़े नेता माने जाते हैं।
भाजपा में हुए शामिल- ब्रजेश पाठक साल 2014 में बसपा के टिकट पर उन्नाव से लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन इस बार उनको हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 22 अगस्त 2016 को ब्रजेश पाठक भाजपा में शामिल हो गए।
यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में मिली जीत- ब्रजेश पाठक ने साल 2017 में लखनऊ मध्य सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा से चुनाव लड़ा और सपा के नेता रविदास मल्होत्रा को हराया। इसके बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने उन्हें अपनी कैबिनेट में जगह दी। 2017 में योगी कैबिनेट में ब्रजेश पाठक को विधि और न्याय मंत्री का पद सौंपा गया।
2022 में फिर विधायक बने ब्रजेश पाठक- साल 2022 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में ब्रजेश पाठक को लखनऊ कैंट सीट से विधायक चुना गया है।
योगी सरकार में बने उप मुख्यमंत्री- 25 मार्च 2022 को उत्तर प्रदेश में एक बार फिर योगी आदित्यनाथ सरकार गठन हुआ। योगी आदित्यनाथ सरकार में इस बार ब्रजेश पाठक को उप मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया है।
ब्रजेश पाठक को मिले मंत्रालय- प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को चार अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ब्रजेश पाठक प्रदेश के नए स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए हैं। इसके साथ ही उनको चिकित्सा शिक्षा मंत्रालय, परिवार कल्याण मंत्रालय और मातृ एवं शिशु कल्याण मंत्रालय सौंपा गया है।
अवसरवाद बनाम प्रासंगिकता
ब्रजेश पाठक का राजनीतिक सफर एक गूढ़ द्वंद्व प्रस्तुत करता है – क्या वे समय की हवा को पहचानकर निर्णय लेने वाले रणनीतिक नेता हैं, या जनता के बीच अपनी मेहनत से जगह बनाने वाले जननेता…? शायद सच्चाई दोनों के बीच है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में जब जातिगत समीकरण, जमीनी पकड़ और प्रशासनिक अनुभव – तीनों का मेल ज़रूरी हो, तो ब्रजेश पाठक जैसी शख्सियतें भविष्य की राजनीति में केंद्रीय भूमिका निभा सकती हैं।
क्या भविष्य की राजनीति ब्रजेश पाठक जैसे चेहरों की तलाश कर रही है..?
उत्तर प्रदेश जैसे विशाल, विविधता भरे राज्य में राजनीति केवल नारे और जनसभा से नहीं चलती – वहाँ नेतृत्व में स्थिरता, संवेदनशीलता और रणनीतिक कौशल की ज़रूरत होती है। ब्रजेश पाठक इनमें से प्रत्येक कसौटी पर खरे उतरते हैं। उनके पास प्रशासनिक अनुभव है, दलगत संतुलन है और जनता से संवाद की क्षमता भी है। अब यह भविष्य तय करेगा कि ब्रजेश पाठक केवल उपमुख्यमंत्री बनकर रहेंगे या उत्तर प्रदेश की राजनीति का वह चेहरा बनेंगे, जिसकी मिसाल दी जाए। यदि उन्होंने खुद को भीड़ से अलग साबित किया, तो वे न केवल अविस्मरणीय होंगे, बल्कि आदर्श भी बन सकते हैं।
ब्रजेश पाठक को फिलहाल ‘उत्तर प्रदेश का उगता सूरज’ कहा जा रहा है – पर क्या यह सूरज लंबे समय तक चमकेगा, यह आने वाला समय ही बताएगा। ब्रजेश पाठक में सादगी,सजगता और सत्ता का संतुलन