लोकतंत्र में सच्ची जीत लोक से तंत्र से नहीं-अखिलेश

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लोकतंत्र में सच्ची जीत लोक से तंत्र से नहीं-अखिलेश
लोकतंत्र में सच्ची जीत लोक से तंत्र से नहीं-अखिलेश

आज सपा मुख्यालय लखनऊ के डॉ0 राममनोहर लोहिया सभागार में अखिलेश यादव ने कहा है कि लोकतंत्र में सच्ची जीत लोक से होती है, तंत्र से नहीं। जिस जीत के पीछे छल होता, वो दिखावटी जीत एक छलावा होती है, जो सबसे ज्यादा उसी को छलती है, जिसने छल करके जीत का नाटक रचा है। ऐसी जीत जीतने वालों को कमजोर करती है। नैतिक रूप से उनके जमीर को मार देती है। बिना जमीर के जीने वाले अंदर से खोखले होते हैं। ऐसे लोग सबके सामने अपने को ताकतवर दिखाने की कोशिश करते हैं लेकिन अकेले में आईने में अपना मुंह देखने से भी डरते हैं। भाजपा का हारने का डर तो उसी दिन साबित हो गया था, जिस दिन उसने पीडीए के अधिकारियों-कर्मचारियों को चुनाव से हटा दिया था। जिससे इनके अपने लोग वहां सेट किए जा सकें और धांधली की गवाही देने वाला कोई न हो। हमने तो भाजपा की बदनीयत को समझ कर तब ही विरोध किया था, लेकिन जब शासन-प्रशासन ही दुशासन बन जाए तो लोकतंत्र के चीर हरण को कौन रोक सकता है। जिनकी उंगलियों पर निशान नहीं है, उनके भी वोट डाले गये हैं। चुनाव आयोग अपने दस्तावेजों में देखे कि जिनका नाम दर्ज है वो बूथ तक पहुंचे भी या नहीं। सब दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। अगर ईवीएम की कोई फोरेंसिक जांच संभव हो तो बटन दबाने के पैटर्न से ही पता चल जाएगा कि एक ही उंगली से कितनी बार बटन दबाया गया। लोकतंत्र में सच्ची जीत लोक से तंत्र से नहीं-अखिलेश

अखिलेश यादव ने कहा कि ये नये जमाने की ‘इलेक्ट्रॉनिक बूथ कैप्चरिंग‘ का मामला है। जो कोर्ट की निगरानी में होने वाली मतगणना में कैमरे के सामने हेराफेरी कर सकते हैं, वो अपने लोगों के बीच बूथ के बंद कमरे में क्या नहीं कर सकते। अगर पीडीए के अधिकारी-कर्मचारी बदलकर धांधली न की होती तो भाजपा एक भी सीट के लिए तरस जाती, जैसे कि लोकसभा चुनाव में हुआ था। जब ऐसी व्यवस्था मिल्कीपुर अयोध्या में नहीं हो पाई तो वहां का चुनाव ही टाल दिया। एक देश तब एक लोकतांत्रिक क्रांति की ओर बढ़ने लगता है जब उसे कहीं से भी इंसाफ की उम्मीद दिखाई नहीं देती। महंगाई, बेरोजगारी-बेकारी और चुनावी धांधली से आक्रोशित समाज एक सीमा तक ही सहता है। इतनी सी बात तो अनपढ़ भी समझता है कि पेट की आग कभी भी उसको नहीं जिता सकती जिसने रोटी छीनी हो, रोज़गार छीना हो। भाजपा ने रोजी-रोटी, मान-सम्मान, सौहार्द, भाईचारा सब छीन लिया है। भाजपा संविधान से लेकर आरक्षण तक सबको खत्म करने पर उतारू है, ऐसे में भला उसे वोट कौन देगा।

चुनाव के दिन जब निहत्थों पर बंदूक तानी गयी तो भाजपा की कमजोरी सारी दुनिया के सामने आ गयी। एक साहसी महिला ने जिस समय अपने वोट देने के अधिकार का कागज बंदूक के सामने तान दिया था, भाजपा उसी समय हमेशा के लिए हार गयी थी। लोकतंत्र में ऐसा तमाचा आज तक किसी ने नहीं मारा, जिसकी गूंज भाजपाइयों को रात में सोने नहीं देगी। सत्ता की भूख ने तो भाजपा को पहले ही बीमार बना दिया था अब तो वो सो भी नहीं पायेगी। हमें तो भाजपा के लोगों पर अब तरस आता है, लेकिन जनता कह रही है ये वो लोग नहीं है जिन पर तरस किया जाए। भाजपा सोच रही है कि इन परिणामों से पीडीए हताश होगा तो वो गलत सोच रही है। अन्याय और उत्पीड़न लोगों को तोड़ता नहीं जोड़ता है। हमने पहले भी कहा है आज फिर कह रहे है। सदियों से पीडीए समाज का जो उत्पीड़न और अपमान प्रभुत्ववादियों ने किया है, उसका दर्द पीडीए ही समझ सकता है। पीडीए दर्द का रिश्ता है। यही दर्द पीडीए को लगातार जोड़ रहा है, ये एकता ही भाजपा की चिंता का सबसे बड़ा विषय है। भाजपा की बुनियाद हिल चुकी है। एक बार सोच के देखिए, भाजपा को भला वोट कौन दे रहा है। क्या वो गरीब जो महंगाई का मारा है।

अखिलेश यादव ने कहा कि या वो पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक या आदिवासी जिसका भाजपा राज में लगातार शोषण हो रहा है, जिसका आरक्षण मारा जा रहा है या वो किसान जिसको खाद नहीं मिली या जिसकी फसल छुट्टा पशु खा रहे हैं या जिसको फसल की कीमत नहीं मिल रही या वो मजदूर जिसे बेकारी के कारण मजदूरी नहीं मिल रही है या वो कारोबारी-व्यापारी जो भ्रष्ट जीएसटी और भाजपाई चंदे की रसीद कटवाने वालों से परेशान है या वो महिला जो युनिवर्सिटी कैंपस तक में सुरक्षित नहीं है या वो सरकारी कर्मचारी जिनके ऊपर भ्रष्टाचार करने का दबाव है या जिनकी पुरानी पेंशन तक छीन ली गयी या वो पत्रकार जिनको निर्वस्त्र करके पीटा जा रहा है या वो युवा जो नौकरी के लिए धरने पर बैठे थे। चाहे 69000 शिक्षक की भर्ती का मामला हो या पुलिस या अग्निवीर भर्ती या जज की परीक्षा में कॉपी बदलने या परीक्षा लीक या रद्द होने या कोर्ट में रिजल्ट फंस जाने का। इन सब बातों से लाखों निराश युवा और उनके हताश परिवार के करोड़ों लोग सब ही तो विरोध में है। सच तो ये है कि भाजपा को 5 प्रतिशत लोग भी वोट नहीं दे रहे हैं। इनकी जीत में वोट की कोई भूमिका है ही नहीं। ये तंत्र की हेराफेरी से जीतने वाले लोग हैं। कुंदरकी विधानसभा उपचुनाव में दो तरह की मतदाता पर्चियां बांटी गई। एक मतदाता सूचना पर्ची सामान्य किस्म की थी जबकि दूसरी पर्ची लाल लाइन से घिरी हुई थी, इसमें पहले मतदान, फिर जलपान की भी हिदायत थी। लोकतंत्र की यह कलंक कथा किसी को भी शर्मसार कर सकती है। लोकतंत्र में सच्ची जीत लोक से तंत्र से नहीं-अखिलेश