अंतरिक्ष का सिरमौर बन रहा है इंडिया..!

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इसरो का सौंवा मिशन: अंतरिक्ष के क्षेत्र में सिरमौर बन रहा है इंडिया ! विदेशों ने हमारी अंतरिक्ष क्षमताओं पर भरपूर विश्वास जताया है और आज अनेक विदेशी उपग्रहों को इसरो द्वारा लांच किया जा रहा है।

सुनील कुमार महला

29 जनवरी 2025 बुधवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो) ने इतिहास रच दिया। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि इसरो के श्री हरिकोटा से ऐतिहासिक 100वां प्रक्षेपण सफल रहा है। हालांकि,100वां प्रक्षेपण 46 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद हुआ है, लेकिन यह बड़ी उपलब्धि है।उल्लेखनीय है कि सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएलवी) 10 अगस्त, 1979 को श्रीहरिकोटा से लॉन्च होने वाला पहला बड़ा रॉकेट था।

बहरहाल,आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में 29 जनवरी 2025 को सुबह 6 बजकर 23 मिनट पर एनवीएस-02 को ले जाने वाले जीएसएलवी-एफ15 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। कहना ग़लत नहीं होगा कि भारत अंतरिक्ष नेविगेशन में नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। वास्तव में यह हर भारतीय को गौरवान्वित करने वाला पल रहा। इसरो की यह उपलब्धि दिखाती है कि भारत विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में नित नवीन बुलंदियों को छू रहा है। यह भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण/शोध के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और बढ़ती क्षमता/ताकत को भी बखूबी प्रमाणित करती है। गौरतलब है कि हाल ही में श्री सोमनाथ का स्थान लेते हुए डॉ. वी. नारायणन ने 13 जनवरी 2025 को ही इसरो के अध्यक्ष,अंतरिक्ष विभाग के सचिव, अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया है।सच तो यह है कि इसरो के नए प्रमुख डॉ. वी. नारायणन के कार्यकाल और वर्ष 2025 का यह पहला अभियान है।

उल्लेखनीय है कि इसरो 1969 में स्थापित किया गया था, और कभी इसरो को अपने रॉकेट ले जाने के लिए साइकिल तक का इस्तेमाल करना पड़ा था। यही नहीं, 1981 में भारत ने जब अपना छठा सैटेलाइट एप्पल लॉन्च किया था, तब इसे पैलोड तक बैलगाड़ी से ले जाना पड़ा था।सच तो यह है कि इसरो ने साइकिल और बैलगाड़ी पर ले जाने के युग से लेकर चंद्रमा तक अपनी पहुंच बनाने तक के सफर में रचा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले साल 23 अगस्त वर्ष 2024 में चंद्रयान-3 ने चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग करके इतिहास रच दिया था और ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है। कितनी बड़ी बात है कि सीमित संसाधनों के बावजूद असाधारण सफलताएं अर्जित करने वाले इसरो ने हमेशा अपनी वैज्ञानिक दक्षताओं और नवाचारों से पूरी दुनिया को चौंकाया है।

हमारे लिए इससे बड़ी और बेहतर बात भला और क्या हो सकती है कि हमारे देश भारत ने हॉलीवुड फिल्म ग्रेविटी से भी कम बजट में मंगल मिशन को लॉन्च किया था। हाल फिलहाल, इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन ने यह बात कही है कि- ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी अगले पांच वर्षों में 100 मिशन लॉन्च करने के लिए काम करेगी।’ मतलब यह है कि इसरो का अगले पांच वर्षों में लक्ष्य 100 मिशन लॉन्च करने का लक्ष्य है। पाठकों को बताता चलूं कि 100 वें मिशन के लॉन्च के बाद इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन ने कहा, ‘आज हमने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है।’ उन्होंने कहा, ‘इसरो की टीम की कड़ी मेहनत और टीम वर्क से इसरो का 100वां प्रक्षेपण सफलतापूर्वक पूरा हुआ है।’

गौरतलब है कि भारत का अपना नेविगेशन सिस्टम है। दरअसल, जीएसएलवी-एफ-15 पेलोड फेयरिंग में 3.4 मीटर व्यास वाला एक धातु संस्करण था और इसने एनवीएस-02 उपग्रह को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में स्थापित किया। एनवीएस-02 नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन सिस्टम के लिए दूसरी पीढ़ी के उपग्रहों का हिस्सा है। यह एनवीएस-02 का 5वां उपग्रह है। जानकारी के अनुसार वर्तमान में, इनमें से चार उपग्रह चालू हैं। बहरहाल,इसरो के चैयरमेन ने यह बात कही है कि उन्हें हाल फिलहाल इस साल लॉन्च के लिए चंद्रयान 3 और 4 जैसे कई प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी मिल गई है।

उन्होंने यह बात कही है कि ‘इस साल के लिए बहुत सारे मिशन तैयार हैं।’ गौरतलब है कि उन्होंने नए कुलसेकरपट्टिनम लॉन्च पैड का भी उल्लेख किया है। दरअसल, तमिलनाडु के तटीय गांव कुलसेकरपट्टिनम में स्थित, इस स्पेसपोर्ट का निर्माण माइक्रोसैटेलाइट और नैनोसैटेलाइट जैसे छोटे उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए किया जा रहा है। नारायणन ने कहा है कि , ‘दो साल के भीतर कुलसेकरपट्टिनम लॉन्च पैड में सभी सुविधाएँ तैयार हो जाएंगी। उसके बाद हम वहाँ से सभी तरह के मिशन लॉन्च करने की उम्मीद करेंगे।’ बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में आज भारतीय वैज्ञानिकों का कोई सानी नहीं है और भारतीय मेधा अंतरिक्ष के क्षेत्र में पूरी तन्मयता,लगन और निष्ठा से काम कर रही है। सच तो यह है कि इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन आज स्पेस में नई इबारत लिख रहा है। ऊपर बता चुका कि हम चांद पर कदम रख चुके हैं।

चांद के उस कोने तक जा चुके हैं, जहां आज तक कोई नहीं जा पाया है। इतना ही नहीं,अब तक हम सूरज के नजदीक भी पहुंच चुके हैं।आदित्य-एल1, 1.5 मिलियन किलोमीटर की दूरी से सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन है। आज भारत एआई के क्षेत्र में भी लगातार आगे बढ़ रहा है और आने वाले समय में हम एआई की मदद से अंतरिक्ष के क्षेत्र में और अधिक उपलब्धियां हासिल करेंगे,ऐसी संभावनाएं हैं। बहरहाल,सौवें मिशन के रूप में जीएसएलवी-एफ 15 की सफलता यही साबित करती है कि भारत की अंतरिक्ष एजेंसी अब वैश्विक अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में भी अग्रणी भूमिका निभाने के लिए तैयार है। आज पूरी दुनिया भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी और इसके वैज्ञानिकों का लोहा मान रही है।

विदेशों ने हमारी अंतरिक्ष क्षमताओं पर भरपूर विश्वास जताया है और आज अनेक विदेशी उपग्रहों को इसरो द्वारा लांच किया जा रहा है। गौरतलब है कि इस संबंध में कुछ समय पहले ही केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी थी कि इसरो ने अपनी वाणिज्यिक शाखा के जरिये वैश्विक ग्राहकों के लिए उपग्रहों को प्रक्षेपित करके 27.90 करोड़ डालर की विदेशी मुद्रा अर्जित की है। वास्तव में यह हमारे देश की एक बड़ी उपलब्धि है। हाल फिलहाल, इसरो का ताजा अभियान और इससे पहले के भी कई अभियान अंतरिक्ष के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ते कदमों की ओर इशारा करते हैं। यह बताता है कि इसरो लगातार अंतरिक्ष में बड़ी छलांग की ओर अग्रसर है। आने वाले समय में हम अंतरिक्ष में विश्व में सिरमौर देश होंगे।