पीडीए में 90 प्रतिशत का विश्वास

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एक देश-एक चुनाव लोकतंत्र के लिए घातक-अखिलेश यादव
एक देश-एक चुनाव लोकतंत्र के लिए घातक-अखिलेश यादव

अखिलेश यादव ने कहा है कि एक सर्वे के अनुसार लोगों से बात करने पर पता चला है कि पीडीए में विश्वास करने वालों की संख्या कुल मिलाकर 90 प्रतिशत है। 49 प्रतिशत पिछड़ों का विश्वास पीडीए में है। 16 प्रतिशत दलितों का विश्वास पीडीए में है। 21 प्रतिशत अल्पसंख्यकों का विश्वास पीडीए में (मुस्लिम + सिख + बौद्ध + ईसाई + जैन व अन्य + आदिवासी) है तथा 4 प्रतिशत अगड़ों का विश्वास भी पीडीए में है। (उपरोक्त सभी में आधी-आबादी मतलब महिलाएं सम्मिलित हैं) इन 90 प्रतिशत लोगों में से अधिकांश इस बार पीडीए के लिए एकजुट होकर वोट करेंगे। पीडीए में 90 प्रतिशत का विश्वास

    भाजपा इसी कारण न कोई गणित बैठा पा रही है, न कोई समीकरण, इसीलिए भाजपा के पिछले सारे फ़ार्मूले, इस बार फ़ेल हो गये हैं। इसीलिए भाजपा उम्मीदवारों के चयन में बहुत पीछे छूट गयी है। भाजपा को उम्मीदवार ही नहीं मिल रहे हैं। भाजपा का टिकट लेकर हारने के लिए कोई लड़ना नहीं चाहता है। यहाँ तक कि भाजपा के मुख्य समर्थकों में भी जो महिलाएँ महिला पहलवानों की दुर्दशा, मणिपुर की वीभत्स घटना, माँ-बेटी को जलाने के कांड जैसी अन्य अनगिनत नारी अपमान की घटनाओं को लेकर भाजपा समर्थक होने के नाते शर्मिंदा हैं वे इस बार सन् 2024 में भाजपा का साथ नहीं देंगी। साथ ही नौकरी या भर्ती की उम्मीद लगाये बैठे, जो युवा भाजपा राज में हताश हुए हैं, वे सब भी इस बार भाजपा को हराने-हटाने के लिए ही वोट देंगे। अपने को बुद्धिजीवी समझने वाले समाज में जो लोग तथाकथित नैतिकता व राजनीतिक ईमानदारी के नाम पर भाजपा की ओर देखते थे, वे महाराष्ट्र, बिहार, चंडीगढ़ मेयर चुनाव और झारखंड की सत्ता के लालच से भरी अनैतिक व भ्रष्ट व्यवहार की घटनाओं से न केवल क्षुब्ध हैं बल्कि व्यथित भी हैं। ऐसे लोग बहुत ज़्यादा हैं, इनकी निष्क्रियता भी भाजपा के वोटों में भारी कमी करेगी। भाजपा अपनों से ही हारेगी।

  किसानों के बीच दुगुनी आय के झूठे वादों, बोरी की चोरी, फ़सल को नुक़सान पहुँचाते पशुओं से छुटकारा दिलाने की झूठी गारंटियों, महँगी होती कृषि की लागत के कारण भाजपा विरोधी लहर चल रही है। जीएसटी की बंदइंतजामी भाजपा के परंपरागत कारोबारी वोटरों मतलब दुकानदारों, व्यापारियों व छोटे कारख़ाना मालिकों को भाजपा से पहले ही दूर कर चुकी है। भाजपा अपने अरबपति साथियों के लिए मज़दूर व श्रमिक विरोधी नियम-क़ानून लाकर मेहनत-मजूरी का पैसा मार रही है, इसीलिए मज़दूर-किसान भी भाजपा के पूरी तरह खिलाफ़ हो गया है। इस चौतरफ़ा विरोध के माहौल में भाजपा उप्र में हार मानकर बैठ चुकी है। भाजपा के नेतागण जन आक्रोश देखकर भागे-भागे फिर रहे हैं और बाक़ी बचे स्वार्थी भाजपाई समर्थक अपनी पुरानी परम्परा को निभाते हुए भूमिगत हो गये हैं। ली है पीडीए ने अंगड़ाई, भाजपा की शामत आई। पीडीए में 90 प्रतिशत का विश्वास