
यूपीएससी से सेंट्रल सिविल सर्विस के लिए हो रहे सलेक्शन की संख्या लगातर गिरती जा रही है। ‘2014 में यूपीएससी ने 1,236 अफसरों के नाम नियुक्तियों के लिए सरकार के पास भेजे थे। जो 2018 में ये संख्या घटकर 759 रह गई।’ कम नियुक्तियों का मतलब है कोटा से कम कैंडिडेट का आना। चूंकि आरक्षण सिर्फ सरकारी नौकरियों में है, इसलिए सरकारी नौकरियों में कटौती का मतलब आरक्षण का कमजोर होना भी है। देश में आरक्षण खत्म नहीं,निष्प्रभावी
देश की नीतियाँ बनाने वाले 89 सचिवों में सिर्फ़ 1 एससी,3 एसटी वर्ग के हैं।हाल ही में एक रिपोर्ट आयी थी कि केंद्र सरकार के 89 सचिवों में से अनुसूचित जाति यानी एससी के सिर्फ़ एक और अनुसूचित जनजाति यानी एसटी से तीन सचिव हैं। 93 अतिरिक्त सचिवों में एससी/एसटी के 10 और ओबीसी के 4 हैं तथा 245 संयुक्त सचिवों में एससी/एसटी के 26 व ओबीसी के 29 हैं। केंद्र सरकार ने 2019 से लेटरल इंट्री(पार्श्व भर्ती या चोर दरवाजे से नियुक्ति) से निजी क्षेत्रों से संघीय मानसिकता के लोगों को सचिव, संयुक्त सचिव, अतिरिक्त सचिव व डायरेक्टर बिना किसी प्रतियोगितात्मक परीक्षा के नामित करना शुरू कर दी है। जबकि इस पद पर पहुँचने के लिए यूपीएससी की कठिन प्रतियोगी परीक्षा पास कर 15-17 वर्ष आईएएस की नौकरी करने के बाद यह अवसर मिलता है।
देश में आरक्षण लागू होने की स्थिति कितनी ख़राब है, इसकी रिपोर्टें सरकारी आँकड़े ही साफ़-साफ़ बयान करते हैं। इस मामले में केंद्र सरकार के ऊँचे पदों पर तो स्थिति और भी ख़राब है। हाल ही एक रिपोर्ट आयी थी कि केंद्र सरकार में 89 सचिवों में से अनुसूचित जाति यानी एससी के सिर्फ़ एक और अनुसूचित जनजाति यानी एसटी से तीन सचिव हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी से कोई भी सचिव नहीं है। ये आँकड़े हाल ही में संसद में रखे गए थे। कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट के अनुसार इसमें से अधिकतर सचिव भारतीय प्रशासनिक सेवा यानी आईएएस हैं। मंडल आयोग की सिफ़ारिश पर सरकारी नौकरियों में ओबीसी के लिए 27.5 फ़ीसदी,केंद्रीय आरक्षण नियमावली के अनुसार एससी के लिए 15 फ़ीसदी और एसटी के लिए 7.5 फ़ीसदी आरक्षण लागू करना ज़रूरी है। लेकिन जब सचिव स्तर के इन पदों पर नियुक्ति के मामले में आरक्षण सही से लागू हुआ नहीं जान पड़ता है। लेटरल इन्ट्री शुरू कर निजी क्षेत्रों का जमावड़ा किया जा रहा है।
केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों में एससी, एसटी और ओबीसी का प्रतिनिधित्व अतिरिक्त सचिव के स्तर पर भी ऐसा ही है। 93 अतिरिक्त सचिवों में से एससी के 6,एसटी के 5 और ओबीसी के 4 हैं। 275 संयुक्त सचिवों में से 16 एससी हैं, 10 एसटी और 29 ओबीसी श्रेणी से हैं। प्रतिनिधित्व जिस अनुपात में होना चाहिए वैसा नहीं होने पर इस पर सवाल उठते रहे हैं। आरक्षण सही तरीक़े से लागू नहीं किए जाने के ख़िलाफ़ विपक्षी नेता समय-समय पर आवाज़ उठाते रहते हैं। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी द्वारा संसद में महिला आरक्षण बिल पर बहस के दौरान सवाल पूछे गए। ‘द प्रिंट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब सरकार ने कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा तैयार इन आँकड़ों को संसद में रखा था तब तृणमूल सांसद दिब्येंदु अधिकारी के सवाल का कार्मिक मंत्रालय के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने 10 जुलाई को जवाब दिया था। उन्होंने कहा था कि आरक्षण श्रेणी से आने वाले अक्सर ज़्यादा उम्र में सेवा में आते हैं इसलिए अधिकतर अधिकारी सचिव और अतिरिक्त सचिव जैसे पदों के लिए इम्पैनलमेंट किए जाने से पहले ही वे सेवानिवृत्त हो जाते हैं।मंत्री ने साफ़ कहा था, ‘इसी कारण भारत सरकार में उच्च पदों पर उनका आनुपातिक प्रतिनिधित्व तुलनात्मक रूप से कम है। हालाँकि, उनके नामों पर विचार के लिए उपलब्ध आरक्षित श्रेणी के अधिकारियों में से, उन्हें जितना संभव हो उतना ज़्यादा प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया जाता है। देश में आरक्षण खत्म नहीं,निष्प्रभावी
राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह की बात कितनी सही है, यह तो इस पर कोई रिपोर्ट आए तभी पता चलेगा, लेकिन दूसरे ऐसे मामले हैं जहाँ उम्र ज़्यादा होने से असर नहीं पड़ना चाहिए और फिर भी एससी, एसटी और ओबीसी का प्रतिनिधित्व काफ़ी कम है। यह है केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नियुक्ति का मामला। 95.2 फ़ीसदी सवर्ण प्रोफ़ेसर हाल ही में एक अंग्रेजी अख़बार को सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में इन सवालों के जवाब सामने आए। देश में कुल 40 केंद्रीय विश्वविद्यालय(अब 53) हैं, जिसमें कुल पढ़ाने वाले(प्रोफ़ेसर,एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर) 11,486 लोग हैं। इनमें 1,125 प्रोफ़ेसर हैं और इनमें दलित प्रोफ़ेसर 39 यानी 3.47 फ़ीसदी हैं,जो कि 15 फ़ीसदी होने चाहिए थे। आदिवासी प्रोफ़ेसर सिर्फ़ 6 यानी 0.7 फ़ीसदी जो कि 7.5 फ़ीसदी होने चाहिए थे। पिछड़े प्रोफ़ेसर 0 जो 27 फ़ीसदी होने चाहिए थे। जबकि सवर्ण प्रोफ़ेसर 1071 यानी 95.2 फ़ीसदी हैं जो हर हाल में 40.5 फ़ीसदी से अधिक नहीं होने चाहिये। 40 संस्थानों में कुल 2620 असोसिएट प्रोफ़ेसर हैं। इसमें 130 यानी 4.96 फ़ीसदी दलित प्रोफ़ेसर ही हैं जबकि 393 होने चाहिए थे, 34 यानी 1.3 फ़ीसदी आदिवासी प्रोफ़ेसर ही हैं, जो 197 होने चाहिए थे। इसके उलट कुल 3434 यानी 92.9 फ़ीसदी सवर्ण असोसिएट प्रोफ़ेसर जो 40.5 फ़ीसदी से ज्यादा हैं। पूरे देश में एक भी पिछड़े वर्ग का असोसिएट प्रोफ़ेसर नहीं है।

भारत में नौकरशाही के लिए अफसरों के चयन की एक संविधान प्रदत्त प्रणाली है। इसके लिए यूपीएससी और राज्यों के पब्लिक सर्विस कमीशन का संविधान में प्रावधान है। संविधान में अनुच्छेद 315 से लेकर 323 तक में इस बात का जिक्र है कि नौकरशाही के लिए चयन का पूरा सिस्टम कैसा होगा। पब्लिक सर्विस कमीशन से बाहर से इक्के-दुक्के लोगों को पहले भी सरकारें नौकरशाही में लाती रही हैं। लेकिन ये कभी उस स्तर पर नहीं हुआ, जो मोदी सरकार के समय में हो रहा है। जब केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव के मतदान के बीच में ही नौ ज्वायंट सेक्रेटरी की नियुक्ति की घोषणा की तो मीडिया ने उसे अब तक की सबसे बड़ी ऐसी नियुक्ति करार दिया।
उदित राज भी भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रहे हैं और अनुसूचित जाति से आने वाले बीजेपी के पूर्व सांसद ने आरोप लगाया कि अक्सर, एससी/एसटी वर्ग से संबंधित अधिकारियों को उन्हें शीर्ष पद तक पहुँचने नहीं दिया जाता है। ‘द प्रिंट’ के अनुसार, उदित राज ने कहा, ‘एक दलित के रूप में पूर्व आईआरएस अधिकारी होने के नाते मैं अपने अनुभव साझा कर सकता हूँ। एससी/एसटी वर्ग से संबंधित अधिकारियों के ख़िलाफ़ फर्जी शिकायतें दर्ज की जाती हैं और ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जब उनकी गोपनीय रिपोर्ट को उनके आकाओं ने ख़राब कर दिया।’ बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उदित राज ने कांग्रेस में शामिल होने के लिए बीजेपी छोड़ दी थी।उन्होंने दावा किया, ‘जब मैं बीजेपी में था तब वरिष्ठ नौकरशाही के पदों पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के कम प्रतिनिधित्व होने पर विरोध किया था, लेकिन कोई भी इसको सुनने के लिए गंभीर नहीं है। मैंने इस मुद्दे को उठाने की क़ीमत चुकाई।’ लेटरल इंट्री द्वारा 9 संयुक्त सचिवों की नियुक्ति में नहीं था आरक्षण सरकारी नौकरियों में आरक्षण को कैसे ख़त्म किया जा सकता है, इसकी मिसाल देखनी है तो केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव के 9 पदों पर लेटरल इन्ट्री द्वारा नियुक्ति प्रक्रिया को देखिए।
संयुक्त सचिव के 9 पदों पर नियुक्तियों के मामले में यूपीएससी ने तो साफ़ शब्दों में कहा है कि डीओपीटी ने कहा था कि इस भर्ती मामले में कोई आरक्षण नहीं होगा। एक आरटीआई से मिली जानकारी से पता चला है कि साल 2019 अप्रैल में संयुक्त सचिव स्तर पर निजी क्षेत्र से प्रतिभाओं को शामिल करने के दौरान कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने एक ऐसी प्रक्रिया अपनाई जिससे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को आरक्षण देने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। डीओपीटी के सामने आरटीआई दायर की गई थी और इसने जो जवाब दिया है उसी आधार पर अंग्रेज़ी अख़बार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने इसी साल जून में इस पर एक रिपोर्ट छापी थी।बता दें कि डीओपीटी ने 15 मई 2018 को एक परिपत्र में ज़िक्र किया था कि ‘केंद्र सरकार के पदों और सेवाओं के लिए नियुक्तियों के संबंध में एससी, एसटी और ओबीसी के उम्मीदवारों के लिए 45 दिनों या उससे अधिक के लिए होने वाली अस्थायी नियुक्तियों में भी आरक्षण होगा।’ये ख़बरें इस लिहाज़ से काफ़ी अहम हैं कि सरकार प्रवेश स्तर पर ही सिविल सेवाओं के बाहर से लोगों को नौकरी पर रखने की महत्त्वाकांक्षी योजना बना रही है। तो क्या यह योजना आरक्षण की व्यवस्था को निष्क्रिय करने जैसी नहीं होगी..?
विधायिका में महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा के दौरान राहुल गाँधी ने जब 93 संयुक्त सचिव में मात्र 4 ओबीसी के प्रतिनिधित्व पर चिन्ता जाहिर किया तो गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि भाजपा में 29% ओबीसी सांसद और केंद्रीय मंत्रिमंडल में 29 ओबीसी मंत्री हैं। बताते चलें कि उत्तर प्रदेश सरकार में ओबीसी के 27 और 8-9 एससी/एसटी के मंत्री,भाजपा से 90 ओबीसी,67 एससी,एसटी के विधायक हैं,पर ओबीसी,एससी,एसटी के किस काम के,जब ओबीसी,एससी, एसटी आरक्षण कोटे की खुलेआम हकमारी पर इनकी जुबान नहीं खुलती। 69,000 शिक्षक भर्ती, अशासकीय स्नातक/स्नातकोत्तर महाविद्यालयों में प्राचार्य भर्ती,विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती,खण्ड शिक्षा अधिकारी भर्ती,आयुष विभाग में चिकित्सक भर्ती, नर्सिंग भर्ती,ग्राम विकास अधिकारी भर्ती,आई टेस्टिंग ऑफीसर भर्ती,वनरक्षक भर्ती,जूनियर असिस्टेंट/क्लर्क भर्ती आदि में उत्तर प्रदेश आरक्षण नियमावली अनुसार ओबीसी, एससी, एसटी को सीटें आरक्षित न कर खुलेआम कोटे की हकमारी की गयी,पर किसी भी पिछड़ेवर्ग और दलित वर्ग के सांसद, विधायक की चुप्पी नहीं टूटी।
कैबिनेट सचिवालय में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व- कैबिनेट सचिवालय में ग्रुप-ए के 81 अधिकारियों में 2 ओबीसी,6 एससी और 1 एसटी, ग्रुप-बी के 109 अधिकारियों में 20 ओबीसी,6-6 एससी,एसटी वर्ग के अधिकारी हैं। केंद्रीय सरकारी सेवा के ग्रुप-ए से सी में 5.12 लाख लोकसेवकों में 20.26 प्रतिशत ओबीसी,17.70 प्रतिशत एससी और 6.72 प्रतिशत एसटी वर्ग के हैं। केंद्रीय आरक्षण नियमावली के अनुसार ओबीसी को 27 प्रतिशत, एससी को 15 प्रतिशत और एसटी को 7.5 प्रतिशत आरक्षण कोटा निर्धारित है। नीति आयोग में ग्रुप-ए के 193 अधिकारियों में 15 ओबीसी, 19 एससी,13 एसटी वर्ग के हैं। केंद्रीय लोक उद्यम विभाग के 30 अधिकारियों में 5 एससी के हैं और ओबीसी,एसटी का प्रतिनिधित्व शून्य है। उच्च शिक्षा विभाग में ग्रुप-ए के 221 अधिकारियों में ओबीसी के 29,एससी के 39 और एसटी के 23 अधिकारी हैं। देश में आरक्षण खत्म नहीं,निष्प्रभावी
चौ.लौटनराम निषाद-
(लेखक- सामाजिक न्याय चिंतक और भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।)