
राजेन्द्र चौधरी
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी ने लखनऊ में समाजवादी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओ के साथ इमरजेंसी मूवी देखी। आपातकाल पर बनी इस फिल्म को देखने के पीछे राजेंद्र चौधरी की मंशा यह जानने की थी कि उस दौर में अभिव्यक्ति की आजादी और नागरिक स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्ष को पिक्चर में किस रूप में प्रकट किया गया है। सत्तर का दशक संविधान प्रदत्त अधिकारों के हनन का था जिसके खिलाफ छात्रों- नौजवानों ने जेपी की अगुवाई में लोकतंत्र बहाली के सपनें को साकार करने का संघर्ष किया। ठीक उसी प्रकार की परिस्थितियां आज भी देश के सामने हैं। नागरिक अधिकारों को समाप्त करने का शड़यंत्रकारी प्रयास जारी है। संविधान संकट में है। भारत की विविधता पर खतरा मंड़रा रहा है। राजेंद्र चौधरी ने कार्यकर्ताओ के साथ इमरजेंसी मूवी देखी
श्री चौधरी ने कहा 1975 में 50 वर्ष पहले देश में आपातकाल लगा था जिसमें संविधान प्रदत्त नागरिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन हुआ था। आपात काल लगते ही विपक्ष के नेताओं को कैद कर लिया गया था। अखबारों पर भी सेंसरशिप लगा दी गई। चारों ओर दहशत और आतंक का माहौल था। न अपील न वकील, न दलील। जेल में यातनाओं का दौर। आज भी उस दिन की याद कर मन में सिहरन उत्पन्न हो जाती है। आपातकाल लगने के कुछ घंटे पहले लोकनायक जय प्रकाश नारायण की दिल्ली के रामलीला मैदान की सभा में राजेंद्र चौधरी अपने सहयोगियों के साथ शामिल हुए थे।
इमरजेंसी लगने के बाद अनेक अंडरग्राउंड पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन चोरी छिपे हो रहा था। जिनमें जनवाणी, प्रतिरोध, युवा संघर्ष और रेजिस्टेंस प्रमुख पत्र/पत्रिकाएं थीं। उसी समय भारतीय लोकदल के युवा नेता राजेंद्र चौधरी ने ‘प्रतिरोध‘ पत्रिका का संपादन के.सी. त्यागी के साथ किया। इसका विवरण ऑपरेशन इमरजेंसी नामक पुस्तक ब्यौरे से दिया गया है। प्रतिरोध के कुछ अंक निकलने के बाद इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया और पुलिस ने इसके अंक जब्त कर लिए। एक दिन ऐसा हुआ कि जब राजेन्द्र चौधरी एवं केसी त्यागी, प्रतिरोध की कापियां छपवाकर एक ऑटो से राष्ट्रपति भवन चौराहा पर पहुंचे तभी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का काफिला उधर से गुजरा। वह तो गनीमत थी कि तब पुलिस ने चेक नहीं किया। अन्यथा जो प्रताड़ना मिलती उससे आज वह यह कहानी बता पाते कहना मुश्किल ही था। ऐसे खतरनाक दिन थे वे। आपातकाल के विरोध में जब एक दर्जन साथियों के साथ गाजियाबाद में प्रदर्शन कर रहे थे। तब उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर मेरठ जेल में रखा। हथकड़ी लगाई। यद्यपि वे तब एमए एलएलबी कर चुके थे। इससे पूर्व वे 1974 में गाजियाबाद विधानसभा से चुनाव लड़े थे। चौधरी चरण सिंह ने उन्हें टिकट दिया था। 1977 में वे वहीं से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। तब तक छात्र नेता के रूप में वे चर्चित हो चुके थे।
देश में आज भी असंवैधानिक अघोषित आपातकाल का दौर चल रहा है। अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला हो रहा है। असहिष्णुता चरम पर है। लोकतांत्रिक व्यवस्था को केन्द्र और राज्य सरकारें कमजोर कर रही है। भाजपा सरकार लोकतंत्र का गला घोटनें में लगी है। ईमानदार पत्रकारों का जीवन असुरक्षित हो गया है। नौजवानों का भविष्य अंधकार के गर्त में ढकेला जा रहा है। संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर आंच आई है। उन्हें लगातार कमजोर किया जा रहा है। सरकार अधिनायकशाही जैसा बर्ताव कर रही है। सरकारी नीतियों में तानाशाही के संकेत है। समाज भय और अराजकता के वातावरण में जीने को मजबूर है। यह इतिहास की पुनरावृत्ति है।
आपातकाल में लोकतंत्र को बचाने के संघर्ष में जिनकी भागीदारी थी उनको सम्मानित करने का काम उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार ने ही किया है। सर्वप्रथम नेताजी की समाजवादी सरकार में ही लोकतंत्र सेनानियों को पेंशन दी गई थी जिसे मायावती सरकार ने रद्द कर दिया था। अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्वकाल में अधिनियम बनाकर लोकतंत्र सेनानियों को प्रतिमाह 15 हजार रुपए की पेंशन स्वीकृत कर उनके सम्मानपूर्ण जीवन निर्वहन का काम किया। उनको राजकीय वाहनों में यात्रा करने, अपने साथ एक सहयोगी को भी रखने, निःशुल्क चिकित्सा के अलावा मरणोपरांत राजकीय सम्मान दिए जाने की भी व्यवस्था की गई। राजेन्द्र चौधरी ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार में राजनीतिक पेंशन के साथ कारागार एवं खाद्य रसद विभाग के उत्तरदायित्व निभाते हुए लोकतंत्र सम्मान सेनानी अधिनियम 2016 बनाकर कानूनी व्यवस्था की थी।
समाजवादी पार्टी अपने जन्म से ही अन्याय के विरूद्ध संघर्षरत रही है। लोकतंत्र, समाजवाद और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए भी वह प्रतिबद्ध है। अगस्त 1942 की क्रांति में भी समाजवादियों ने अग्रणी भूमिका निभाई थी। जब आपातकाल लगा तो जयप्रकाश नारायण जी, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी बाजपेई, चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर और राजनारायण को रातो रात गिरफ्तार कर लिया गया था। तमाम नेताओं को जेल यातना सहनी पड़ी थी। जब संविधान संशोधन कर लोकसभा की अवधि बढ़ाई गई तो मधुलिमये, जार्ज फर्नांडिस, आडवाणी आदि नेताओं ने संविधान बचाने की लड़ाई लड़ी थी। आपातकाल के वे संघर्ष भरे दिनों का जैसा उल्लेख होना था इस मूवी में हुआ ही नहीं।
राजेंद्र चौधरी ने ‘इमरजेंसी‘ फिल्म पर कहा कि इसके माध्यम से सत्ता पर बैठे लोगों को लोकतंत्र में जनता की सर्वोच्चता समझ आएगी। इमरजेंसी मूवी में लगता है इतिहास की कई घटनाओं का कोलाज पेश किया गया है। कई घटनाक्रम सत्यता से परे है। कई कथन जो इंदिरा जी के मुंह से कहलाए गए हैं वस्तुतः उनके थे ही नहीं। मूवी का जैसा नाम है वैसा आपातकाल का दृश्य न तो प्रमुखता में रहा और नहीं प्रभावी बन पाया है। पर यह सत्य तो है ही कि सत्ता का अहंकार जन आक्रोश के आगे हमेशा पराजित होता है।राजेन्द्र चौधरी के साथ जूही सिंह,फखरूल हसन चांद,नवीन धवन बंटी,आशीष यादव सोनू,मधुकर त्रिवेदी,मणेन्द्र मिश्र मशाल,डॉ.आशुतोष वर्मा,देवेन्द्र यादव जीतू,दद्दन खां ज्ञानेश्वर पाण्डेय,सोनू कनौजिया,आदर्श सिंह,अब्दुल्ला आमिर,उदयवीर यादव,राहुल यादव,निखिल कनौजिया आदि ने भी मूवी देखी। राजेंद्र चौधरी ने कार्यकर्ताओ के साथ इमरजेंसी मूवी देखी