
लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू), लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. (डॉ.) सूर्यकान्त को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान अकादमी (भारत) [एन.ए.एम.एस.] की वित्त समिति का सदस्य नामित किया गया है। यह नियुक्ति न केवल उनके विशिष्ट चिकित्सीय, अनुसंधानात्मक और नेतृत्व क्षमता की स्वीकृति है, बल्कि देश की चिकित्सा नीतियों के निर्माण में उनकी बढ़ती भागीदारी का संकेत भी देती है। डॉ. सूर्यकान्त एन.ए.एम.एस. के लाइफ मेंबर हैं और उन्हें वर्ष 2018 में अकादमी की प्रतिष्ठित फैलोशिप से सम्मानित किया गया था। वर्ष 2021 में उन्हें डॉ. आर. वी. राजम ओरेशन अवॉर्ड भी प्रदान किया गया। प्रो.(डॉ.)सूर्यकान्त बने राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान अकादमी की वित्त समिति के सदस्य
राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान अकादमी, जिसकी स्थापना 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा की गई थी, चिकित्सा और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने वाली अग्रणी संस्था है। यह भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एक नोडल एजेंसी है जो सतत चिकित्सा शिक्षा (CME) के माध्यम से देशभर में चिकित्सकों को प्रशिक्षित करने का कार्य करती है।
प्रो. सूर्यकान्त को हाल ही में विश्व के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों की सूची में भी शामिल किया गया है। वे पिछले 27 वर्षों से चिकित्सा शिक्षा में सक्रिय हैं, जिनमें से 20 वर्ष प्रोफेसर और 14 वर्ष विभागाध्यक्ष के रूप में सेवा दे चुके हैं। एलर्जी, अस्थमा, टीबी और लंग कैंसर जैसे विषयों पर उनके 1000 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं, और उनके नाम दो अंतरराष्ट्रीय पेटेंट भी दर्ज हैं।अब तक वे 200 से अधिक एमडी/पीएचडी छात्रों का मार्गदर्शन कर चुके हैं और 50 से अधिक शोध परियोजनाओं का नेतृत्व कर चुके हैं। उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 214 से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
गौरतलब है कि नई शिक्षा नीति की तीसरी वर्षगांठ (29 जुलाई 2023) पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हिंदी में जारी की गई 100 पुस्तकों में डॉ. सूर्यकान्त की दो पुस्तकों को भी शामिल किया गया था।इसके अलावा, वे ढाई दशकों से विभिन्न माध्यमों—प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया—के ज़रिए टीबी, अस्थमा, एलर्जी और अन्य श्वसन संबंधी रोगों के प्रति जनजागरूकता फैलाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।उनकी यह नियुक्ति न केवल केजीएमयू के लिए गौरव का विषय है, बल्कि देश की चिकित्सा प्रणाली में वैज्ञानिक नेतृत्व की एक नई मिसाल भी पेश करती है। प्रो.(डॉ.)सूर्यकान्त बने राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान अकादमी की वित्त समिति के सदस्य