जानें क्या है सनातन धर्म

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जानें क्या है सनातन धर्म
जानें क्या है सनातन धर्म

जानें क्या है सनातन धर्म

सनातन का अर्थ क्या है…? सनातन का तो अर्थ ही है ‘हमेशा बने रहने वाला’ का फिर ‘शाश्वत’। बावजूद इसके लोग इसको महत्व नहीं दे रहे हैं। जबकि इसके बिना मानव जीवन कुछ भी नहीं है। सनातन का मतलब ही होता है, जिसका अंत न हो सके। जो हमेशा से है और हमेशा रहेगा, जिसका न कोई आरंभ है और न कोई अंत।

सृष्टि आरंभ के समय से अस्तित्व में आया सनातन धर्म। सनातन धर्म वेदों पर आधारित धर्म है। जब ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण किया था, तब ईश्वर ने वेदों का जो प्रकाश है उसे आरंभ कर दिया था। जैसे आप कोई भी नया सामान बाज़ार से लेकर आते हैं तो उसके साथ एक ब्लूप्रिंट या फिर मैन्युअल लेकर आते हैं ताकि उसके बारे में आपको सारी जानकारी हो सके और उस चीज़ को इस्तेमाल करने में आपको कोई भी दिक्कत न आए। ठीक ऐसे ही जब सृष्टि का निर्माण हुआ था तब मनुष्यों को मानव तन दिया गया था। तब किसी को पता नहीं था कि इस मानव तन को किस तरह से कैसे इस्तेमाल किया जाता है। उस समय ये वेद ही व्यक्ति के मानव तन के मैन्युअल के रूप में काम आए थे। इसी से ही व्यक्ति को पता चला कि आंख से देखा जाता है, नाक से सूंघा जाता है और मुंह से खाया जाता है आदि। सनातन धर्म इसीलिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। इसीलिए हर मानव का यह फर्ज़ हो जाता है कि वो अपने धर्म का प्रचार प्रसार करे और उसे महत्व दे।

‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘सदा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है, जो किसी समय पूरे बृहत्तर भारत (भारतीय उपमहाद्वीप) तक व्याप्त रहा है। विभिन्न कारणों से हुए भारी धर्मान्तरण के उपरांत भी विश्व के इस क्षेत्र की बहुसंख्यक जनसंख्या इसी धर्म में आस्था रखती है। सनातन धर्म जिसे अक्सर हिंदू धर्म के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया के सबसे प्रमुख धर्मों में से एक है। हालाँकि, आप पाएंगे कि सनातन धर्म को अक्सर धर्मों के बजाय जीवन का एक तरीका कहा जाता है।
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हिन्‍दूधर्म में ऐसा क्या है जिसके कारण वह सनातन है, वह न तो खतरे में पड़ सकता है और न ही नष्‍ट हो सकता है। सनातन का अर्थ है जो सदैव से है और सदैव रहेगा। जिसका न प्रारंभ है और न ही अंत है और जो सदैव नवीन बना रहता है। जब फारस की ओर से लोग भारत आए तो सिंधु नदी के इस पार रहने वालों को उन्होंने हिंदू कहना शुरू कर दिया और उनके धर्म को हिंदू धर्म कहने लगे। इसलिए भौगोलिक आधार पर नामकरण ‘हिंदू धर्म’ हो गया। इसके पहले, इस धर्म की विशेषताओं के कारण इसका नाम सनातन धर्म था, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह धर्म सदैव से है और सदैव रहेगा। हर धर्मावलम्बी अपने धर्म पर गर्व करते हुए उसे सर्वोत्कृष्ट मानते हैं। इसलिए प्रथम दृष्‍टया ऐसा लगता है कि आर्यों ने भी अपने आस्था और विश्वा‍स के कारण अपने धर्म को सनातन कहना शुरू कर दिया होगा, परन्‍तु गहराई से विचार करने पर पता चलता है कि हिन्दू धर्म जिन तथ्‍यों और सिद्धांतों पर आधारित हैं वे मानव निर्मित नहीं हैं, वे इस सृष्टि में स्वमेव अस्तित्व में आए हैं। यह सृष्टि का स्‍वाभाविक धर्म है, इसलिए सनातन है।

जब बात धर्म की होती है तो सनातन धर्म को विशेष दर्जा दिया जाता है। ये बहुत पुराना धर्म है और ये अनादिकाल से चला आ रहा है। ये धर्म कितना पुराना है और इसका कितना ज्यादा महत्व है इसको बता पाना आसान नहीं है। इसमें भगवान ने समय समय पर तरह तरह के अवतार लिए थे और मानव जीवन की रक्षा की थी। ये पूरे विश्व में व्यापक है और इसकी व्यापकता को कोई भी नाप नहीं सकता है। अगर बात करें आज के समय की तो, आज हर एक मनुष्य मैं मैं और तू तू में व्यस्त हो गया है। लोग अब अहम में और अपने काम में इतना ज्यादा व्यस्त हो गए हैं कि वो अपने धर्म को भी भूलते जा रहे हैं। आज देश का हर एक युवा बस इसी चिंता में डूबा हुआ है कि उसका आने वाला जो भविष्य है वो शानदार हो और स्वर्णिम हो। वहीं अगर व्यक्तियों की भूमिका हम सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए देखें तो वो बिल्कुल न के बराबर है। आज का मनुष्य ये भूलता जा रहा है कि जो व्यक्ति अपने धर्म की रक्षा करता है, धर्म भी स्वयं उस व्यक्ति की रक्षा करता है। सनातन धर्म एक ऐसा धर्म है जिसमें मात्र मानव कल्याण की ही भावना छुपी हुई है। मानव जीवन में सनातन धर्म की विशेष भूमिका है। आइये जानते हैं सनातन धर्म की इस भूमिका के बारे में

जानें क्या है सनातन धर्म

हिंदू धर्म का हर एक व्यक्ति ये बात जानता है कि वेद जो है उसमें ज्ञान ही ज्ञान है। वेद ज्ञान का एक भंडार है। वेदों का अध्ययन कर पाना इतना आसान नहीं है। मनुष्य के बस की बात ही नहीं है कि वो वेद का अध्ययन कर सके। वेदों के बाद आता है इसका सारांश जिसे हम सभी उपनिषद के नाम से जानते हैं। उपनिषद भले ही वेद का सार है लेकिन इसके बाद भी इसका अध्ययन कर पाना आसान बिल्कुल भी नहीं है। उपनिषद के बाद इसका भी सार आता है। उपनिषद का सार गीता के रूप में जाना जाता है। गीता तो शायद आप में से बहुत से लोगों ने पढ़ा भी होगा। गीता को पढ़ना और समझना बहुत ज्यादा आसान है। महापुरुषों का मानना है कि जो व्यक्ति अपने जीवन को गीता के अनुसार ढाल लेता है, उसको जीवन के हर एक क्षेत्र में सफलता हासिल होती है। लेकिन आज के समय में कहां ही कोई गीता के उपदेशों का पालन करता है

सनातन धर्म में गुरुओं के बारे में भी विस्तारपूर्वक बताया गया है। सनातन धर्म मे बताया गया है कि माता पिता, गुरुजन तथा अतिथि सब देवता हैं। इन सभी को देव के समान बताया गया है। इन सबमें भी जो प्रथम गुरु होती है वो माता होती है। ये धर्म सबसे प्राचीनतम धर्म है। मानव जीवन में ये सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। इस धर्म में बहुत सारे महापुरुषों ने जन्म लिया है। इसमें ऐसे ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को प्रेम, दया और सम्मान आदि के बारे में संक्षिप्त में बताया है। इस धर्म में ऐसे बहुत सारे ग्रंथ है जिनका बहुत ही ज्यादा महत्व है। इसमें रामायण, वेद तथा महाभारत जैसे ग्रंथ शामिल हैं। ये ऐसे ग्रंथ हैं जो मानवता की रक्षा पर ज़ोर देते हैं।

सनातन धर्म में ये भी बताया गया है कि लोगों को अपने राज्य की रक्षा करनी चाहिए। अगर राज्य की रक्षा करने के लिए बलिदान भी देना पड़े या फिर धर्म की रक्षा करने के लिए प्राणों की आहुति भी देनी पड़े तो भी दे देनी चाहिए। ऐसे में कदमों को पीछे नहीं लेना चाहिए।

धर्म से बढ़कर कुछ भी नहीं होता है। इसकी रक्षा करने के लिए मनुष्यों को हंसते हंसते अपने प्राणों की बलि दे देनी चाहिए। जैसे श्रीराम ने रामायण में राजा के धर्म के बारे में बताया है, बिल्कुल वैसे ही राजा का धर्म होना चाहिए। ये तो सभी जानते हैं कि श्रीराम को पुरुषोत्तम श्रीराम के नाम से जाना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि श्रीराम मर्यादा में उत्तम हैं। लेकिन अब समय काफी बदल चुका है अब लोग धर्म को पहले के जितना महत्व नहीं देते हैं। बस सब अपना स्वार्थ पूरा करने में लगे हुए हैं और स्वार्थ को ही पूरा करने के लिए लोग अपने सनातन धर्म का अपमान, उसके प्रति गलत भावना और उसका जो अर्थ है उसको अनर्थ बनाकर बैठे हुए हैं।

वैज्ञानिक साक्ष्य भी इस बात की पुष्टि कर रहे है कि धरती पर कई युग बीत चुके है, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। कहने के आशय यह है कि इस गणना से सनातन युग की प्रचीनता का भी अनुमान लगाया जा सकता है। यह कहना कि पुरातन धर्म दस हजार या बीस हजार वर्ष पुराना है, कतई तथ्यों से परे ही प्रतीत होता है।आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद ने वैदिक धर्म को सनातन धर्म कहा है। उनके अनुसार, सनातन धर्म वैदिक काल से ही अस्तित्व में आया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि आज से करीब 90 हजार साल पहले सनातन धर्म की स्थापना हुई थी। जिसकी स्थापना का श्रेय स्वयं भगवान ब्रह्मा जी को दिया जाता है।

जानें क्या है सनातन धर्म