भारतीय संस्कृति और परम्परा को रौंदने वाला अत्याचारी शासक…

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भारतीय संस्कृति और परम्परा को रौंदने वाला अत्याचारी शासक..
भारतीय संस्कृति और परम्परा को रौंदने वाला अत्याचारी शासक..
हृदयनारायण दीक्षित
हृदयनारायण दीक्षित

सिनेमा दृश्य श्रव्य माध्यम है। यह करोड़ों को रोजगार देता है और प्रतिभाशाली लोगों को सृजन के अवसर। लेकिन बड़े पर्दे के सिनेमा के दर्शक घटे हैं। सोशल मीडिया में अनेक रास्तों से फिल्मी दृश्य और गाने सुने देखे जा सकते हैं। एक तरह से बहुत बड़े हाल में बैठकर अपनों के साथ फिल्म देखने का अवसर अब नहीं रहा। इधर तीन-चार फिल्में ऐसी आईं जिनमें हिंसा का अतिरेक था। कुछ वेब सीरीज में भी हिंसा और गलियों की बौछार है। ऐसे कथानक कला का आनंद नहीं देते। सभी कलाएं आनंद मार्गी हैं। गीत संगीत चित्त में आनंद रस का सृजन करते हैं। कुछ फिल्मों की कहानी भी रुचि पैदा करती है। सिनेमा अभी लाखों दर्शकों को सम्मोहित करता है। इस पर देश के जागरूक लोगों को खुशी मनानी चाहिए कि तमाम आधुनिक उपकरणों और तरीकों के बावजूद सिनेमा अभी भी अपना स्थान पूरी प्रतिष्ठा के साथ बनाए हुए है। इस लिहाज से निर्देशक लक्ष्मण के निर्देशन में बनी फिल्म ‘छावा‘ दर्शकों की वाहवाही लूट रही है। इस वाहवाही के अनेक कारण हैं। केवल फिल्मांकन ही नहीं। यह अभिनय की दृष्टि से भी कमजोर फिल्म नहीं है। कसे संवाद और कलाकारों का अभिनय भी फिल्म के आकर्षण का कारण है। फिल्म की राष्ट्रीय चर्चा है। इसका मूल कारण औरंगजेब का व्यक्तित्व है। भारतीय संस्कृति और परम्परा को रौंदने वाला अत्याचारी शासक..

औरंगजेब किसी एक व्यक्ति का नाम भर नहीं है। औरंगजेब का नाम लेते ही लगभग 350-400 साल पहले भारतीय संस्कृति और परम्परा को रौंदने वाले अत्याचारी शासक का चेहरा सामने आ जाता है। कथित सेकुलरों ने औरंगजेब की प्रशंसा में बहुत कुछ लिखा है। वह उसे फकीर और संत सिद्ध करने में आमादा हैं। औरंगजेब इस देश की संस्कृति को नष्ट करने के लिए ज्यादा जाना गया है। स्वयं ईश्वर की उपासना करता था। लेकिन उसे हिन्दुओं को यह छूट देने पर ऐतराज था। औरंगजेब का एक भाई दारा शिकोह भारतीय संस्कृति और दर्शन का अनुरागी था। अब्बा शाहजहां ने दारा शिकोह के लिए उपनिषद और वेदांत पढ़ने वाले आचार्यों की नियुक्ति की थी। उसके मन में इस संसार को जान लेने की जिज्ञासा थी। पिता ने ऐसी ही व्यवस्था औरंगजेब के लिए भी की थी। औरंगजेब ने अपने अध्यापक आचार्य को चिट्ठी लिखी थी कि, ”मेरे पिता ने आपको मुझे दर्शनशास्त्र पढ़ाने के लिए नियुक्त किया है, जबकि दर्शन में कोई लाभप्रद बात है ही नहीं। जो विषय समझ में नहीं आते जो, समझने और याद करने में क्लिष्ठ होते हैं, वही दर्शन शास्त्र है। अच्छा होता कि आप मुझे शहर में घेरा डालने की विधि समझाते।” औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को भी जेल में डाल दिया था। फिल्म छावा में भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण अंश को दर्शाया गया है। फिल्म के मुख्य अभिनेता विकी कौशल के अभिनय की भी प्रशंसा हो रही है। औरंगजेब के व्यक्तित्व को पर्दे पर उतारने के लिए अतिरिक्त साहस और बुद्धि की आवश्यकता थी। फिल्म के निर्देशक इस कार्य में सफल हुए हैं।

औरंगजेब ने सनातन धर्म के सभी नियमों, आस्था और विश्वास को खत्म करने का काम किया था। काशी का मंदिर ध्वस्तीकरण औरंगजेब के काले कारनामों में से एक है। मूर्ति पूजा और मंदिरों में जाना औरंगजेब की निगाह में अपराध था। हम भारत के लोग औरंगजेब की प्रशंसा नहीं सुन सकते। छत्रपति शिवाजी आराध्य हैं। फिल्म में छत्रपति शिवाजी के पुत्र की भूमिका बहुत अच्छे तरीके से की गई है। फिल्म की कहानी का मूल आधार शिवाजी सावंत द्वारा लिखे गए उपन्यास छावा पर आधारित है। इस फिल्म ने तमाम भारत भक्तों को आकर्षित किया है। इसके अलावा औरंगजेब के मूल चरित्र को भी उजागर किया है।

हम भारत के लोग विजय पर्व दशहरा का उत्सव मनाते हैं। रावण के पुतले को आग लगाते हैं। इसलिए कि रावण भारतीय ज्ञान परंपरा में खलनायक माना जाता है। विजयादशमी के दिनों देश के कोने-कोने रामलीलाएं होती हैं। देश में अत्याचार करने वाले किसी भी आताताई अपराधी की उपासना की अपेक्षा हमसे क्यों की जाती है। औरंगजेब भारतीय मध्यकाल के इतिहास का खलनायक था। लेकिन सेकुलर समूह औरंगजेब की छवि को लेकर चिंतित दिखाई पड़ते हैं। भारत की संस्कृति सभी कलाओं से भरी पूरी है। भारतीय सिनेमा भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। यूनानी दार्शनिक अरस्तु ने लिखा है कि, ”कला प्रकृति की अनुकृति है।” सही बात है। अनुसरण से कलाओं का विकास हुआ है। लेकिन भारतीय कला के शतपथ ब्राह्मण की परिभाषा जान लेने लायक है-यो वे रुपम् तत् शिल्पम परम सत्ता सब तरफ रूप रूप प्रतिरूप हो रही है। सिनेमा में तमाम प्रतिभाओं का श्रम जुड़ता है। सिनेमा आकर्षित करता है।

सिनेमा के कथानक को लेकर पहले भी विरोध या समर्थन होते रहे हैं। पद्मावत फिल्म के विरोध का किस्सा लोगों को मालूम है। उस समय महारानी की छवि वैसी नहीं दिखाई गई जैसी वास्तव में है। कश्मीर फाइल्स को पूरे देश ने बहुत ध्यान से देखा था। इस कहानी में कश्मीरी पण्डितों के उत्पीड़न को फिल्माया गया था। यहां भी फिल्म के विरोधी कश्मीरी पण्डितों के उत्पीड़न के प्रकाश में आ जाने से नाराज थे। दि केरला स्टोरी नाम की फिल्म पर लगातार विवाद होता ही रहा है। दरअसल फिल्म निर्माण के कार्य में प्रतिभाएं सुव्यवस्थित काम करती हैं। बेशक सिनेमा किसी न किसी रूप में समाज का सच दिखाता है। फिल्मकार बेशक इतिहास आधारित फिल्म निर्माण भी करते हैं, लेकिन वह इतिहास से निर्देशित नहीं होते। इतिहास की कथाएं भी इसी तरह की हैं। भारत का अब तक का उपलब्ध इतिहास अतिरेकों से भरा पूरा है। कुछ विद्वानों का कहना है कि इतिहास के पात्रों को हम फिल्म का विषय बनाकर अच्छा नहीं करते। इतिहास भूतकाल की स्मृतिजन्य विरासत है, लेकिन अब तक लिखे गए सभी इतिहासों में तथ्यों को छिपाने या अधिक उजागर करने के आरोप लगाते हैं।

भारतीय इतिहास का विरूपण हुआ है। कुछ विद्वानों ने चन्द्रप्रकाश द्विवेदी द्वारा लिखे व अभिनीत किए गए चाणक्य सीरियल की कहानी में कल्पनाशीलता का आरोप लगाया है। जबकि ऐसा सच नहीं है। सीरियल में इतिहास है। साहित्य है और भारत के लिए गर्व करने लायक अनेक तथ्य। फिल्म निर्माता सिनेमा बनाते हैं। वह इससे भारी कमाई पाते हैं। निन्दा स्तुति भी होती है। जरूरी नहीं कि वह देश के लिए अपने सामाजिक दायित्व का ध्यान रखें। 80 के दशक में गौतम घोष की ‘पार‘ गोविन्द निहलानी की ‘आक्रोश‘ और ‘अर्धसत्य‘ जैसी फिल्मों ने सामाजिक दायित्व वाले दर्शकों को मोहित किया था। फिल्मों में इतिहास देखना गलती निकालना कोई अच्छी बात नहीं है। कला को कला, साहित्य को साहित्य और इतिहास को इतिहास की तरह रखकर ही हम जिम्मेदार राष्ट्र बन सकते हैं।   भारतीय संस्कृति और परम्परा को रौंदने वाला अत्याचारी शासक..