प्लास्टिक के खतरों से निपटने का कारगर विकल्प

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प्लास्टिक के खतरों से निपटने का कारगर विकल्प
प्लास्टिक के खतरों से निपटने का कारगर विकल्प
विजय गर्ग 
विजय गर्ग

प्लास्टिक कचरा आज पर्यावरण की एक गंभीर समस्या बन चुका है, जो न केवल धरती, महासागरों और नदियों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि हमारे भोजन और पानी में भी मिल रहा है। पारंपरिक प्लास्टिक का निर्माण पेट्रोलियम उत्पादों से होता है, जो प्रदूषण बढ़ाते हैं और सैकड़ों सालों तक नष्ट नहीं होते। इस समस्या का समाधान तलाशने के लिए वैज्ञानिक चावल-आधारित बायोप्लास्टिक की ओर देख रहे हैं, जो प्लास्टिक का टिकाऊ और पर्यावरण-मित्र विकल्प हो सकता है। प्लास्टिक के खतरों से निपटने का कारगर विकल्प

चावल दुनियाभर में सबसे अधिक उगाया और खाया जाने वाला अनाज है। इसके प्रसंस्करण के दौरान बड़ी मात्रा में कृषि अवशेष, जैसे धान की भूसी और पराली, निकलते हैं। आमतौर पर इनका कोई विशेष उपयोग नहीं होता और कई बार किसान इन्हें जलाने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है। दिसम्बर-जनवरी के महीनों में दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। वैज्ञानिकों ने इस कृषि कचरे का उपयोग बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बनाने में करना सीख लिया है, जिससे न केवल कृषि कचरे का पुनर्चक्रण होता है, जो पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि इससे किसानों की आय भी बढ़ सकती है और उद्योगों के लिए एक नया लाभकारी अवसर उत्पन्न हो सकता है।

पारंपरिक प्लास्टिक कचरे की समस्या यह है कि यह पर्यावरण में आसानी से नष्ट नहीं होता और धीरे-धीरे छोटे कणों में टूटकर माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाता है। यही माइक्रोप्लास्टिक हमारे पानी, भोजन और यहां तक कि हवा में भी मिल चुके हैं, जो स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं। शोध बताते हैं कि हर साल लाखों टन प्लास्टिक महासागरों में पहुंच जाता है, जिससे समुद्री जीव-जंतुओं को भारी नुकसान होता है। इसके अलावा, प्लास्टिक बनाने की प्रक्रिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्या और गंभीर हो जाती है। पारंपरिक प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग भी पूरी तरह से प्रभावी नहीं है, क्योंकि अधिकांश प्लास्टिक या तो लैंडफिल में चला जाता है या जलाए जाने पर हानिकारक गैसें उत्पन्न करता है।

बायोप्लास्टिक प्राकृतिक रूप से विघटित हो सकते हैं और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते। इन्हें जैविक स्रोतों से बनाया जाता है, जैसे मक्का, गन्ना और अब चावल। चावल से बने बायोप्लास्टिक में मुख्य रूप से स्टार्च और सेल्यूलोज का इस्तेमाल होता है। चावल के स्टार्च को कुछ प्राकृतिक पदार्थों, जैसे ग्लिसरॉल, के साथ मिलाकर एक लचीला और टिकाऊ प्लास्टिक तैयार किया जाता है।

इसके अलावा, चावल की भूसी से सेल्यूलोज निकाला जाता है, जिसे आगे की प्रक्रिया में तैयार करके मजबूत बायोप्लास्टिक बनाया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने चावल के अवशेषों से पॉलीहाइड्रॉक्सीएल्केनोएट्स (पीएचए) नामक एक जैविक पॉलिमर बनाने की तकनीक विकसित की है, जो पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है। यह पारंपरिक प्लास्टिक की तरह मजबूत होता है लेकिन कुछ महीनों में ही प्राकृतिक रूप से विघटित हो जाता है।

चावल-आधारित बायोप्लास्टिक का उपयोग कई उद्योगों में किया जा सकता है, जिससे यह पारंपरिक प्लास्टिक का व्यावहारिक विकल्प बन सकता है। खाद्य पैकेजिंग में, बायोप्लास्टिक से बने कंटेनर और रैपिंग मैटेरियल खाद्य उत्पादों की ताजगी बनाए रखते हैं और प्लास्टिक कचरे को कम करते हैं। कृषि क्षेत्र में, बायोडिग्रेडेबल मल्चिंग फिल्म मिट्टी की नमी बनाए रखने और खरपतवार नियंत्रण में सहायक होती है। चिकित्सा उपकरणों में, सर्जिकल सुई, खुद से पिघलने वाले टांके और दवा वितरण प्रणालियों में इसका उपयोग बढ़ रहा है। उपभोक्ता उत्पादों में, बायोडिग्रेडेबल कटलरी, डिस्पोजेबल कप और खिलौनों के निर्माण में भी बायोप्लास्टिक का उपयोग बढ़ रहा है। इसी तरह, टेक्सटाइल और फैशन उद्योग में, बायोपॉलिमर से बने जैविक कपड़े पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में मदद कर सकते हैं। थ्रीडी प्रिंटिंग में, बायोप्लास्टिक एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग में एक टिकाऊ विकल्प बन रहा है।

हालांकि, चावल-आधारित बायोप्लास्टिक के कई फायदे हैं, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर अपनाने में कुछ बाधाएं भी हैं। फिलहाल इसकी उत्पादन लागत पारंपरिक प्लास्टिक की तुलना में महंगी है। कुछ बायोप्लास्टिक पारंपरिक प्लास्टिक की तरह मजबूत नहीं होते। इन्हें पूरी तरह विघटित होने के लिए सही परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। यदि बायोप्लास्टिक उत्पादन के लिए खाद्यान्न आधारित कच्चे माल का उपयोग बढ़ता है, तो इससे खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ सकता है। इसके बावजूद, बायोप्लास्टिक की प्रगति में अपार संभावनाएं हैं, जिसके चलते इसका वैश्विक बाजार तेजी से बढ़ रहा है। यूरोपीय देशों ने इस तकनीक को अपनाने में अग्रणी भूमिका निभाई है।

भारत में भी सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं, जिससे बायोप्लास्टिक के लिए एक बड़ा अवसर पैदा हो सकता है। अगर चावल-आधारित बायोप्लास्टिक के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए और अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जाए, तो यह प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने का एक महत्वपूर्ण समाधान बन सकता है। यदि, चावल-आधारित बायोप्लास्टिक को बड़े पैमाने पर अपनाया जाता है, तो यह पारंपरिक प्लास्टिक का एक बेहतर विकल्प बन सकता है। यदि इस तकनीक को प्रोत्साहित किया जाए और इसके विकास में निवेश बढ़ाया जाए, तो निश्चित ही यह हरित और स्वच्छ भविष्य के हमारे सपने को साकार करने में सहायक सिद्ध होगा। प्लास्टिक के खतरों से निपटने का कारगर विकल्प