मजदूर दिवस: इतिहास,लाभ और भविष्य की प्रासंगिकता

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मजदूर दिवस: इतिहास,लाभ और भविष्य की प्रासंगिकता
मजदूर दिवस: इतिहास,लाभ और भविष्य की प्रासंगिकता
विवेक रंजन श्रीवास्तव

हर वर्ष 1 मई को “अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस” के रूप में मनाया जाता है। यह दिन श्रमिक वर्ग के संघर्ष, त्याग और उनके अमूल्य योगदान को सम्मानित करने के लिए समर्पित है। आधुनिक युग में मजदूर दिवस केवल एक औपचारिक दिवस न रहकर सामाजिक चेतना और सर्वहारा के प्रति न्याय का प्रतीक बन चुका है। मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1886 को अमेरिका के शिकागो शहर से हुई, जब हजारों मजदूरों ने 8 घंटे कार्य दिवस की माँग को लेकर हड़ताल की। यह आंदोलन ‘हेमार्केट नरसंहार’ के रूप में जाना गया, जिसमें कई श्रमिकों की जान गई। इसके बाद 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मान्यता दी गई। भारत में पहली बार यह दिवस 1 मई 1923 को चेन्नई (तब मद्रास) में मनाया गया, जहाँ ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया’ के नेता सिंगारवेलु चेत्तियार ने इसकी शुरुआत की। मजदूर दिवस: इतिहास,लाभ और भविष्य की प्रासंगिकता

मजदूर दिवस के प्रभाव से श्रमिकों को 8 घंटे कार्य दिवस, न्यूनतम वेतन, स्वास्थ्य सुविधाएँ, साप्ताहिक अवकाश जैसे अधिकार प्राप्त हुए। इससे यूनियनों और ट्रेड यूनियनों का निर्माण हुआ, जो आज श्रमिक हितों की रक्षा करते हैं। “हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है। ” यह नारा बुलंद हुआ। समाज में श्रमिकों के प्रति सम्मान और उनके अधिकारों को लेकर जनचेतना बढ़ी। आज भारत जैसे विकासशील देश में करोड़ों लोग असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं। उनके पास स्थाई रोजगार, स्वास्थ्य सुरक्षा, पेंशन जैसी सुविधाओं का अभाव है। डिजिटल युग में जहाँ कार्य का स्वरूप बदल रहा है, वहीं ‘गिग वर्कर्स’ और ‘फ्रीलांस श्रमिकों’ के लिए भी नए कानूनों की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

ए आई का प्रभाव और तकनीकी सशक्तिकरण आने वाले समय में बढ़ेगा । तकनीकी दक्षता और पुनः प्रशिक्षण की व्यवस्था कर श्रमिकों को रोजगार के नए अवसर दिए जा सकेंगे। सरकार को चाहिए कि मजदूरों के हितों को केंद्र में रखकर नीतियाँ बनाए ताकि वे आर्थिक, मानसिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनें। जिसका व्यापक असर समाज के विकास में है। एक समतामूलक समाज का निर्माण तभी संभव है जब श्रमिकों को उनका संपूर्ण अधिकार,सम्मान और सुरक्षा मिले। मजदूर दिवस न केवल अतीत के संघर्षों की याद है, बल्कि भविष्य की दिशा भी है। यह दिवस हमें प्रेरणा देता है कि हम श्रमिकों के योगदान को न भूलें और उनके जीवन को बेहतर बनाने में सहभागी बनें। जब तक समाज में हर हाथ को काम और हर श्रमिक को सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक सच्चे विकास की कल्पना अधूरी है। मजदूर दिवस: इतिहास,लाभ और भविष्य की प्रासंगिकता