2026 के पंचायत चुनाव में छिपा है 2027 का जनादेश

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अजय कुमार

मो-9335566111उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले का सबसे अहम सियासी इम्तिहान पंचायत चुनाव होगा, जिसे सूबे की सत्ता का सेमीफाइनल कहा जा रहा है। इन चुनावों की तैयारी ने अभी से पूरे राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। पंचायतीराज विभाग द्वारा जारी अधिसूचना से साफ हो गया है कि प्रदेश में ग्राम पंचायतों की संख्या अब 57,695 रह गई है। वर्ष 2021 में ये संख्या 58,199 थी, यानी इस बार 504 पंचायतें कम हो गई हैं। इस बड़े बदलाव के पीछे प्रदेश में तेजी से हुए शहरीकरण को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। शहरी सीमाओं के विस्तार के चलते कई ग्राम पंचायतें अब नगर निकायों में शामिल हो गई हैं। इससे कई जिलों में पंचायतों की संख्या घट गई है। देवरिया में सबसे अधिक 64 ग्राम पंचायतों का विलय हुआ है, इसके बाद आजमगढ़ में 47, प्रतापगढ़ में 45, अमरोहा और गोरखपुर में 21-21 पंचायतें कम हुई हैं। गाजियाबाद, अलीगढ़, फतेहपुर जैसे अन्य जिलों में भी यही स्थिति देखने को मिली है। 2026 के पंचायत चुनाव में छिपा है 2027 का जनादेश

पंचायतीराज विभाग की अधिसूचना के अनुसार पंचायत चुनाव अप्रैल 2026 में कराए जाने की संभावना है। इस बार 57,695 ग्राम प्रधान, 826 ब्लॉक प्रमुख और 75 जिला पंचायत अध्यक्ष चुने जाएंगे। यह चुनाव न केवल ग्रामीण राजनीति की दिशा तय करेंगे, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों का जनाधार भी तय करेंगे। यही कारण है कि सभी प्रमुख राजनीतिक दल इस चुनाव को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। सत्ताधारी भाजपा और एनडीए के सहयोगी दलों के बीच भी इस बार सीटों को लेकर खींचतान शुरू हो गई है, तो वहीं विपक्षी दल खासकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस, इस चुनाव को 2027 की लड़ाई की बुनियाद मान रही है।

सबसे बड़ी बहस इस समय पंचायत चुनावों में सुधार को लेकर हो रही है। कई दलों की मांग है कि अब ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव भी सीधे जनता से कराए जाएं, जैसे ग्राम प्रधानों का चुनाव होता है। अभी तक यह चुनाव पंचायत समिति या जिला पंचायत सदस्यों द्वारा होता आया है, जिससे भारी भ्रष्टाचार और धांधली के आरोप लगते रहे हैं। समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और एनडीए के भीतर से भी ओम प्रकाश राजभर जैसे नेता इन पदों पर डायरेक्ट इलेक्शन की मांग कर रहे हैं। माना जा रहा है कि राज्य सरकार इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार कर रही है और संभवतः इसे लागू करने के लिए विधानमंडल में प्रस्ताव लाया जा सकता है।

राजनीतिक तौर पर देखें तो समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने पंचायत चुनाव को लेकर भाजपा पर सीधा हमला बोला है। उन्होंने आरोप लगाया है कि भाजपा इन चुनावों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का दुरुपयोग कर रही है। अखिलेश का कहना है कि भाजपा सीसीटीवी और डेटा एनालिटिक्स के जरिए मतदाताओं की निगरानी कर रही है और चुनावी माहौल को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने तीखा तंज कसते हुए कहा कि जो लोग सीसीटीवी में पकड़े जा रहे हैं, उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है? अखिलेश ने यह भी कहा कि भाजपा के भरोसे लोकतंत्र की रक्षा नहीं हो सकती क्योंकि उसका उद्देश्य केवल सत्ता में बने रहना है, चाहे इसके लिए कितनी भी अनैतिक तकनीक और रणनीति क्यों न अपनानी पड़े।

अखिलेश यादव ने अपनी PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नीति को भी आगे बढ़ाते हुए पंचायत चुनाव में सामाजिक न्याय के मुद्दे को प्रमुख बनाया है। उन्होंने कहा कि यह गठबंधन एक “भावनात्मक गठबंधन” है, जो उन सभी के लिए है जो समाज में हाशिए पर हैं। उन्होंने जातीय जनगणना को सामाजिक न्याय का आधार बताया और कहा कि सपा इसके पूर्ण समर्थन में है। लेकिन उन्होंने साथ ही यह चेतावनी भी दी कि जनगणना के आंकड़ों में किसी भी तरह की हेराफेरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

वहीं भाजपा भी पंचायत चुनाव को लेकर बेहद सतर्क है। वह जातीय जनगणना को लेकर विपक्ष के हमलों का जवाब देने के लिए OBC वर्ग के बीच कैम्पेन चला रही है। भाजपा यह बताने की कोशिश कर रही है कि पिछली सरकारों ने मंडल आयोग और काका कलेलकर आयोग की रिपोर्ट को लागू न करके पिछड़ों के साथ अन्याय किया। भाजपा अब इस वर्ग को अपने पक्ष में करने के लिए जातीय जागरूकता अभियान चला रही है और पंचायत चुनाव के जरिए इस समर्थन को मजबूती देने की तैयारी में है।

पंचायत चुनावों की तैयारी के बीच कांग्रेस का रुख भी साफ हो चुका है। कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि वह इन चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में रहेगी और ‘INDIA’ ब्लॉक की भावना के अनुरूप सभी क्षेत्रीय दलों के साथ समन्वय बनाकर चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने यहां तक कहा कि अगला चुनाव केवल भाजपा के खिलाफ नहीं होगा, बल्कि यह चुनाव आयोग और संपूर्ण चुनावी व्यवस्था की पारदर्शिता की लड़ाई भी होगा। उन्होंने पंचायत चुनाव में AI और डाटा निगरानी जैसे प्रयोगों पर चिंता जताई और कहा कि इससे लोकतंत्र को गंभीर खतरा है।

पंचायत चुनावों के समानांतर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर भी विपक्ष लगातार हमलावर है। अखिलेश यादव ने सरकार पर आरोप लगाया कि प्राथमिक स्कूलों की जमीन बेचने की तैयारी की जा रही है। उन्होंने कहा कि बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं, इंटरमीडिएट कॉलेजों की हालत खराब है, और सरकार की निगाह केवल उनकी जमीनों पर है। यह टिप्पणी ग्रामीण मतदाताओं को सीधे संबोधित करती है, जिनके बच्चे इन्हीं स्कूलों में पढ़ते हैं। इसके अलावा, अखिलेश ने बदायूं में पटेल समाज के साथ हुए कथित अन्याय का मुद्दा भी जोरशोर से उठाया है। उन्होंने सरकार से निष्पक्ष जांच की मांग की और कहा कि समाजवादी पार्टी इस मामले में पीड़ित परिवार के साथ खड़ी है। उन्होंने अहमदाबाद प्लेन क्रैश और विदेश भेजे गए मजदूरों के मुद्दे पर भी सरकार को आड़े हाथों लिया और पूछा कि ऐसे मामलों में आज तक किसी मंत्री का इस्तीफा क्यों नहीं हुआ।

इन तमाम राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों, नीतिगत परिवर्तनों और तकनीकी प्रयोगों के बीच पंचायत चुनाव अब केवल स्थानीय निकाय का चुनाव न होकर, उत्तर प्रदेश की राजनीति की दिशा तय करने वाला यथार्थ बन चुका है। यह चुनाव सामाजिक न्याय, प्रशासनिक पारदर्शिता, डिजिटल नैतिकता और राजनीतिक गठबंधन की परिपक्वता की असली परीक्षा होगी। 2026 में होने वाला यह चुनाव चाहे ग्रामीण स्तर पर हो, लेकिन इसका असर 2027 के विधानसभा चुनाव तक गूंजता रहेगा। यही वजह है कि सभी दल अभी से अपनी रणनीति को धार देने में जुट गए हैं और इस बार पंचायत चुनाव महज ग्राम प्रधानों का नहीं, बल्कि प्रदेश की सियासी दिशा का जनादेश बनता नजर आ रहा है।    2026 के पंचायत चुनाव में छिपा है 2027 का जनादेश