विपक्षी दलों के समर्थन से ही वन नेशन वन इलेक्शन को अमली जामा पहनाना संभव

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विपक्षी दलों के समर्थन से ही वन नेशन वन इलेक्शन को अमली जामा पहनाना संभव
विपक्षी दलों के समर्थन से ही वन नेशन वन इलेक्शन को अमली जामा पहनाना संभव

संतोष कुमार तिवारी

भले ही पूरे देश में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की चर्चा इस समय हो रही लेकिन यह नियम भारत के लिए कोई नया नहीं है । इसकी नींव देश की आजादी के समय ही रख दी गई थी। वर्ष 1952 में देश में जब पहली बार चुनाव हुआ तब लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए ही एक साथ वोट डाले गए थे। इसके बाद अगले 4 चुनावों तक ऐसा ही चलता रहा लेकिन बाद में कुछ कारणों के चलते लोकसभा और विधानसभा चुनाव को अलग कर दिया गया। देश में साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में मतदाताओं ने केंद्र और राज्यों के लिए एक साथ मतदान किया था। बाद में कुछ पुराने राज्यों के पुनर्गठन और नए राज्यों के उभरने के साथ इसे वर्ष 1968-1969 में पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया और लोकसभा का चुनाव और राज्यों के विधानसभा का चुनाव अलग अलग समय पर होने लगा।

वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर देश में राजनीतिक दल अपनी अपनी बात रख रहे हैं. जहां भाजपा के समर्थक इसे सही, वहीं कांग्रेस के समर्थक इसे देश के लिए गलत बताने पर जुटे हैं जबकि देश के नेताओं को और जनता को जानना चाहिए कि वन नेशन वन इलेक्शन का प्रयोग केवल भारत में ही नहीं फिर से लागू करने का प्रयास किया जा रहा हैं बल्कि विश्व के कई देशों जैसे अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, इंडोनेशिया और फिलिपींस में इसी नियम के हिसाब से देश में चुनाव होता हैं।

देश में वन नेशन वन इलेक्शन कानून की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत पहले से ही कहते चले आ रहे हैं। इसको अमली जामा पहनाने के लिए सत्ता पक्ष के लोग लगे हैं जबकि विपक्ष इसे लागू न करने के लिए जुटे हैं। वैसे क़ानून का रूप देने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई सदस्यों की जरुरत होती है जो एनडीए के पास नहीं हैं। लोकसभा के 543 सदस्यों में से 362 सदस्यों की जरुरत है जबकि एनडीए के पास 291 ही सदस्य हैं। लोकसभा में इसे पास कराने के लिए 70 सदस्यों की और जरुरत है। इसी तरह राज्यसभा में पास कराने के लिए 231 में 154 सदस्यों की जरूरत है जहां 118 सदस्यों की संख्या एनडीए के पास है. यहां भी 36 सदस्यों की और जरुरत है, इसलिए अंको के आंकड़ों को देखने पर तो इसको अमली जामा पहनना कुछ कठिन लग रहा है। इसके लिए विपक्षी दलों की सहमति और समर्थन की जरुरत है। तभी इस संशोधन को क़ानून का रूप दिया जा सकता है। इस को लेकर सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर एकमत से इसे लागू कराने में अपनी अहम भूमिका निभाने की जरुरत है। विपक्षी दलों के समर्थन से ही वन नेशन वन इलेक्शन को अमली जामा पहनाना संभव