अशोक भाटिया 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को अमेरिका में चल रहे क्वाड शिखर सम्मेलन की शुरुआत में ही चीन पर निशाना साधा था । प्रधानमंत्री  मोदी ने कहा कि क्वाड एक्टिव रहने के लिए बना है और यह किसी के खिलाफ नहीं है। बिना नाम लिए चीन पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि क्वाड के नेता नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और संप्रभुता के सम्मान में खड़े हैं। प्रधानमंत्री  मोदी ने यह भी कहा कि दुनिया में संघर्ष चल रहा है और क्वाड हर संघर्ष का शांतिपूर्ण सम्माधान चाहता है।उन्होंने कहा, ‘क्वाड का साझा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर मिलकर काम करना पूरी मानवता के लिए महत्वपूर्ण है। हम किसी के खिलाफ नहीं है। हम सभी नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान और सभी मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करते हैं।’ उन्होंने आगे कहा, ‘स्वतंत्र, खुला, समावेशी और समृद्ध हिंद-प्रशांत हमारी साझा प्राथमिकता और साझा प्रतिबद्धता है। हमने मिलकर स्वास्थ्य, सुरक्षा, उभरती टेक्नोलॉजी और क्षमता निर्माण जैसे क्षेत्रों में कई सकारात्मक और समावेशी पहल की है।’ क्वाड की बैठक ने उड़ाई जिनपिंग की नींद..!

शायद इसी कारण अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को क्वाड देशों के नेताओं के साथ बात आपसी बातचीत में चीन की आलोचना करते हुए रिकॉर्ड किया गया है। बाइडेन को क्वाड देशों के नेताओं से यह कहते हुए रिकॉर्ड किया गया है, कि चीन उनकी परीक्षा ले रहा है।बाइडेन की ये बात, उभरते चीनी खतरे के प्रति अमेरिकी गंभीरता को दर्शाता है। बाइडेन की यह टिप्पणी शनिवार को क्वाड लीडर्स समिट के दौरान आई है, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज और जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने भी हिस्सा लिया है।

शिखर सम्मेलन स्थल से पूल रिपोर्टर के बाहर निकलते समय उनकी शुरुआती टिप्पणी हॉट माइक पर कैद हो गई। बाइडेन को यह कहते हुए सुना गया, कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग “मेरे विचार से, चीन के हितों को आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाने के लिए अपने लिए कुछ कूटनीतिक स्पेस खरीदना चाहते हैं।चीन, आर्थिक और टेक्नोलॉजिकल मुद्दों सहित कई मोर्चों पर पूरे क्षेत्र में हम सभी का टेस्ट करते हुए आक्रामक व्यवहार करना जारी रखे हुआ है। साथ ही, उनका  मानना है कि तीव्र प्रतिस्पर्धा के लिए गहन कूटनीति की आवश्यकता होती है। 

वहीं, बाद में एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने इस बाइडेन की इस फुसफुसाहट को संभालने की कोशिश की और कहा, कि “मुझे नहीं लगता, कि इस पर विस्तार से बताने के लिए मेरे पास बहुत कुछ है। यह पहले जो कहा गया है, उसके मुताबिक ही है, और मुझे नहीं लगता कि यह बहुत आश्चर्य की बात होगी, कि हमारी अंदरूनी आवाज हमारी बाहरी आवाज से मेल खाती है। मुझे लगता है कि यह आश्चर्य की बात नहीं है, कि चीन एजेंडे में रहा होगा। यह एक इंडो-पैसिफिक सम्मेलन है। यह एक इंडो-पैसिफिक साझेदारी है। चीन इंडो-पैसिफिक में एक प्रमुख देश है। लेकिन मुझे लगता है कि यह कहना भी उचित है कि एजेंडे में कई अन्य विषय भी थे।आपको बता दें, कि चीन दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर दोनों में उग्र क्षेत्रीय विवादों में उलझा हुआ है।चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है। वियतनाम, मलेशिया, फिलीपींस, ब्रुनेई और ताइवान ने भी इस पर जवाबी दावे किए हैं।

चार सदस्यीय क्वाड, जो एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत को बनाए रखने की वकालत करती है। चीन का दावा है कि इस समूह का मकसद उसके उदय को रोकना है।कुछ समय पूर्व  चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि जहां तक क्वाड का संबंध है, मुझे लगता है कि भारत इस तंत्र की मंशा को हमसे बेहतर जानता है। क्या इसका इरादा चीन के खिलाफ एक छोटे-से गुट को खड़ा करना नहीं है? कुछ ही दिन पहले ढाका में चीन के राजदूत ली जिमिंग ने बांग्लादेश को अमेरिका के नेतृत्व वाले क्वाड गठबंधन में शामिल होने के खिलाफ आगाह करते हुए कहा था कि बीजिंग विरोधी “क्लब” में ढाका की भागीदारी के वजह से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को “काफी नुक़सान” होगा।

आपको बता दे कि आखिर क्या है क्वाड..? जिसके कारण जिनपिंग की नींद उडी हुई है । क्वाड शब्द “क्वाड्रीलेटरल सुरक्षा वार्ता” के क्वाड्रीलेटरल (चतुर्भुज) से लिया गया है। इस समूह में भारत के साथ अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। क्वाड जैसे समूह को बनाने की बात पहली बार 2004 की सुनामी के बाद हुई थी जब भारत ने अपने और अन्य प्रभावित पड़ोसी देशों के लिए बचाव और राहत के प्रयास किए और इसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल हो गए थे।लेकिन इस आइडिया का श्रेय जापान के पूर्व प्रधान मंत्री शिंज़ो आबे को दिया जाता है। 2006 और 2007 के बीच आबे क्वाड की नींव रखने में कामयाब हुए और चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता की पहली अनौपचारिक बैठक वरिष्ठ अधिकारीयों के स्तर पर अगस्त 2007 में मनीला में आयोजित की गई। उसी साल क्वाड के चार देशों और सिंगापुर ने मालाबार के नाम से बंगाल की खाड़ी में एक नौसैनिक अभ्यास में हिस्सा लिया था। इस सब पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए क्वाड देशों से यह बताने को कहा था कि क्या क्वाड एक बीजिंग विरोधी गठबंधन है? क्वाड को एक झटका और लगा जब कुछ समय बाद ही ऑस्ट्रेलिया इससे अलग हो गया।

दस साल बाद 2017 में मनीला में आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान ‘भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान-अमेरिका’ संवाद के साथ क्वाड वापस अस्तित्व में आया।यह बैठक इन देशों के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के मनीला पहुँचने से कुछ घंटे पहले हुई। यह वार्ता इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण थी कि उस समय भारत और चीन के बीच डोकलाम में गतिरोध चल रहा था।2017 में गति मिलने के बाद क्वाड के विदेश मंत्री अक्टूबर 2020 में टोक्यो में मिले और कुछ ही महीनों बाद इस साल मार्च में जो बाइडेन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के कुछ ही हफ़्तों बाद अमेरिका ने क्वाड के वर्चुअल शिखर सम्मलेन की मेज़बानी की।

चीन शुरू से ही क्वाड को चार विरोधी देशों का समूह मानता रहा है। उसे लगता है कि क्वाड के ये चार देश उसकी बढ़ती ताकत के खिलाफ गुटबंदी कर रहे हैं।क्वाड के देशों ने सैन्य क्षेत्र को लेकर कोई सार्वजानिक बयान नहीं दिए हैं पर ये माना जाता है कि दक्षिण चीन सागर और हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगाना इन देशों की एक बड़ी प्राथमिकता है।रक्षा विशेषज्ञ सी उदय भास्कर भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त कमोडोर हैं। वे आजकल दिल्ली स्थित सोसाइटी फॉर पालिसी स्टडीज़ के निदेशक हैं।

उनके अनुसार चीन क्वाड के ग्रुप को लेकर काफी चिंतित है। वे कहते है कि पिछले साल चीन इसे नीचा दिखाने की कोशिश कर चुका है। उनके एक मंत्री ने कहा था कि क्वाड समुद्र के पानी पर झाग जैसा है जो हवा से उड़ जायेगा। क्वाड चीन के लिए हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में बहुत बड़ी चुनौती हो सकता है, इसीलिए क्वाड की क्षमता देखते हुए चीन बहुत चिंतित है। उनका यह भी कहना था  कि “समुद्री क्षेत्र में चीन अपना दबदबा दक्षिण चीन सागर में और पूर्व सागर मे दिखाता रहा है”। उनके अनुसार इस दबदबे की वजह से जहाँ दक्षिण चीन सागर में आसियान के देश प्रभावित हुए हैं, वहीं पूर्व सागर में जापान।वे कहतें हैं, “दोनों क्षेत्रों में चीन एक चुपके-चुपके अपना दावा बढ़ाता दिख रहा है। दक्षिण चीन सागर में नाइन डैश लाइन और कृत्रिम इंस्टालेशन बना दिए हैं और तरह-तरह के क्षेत्रीय दावे कर दिए हैं। यह सब देखते हुए जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने कहा है कि समुद्री क्षेत्र में एक नियम आधारित व्यवस्था होनी चाहिए।”

पिछले साल नवंबर में भारतीय नौसेना ने बहुपक्षीय युद्धाभ्यास ‘मालाबार’ का आयोजन हिंद महासागर में किया। इस अभ्यास में अमेरिकी नौसेना, जापानी मैरीटाइम सेल्फ़ डिफेंस फ़ोर्स और रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी ने हिस्सा लिया। क्वाड देशों के इस युद्धाभ्यास को चीन के लिए एक संदेश की तरह देखा गया। कमोडोर भास्कर के अनुसार समुद्री क्षेत्र के अलावा चीन के साथ साइबर और स्पेस के क्षेत्रों में भी नियम आधारित व्यवस्था बनाने की कोशिश होनी चाहिए। वे कहते हैं, “चीन को नियम आधारित व्यवस्था में लाने के लिए लोकतान्त्रिक देश अपना एक गुट बनाते हुए सिद्धांतों के लिए आगे बढ़ सकते हैं।”उनका यह भी मानना था  कि अगर यह चार देश मिलकर सहमति बना रहे हैं तो “यह चीन के ख़िलाफ़ नहीं है बल्कि एक नियम आधारित व्यवस्था बनाने के लिए है”।  वे कहते हैं, “क्वाड ग़ैर-सैनिक मुद्दों को आगे बढ़ा रहा है जिसमें कोविड महामारी के दौरान एक दूसरे से सहयोग करना और ज़रूरतमंद देशों की मदद करने की बात की गई है।”

गौरतलब है कि जब भारत पूरे विश्व की तरह कोरोना महामारी की पहली लहर से जूझ रहा था, उसी दौरान चीन की ओर से लद्दाख क्षेत्र के कई सीमा क्षेत्रों में घुसपैठ करने की खबरें आनी शुरु हुईं। कुछ ही महीनों में यह स्पष्ट हो गया कि चीन की सेना ने भारत के साथ सीमा पर सैकड़ों वर्ग किलोमीटर पर कब्ज़ा कर लिया था और सशस्त्र ठिकाने बना लिए थे। इसके कारण दोनों देशों के सैनिकों में झड़पें भी हुई।तो क्या चीन के साथ संबंधों में आई खटास ने भारत को अमेरिका और क्वाड की तरफ धकेलने में भूमिका निभाई?उदय भास्कर कहते हैं कि जो लदाख में हुआ उसका क्वाड से इतना सीधा संबंध तो नहीं है। वे कहते हैं, “ये सोचना ग़लतफहमी है कि अगर भारत हिन्द महासागर के समुद्री क्षेत्र में पूरा दबाव डालेगा तो चीन की लद्दाख की गतिविधियों पर कोई फर्क पड़ेगा। मैं नहीं समझता कि इतना सीधा संबंध है।”

कोमोडोर भास्कर यह ज़रूर मानते हैं कि जो बाइडेन के आने के बाद क्वाड की गतिविधियां बढ़ गई हैं। वे कहते हैं, “भारत अभी भी यही कहता है कि क्वाड चीन विरोधी नहीं है। क्वाड में सिद्धांतों के लिए सहमति बन रही है तो समझने वाले समझ जाएँगे कि इसका एक दूसरा पहलु भी है। भारत के पास जो समुद्री क्षेत्र में शक्ति है उसके कारण उसे अन्य देशों के साथ मिलकर चलना ही चाहिए।” 

अब तक देखा गया है चीन और वहां का मीडिया समय-समय पर क्वाड को एशियाई नेटो के नाम से पुकारता रहा है।जब रुसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भारत की यात्रा पर आए थे तब उन्होंने  यह संकेत दिया था कि रूस इन अटकलों से अवगत था कि क्वाड एशिया के नेटो में परिवर्तित हो रहा है। रूस ने भारत को हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन को नियंत्रित करने के लिए क्वाड को नाटो जैसे सैन्य गठबंधन में बदलने के लिए अमेरिका के किसी भी कदम से दूर रहने के लिए भी कहा था।भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने उस समय कहा था कि उन्होंने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के बारे में रुसी विदेश मंत्री से भारत का दृष्टिकोण साझा किया था और यह भी बताया था कि समसामयिक चुनौतियों से निपटने के लिए देशों को नए और अलग तरीकों से एक साथ काम करने की आवश्यकता है।

मोदी जी ने क्वाड सम्मेलन  में दोहराया कि हमारा संदेश स्पष्ट है। क्वाड सहायता करने, साझेदारी करने और पूरक बनने के लिए है। मैं एक बार फिर राष्ट्रपति बाइडन और मेरे सभी सहयोगियों को बधाई देता हूं। हमें 2025 में भारत में क्वाड लीडर्स समिट आयोजित करने में खुशी होगी।’ इस साल क्वाड नेताओं का शिखर सम्मेलन पहले भारत में होने वाला था। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन इस कार्यक्रम को अपने गृहनगर में आयोजित करने के इच्छुक थे। बाइडन के लिए यह शिखर सम्मेलन किसी विदाई की तरह है, क्योंकि उनके राष्ट्रपति पद का कार्यकाल खत्म हो रहा है। क्वाड की बैठक ने उड़ाई जिनपिंग की नींद..!