

आधुनिक भारत के एक महान चिंतक। महान देशभक्त एवं दार्शनिक। युवा संन्यासी एवं युवाओं के प्रेरणास्रोत। और भारतीय नवजागरण के अग्रदूत। स्वामी विवेकानंद की पहचान एक भारतीय हिंदू भिक्षु, दार्शनिक, लेखक, धार्मिक शिक्षक और भारतीय रहस्यवादी रामकृष्ण के मुख्य शिष्य के रूप में भी है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते। स्वामी विवेकानंद का यह कथन देश के युवा एवं विद्यार्थी से लेकर हर वर्ग के लोगों के जीवन पर सटीक बैठता दिखाई पड़ता है। क्योंकि लक्ष्यहीन जीवन का ना तो कोई मतलब होता है और ना ही उपयोगिता। यही वजह है कि स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत और कथन उनके निधन के कई सालों के बाद भी प्रासंगिक हैं। करीब सवा सौ साल पहले आज ही के दिन 4 जुलाई को स्वामी विवेकानंद का निधन हुआ था। आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर उनके आध्यात्मिक तथा युवाओं को संदेश को स्मरण करने का दिन है। भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक जागरण के अग्रदूत स्वामी विवेकानंद
अपने ओजश्वी विचारों से लोगों की जिंदगी को रोशन करने वाले स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था, लेकिन संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ। वर्ष 1884 में अल्पायु में ही उनके पिता विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद अत्यंत गरीबी की मार ने उनके चित्त को कभी डिगने नहीं दिया। स्वामी विवेकानंद ने 16 वर्ष की आयु में कलकत्ता से एंट्रेंस की परीक्षा पास की और कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की। स्वामी विवेकानंद नवंबर 1881 ईस्वी में संत रामकृष्ण से मिले और उनकी आंतरिक आध्यात्मिक चमत्कारिक शक्तियों से नरेन्द्रनाथ इतने प्रभावित हुए कि वे उनके सर्वप्रमुख शिष्य बन गए। धर्म और आध्यात्म की अपनी यात्रा में स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 में कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को कलकत्ता के निकट गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की।
पहली नजर में भले ही यह अतिशयोक्ति लगे लेकिन महज 25 वर्ष की आयु में नरेंद्र दत्त ने गेरुआ वस्त्र पहन लिए। तत्पश्चात उन्होंने भारतवर्ष में सामाजिक और आध्यात्मिक तथा हिंदू धर्म की हालत को देखने के लिए पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। सन 1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानंदजी उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप से पहुंचे। विदेसी लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहां लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद में बोलने का समय ही न मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला, किंतु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए। अमेरिका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएं स्थापित कीं। अनेक अमेरिकन विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। वे सदा अपने को गरीबों का सेवक कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशांतरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया।
स्वामी विवेकानंद का मानना है कि किसी भी राष्ट्र का युवा जागरूक और अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो, तो वह देश किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। युवाओं को सफलता के लिये समर्पण भाव को बढ़ाना होगा तथा भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये तैयार रहना होगा। विवेकानंद युवाओं को आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिये भी प्रेरित करते हैं। युवाओं के लिये प्रेरणास्रोत के रूप में विवेकानंद के जन्म दिवस, 12 जनवरी को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस तथा राष्ट्रीय युवा सप्ताह मनाया जाता है। इस महोत्सव का उद्देश्य राष्ट्रीय एकीकरण, सांप्रदायिक सौहार्द्र तथा भाईचारे में वृद्धि करना है। स्वामी विवेकानंद का मानना है कि भारत की खोई हुई प्रतिष्ठा तथा सम्मान को शिक्षा द्वारा ही वापस लाया जा सकता है। किसी देश की योग्यता तथा क्षमता में वृद्धि उस देश के नागरिकों के मध्य व्याप्त शिक्षा के स्तर से ही हो सकती है।
स्वामी विवेकानंद ने ऐसी शिक्षा पर बल दिया जिसके माध्यम से विद्यार्थी की आत्मोन्नति हो और जो उसके चरित्र निर्माण में सहायक हो सके। साथ ही शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जिसमें विद्यार्थी ज्ञान प्राप्ति में आत्मनिर्भर तथा चुनौतियों से निपटने में स्वयं सक्षम हों। विवेकानंद ऐसी शिक्षा पद्धति के घोर विरोधी थे जिसमें गरीबों एवं वंचित वर्गों के लिये स्थान नहीं था। आज भी देश में बनाई गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर स्वामी विवेकानंद के शिक्षा दर्शन की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। इसके साथ ही केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा युवाओं के कल्याण के लिए संचालित की जा रही विभिन्न योजनाओं को भी स्वामी विवेकानंद के “युवा दर्शन” के रूप में देखा जा सकता है। देश की तरक्की में युवाओं की सबसे बड़ी भागीदारी होती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर स्वामी विवेकानंद के विचारों के अनुरूप ही सरकार है युवाओं को शिक्षा रोजगार एवं उनके स्वर्णिम भविष्य के लिए काम कर रही हैं।
यह भारतवर्ष का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि मात्र 39 वर्ष की उम्र में 4 जुलाई 1902 को उनका निधन हो गया। स्वामी विवेकानंद का भारत को दिया गया सबसे महत्वपूर्ण योगदान भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को विश्व स्तर पर पहचान दिलाना है। विश्व धर्म संसद में अपने भाषण से भारत को एक नई पहचान दी, और वेदांत और योग के दर्शन को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाया। जिससे लोगों को मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने में मदद मिली। स्वामी विवेकानंद ने भारत में राष्ट्रवाद की भावना को जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वामी विवेकानंद का जीवन और कार्य आज भी भारत और दुनिया भर के लोगों को प्रेरित करते हैं। यही वजह है कि स्वामी विवेकानंद एक विश्व महापुरुष के साथ-साथ भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक जागरण के अग्रदूत के रूप में लोगों के दिलों में आज भी जिंदा हैं। भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक जागरण के अग्रदूत स्वामी विवेकानंद