

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने केन्द्र पर हिन्दी थोपने का आरोप दोहराया है। इस बयान से राष्ट्रभाषा प्रेमी आहत हैं। हिन्दी हमारा जीवनरस है। प्राण और आत्म भी। मां के गर्भ से संसार में आए तो रोये हिन्दी में। सोए हिन्दी के आंचल में। जागे तो हिन्दी सुने। उठे, बैठे, चले, लुढ़के, गिरे, रोए हिन्दी में। मां ने उठाया और मनाया भी हिन्दी में। गुस्साए और रूठे भी हिन्दी में। बालक से तरूण हुए, गांव, क्षेत्र, नगर जाना हिन्दी में। प्रीति, रीति, नीति हिन्दी की। हमारी प्रकृति हिन्दी है। स्वाभाविक ही हमारी संस्कृति भी हिन्दी में ही खिलती है। उल्लास और उत्साह का रस हिन्दी है। हम हिन्दी में सोचते हैं, हिन्दी में प्रकट होते हैं। हिन्दी हमारी मां है। अंग्रेजी हमारे परिवार की भाषा नहीं। हमें बताया जाता है कि अंग्रेजी अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है। हम यह उपदेश मान लेते लेकिन क्या करें? एशिया महाद्वीप के 48 देशों में से भारत छोड़ किसी भी देश की मुख्य भाषा अंग्रेजी नहीं है। अजरबेजान की भाषा अजेरी, अर्मेनिया की अर्मेनियन, इजराइल की हिब्रू, ईरान की फारसी, उजबेकिस्तान की उजबेक, ओमान सऊदी अरब, सीरिया, ईराक, जार्डन, यमन, बहरीन, कतर व कुवैत की भाषा अरबी है। चीन, ताईवान, सिंगापुर की मंदारिन, इण्डोनेशिया की डच, दोनो कोरिया की कोरियायी, श्रीलंका की सिंहली व तमिल, कम्बोडिया की खमेर,अफगानिस्तान की पश्तो, पाकिस्तान की उर्दू और तुर्की की तुर्की है।
यूरोप को अंग्रेजी भाषी क्षेत्र माना जाता हैं यूरोप के 43 देशों में से 40 की भाषा अंग्रेजी नहीं है। यहां डेनमार्क की डेनिस, चेक गणराज्य की चेक, रूस की रूसी, स्वीडन की स्वीडिस, जर्मनी की जर्मन, स्विटजरलैण्ड व पोलैण्ड की पोलिस, इटली की इटैलियन, ग्रीस की ग्रीक, बुल्गारिया की बल्गेरियन, मालदोव की रोमानियन, यूक्रेन की यूक्रेनियन, फ्रांस की फ्रेंच, स्पेन की स्पेनिस है। सिर्फ ब्रिटेन की ही भाषा अंग्रेजी है। आयरलैण्ड की आयरिश व अंग्रेजी है। अफ्रीका और आस्ट्रेलिया के क्षेत्रों में भी अंग्रेजी मूल भाषा नहीं है। बावजूद इसके अंगे्रजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा क्यों है? लार्ड मैकाले ने ब्रिटिश संसद में कहा था “उच्चतर जीवन मूल्य और क्षमताओं को देखते हुए भारतीयों पर तब तक विजय प्राप्त नहीं की जा सकती, जब तक वहां की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक परम्परा की सशक्त रीढ़ नहीं तोड़ी जाती। इसलिए मेरा प्रस्ताव है कि भारत की प्राचीन शिक्षापद्धति, संस्कृति को विस्थापित करें कि भारतवासी अंग्रेजी को श्रेष्ठ समझते हुए स्वसंस्कृति और स्वाभिमान खो कर हमारी इच्छानुरूप शासित हो जाएं।” महात्मा गांधी ने आहतमन कहा था, “पृथ्वी पर हिन्दुस्तान ही ऐसा देश है जहां मां बाप बच्चों को अपनी भातृभाषा के बजाय अंग्रेजी पढ़ाना लिखाना पसंद करेंगे।”
भारत की संविधान सभा में राजभाषा पर तीन दिन बहस हुई। एन0जी0 आयंगर ने सभा (12.9.1949) में हिन्दी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव रखा, “हम अंग्रेजी को एकदम नहीं छोड़ सकते। यद्यपि सरकारी प्रयोजनों के लिए हमने हिन्दी को अभिज्ञात किया फिर भी हमें यह मानना चाहिए कि आज वह सम्मुनत भाषा नहीं है।” डाॅ0 धुलेकर ने बहस (13.9.1949) में कहा, “अंग्रेजी वीरों की भाषा नहीं है। वह वैज्ञानिकों की भी भाषा नहीं है। विज्ञान का एक शब्द भी अंग्रेजी भाषा का नहीं कहा जा सकता और न अंग्रेजी भाषा में प्रयुक्त अंक ही उस भाषा के अंक हैं। आप कहते हैं अगले 15 वर्षो तक अंग्रेजी भाषा को देश की राजभाषा के रूप में रहने दिया जाये। स्वराज्य के पश्चात भी हमारे स्कूल, विश्वविद्यालय तथा वैज्ञानिक अंग्रेजी में ही काम करते रहेंगे तो यह सुनकर मैं कांप उठता हूं।” सेठ गोविंददास ने कहा “हमने सेकुलर स्टेट मान लिया है। मगर इसका यह अर्थ कभी नहीं समझा कि सैक्युलर स्टेट मानना अनेक संस्कृतियां मानना हैं। यह एक प्राचीन देश है और इसका पुराना इतिहास है। इस देश में हजारों वर्षो से एक ही संस्कृति चली आई है। इस परम्परा को रखने के लिए और इस बात का खण्डन करने के लिए कि हमारी दो संस्कृतियां हैं, हम एक भाषा और एक लिपि रखना चाहते हैं।”

सभा की बहस रोमांचकारी है। पं0 नेहरू ने कहा, “हमने अंग्रेजी इस कारण स्वीकार की, कि वह विजेता की भाषा थी, अंग्रेजी कितनी ही अच्छी हो किन्तु इसे हम सहन नहीं कर सकते।” पं0 नेहरू अंग्रेजी सहन करने को तैयार नहीं थे। राजभाषा प्राविधान के प्रस्तावक हिन्दी को कमतर बता रहे थे। सभा ने 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को राजभाषा बनाया। 15 वर्ष तक अंग्रेजी में राजकाज चलाने का ‘परन्तुक’ जोड़ा। संविधान के अनु0 343 (1) में हिन्दी राजभाषा बनी, किन्तु अनु0 343 (2) में अंग्रेजी जारी रखने का प्राविधान हुआ। हिन्दी के लिए आयोग/समिति बनाने की व्यवस्था हुई। हिन्दी के विकास की जिम्मेदारी (अनु0 351) केन्द्र पर डाली गयी। मूल प्रश्न यह है कि क्या अंग्रेजी ज्यादा ज्ञानबोधक है? अमेरिकी भाषा विज्ञानी ब्लूम फील्ड ने अंग्रेजी की बाबत (लैंगुएज, पृष्ठ 52) लिखा “यार्कशायर (इंग्लैंड) के व्यक्ति की अंग्रेजी को अमेरिकी नहीं समझ पाते।” तो फिर अंग्रेजी विश्व भाषा क्यों है?
प्रख्यात भाषाविद् चिंतक डाॅ0 रामबिलास शर्मा ने ‘भाषा और समाज’ (पृष्ठ 401) में लिखा “अंग्रेजी के भारतीय प्रोफेसरों को हालीवुड की फिल्म दिखाइए, पूछिए, वे कितना समझे? इसके विपरीत हिन्दी की सुबोधता को हर किसी ने माना है। हिन्दी अपनी बोलियों के क्षेत्र में तो समझी ही जाती है गुजरात, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में भी उसे समझने वाले करोड़ों है। यूरोप में जर्मन और फ्रांसीसी अंग्रेजी से ज्यादा सहायक है। जर्मनी और अस्ट्रिया की भाषा जर्मन है। स्विट्जरलैण्ड के 70 फीसदी लोगों की मातृभाषा भी जर्मन है। चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, युगोस्लाविया और पोलैण्ड के लोग जर्मन समझते हंै।” हिन्दी भाषी बढ़े हैं। हिन्दी वाले ज्यादा हैं बावजूद इसके वह अपने ही देश में परिपूर्ण राष्ट्रभाषा भी नहीं है।
भाषा संस्कृति की संवाहक होती है। ब्रिटिश व्यापार और सत्ता के साथ अंग्रेजी लाये थे। अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ पूंजी के साथ भाषा लाती है। भाषा के साथ संस्कृति आती है। अमेरिकी भाषा विज्ञानी नोमचोम्सकी ने कहा था, “करोड़ों डालर के जनसंपर्क उद्योग के जरिए बताया जाता है कि जिन चीजों की जरूरत उन्हें नहीं है, वे विश्वास करें कि उनकी जरूरत उन्हें ही है।” भाषा का विकास सामाजिक विकास से जुड़कर होता है। सामाजिक विकास में संस्कृति और आर्थिक उत्पादन के कारक प्रभाव डालते हैं। भारत की नई पीढ़ी मूल स्रोत भाषा और संस्कृति से कट रही है। भारत में हिन्दी जानने वालों की संख्या सौ करोड़ से ज्यादा है। अमेरिका, पाकिस्तान, नेपाल, इंडोनेशिया, इराक, बांग्लादेश, इजरायल, ओमान, इक्वाडोर, फिजी, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, ग्वाटेमाला, म्यांमार, यमन, त्रिनिडाड, सऊदी अरब, पेरू, रूस, कतर आदि देशों में लाखों हिन्दी भाषी हैं। सबसे बड़ी प्रसार संख्या वाले अखबार हिन्दी के हैं। हिन्दी फिल्मों/सीरियलों का व्यापार करोड़ो में है। हिन्दी में लिखे गए इतिहास, संस्कृति व दर्शनग्रंथ विश्व की किसी भी भाषा से उत्कृष्ट हैं। लेकिन हिन्दी राजभाषा के असली सिंहासन से दूर है। हिन्दी पंख फैलाकर उड़ी है। अपनी सरलता और लोक आच्छादन की क्षमता के कारण। हिन्दी की स्वीकार्यता में सभी भारतीय भाषाओं का विकास भी जुड़ा हुआ है। स्टालिन पुनर्विचार करें। तमिल और हिन्दी साथ साथ चलें। राष्ट्र भाषा को वास्तविक सम्मान मिलना ही चाहिए। हिन्दी हमारी प्राण और आत्म है