आखिर घोसी में क्या राजभर का

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आखिर घोसी में क्या राजभर का
आखिर घोसी में क्या राजभर का

उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी लोकसभा पूर्वांचल की एक प्रमुख सीट है. इस बार भाजपा ने यह सीट एनडीए में शामिल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को दी है. यूपी सरकार में मंत्री और सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने यहां से अपने बेटे डॉ. अरविंद राजभर को टिकट दिया है. अरविंद राजभर योगी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री रहे हैं. कभी घोसी को कम्युनिस्टों का गढ़ कहा जाता था. एक के बाद एक कई उम्मीदवार जीतते रहे. बाद में यहां से बसपा ने कई बार जीत हासिल की. पिछले चुनाव में भी बसपा के अतुल राय ही जीते थे.

घोसी लोकसभा सीट का जातिगत समीकरण देखें तो 13 बार भूमिहार, 2 बार चौहान, 2 बार राजभर और एक बार क्षत्रिय सांसद हुए हैं. मौजूदा सांसद अतुल कुमार सिंह (अतुल राय) भी भूमिहार हैं. वह पांच साल जनता के बीच एक दिन भी नहीं जा पाए. संसद सत्र में भी महज तीन दिन पहुंचे थे. दरअसल, 2019 के चुनाव नतीजे आने के ठीक बाद से ही अतुल राय जेल में बंद हैं.

क्या है घोसी लोकसभा का जातिगत समीकरण….?

2014 में भाजपा के हरीनारायण राजभर जीते थे. उससे पहले 2009 में बसपा के टिकट पर दारा सिंह चौहान सांसद बने थे. फिलहाल वह विधान परिषद सदस्य और यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. घोसी लोकसभा सीट की समूचे पूर्वांचल में एक अहम भूमिका है. घोसी लोकसभा सीट के जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां पर कुल 20 लाख 55 हजार वोटर्स हैं. इसमें सबसे ज्यादा 4 लाख 30 हजार दलित, 3 लाख 45 हजार मुस्लिम, 1 लाख 82 हजार लोनिया, 1 लाख 73 हजार राजभर, 1 लाख 62 हजार यादव, 1 लाख 65 हजार भूमिहार, 1 लाख 10 हजार राजपूत, 86 हजार बनिया, 80 हजार ब्राम्हण, 45 हजार मल्लाह, 42 हजार कुर्मी, 27 हजार कुम्हार/खरवार, 23 हजार गोंड, 7 हजार 800 कायस्थ, 3 हजार 400 सिंधी के लगभग हैं जो घोसी लोकसभा के लिए निर्णायक हैं.

घोसी लोकसभा सीट पर 20 लाख मतदाता हैं. इसमें 9 लाख से ज्यादा महिलाएं हैं. घोसी में दलित, मुस्लिमों के अलावा भूमिहार, राजपूत, चौहान, राजभर, यादव, कुर्मी, मल्लाह, ब्राह्मण और प्रजापति वोटर प्रमुख हैं. 
– सबसे ज्यादा 4 लाख से ज्यादा दलित वोटर हैं. 
– मुस्लिम वोटर 3 लाख से ज्यादा हैं. 
– चौहान वोटर 2 लाख के करीब, राजभर पौने दो लाख, यादव और भूमिहार डेढ़ लाख से ज्यादा हैं. 

घोसी लोकसभा सुभासपा के लिए चुनावी समर काफी कठिन है. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक दिव्येंदु राय कहते हैं कि अरविंद राजभर एक युवा नेता हैं. देखना ये है कि वह युवाओं की फौज को कितना लुभा पाते हैं. वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण राय कहते हैं कि घोसी का पिछला इतिहास देखा जाए तो काफी लंबे समय तक सवर्ण राजनेताओं के पाले में यह सीट रही है. इंडिया गठबंधन पिछड़ों की बात कर रहा है. इस दृष्टिकोण से भाजपा का यह पिछड़ा दांव काफी प्रभावी हो सकता है. लेकिन अगर पिछले विधानसभा उपचुनाव परिणाम पर नजर डालें तो मौजूदा सरकार के दोनों मंत्री ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान अपने बेस वोटर राजभर और चौहान बाहुल्य क्षेत्रों में भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए थे. ऐसे बूथ जहां पर चौहान, राजभर और राजपूत ज्यादा थे, वहां पर भी भाजपा को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था.

राजनैतिक आधार पर घोसी लोकसभा के पिछले चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो इस सीट से अब तक 6 बार कांग्रेस और 5 बार लेफ्ट के आलावा 2014 में भाजपा और 2019 में बसपा ने जीत दर्ज की है. जातिगत आधार पर घोसी लोकसभा सीट पर सर्वाधिक 13 बार भूमिहार, 2 बार लोनिया ( चौहान), 2 बार राजभर, एक बार राजपूत जाति के सांसद निर्वाचित हुए हैं. घोसी लोकसभा सीट से वर्तमान सांसद अतुल राय भी भूमिहार ही हैं.