जलवायु परिवर्तन के दौर में प्राकृतिक खेती

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जलवायु परिवर्तन के दौर में प्राकृतिक खेती
जलवायु परिवर्तन के दौर में प्राकृतिक खेती

अवनीश कुमार गुप्ता 

राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन भारत की कृषि में एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय संतुलन और किसानों की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना है। रासायनिक खेती के दीर्घकालिक प्रभावों ने न केवल मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित किया है, बल्कि जल स्रोतों और मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला है। इस संदर्भ में, प्राकृतिक खेती एक सशक्त समाधान के रूप में उभर रही है, जो न केवल टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देती है, बल्कि कृषि उत्पादन प्रणाली को भी स्वस्थ और प्राकृतिक बनाती है। जलवायु परिवर्तन के दौर में प्राकृतिक खेती

प्राकृतिक खेती की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके खेती की जाती है, जिससे लागत कम होती है और किसानों को आत्मनिर्भर बनने में सहायता मिलती है। गोबर, गोमूत्र, और जैविक खाद जैसे प्राकृतिक उत्पादों के उपयोग से मिट्टी में जैविक तत्वों की वृद्धि होती है, जो पौधों की वृद्धि में सहायक होते हैं। राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन ने इस दिशा में एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें 2025-26 तक 38 लाख हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया है। इस मिशन के लिए 2,481 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया है, जिससे किसानों को प्रशिक्षण,तकनीकी सहायता और बाजार समर्थन प्रदान किया जाएगा।

इस मिशन की सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहलू है किसानों को प्राकृतिक खेती के लाभों के प्रति जागरूक करना। वर्षों से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भरता ने किसानों के मनोविज्ञान को प्रभावित किया है। प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए किसानों को प्रशिक्षित करना और उन्हें इसके सकारात्मक परिणाम दिखाना आवश्यक है। सफल किसानों के उदाहरण और उनके अनुभव साझा करना इस दिशा में एक प्रभावी कदम हो सकता है।

प्राकृतिक खेती का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करती है। रासायनिक खेती के कारण जल स्रोतों में प्रदूषण, जैव विविधता की हानि, और मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट जैसे गंभीर मुद्दे सामने आए हैं। प्राकृतिक खेती न केवल इन समस्याओं को कम करती है, बल्कि मिट्टी में जैविक तत्वों की पुनर्बहाली और जल प्रबंधन में भी सुधार करती है। इस पहल से पर्यावरणीय संकट को कम करने में मदद मिलेगी और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित होगा।

बाजार की संरचना प्राकृतिक खेती को सफल बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वर्तमान में जैविक उत्पादों के लिए बाजार की मांग बढ़ रही है, लेकिन उनके लिए उचित मूल्य निर्धारण और वितरण प्रणाली का अभाव है। किसानों को उनके उत्पादों के लिए एक सुनिश्चित बाजार उपलब्ध कराना आवश्यक है, जिससे वे प्राकृतिक खेती को आर्थिक दृष्टि से लाभकारी मानें। सरकार को इस दिशा में मजबूत नीतियां बनानी चाहिए, जिससे जैविक उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा मिले और स्थानीय स्तर पर उनके विपणन के लिए सहकारी समितियों की स्थापना की जा सके।

सिंचाई और जल प्रबंधन भी प्राकृतिक खेती का एक अनिवार्य पहलू है। पारंपरिक सिंचाई विधियों के स्थान पर सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों, जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर, का उपयोग किया जाना चाहिए। इससे न केवल पानी की बचत होगी, बल्कि फसलों की उत्पादकता भी बढ़ेगी। प्राकृतिक खेती में जल प्रबंधन की कुशल प्रणाली न केवल पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करती है, बल्कि कृषि लागत को भी कम करती है।

राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन है। जैविक खाद, बीज उत्पादन, और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के लिए स्थानीय स्तर पर नए उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं। इससे ग्रामीण युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे और पलायन की समस्या को कम करने में मदद मिलेगी। इसके अतिरिक्त, महिलाओं को इस मिशन में शामिल करके उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।

प्राकृतिक खेती के दीर्घकालिक लाभों में से एक है स्वास्थ्य में सुधार। रासायनिक खेती के कारण हमारे खाद्य पदार्थों में हानिकारक तत्वों की उपस्थिति बढ़ गई है, जिससे अनेक बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। प्राकृतिक खेती के माध्यम से उत्पादित फसलें न केवल स्वास्थ्यवर्धक होती हैं, बल्कि उनका पोषण मूल्य भी अधिक होता है। इस मिशन के माध्यम से देश में एक स्वस्थ समाज का निर्माण किया जा सकता है।

प्राकृतिक खेती को व्यापक रूप से अपनाने के लिए नीति निर्माताओं को अनुसंधान और विकास में निवेश करना होगा। वैज्ञानिक संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों को इस दिशा में नए नवाचारों और तकनीकों को विकसित करना चाहिए, जो प्राकृतिक खेती को अधिक प्रभावी और उत्पादक बना सकें। स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर खेती के तरीके विकसित करना और उन्हें किसानों तक पहुंचाना इस मिशन की सफलता के लिए आवश्यक है। इस मिशन के कार्यान्वयन में एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच समन्वय, पंचायत स्तर पर योजनाओं का कार्यान्वयन, और निजी क्षेत्र की भागीदारी इस मिशन को अधिक प्रभावी बना सकती है। सरकार को इस पहल के लिए एक स्थायी ढांचे का निर्माण करना चाहिए, जिसमें सभी हितधारकों की भागीदारी सुनिश्चित हो।

राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन भारत को खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के क्षेत्र में एक अग्रणी स्थान दिलाने की क्षमता रखता है। यह मिशन न केवल कृषि क्षेत्र में सुधार करेगा, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत नींव भी प्रदान करेगा। यह समय की मांग है कि हम अपनी परंपरागत खेती प्रणाली की ओर लौटें और प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित करें। यदि इस मिशन को सही दिशा में कार्यान्वित किया जाए, तो यह भारतीय कृषि और समाज के लिए एक परिवर्तनकारी पहल सिद्ध हो सकता है। जलवायु परिवर्तन के दौर में प्राकृतिक खेती