यादव कौन….!

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यादव कौन….!

भारत की समस्त जातियों में यदुवंश बहुत प्रसिद्ध है माना जाता है कि इस वंश की उत्पत्ति भगवान श्री कृष्ण के चंद्र वंश से हुई है यादों को सामान्यता जदु भी कहते हैं तथा यह पूरे भारत में बसे हुए हैं श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम् तथा साम्ब के ही वंशज यादव कहलाए।राजा यदु का उल्लेख हिंदू ग्रंथों जैसे महाभारत, हरिवंश, पुराणों जैसे विष्णु पुराण, भागवत पुराण और गरुड़ पुराण आदि में मिलता है। इन ग्रंथों में राजा यदु को राजा ययाति और रानी देवयानी का जेष्ठ पुत्र के रूप में वर्णन किया गया है। ऐसा माना जाता है की राजा यदु ने आदेश दिया था कि उनकी आने वाली पीढ़ियों को यादवों के रूम में जाना जाएगा और उनके वंश को यदुवंश के रूप में जाना जाएगा। इसीलिए राजा यदु के वंशज यादव या अहीर के रूप में जाने जाते हैं।

यादव जाति की उत्पत्ति के विषय में इतिहास के महान राजा “यदु” (यदुवंश) का नाम लिया जाता है। कई इतिहासकारों के अनुसार “यदुवंश” के लोग ही यादव जाति के पूर्वज थे। यादव वंश मुख्यत आभीर (वर्तमान अहीर), अंधक, व्रष्णि तथा सत्वत नामक समुदायों से मिलकर बना है। इतिहास और प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध कहानियों के अनुसार यादव जाति के लोग भगवान कृष्ण के उपासक थे।…..कुछ इतिहासकारों और कट्टर जातकों के अनुसार भगवान कृष्ण को यादव अहीर जाति का वंशज माना जाता है, लेकिन इस बात का प्रमाण किसी के पास उपलब्ध नहीं है। यादव जाति हिंदू एवं सिख धर्म में विभाजित है, इस जाति के लोग मुख्यतः भारत एवं नेपाल में पाए जाते हैं। भारत में इनकी संख्या काफी बड़ी मात्रा में पाई जाती है, जो कि मुख्यत: उत्तर भारत, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, तमिलनाडु आदि राज्यों में पाए जाते हैं।

यादव कौन….!
यदुवंश की दो साखा जो पृथक नही हैं बस नाम पृथक है ग्वालवंशी और नन्द्वंशी। ग्वालवंश/गोपवंश साखा अति पवित्र शाखा है। महाभारत के अनुसार यह यदुवंशी क्षत्रिय राजा गौर के वंसज हैं। पर यह नन्द और वशुदेव के चचेरे भाईयों की संतान भी माने ज़ाते हैँ जो वृष्णिवंश से थे। गोप और ग्वाल को पवित्र कहने के पीछे भी एक कारण है। यह गोपियां ऋषियो का रुप हैं जो सत्यूग से नारायण की अराधना कर रहे थे और ग्वाल देवता थे। यही से पृथक साखा ग्वालवंश बनी। यह गोप या ग्वाल शब्द गौ से है गौ वाला - ग्वाल और गोपाल - गोप जो आर्य का प्रतीक है और गौ धन इन्ही की देन् है इस भारत को। जो की अब हिन्दू होने का प्रतीक है। इन्हे कर्म के आधार पर वैश्य वर्ण में कुछ अज्ञानी ने रखा या माना है। जबकी वर्ण व्यास्था जन्म से है। उदाहरण-परशुराम् जी ब्रहमान थे जन्म से कर्म क्षत्रिय का परंतु क्षत्रिय नहीं। उसी तरह गौ पालन देव पूजा है नकि गौ व्यापार। यादव बहुत मिलनसार व्यक्तित्व वाले होते हैं और अपने से पहले दुसरो के सुख के लिये लड़ मरने का जज्बा होता है। खुद के फायदे की लिये नहीं परंतु किसी मित्र के लिये मरने-मारने पर आ जाते हैं अगर बात मान पर आ जाये। यह वैष्णव होते हैं अर्थात इनके मनमांदिर में परदादा श्री कृष्ण ही बसे हैं जो की भगवानो के भगवान हैं।

कुछ इतिहासकारों और कट्टर जातकों के अनुसार भगवान कृष्ण को यादव अहीर जाति का वंशज माना जाता है, लेकिन इस बात का प्रमाण किसी के पास उपलब्ध नहीं है। यादव जाति हिंदू एवं सिख धर्म में विभाजित है, इस जाति के लोग मुख्यतः भारत एवं नेपाल में पाए जाते हैं। भारत में इनकी संख्या काफी बड़ी मात्रा में पाई जाती है, जो कि मुख्यत: उत्तर भारत, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, तमिलनाडु आदि राज्यों में पाए जाते हैं।

यदुवंशी अहीर कृष्ण के प्राचीन यादव जनजाति के वंशज माने जाते हैं। यदुवंशियो की उत्पत्ति पौराणिक राजा यदु से मानी जाती है। केवल राजा पुरू के वंशज ही सोम या चंद्रवंशी कहलायेंगे। इसमे कौरव और पांडव हुए। यदु महाराज ने राजाज्ञा दी की भविष्य में उनकी वंश परंम्परा “यदु या यादव” नाम से जानी जाय और मेरे वंशज “यदुवंशी या यादव” कहलायेंगे। राजा पुरू के वंशज,पौरव या पुरुवंशी ही अब आगे से सोमवंशी या चंद्रवंशी कहलाने के अधिकारी रह गये थे।


चंद्रवंशी चक्रवर्ती सम्राट महाराजा ययाति के जेष्ठ पुत्र यदु के वंशजो को यादव या यदुवंशी कहा जाता है।जब महाराज यदु ने विशाल सर्प का दमन किया तो अभीर अर्थात अहीर कहलाए। प्राचीन काल में जिसके पास सबसे ज्यादा गौ-धन होता था उनके राज्य को समृद्ध माना जाता था महाराज यदु के पास दस लाख गाय थी,ऋग्वेद के 10 मंडल के 62वें अध्याय में 10वें श्लोक में यदु महाराज को “गोप” कहा गया है।इसके साथ ही अन्य पुराणों में भी इनके वंशजो को गोप ही कहा गया है, जैसे की भागवत पुराण में महाराज वासुदेव और महाराज नंद को गोप कहा गया है,तथा राधा रानी के पिता वृषभानु गोप से ले कर सभी मथुरा ब्रज वासी को भी गोप कहा गया है और महाभारत में नारायणी सेना के सभी यादवो को गोप कहा गया है।यादवो की कुलदेवी और नंद बाबा की बेटी माँ विंध्यावासिनी भी गोपी(अहीरानी) हैं।

गोप शब्द का अर्थ होता है राजा या कहे तो इलाके का ठाकुर,मुखिया,चौधरी।गोप का एक अर्थ अधिक गौ धन वाला या गौ रक्षक भी होता है।

गर्गसंहिता में गर्गऋषि लिखते हैं:- “परा न विदिता भूवि गोप जात:” -अर्थ:- गोप(यादव) जाति से बढ़कर पृथ्वी पर कोई पैदा हुआ ही नहीं।हिन्दू जाति में अहीर एक ऐसी जाति है,जिसमें आज भी आर्यों का पवित्र खून प्रवाहित होता है।

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यदुवंश अथवा यदुवंशी क्षत्रिय शब्द भारत के उस जन-समुदाय के लिए प्रयुक्त होता है जो स्वयं को प्राचीन राजा यदु का वंशज बताते हैं। यदुवंशी क्षत्रिय मूलतः अहीर थे। भारतीय मानव वैज्ञानिक कुमार सुरेश सिंह के अनुसार माधुरीपुत्र, ईश्वरसेन व शिवदत्त नामक कई विख्यात अहीर राजा कालांतर में राजपूतों मे सम्मिलित होकर यदुवंशी राजपूत कहलाए। यदुवंशी अहीर कृष्ण के प्राचीन यादव जनजाति के वंशज माने जाते हैं। यदुवंशियो की उत्पत्ति पौराणिक राजा यदु से मानी जाती है।

यादव कौन….!

—– यदु ऋग्वेद में वर्णित पाँच भारतीय आर्य जनों (पंचजन, पंचक्षत्रिय या पंचमानुष) में से एक है। —–

हिन्दू महाकाव्य महाभारत, हरिवंश व पुराण में यदु को राजा ययाति व रानी देवयानी का पुत्र बताया गया है। राजकुमार यदु एक स्वाभिमानी व सुसंस्थापित शासक थे। विष्णु पुराण, भगवत पुराण व गरुण पुराण के अनुसार यदु के चार पुत्र थे, जबकि बाकी के पुराणो के अनुसार उनके पाँच पुत्र थे। बुध व ययाति के मध्य के सभी राजाओं को सोमवंशी या चंद्रवंशी कहा गया है। महाभारत व विष्णु पुराण के अनुसार यदु ने पिता ययाति को अपनी युवावस्था प्रदान करना स्वीकार नहीं किया था जिसके कारण ययाति ने यदु के किसी भी वंशज को अपने वंश व साम्राज्य मे शामिल न हो पाने का श्राप दिया था। इस कारण से यदु के वंशज सोमवंश से प्रथक हो गए व मात्र राजा पुरू के वंशज ही कालांतर में सोमवंशी कहे गए। इसके बाद महाराज यदु ने यह घोषणा की कि उनके वंशज भविष्य में यादव या यदुवंशी कहलएंगे। यदु के वंशजों ने अभूतपूर्व उन्नति की परंतु बाद मे वे दो भागों मे विभाजित हो गए।

यादव के गोत्र हैं जानकारी पूर्ण नहीं है पर जो है 28 य 30 हैं और मूल गोत्र अत्री है-

कोकन्दे,हिन्नदार,सुराह,रियार,सतोगिवा,रराह,रौतेले,मोरिया,निगोते,बानियो,पड़रिया,मसानिया,रायठौर,फुलसुंगा,मोहनियां,चंदेल,हांस,कुमिया,सागर,गुजैल,सफा,अहीर,कछवाए,थम्मार,दुबेले,पचौरी ,बमनियाँ, गयेली,रेकवार,गौंगरे,लखोनिया।

यादव शब्द अनेकों पारंपरिक उपजातियों के समूह से बना है, जैसे कि ‘ हिन्दी भाषी क्षेत्र’ के ‘अहीर’, महाराष्ट्र के ‘गवली’, आंध्र प्रदेश व कर्नाटक के ‘गोल्ला’, तथा तमिलनाडू के ‘कोनार’ तथा केरल के ‘मनियार’। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में अहीर,ग्वाला (गवली) तथा यादव शब्द प्रायः एक दूसरे के पर्याय माने जाते हैं । कुछ वर्तमान राजपूत वंश भी स्वयं के यादव होने का दावा करते हैं, तथा वर्तमान यादव भी स्वयं को क्षत्रिय मानते है। यादव मुख्यतः यदुवंशी, नंदवंशी व ग्वालवंशी उपजातीय नामों से जाने जाते है, यादव समुदाय के अंतर्गत 20 से भी अधिक उपजातियाँ सम्मिलित हैं। वे प्रमुखतः ऋषि गोत्र अत्री से है तथा अहीर उपजातियों में अनेकों कुल गोत्र है जिनके आधार पर सगोत्रीय विवाह वर्जित है। यादव गोप अहीर गोपाल जैसे शब्दों को एक दूसरे का पर्यावाची कहा जाता है। वैसे तो गोप सभी यदुवंशियो की पदवी है पर सरकारी दस्तावेजो के अनुसार बिहार बंगाल के कृष्णोत (वृष्णिवंशी), मधुरौत(मधुवंशी),भोजवंशी और सदगोप गोत्र के यदुवंशी अभीरों को गोप कहा गया है और यह यादव बड़े पैमाने पर बिहार बंगाल में जमींदार और रियासतदार रहे है,और इन यदुवंशी क्षत्रियो के पास हजारो साल पुराने यदुवंशी क्षत्रिय,अभीर गोप होने के दस्तवजे है। गोप यादव बड़े पैमाने पर जमींदार रियास्तदार रहे हैं।शरिर से भी काफी बलिष्ठत होते है कुश्ती और तलवार बाजी का जबरदस्त शौक होता इन्हें,पुराने समय में इनके सबसे कुशल योद्धा में से एक माना जाता रहा है और वैदिक क्षत्रिय का दर्जा प्राप्त था।

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