बाघ यह उप-प्रजाति भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार और दक्षिण तिब्बत के तराई वाले जंगलों में पाई जाती है। बंगाल का सुंदरबन जंगल इसका प्राकृतिक आवास है लेकिन कटते जंगल और बढ़ते शिकार की वजह से यह संकट में है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड एंड ग्लोबल टाइगर फोरम के मुताबिक, दुनिया के 70 फीसदी बाघ भारत में ही रहते हैं।
मध्य प्रदेश। प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व 1973 में कान्हा टाइगर बना। अभी प्रदेश में 6 टाइगर रिजर्व हैं। कान्हा, बांधवगढ़, संजय टाइगर रिजर्व, पन्ना, सतपुड़ा और पेंच टाइगर रिजर्व के रूप में मौजूद हैं। इनमें सबसे बड़ा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और सबसे छोटा पेंच टाइगर रिजर्व है।
अभयारण्य के रूप में पचमढ़ी, पनपथा, बोरी, पेंच-मोगली, गंगऊ, संजय- दुबरी, बगदरा, सैलाना, गांधी सागर, करेरा, नौरादेही, राष्ट्रीय चम्बल, केन, नरसिहगढ़, रातापानी, सिंघोरी, सिवनी, सरदारपुर, रालामण्डल, केन घड़ियाल, सोन चिड़िया अभयारण्य घाटीगाँव, सोन घड़ियाल अभयारण्य, ओरछा और वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य के नाम शामिल हैं।
वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में आप भीम के साथ अंगद को भी देख सकते हैं। दारा भी देखने को मिल सकता है। ये नाम किसी व्यक्ति के नहीं बाघों के हैं। वीटीआर प्रशासन इन्हें इसी नाम से जानता है। दरअसल, यहां बाघों की पहचान नाम और नंबर से होती है। बाघों का नामकरण दो आधार पर किया जाता है। पहला वीटीआर के अंदर के स्थान विशेष तथा दूसरा किसी व्यक्ति के विशेष की पहचान पर। इसमें स्थान विशेष पर अब तक किसी बाघ का नाम नहीं रखा गया है। संकेत नंबर के हिसाब से बाघों के लिए टी वन, टी टू और टी थ्री आदि नाम रखे जाते हैं। अब तक वीटीआर में बाघों के लिए 33 संकेत दिए जा चुके हैं। प्रति चार वर्ष पर बढ़ी बाघों की संख्या के लिए अलग-अलग संकेत दिए जाते हैं। जिस बाघ या बाघिन की मौत हो जाती है, उस संकेत नंबर को हटा दिया जाता है।