लद्दाख को बचाने की कोशिश अपनी सीमावर्ती ज़मीन को बचाना भी है। अखिलेश यादव ने कहा है कि अगर चारागाह पर धीरे-धीरे दूसरों का क़ब्ज़ा होता जाएगा तो लद्दाख के पश्मीना चरवाहों की भेड़-बकरियों और उनसे जुड़े उत्पादों के लिए घोर संकट पैदा हो जाएगा, जिसका सीधा संबंध लद्दाख के समाज के जीवनयापन से जुड़ा है। इसीलिए ये मुद्दा एक संवेदनशील सामरिक मुद्दे के अलावा एक बेहद चिंतनीय आर्थिक-सामाजिक मुद्दा भी है। लद्दाख मुद्दे को बड़े चश्मे से देखने की ज़रूरत
लद्दाख के मुद्दे को बड़े चश्मे से देखने की ज़रूरत है। इसके लिए उठ रही आवाज़ों को दबाना, देश के लिए चुनौती बन रही एक बड़ी दख़लंदाज़ी से मुँह मोड़ना है। इसीलिए लद्दाख के मुद्दे को प्राथमिकताओं में भी प्राथमिकता मानना चाहिए। इस संदर्भ में ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार को बार-बार लद्दाख की परेशानियों और चुनौतियों की याद दिलानी पड़ती है। जब कोई जान बूझकर सुनना नहीं चाहता है, तो जान बूझकर उसे फिर से सुनाया जाता है। इसीलिए हमने पहले भी कहा था, आज फिर से वही पूरी बात दोहरा रहे है। ‘पानी और नमक’ के सहारे अनशन करनेवालों का महत्व वो भाजपा क्या समझेगी, जिसकी आँख का पानी मर गया है और जो नमक का क़र्ज़ तक चुकाना नहीं जानती।
अखिलेश यादव ने कहा कि देश की जनता सोनम वांगचुक जी के लद्दाख, देश की सीमाओं व पर्यावरण की रक्षा के लिए किये जा रहे संघर्ष में हर तरह से उनके साथ है। हम सबका ‘सम्पूर्ण समर्थन’ उनके इस महान आंदोलन को कामयाब बनाएगा। भाजपा के वसूली के बल पर जमा किये गये पैसों के अंबार से जन्मे अहंकार ने उसकी देखने, सुनने और समझने की शक्ति छीन ली है। ये भाजपा का पतनकाल है। लद्दाख मुद्दे को बड़े चश्मे से देखने की ज़रूरत