महाकुम्भ:विविधता का वैश्विक संगम

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महाकुम्भ:विविधता का वैश्विक संगम
महाकुम्भ:विविधता का वैश्विक संगम
राजू यादव
राजू यादव

तीर्थराज प्रयागराज में संगम तट पर सनातन आस्था और संस्कृति के महापर्व महाकुम्भ का आयोजन हो रहा है। इस महाकुम्भ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकता का महाकुम्भ करार दिया है। मुख्यमंत्री योगी भी विभिन्न मंचों से इस महाकुम्भ को सामाजिक समरसता का सबसे बड़ा समागम बता चुके हैं और इसे चरितार्थ करते हुए उन्होंने इस बार विभिन्न वर्गों एवं संप्रदायों से आने वाले साधु संतों का सम्मान व अभिनंदन कर एक नई पहल और उदाहरण प्रस्तुत किया है। महाकुम्भ में आने वाले दिनों में योगी कई और वर्गों और संप्रदायों से जुड़े संतों को सम्मानित करने वाले हैं। योगी का स्पष्ट मत है कि मानवता के इस महापर्व में देश के कोने-कोने से, अलग-अलग भाषा, जाति, पंथ, संप्रदाय के धार्मिक संत, संन्यासी और महानुभाव सम्मिलित हो रहे हैं। इन सभी का यहां सम्मान होना चाहिए और उन्हें बिना भेदभाव हर वो सुविधा और व्यवस्था मिलनी चाहिए जो पहले से स्थापित साधु संतों व अखाड़ों को प्राप्त हो रही है। योगी के निर्देश पर इस बार कई ऐसी संस्थाओं को भी भूमि आवंटित की गई, जो या तो पहली बार सम्मिलित हो रहे हैं या फिर कई वर्ष पूर्व इसका हिस्सा बनते थे, लेकिन किन्हीं कारणों से बीते कुम्भ में वो सम्मिलित नहीं हो सके। योगी की इस पहल की संत समाज में काफी प्रशंसा हो रही है। महाकुम्भ:विविधता का वैश्विक संगम

प्रयागराज का महाकुम्भ विश्व का सबसे बड़ा मानवीय और आध्यात्मिक सम्मेलन है। यूनेस्को ने महाकुम्भ को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है। महाकुम्भ भारत की सांस्कृतिक विविधता में समायी हुई एकता और समता के मूल्यों का सबसे बड़ा प्रतीक है। यहां सब एक समान हैं। अपने इसी उद्देश्य को संदेश के रूप में आमजन तक पहुंचाने के लिए सीएम योगी ने इस बार हर वर्ग से जुड़े संतों को मंच पर सम्मानित करने की पहल की है। महाकुंभ मेला आध्यात्मिक और धार्मिक प्रकृति का है। विश्व के सबसे विशाल,आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक समागम ‘महाकुम्भ’ का प्रयागराज में भव्य आयोजन हो रहा है। अनेकता में एकता एवं आस्था के इस पवित्र संगम में स्नान के लिए पधारे सभी पूज्य संतों व सनातनियों का निष्पक्ष दस्तक हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन करता है साथ ही माँ गंगा से प्रार्थना करता है कि आप सभी की मनोकामना पूर्ण करें।महाकुंभ में गंगा का संगम है, ठीक वैसे ही हम सभी भारतीयों का संगम देश की समृद्धि और एकता के लिए जरूरी है।

भारतवर्ष में देवी-देवताओं के प्रति सदा ही श्रद्धा,भक्ति और प्रेम लोगों के बीच रहा है। वेदों, पुराणों, शास्त्रों में भगवान के रूप सौंदर्य तथा उनके श्रृंगार वर्णन को पढ़कर-सुनकर हरिभक्तों, साधु, संत, महात्माओं, भक्तों आदि ने भगवान के मूर्त रूप की कल्पना करके उसे कागज या पत्थरों पर मूर्ति का आकार दिया है। इन मूर्तियों की विधि-विधान पूर्वक मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है जिसके चलते व्यक्ति उत्सवों, पर्वों तथा रोजाना मंदिर में जाते हैं और पूजा-पाठ करते हैं। मंदिरों में रोजाना तथा कुछ में समयांतराल अनुसार सतसंग, कथा आदि होते रहते हैं। सतसंगों में साधु, संत, महात्माओं द्वारा अध्यात्म तथा जनकल्याण का सन्देश दिया जाता है। सतसंग जनमानस के हृदय परिवर्तन का सबसे शक्तिशाली माध्यम रहा है। प्राचीन काल में लोगों के बीच धर्म, आस्था और जनकल्याण की बातें मंदिरों तथा सत्संगों द्वारा ही पहुँचाई जाती थी। मंदिर और सतसंग आज भी भारतीय जनमानस के विचारों के संचार का माध्यम बने हुए हैं जो भविष्य में भी बने रहेंगे।

भारतवर्ष गांवों का देश रहा है। यहाँ की हर एक स्थिति गांव से जोड़कर देखी-समझी जा सकती है। हमारा धार्मिक,सांस्कृतिक,ऐतिहासिक और सामाजिक जीवन ग्राम्य संस्कृति के नजदीक रहा है। विचार करें तो हमारे गांवों के नजदीक अब वह नगर और महानगर हो गए हैं। इन गांवों की विषय वस्तु जनसामान्य की परम्परा,रीतिरिवाज,उत्सव और समारोह से जुड़ी होती है।इसमें रोचकता और अपनापन होता है। यह सभी माध्यम सजीव होते हैं क्योंकि इसमें सन्देश देनेवाले और सन्देश प्राप्त करने वाले दोनों के बीच जन संप्रेषण एक भावनात्मक सेतु का काम करता है।

मेले,उत्सव और पर्व हमारे परम्परागत जनसंचार के मौखिक माध्यम रहे हैं। कुंभ मेलों तथा बड़े-बड़े बाजारों में देश-विदेश के कोने-कोने से उमड़ी भीड के द्वारा किसी भी सूचना या संदेश को आसानी से लोगों तक पहुँचा सकते हैं। कुंभ का मेला 12 वर्ष में लगता है, तो सावन मास में हर वर्ष हरिद्वार में शिवभक्तों का मेला लगता है। मेलों के साथ-साथ आस-पास के बाजार भी सजने लगते हैं और इनमें विभिन्नता के दर्शन होते हैं। विभिननता के कारण ही जनसंचार देश-विदेश के भिन्न-भिन्न कोनों तक स्वाभाविक हो जाता है। इन मेलों,उत्सवों और पर्वों में व्यक्ति ढोल-नगाड़े और गाजे-बाजे के साथ नाच-गाकर अपने मन के आनंद को प्रकट करते हैं। इन मेलों,उत्सवों और पर्वों में सूचनाओं तथा सन्देशों का आदन-प्रदान होता रहा है।

महाकुंभ मेले के कुछ वैज्ञानिक तत्व इस प्रकार हैं

कुंभ मेला एक हिंदू तीर्थ मेला है, जो हर बारह साल में चार बार चार अलग-अलग स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। महाकुंभ मेला एक ऐसा उत्सव है जिसमें विज्ञान, ज्योतिष और आध्यात्मिकता का समावेश होता है। महाकुंभ की तिथियों की गणना वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करके की जाती है, जिनमें से अधिकांश ग्रहों की स्थिति का उपयोग करते हैं। जब बृहस्पति ग्रह ज्योतिषीय राशि वृषभ में प्रवेश करता है, तो यह सूर्य और चंद्र के मकर राशि में प्रवेश के साथ मेल खाता है। ये परिवर्तन जल और वायु को प्रभावित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रयागराज के पवित्र शहर में पूरी तरह में पूरी तरह से सकारात्मक वातावरण बनता है। बस उस पवित्र स्थल पर होना और गंगा में पवित्र डुबकी लगाना आध्यात्मिक रूप से आत्मा को प्रबुद्ध कर सकता है, जिससे शारीरिक और मानसिक तनाव कम हो सकता है।

इस वर्ष जनवरी, 2025 में प्रयागराज की पवित्र धरा पर महाकुंभ पर्व का आयोजन हुआ है। यह पवित्र दिवस 144 वर्ष बाद आया है। इस महाकुंभ में देश-विदेश के साधु-संत-महात्माओं पहुंचे हुए हैं। साथ ही देश-विदेश से आए बिजनेसमैन, सेलिब्रिटी, जन सामान्य आदि प्रयागराज में पवित्र स्नान कर रहे हैं। महाकुंभ के बारे में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर, 2024 की मन की बात कार्यक्रम में कहा कि, साथियों महाकुंभ की विशेषता केवल इसकी विशालता में ही नहीं है, कुंभ की विशेषता इसकी विविधता में भी है। इस आयोजन में करोड़ों लोग एक साथ एकत्रित होते हैं। लाखों संत, हजारों परंपराएं, सैकड़ों संप्रदाय, अनेकों अखाड़े हर कोई इस आयोजन का हिस्सा बनता है। कहीं कोई भेदभाव नहीं दिखता है। कोई बड़ा नहीं होता है, कोई छोटा नहीं होता है। अनेकता में एकता का ऐसा दृश्य विश्व में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा। इसलिए हमारा कुंभ एकता का महाकुंभ भी होता है। इस बार का महाकुंभ भी एकता के महाकुंभ के मंत्र को सशक्त करेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनवरी, 2025 की पहली मन की बात कार्यक्रम में भी महाकुंभ के बारे में कहा कि, साथियों, इस बार आपने देखा होगा कि कुंभ में युवाओं की भागीदारी बहुत व्यापक है और ये भी सही है कि जब युवा पीढ़ी अपनी सभ्यता से गौरव के साथ जुड़ती है तो उसकी जड़ें और मजबूत होती हैं और फिर उसका सुनहरा भविष्य भी सुनिश्चित होता है। इस बार हम इतने बड़े पैमाने पर कुंभ के डिजिटल फुटप्रिंट्स भी देख रहे हैं। कुंभ की ये वैश्विक लोकप्रियता हर भारतीय के लिए गर्व की बात है।

महाकुंभ दुनिया को एकता का संदेश दे रहा है और भारतीय संस्कृति को देखने व समझने के लिए सभी देशों के लोगों को यहां जरूर आना चाहिए। यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है और यहां सब कुछ पूरी तरह से व्यवस्थित है। यहां महाकुम्भ में करोड़ों श्रद्धालुओं और उनकी विधिवत सुरक्षा व्यवस्था को देखकर भारतीय संस्कृति की महानता का अहसास होता है। विभिन्न अखाड़ों के साधु-संतों से मुलाकात की और साधु-संतों ने कुंभ की प्राचीन परंपराओं, अखाड़ों की भूमिका और भारतीय संस्कृति की महिमा का विस्तार से ज्ञान प्राप्त होता है।

एकता, समता, समरसता का उदाहरण है महाकुम्भ

प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी ने महाकुम्भ को एकता का महाकुम्भ बनाने का जो संकल्प लिया है वो अब तक पूरी तरह सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। करोड़ों लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ त्रिवेणी संगम में डुबकी लगा रहे हैं। श्रद्धालु, समस्त साधु,संन्यासियों का आशीर्वाद ले रहे हैं, मंदिरों में दर्शन कर अन्नक्षेत्र में एक ही पंगत में बैठ कर भण्डारों में खाना खा रहे हैं। महाकुम्भ भारत की सांस्कृतिक विविधता में समायी हुई एकता और समता के मूल्यों का सबसे बड़ा प्रदर्शन स्थल है, जिसे दुनिया भर से आये पर्यटक देखकर आश्चर्यचकित हैं। कैसे अलग-अलग भाषायी, रहन-सहन, रीति-रिवाज को मानने वाले एकता के सूत्र में बंधे संगम में स्नान करने चले आते हैं। साधु-संन्यासियों के अखाड़े हों या तीर्थराज के मंदिर और घाट, बिना रोक टोक श्रद्धालु दर्शन,पूजन करने जा रहे हैं। संगम क्षेत्र में चल रहे अनेक अन्न भण्डार सभी भक्तों, श्रद्धालुओं के लिए दिनरात खुले हैं जहां सभी लोंग एक साथ पंगत में बैठ कर भोजन ग्रहण कर रहे हैं। महाकुम्भ मेले में भारत कि विविधता इस तरह समरस हो जाती है कि उनमें किसी तरह का भेद कर पाना संभव नहीं है।

अखिलेश यादव ने आस्था के संगम में 11 डुबकी लगाई
अखिलेश यादव ने आस्था के संगम में 11 डुबकी लगाई

 महाकुंभ में नेता-अभिनेता,मंत्री,पदाधिकारी आदि सभी संगम में डुबकी लगा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी पूरे मंत्री मंड़ल ने एक साथ पवित्र स्नान किया। महाकुंभ में अबतक करोड़ों करोड़ लोग आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव ने भी सुपुत्र संग आस्था की 11 डुबकी लगायी। महाकुंभ के पावन अवसर पर ‘संगम’ में अखिलेश यादव ने कहा कि एक डुबकी माँ त्रिवेणी को प्रणाम की… एक डुबकी आत्म-ध्यान की… एक डुबकी सर्व कल्याण की… एक डुबकी सबके उत्थान की… एक डुबकी सबके मान की… एक डुबकी सबके सम्मान की… एक डुबकी सर्व समाधान की… एक डुबकी दर्द से निदान की… एक डुबकी प्रेम के आह्वान की… एक डुबकी देश के निर्माण की… एक डुबकी एकता के पैगाम की.!। विदेशों से आए श्रद्धालुओं का भाव तो देखते ही बनता है। रूस, इंग्लैंड, अमेरिका, इटली, जर्मनी, नीदरलैंड, आस्ट्रेलिया आदि देशों से आए नागरिक अपने-अपने अनुभव साझा कर रहे हैं। अमेरिका के न्यूयार्क से टाम के साथ आई जानर ने कहा अमेजिंग, डिवान। इतना विशाल और खूबसूरत आयोजन जीवन में पहली बार देखा है। रूस से आई क्रिस्टीना हाथ उठाकर बोली- हर हर गंगे, मेरा भारत महान। ब्राजील से आए फ्रांसिस्को ने कहा मोक्ष के अर्थ को समझ रहा हूँ। इंग्लैंड से आई जार्जिना ने संगम में पुण्य की डुबकी लगाई।

सनातन धर्म में प्रत्येक आध्यात्मिक या धार्मिक गतिविधि का मानव और सामाजिक उत्थान से एक मजबूत संबंध है, जो सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है और साथ ही हमें यह भी याद दिलाता है कि सनातन धर्म जातिगत भेदभाव में विश्वास नहीं करता है, जिससे लाखों लोगों को आर्थिक रूप से बढ़ावा मिलता है। महाकुंभ मेला 2025 में न केवल आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध करने की क्षमता है, बल्कि उत्तर प्रदेश में दीर्घकालिक आर्थिक विकास को भी गति देने की क्षमता है। अपने विशाल आकार और इससे पैदा होने वाली नौकरियों के साथ, इस आयोजन का उद्देश्य एक स्थायी विरासत छोड़ना है, जो राज्य को वैश्विक आर्थिक केंद्र में बदल देगा। इस आयोजन का आर्थिक प्रभाव न केवल तात्कालिक है, बल्कि यह कई वर्षों तक क्षेत्र में पर्यटन, बुनियादी ढांचे और रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करता रहेगा।

महाकुम्भ में अनवरत जारी है सनातन संस्कृति की परंपरा

महाकुम्भ में सनातन परंपरा को मनाने वाले शैव, शाक्त, वैष्णव, उदासीन, नाथ, कबीरपंथी, रैदासी से लेकर भारशिव, अघोरी, कपालिक सभी पंथ और संप्रदायों के साधु,संत एक साथ मिलकर अपने-अपने रीति-रिवाजों से पूजन-अर्चन और गंगा स्नान कर रहे हैं। संगम तट पर लाखों की संख्या में कल्पवास करने वाले श्रद्धालु देश के कोने-कोने से आए हैं। अलग-अलग जाति,वर्ग,भाषा को बोलने वाले साथ मिलकर महाकुम्भ की परंपराओं का पालन कर रहे हैं। महाकुम्भ में अमीर, गरीब, व्यापारी, अधिकारी सभी तरह के भेदभाव भुलाकर एक साथ एक भाव में संगम में डुबकी लगा रहे हैं। महाकुम्भ और मां गंगा, नर, नारी, किन्नर, शहरी, ग्रामीण, गुजराती, राजस्थानी, कश्मीरी, मलयाली किसी में भेद नहीं करती। अनादि काल से सनातन संस्कृति की समता,एकता कि ये परंपरा प्रयागराज में संगम तट पर महाकुम्भ में अनवरत चलती आ रही है। एकता,सम

महाकुंभ कई जातियों, पंथों और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से लाखों लोगों को एक साथ लाता है, जिससे सामाजिक सद्भाव और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता है। 2025 में महाकुंभ मेला सिर्फ़ एक मेले से कहीं ज़्यादा है; यह खुद की ओर एक यात्रा है। अनुष्ठानों और प्रतीकात्मक कर्मों से परे, यह तीर्थयात्रियों को आंतरिक विचारों में संलग्न होने और पवित्रता के साथ अपने संबंध को गहरा करने का अवसर देता है। आधुनिक जीवन की माँगों से भरी दुनिया में, महाकुंभ मेला एकजुटता,पवित्रता और ज्ञान के प्रतीक के रूप में सामने आता है। यह शाश्वत यात्रा एक मजबूत अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है कि मानवता के विविध मार्गों के बावजूद, हम मौलिक रूप से एकजुट हैं-शांति, आत्म-साक्षात्कार और पवित्रता के लिए एक अटूट सम्मान की एक आम खोज है। भारतीय सनातन संस्कृति, आस्था पर टिप्पणी करने वाले को यह महाकुंभ स्वयं ही उत्तर दे रहा है। इस महाकुंभ में देश की संस्कृति-संस्कार और एकता का साझा रूप देखते ही बनता है। महाकुंभ भारतीय जनमानस के मिलन का एक प्रतीक है। प्रयागराज का महाकुंभ वैश्विक संगम का समागम बना है, यह भारतीय एकता का महाकुंभ है, इसे आज पूरा विश्व देख रहा है और इसकी सराहना कर रहा है। महाकुम्भ:विविधता का वैश्विक संगम महाकुम्भ:विविधता का वैश्विक संगम महाकुम्भ:विविधता का वैश्विक संगम महाकुम्भ:विविधता का वैश्विक संगम    महाकुम्भ:विविधता का वैश्विक संगम