सावन को आने दो…

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सावन को आने दो...
सावन को आने दो...
प्रियंका सौरभ
प्रियंका सौरभ

सावन को आने दो, बूँदों को गाने दो, मन के सूने कोनों में हरियाली छाने दो।

भीगी धूप में खिलती मुस्कानें हों, तन क्या, मन भी तनिक भीग जाने दो।

झूले की पींगों में बचपन पुकारे, मेंहदी की ख़ुशबू से सपने सँवारे।

घुँघुरुओं की छम-छम में राग बरसने दो, छज्जों से उतरते गीतों को सजने दो।

कजरी की तान में व्यथा है छिपी, प्रेमिका की आँखों में सावन की नमी।

संदेश हो पिया का या हो रूठी बहार,हर बूँद कहे – “अब लौट आओ यार।”

धरती के माथे पर बूंदों का तिलक, पत्तों पे लहराए आस्था की झलक।

पेड़ कहें – “थोड़ी देर और ठहरो”, बादल कहें – “अब अश्रु बन बहो।”

सावन को आने दो, भीतर उतरने दो,भीतर के मरुथल को हरियाने दो।

इस बार सिर्फ़ छाते मत खोलो,दिल के दरवाज़े भी खुल जाने दो।