
ईश्वर,अल्लाह और प्रभु यीशु परस्पर अतुलनीय, उनकी तुलना की कोशिशें व्यर्थ और अस्वीकार्य..! । ईश्वर को सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ माना जाता है। उनको निराकार, निर्विकार और निर्विकल्प माना जाता है। ईश्वर को अजन्मा माना जाता है। ईश्वर की तुलना व्यर्थ और अस्वीकार्य..!
कमलेश पांडेय
भारत वर्ष के बिहार प्रांत की राजधानी पटना में बीजेपी के मंच पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की जयंती समारोह में एक भोजपुरी सिंगर देवी द्वारा ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम’ जैसे भजन गाए जाने के दौरान सभा की ओर से जो प्रतिक्रियात्मक विरोध हुआ उससे स्पष्ट हो गया कि वैश्विक तौर पर बढ़ती इस्लामिक कट्टरता ने हमारे देश में भी गंगा-जमुनी तहजीब को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। कहना न होगा कि कभी पाकिस्तान, कभी बंगलादेश, कभी अफगानिस्तान, कभी भारतीय कठमुल्लों और कभी अरब मुल्कों से जो फतवे या संदेश जारी होते रहते हैं, उससे भारत का हिन्दू जनमानस इतना प्रतिक्रियावादी हो चुका है कि अब वह अपने ईश्वर के साथ किसी की तुलना भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है।
पहले तो पाकिस्तान ही जम्मू कश्मीर हड़पने के दिवास्वप्न देखता था, लेकिन अब तो बंगलादेश भी पश्चिम बंगाल हड़पने के मंसूबे पाल रहा है। इससे हिन्दू जनमानस उद्वेलित है। यही वजह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भजन की पंक्तियों- “रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम।। ईश्वर अल्लाह तेरो नाम। सब को सन्मति दे भगवान।।” को गाने के क्रम में ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम’ को सुनकर लोगों ने अपना आपा खो दिया और जय श्री राम के नारे लगाए। लोग इस तुलना से इतने रूष्ट हो गए कि उन्हें शांत करने के लिए गायिका देवी को माफी तक मांगनी पड़ी। लिहाजा, इस मुद्दे ने देश की धर्मनिरपेक्ष परंपरा और सहिष्णुता पर नई बहस छेड़ दी है। सोनिया गांधी ने तो यहां तक कह दिया है कि देश में महात्मा गांधी की विरासत खतरे में है। इसलिए इस घटना के हरेक पहलुओं पर गौर किया जाना राष्ट्रहित और जनहित दोनों में जरूरी है।
आपको पता होना चाहिए कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को रामचरितमानस की निम्नलिखित पक्तियां बहुत प्रिय थीं, जिसे वो फुर्सत के क्षणों में गुनगुनाया करते थे- “रघुपति राघव राजा राम। पतित पावन सीताराम॥ जय रघुनन्दन जय घनश्याम। जानकी बल्लभ सीताराम॥ निस दिन रटु मन जपु मन नाम। अबध सरयु सीताराम॥ सरयु धन धन अजोधा धाम। जहां बिराजत सीताराम ॥ सुमिरन कर मन आठों याम। अबध सरयु सीताराम॥”
बाद में कुछ लोगों ने इसे निम्नलिखित रूप में विकसित किया- “रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम। सुंदर विग्रह राधेश्याम, गंगा तुलसी शालीग्राम।। भद्रगिरिश्वर सीताराम, भगत जनप्रिय सीताराम। रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम।।” चूंकि यह भजन उन्हें बहुत प्रिय था। इसलिए सांप्रदायिक एकता की भावना पैदा करने के लिए उन्होंने इसमें जोड़ दिया गया- “ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान।।”
इससे पूरा भजन बन गया- “रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम।। ईश्वर अल्लाह तेरो नाम। सब को सन्मति दे भगवान।।” चूंकि ये संक्षिप्त भजन भी महात्मा गांधी को प्रिय लगा। इसलिए देश में साम्प्रदायिक एकता पैदा करने के लिए वे इसे अक्सर गाया करते थे। क्योंकि मुस्लिम लीग के उदय से देश में मुस्लिम साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिला था। वहीं, आरएसएस के गठन से हिन्दू सांप्रदायिकता भी पुष्पित-पल्लवित होने लगी थी। इससे धर्मनिरपेक्ष मिजाजी महात्मा गांधी चिंतित रहने लगे और उक्त भजन का ईजाद किया।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, ईश्वर अल्लाह तेरे नाम वाला मूल भजन इस प्रकार है- “ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान। सबको सन्मति दे भगवान, सारा जग तेरी सन्तान॥ इस धरती पर बसने वाले, सब हैं तेरी गोद के पाले। कोई नीच ना कोई महान, सबको सन्मति दे भगवान॥ सबको सन्मति दे भगवान, सारा जग तेरी सन्तान॥ जातों नस्लों के बँटवारे, झूठ कहा ये तेरे द्वारे। तेरे लिए सब एक समान, सबको सन्मति दे भगवान॥ सबको सन्मति दे भगवान, सारा जग तेरी सन्तान॥ जनम का कोई मोल नहीं है, जनम मनुष का तोल नहीं है। करम से है सबकी पहचान, सबको सन्मति दे भगवान। सबको सन्मति दे भगवान, सारा जग तेरी सन्तान॥ ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान। सबको सन्मति दे भगवान, सारा जग तेरी सन्तान॥
इन बातों से स्पष्ट है कि ईश्वर अतुलनीय हैं जबकि अल्लाह या ईसा मसीह आदि की राम-कृष्ण से तुलना की जा सकती है। वास्तव में ईश्वर प्रकृति हैं, जबकि राम-कृष्ण-बुद्ध-महावीर आदि उनके अवतार। दरअसल, ईश्वर के बारे में अलग-अलग धर्मों और संस्कृतियों में अलग-अलग मान्यताएं हैं।
जहां हिन्दू धर्म में ईश्वर को सर्वोच्च शक्ति, सृष्टिकर्ता और नियंता माना जाता है। उनको परमेश्वर, भगवान, प्रभु, परम पुरुष, स्वामी जैसे नामों से भी जाना जाता है। ईश्वर को सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ माना जाता है। उनको निराकार, निर्विकार और निर्विकल्प माना जाता है। ईश्वर को अजन्मा माना जाता है। उनको जगतप्रसवकर्ता यानी संसार को पैदा करने वाला कहा गया है। ईश्वर को अव्यक्त और सर्वव्यापक कहा गया है। उनको ब्रह्मोप्देश या तत्वं असि के नाम से भी जाना जाता है। ईश्वर को प्रेम का तत्व माना जाता है। उनको हर जगह और हर चीज़ में मौजूद माना जाता है। ईश्वर को सृष्टि का क्रियेता या निर्माता माना जाता है। जबकि अवतार शब्द का अर्थ है, किसी देवता या आत्मा का देह धारण करना या पृथ्वी पर प्रकट होना। हिन्दू धर्म में, अवतार का अर्थ है, किसी देवता का मानव रूप धारण करना। अवतार शब्द संस्कृत के ‘अवतरण’ शब्द से बना है।
हिन्दू धर्म में,अवतारों को अर्ध-मानव, अर्ध-देवताओं के रूप में वर्णित किया जाता है। हिन्दू धर्म में, अवतारों का उद्देश्य धर्म की पुनर्स्थापना करना, बुराई खत्म करना और मानव कल्याण करना होता है। भगवान विष्णु के दस अवतारों को प्रमुख अवतार माना जाता है। देवी भागवत पुराण में देवी के अवतारों का वर्णन किया गया है। देवी के अवतारों में पार्वती, लक्ष्मी, और सरस्वती मुख्य देवियां हैं।
वहीं,पश्चिम में,अवतार का अर्थ है, किसी विचार या व्यक्ति का मूर्त रूप या अभिव्यक्ति। पश्चिम में, अवतार को छोटे कार्टून व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है। वहां ईसा मसीह, ईसाई धर्म के संस्थापक माने जाते हैं। ईसा मसीह को यीशू, जीसस या जीजस क्राइस्ट भी कहा जाता है। उनको परमेश्वर का पुत्र और ईसाई त्रिएक का तीसरा सदस्य माना जाता है। उनके बारे में कहा जाता है कि उनका जन्म 4 से 6 ईसा पूर्व में फिलिस्तीन के शहर बेथलेहम में हुआ था। ईसा मसीह के माता का नाम मरियम और पिता का नाम यूसुफ़ था। ईसा मसीह ने मानव सेवा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। ईसा मसीह ने तीस साल की उम्र में इस्राइल में यहूदी धर्म का प्रचार शुरू किया था। ईसा मसीह ने कई चमत्कार किए। ईसा मसीह को यातनाएं देकर सूली पर चढ़ाया गया था। ईसाई धर्म के अनुयायी इस दिन को प्रभु यीशु के बलिदान दिवस के रूप में याद करते हैं।
वहीं,अल्लाह,अरबी भाषा में ईश्वर या सर्वोच्च व्यक्ति को कहते हैं। इस्लाम धर्म में अल्लाह को ईश्वर माना जाता है। अल्लाह शब्द अरबी के दो शब्दों ‘अल-इलाह’ से मिलकर बना है। ‘अल’ शब्द का इस्तेमाल अंग्रेज़ी के ‘the’ शब्द की तरह किया जाता है। वहीं, ‘इलाह’ का मतलब होता है पुज्य या उपास्य। अल्लाह शब्द का इस्तेमाल ‘एक सृजनकर्ता’ के लिए किया जाता है। अल्लाह के बारे में बताने वाले पैगंबर या नबी को ऋषि-मुनि के बराबर माना जाता है। इस्लाम में अल्लाह के कम से कम 99 नाम हैं, जिन्हें ‘अस्माउ अल्लाहि अल-हुसना’ कहा जाता है। कुरान में कहा गया है कि अल्लाह मानवता और अच्छे कर्म करने वालों से प्यार करता है। इस्लाम में अल्लाह को पिता नहीं माना जाता और उसका कोई पुत्र नहीं है। इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है।
अल्लाह शब्द का इस्तेमाल अरबी ईसाई और यहूदी भी अपने ईश्वर के लिए करते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम..’ ये वो लाइन है जिसको लेकर बिहार की राजधानी पटना में बीजेपी के मंच पर बवाल मच गया था। वैसे तो यह लाइन महात्मा गांधी की सभा में गाई जाने वाली एक मशहूर भजन की है लेकिन उसी भजन को बीते दिन बीजेपी के मंच पर जब एक भोजपुरी सिंगर ने गाई। गायिका थीं देवी- उन्होंने जैसे ही यह लाइन ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम..’ बोलीं कि सभा में हंगामा मच गया। लोग नारेबाजी करने लगे और फिर उन्हें माफी तक मांगनी पड़ी।
बकौल सिंगर देवी, “मैंने गाना जब शुरू किया तब तक तो माहौल ठीक था लेकिन जैसे ही उसमें लाइन आई…..ईश्वर अल्लाह तेरो नाम…. तो अल्लाह के नाम से वहां जो कुछ लोग थे उसका उन्होंने विरोध शुरू कर दिया, और बहुत ज्यादा हंगामा शुरू कर दिया।” सिंगर देवी ने आगे कहा, “हंगामा इस कदर उन्होंने करना शुरू कर दिया कि जो आयोजक थे, वो लोग भी अफरा-तफरी में आ गए कि आखिर इसको कैसे मैनेज किया जाए। मैं भी घबरा गई कि भाई क्या मैटर हो गया। तो फिर मैं लोगों के बीच में आई और मैंने लोगों से कहा कि अगर मेरी किसी बात से आपको तकलीफ हुआ है तो मैं आपको सॉरी कहना चाहती हूं।”
हालांकि, विरोध का सामना करने के बाद सिंगर देवी ने भले ही सॉरी भी बोला और सवाल उठा दिया कि, “लेकिन हमारा भारत देश जो है वो तो वसुधैव कुटुंबकम की बात कहता है। हमारा पूरा जो विश्व है वो हमारा परिवार है, उसको ऐसा मानते हैं। हमारे भारत की ये संस्कृति है। हिंदू धर्म तो सबको लेकर चलने वाला धर्म है लेकिन अगर किसी को अल्लाह से प्रॉब्लम है तो मैंने उसके लिए सॉरी भी लोगों को बोला।”
सिंगर देवी ने फिर कहा, “देखिए ऐसा था कि जो नेता गण भी थे वो मेरे सपोर्ट में ही थे। उन लोगों को यह लगा कि कहीं अगर देवी सॉरी नहीं बोलती है और हंगामा बिल्कुल बढ़ता चला जाएगा, तो मुझे ऐसा क्योंकि मैं भी इसके लिए प्रिपेयर्ड नहीं थी। मुझे ऐसा लगा कि कुछ लोगों ने कहा कि ठीक है आप थोड़ा सॉरी बोल दीजिए।”
इन बातों से साफ है कि लोग चाहते हैं कि आप ईश्वर, अल्लाह और प्रभु यीशु की परस्पर तुलना न करें। चूंकि ये बेहद अतुलनीय हैं, इसलिए उनकी पारस्परिक तुलना की कोशिशें व्यर्थ और अस्वीकार्य हैं! इससे सांप्रदायिक सद्भाव नहीं, बल्कि तनाव पैदा होगा। इसलिए सार्वजनिक जीवन जीने वाले लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि आगे से वे लोग भीड़ के सांप्रदायिक सोच के हिसाब से ही संतुलित प्रस्तुति दें। उनको आगे से इस नई मनोदशा को समझना होगा और उसी के अनुरूप व्यवहार करने होंगे, अन्यथा बातें बिगड़ सकती हैं।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ हिंदू ऐसी कट्टर सोच रखते हैं बल्कि मुस्लिम और ईसाई लोगों की कट्टरता का जवाब देने का यह नया तरीका उन्होंने ईजाद किया है। हिन्दू धर्म से निकलकर बने कुछ धर्मों ने भी एकजुटता व कट्टरता दिखाई है। इसलिए सनातनी भी जगह जगह जवाबी मुद्रा अख्तियार कर चुके हैं। आलम यह है कि भारत अब “और कितने पाकिस्तान” जैसे यक्ष प्रश्न से गुजर रहा है। इसलिए वह हिंदी से उर्दू-फ़ारसी जैसे शब्दों के अनुप्रयोग को रोकने का अभियान चलाए हुए है। उसकी राष्ट्रवादी सोच इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही है। वह कला-संस्कृति के साम्राज्यवाद को समझ चुका है और इसे रोक देने का ‘लव-कुश’ प्रयत्न कर रहा है। ईश्वर की तुलना व्यर्थ और अस्वीकार्य..!