
योगगुरु के0 डी0 मिश्रा
योग का जीवन में बहुत महत्व है। तन की तंदुरुस्ती, मन की शांति और आज तो आय का जरिया भी है। प्रतिदिन योग करने से तन-मन के विकारों का समूल नाश होता है। जीवन के निर्बाध चलने के लिए स्वास्थ्य लाभ होना आवश्यक है।गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है योग से कर्मों में कुशलता आती है।शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक सुख व आध्यात्मिक प्रगति के लिए योग महत्वपूर्ण है। योग से बीमारियों को दूरकर खुद को स्वस्थ रख सकते हैं। योग से नैतिकता का विकास होता है और शाश्वत मूल्यों को विकसित किया जा सकता है। यदि शरीर और मन को स्वस्थ रखना है तो हमें योग की शरण में जाना होगा। योग से आत्म शुद्धि होती है।
योग का अर्थ अपने अस्तित्व का बोध है,अपने अन्दर निहित शक्तियों को विकसित करके परम चैतन्य आत्मा का साक्षात्कार एवं पूर्ण आनन्द की प्राप्ति है। इस यौगिक प्रक्रिया में विविध प्रकार की क्रियाओं का विधान भारतीय ऋषि-मुनियों ने किया है।योग से हमारी सुप्त चेतना-शक्ति का विकास होता है। योग से सुप्त (डेड) तन्तुओं का पुनर्जागरण होता है एवं नये तन्तुओं, कोशिकाओं का निर्माण होता है। योग की सूक्ष्म क्रियाओं द्वारा हमारे सूक्ष्म स्नायुतत्र को चुस्त किया जाता है, जिससे उनमें ठीक प्रकार से रक्त-संचार होता है और नई शक्ति का विकास होने लगता है। योग से रक्त-संचार पूर्णरूपेण सम्यक् रीति से होने लगता है। शरीरविज्ञान का यह सिद्धान्त है कि शरीर के संकोचन एवं प्रसारण होने से उनकी शक्ति का विकास होता है तथा रोगों की निवृत्ति होती है।
