सरकार के लिए संकट है हिंडेनबर्ग रिपोर्ट..!
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हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को लेकर देशभर में सियासी हलचल मची हुई है।संसद की कार्रवाही भी इसको लेकर बाधित हो रही है। संसद में अडाणी समूह और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को लेकर हंगामा हो रहा है। विपक्षी पार्टियों ने लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही नहीं चलने दे रहे हैं।अडाणी इंटरप्राइजेज लिमिटेड के शेयरों में लगातार गिरावट देखा जा रहा है। मुंबई शेयर बाजार और नेशनल स्टाक एक्सचेंज में अडाणी समूह के शेयरों में गिरावट जारी है।
हिंडेनबर्ग रिपोर्ट अडानी ग्रुप के लिए कालासागर बन कर आयी है। आसमान छूने को बेताब ग्रुप और इसके मुखिया गौतम अडानी के होश फाख्ता कर दिए। महज कुछ दिनों में सबकुछ अचानक बदल गया। हिंडनबर्ग रिसर्च की इस रिपोर्ट में ग्रुप पर बड़े आरोप लगे। मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर अकाउंटिंग फ्रॉड तक। ग्रुप के भारी-भरकम कर्ज के बारे में पहले से ही चिंता जताई जाती थी। कई और बातों को लेकर भी सुगबुगाहट थी। लेकिन, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने इस सुगबुगाहट को घरेलू से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया। जो अडानी ब्लूमबर्ग बिलियनेयर्स इंडेक्स में 2 नंबर पर थे, वह कुछ ही दिनों में खिसककर 21वें पायदान पर पहुंच गए।
अडानी समूह कोई मामूली ग्रुप नहीं है। एयरपोर्ट, पावर प्लांट से लेकर बंदरगाहों तक इसका निवेश है। कह सकते हैं कि यह ग्रुप देश के दिल की धड़कन है। देश में आने और यहां से बाहर जाने वाले तमाम सामान इस ग्रुप को छूते हुए निकलते हैं। दशकों से गौतम अडानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी रहे हैं। वह उन कुछ उद्योगपतियों में शुमार हैं जो मोदी सरकार के ग्रोथ एजेंडे को आगे ले जाने में उनका हमसाया बने हुए हैं। यह और बात है कि इन आरोपों से निवेशकों का भरोसा डिगा है। सिर्फ अडानी ग्रुप ही नहीं, इसकी जद में भारतीय बाजार और पूरा सिस्टम आता है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के दावों की जांच होने बाकी है। लेकिन, पहले ही इसने बहुत बड़ा नुकसान कर दिया है। सबसे बड़ा नुकसान ‘विश्वसनीयता‘ को हुआ है।
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अडानी ग्रुप के संकट ने बैंकों की सिट्टी-पिट्टी भी गुम कर दी है। अडानी ग्रुप के शेयरों की पिटाई के साथ बैंकों के शेयर भी लुढ़के रहे हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से भारतीय स्टेट बैंक के शेयर गोता लगा रहे हैं। 27 जनवरी से 31 जनवरी के बीच विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने भारत से 2 अरब डॉलर निकाले हैं। भारतीय शेयरों में निवेशकों की दिलचस्पी साफ तौर पर घटी है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ नजदीकी के कारण विपक्ष ने भी पूरी ताकत से हल्ला मचाना शुरू कर दिया है। निवेशकों के लिए यह मैसेज निगेटिव जाने वाला है। इससे भारत के रेगुलेटरी फ्रेमवर्क पर सवाल बढ़ेंगे। ग्लोबल ग्रोथ इंजन के तौर पर भारत की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। निश्चित तौर पर अडानी ग्रुप का संकट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है।गौतम अडानी बीते साल 2022 में जहां सबसे ज्यादा कमाई करने वाले अरबपति के तौर पर सुर्खियों में थे, तो इस साल सर्वाधिक संपत्ति गवांने के मामले में चर्चा में हैं ।अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने कुछ ही दिनों में अडानी ग्रुप को तगड़ा नुकसान कराया है।
यह संकट ऐसे समय खड़ा हुआ है जब चीन की अर्थव्यवस्था खुल रही है। इस संकट से बैंकों को भी बड़े नुकसान के आसार हैं। 24 जनवरी को जारी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने पूरे अडानी ग्रुप को हिला दिया है। अडानी ग्रुप भारतीय बुनियाद का हिस्सा है। ग्रुप का निवेश तमाम इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों में है। इनमें एयरपोर्ट, बंदरगाह, पावर प्लांट इत्यादि शामिल हैं। लगातार यह ग्रुप नए क्षेत्रों में अपने पंख पसारने को फड़फड़ा रहा है। उसके पास वह एक्पर्टाइज और एक्जीक्यूशन की ताकत है जो शायद सरकारी मशीनरी के पास नहीं है। अमेरिका की छोटी सी कंपनी की रिपोर्ट ने विशालकाय अडानी ग्रुप को लेकर शक पैदा कर दिया है। अपनी 100 पेज की रिपोर्ट से हिंडनबर्ग ने निवेशकों का भरोसा हिला दिया है। अडानी ग्रुप के शेयरों की पिटाई इसका सबूत है। यह बात सिर्फ अडानी ग्रुप तक नहीं सीमित है। देश का रेगुलेटरी फ्रेमवर्क भी शक के घेरे में आ गया है। विदेशी निवेशकों के मन में ढेरों सवाल हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से अडानी ग्रुप की मार्केट वैल्यू को 100 अरब डॉलर से ज्यादा का चूना लग चुका है।
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सरकार के लिए संकट है हिंडेनबर्ग रिपोर्ट..!