विश्व नदी दिवस की उपादेयता

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विश्व नदी दिवस की उपादेयता
विश्व नदी दिवस की उपादेयता

—– विश्व नदी दिवस प्रत्येक वर्ष 24 सितंबर —–

विश्व नदी दिवस की उपादेयता । विश्व नदी दिवस एक वैश्विक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य नदियों के महत्व के बारे में जागरूकता का उन्नयन करना है। नदियों की अविरल धारा के महत्व को उन्नयन करने के लिए” नमामि गंगे” कार्यक्रम चल रहा है। विश्व नदी दिवस की उपादेयता

डॉ.सुधाकर कुमार मिश्रा 

विश्व नदी दिवस प्रत्येक वर्ष 24 सितंबर को एक महापर्व के रूप में वैश्विक स्तर पर वैश्विक समुदाय में मनाया जाता है। इस दिवस की प्रासंगिकता की अवधारणा में निहित है कि वैश्विक समुदाय में नदियों के महत्व, उपादेयता, संरक्षण की आवश्यकता, जन जागरूकता,नदियों के प्रति वैज्ञानिक सोच और मानवीय दृष्टिकोण का उन्नयन  करना है। वैश्विक स्तर पर नदियों का महत्व जल के स्रोत, उर्जादायिनी ,मनुष्य के जीवन के जीवन रेखा और पारिस्थितिकी एवं सांस्कृतिक विरासत की अभिन्न अंग है। विश्व नदी दिवस एक वैश्विक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य नदियों के महत्व के बारे में जागरूकता का उन्नयन करना है। नदियों की अविरल धारा के महत्व को उन्नयन करने के लिए” नमामि गंगे” कार्यक्रम चल रहा है। नदियों के निर्मलता, अविरलता और स्वच्छता के लिए ‘ गंगा समग्र ‘ का महत्व अति महत्वपूर्ण है। इनके सकारात्मक  प्रयास से जल के गुणवत्ता में बहुत सुधार हुआ है।

  विश्व नदी दिवस लोगों को नदियों की चिंता की मुद्दों पर शिक्षित करने ,नदियों से जुड़ी वैश्विक सहभागिता का उन्नयन करने और मानवीय जीवन के लिए नदियों की सुरक्षा, संरक्षा और उपादेयता  पर चिंतन करने के लिए सक्रियता प्रदान करने वाला दिवस है। दैनिक जीवन में नदियों के महत्व के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 2005 में “जीवन के लिए जल दशक” की शुरूआत किया है, जिसका मौलिक उद्देश्य मानवीय समुदाय के लिए नदियों की उपादेयता  स्वीकार करना है। इसका उद्देश्य जल संसाधनों की देखभाल  की आवश्यकता के विषय में अधिक  लोक जागरूकता का बोध करना है।

नदियों को आध्यात्मिक जागरण और मोक्ष का प्रतीक  माना जाता है। नदियों में स्नान करने से पापों से मुक्ति और आत्मा की शुद्धि प्राप्त होती है। नदियों का हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र स्थान है क्योंकि नदियों में स्नान करने से सभी दु:खों से मुक्ति प्राप्त होते हैं। नदियां हमारे ग्रह के धमनिया है। नदियां  वास्तविक आशय  में नागरिक समाज की जीवन रेखाएं है। नदियों के तट अपने प्राचीन सभ्यताएं और संस्कृतियों का निवास स्थल  रहे हैं ।

वैश्विक नदी दिवस नदियों के मूल्य पर प्रकाश डालता है। सार्वजनिक जागरूकता को बढ़ाने का सतत प्रयास करता है। प्रत्येक देश में नदियां विभिन्न प्रकार के सामूहिक समस्याओं से लड़ती हैं और मानव जाति अपने सक्रिय सहभागिता से नदियों के स्वास्थ्य को सुधार कर सकता है। इस दिवस पर मानव समाज को नदी की स्वच्छता गतिविधियों को व्यवस्थित करके एक सतत स्वच्छ पर्यावरण की दिशा में सहयोगी बनने की आवश्यकता है। इस दिवस का मौलिक उद्देश्य है कि प्रत्येक व्यक्ति नदी के प्रबंधन के उपादेयता को समझें और हम प्रत्येक उन खतरों को सीमित करने के लिए हर संभव प्रयास करें जिससे नदियों का संरक्षण हो सके।

    नदियों के किनारे अनेक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन आयोजित किए जाते हैं। नदियों के घाटों पर आरती आयोजन और अन्य सांस्कृतिक त्योहारों का आयोजन होता रहता है। नदियां विभिन्न संस्कृतियों और त्योहारों को समाहित किया है, इसके किनारे बसे विभिन्न समुदायों  की विविधता ,संगीत ,नृत्य ,कला और साहित्य में नदियों की महिमा और पवित्रता का वर्णन मिलता है। नदियां देश की कृषि उद्योग, जल परिवहन और पर्यटन उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। नदियों के घाटों को सबसे उपजाऊ भूमि माना जाता है, नदियों के जल से सिंचाई होती है जिससे धान, गेहूं , गन्ना और अन्य प्रमुख  फसलें  उगाई जाती हैं।

उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश आदि राज्यों की  कृषि अर्थव्यवस्था नदियों पर निर्भर है। नदियों के पानी का उपयोग  घरेलू उपयोग और सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण स्रोत है। इससे कई परियोजनाओं और बांधों के लिए पानी प्रदान करते हैं ,जो कृषि ,बिजली और उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है। इन नदियों में मत्स्य पालन एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि है।यह  स्थानीय समुदायों को रोजगार और आजीविका प्रदान करता है। नदियों में कई प्रकार की मछलियां पाई जाती है जिनका उपयोग औषधि ,घरेलू स्तर और वाणिज्यिक पहलू के लिए किया जाता है । नदियों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व पर्यटन को बढ़ावा देना है।

 नदियों के किनारे सभ्यताएं पनपती हैं; और सभ्यताएं संस्कृति का पोषण करते हैं। मानव व्यक्तित्व समस्या ग्रस्त होने पर नदियों की शरण में जाता है। महाभारत के भीष्मजी  प्रत्येक कठिनाई में अपने माता गंगा जी के पास जाते थे और उनको उचित समाधान मिलता था। समसामयिक में गतात्मा के मोक्ष  प्राप्ति हेतु नदियों के किनारे दाह  संस्कार किया जाता है। नदियों का छिछली( उथली) होने से सुरक्षित करना होगा। नदियों के तटीय क्षेत्रों में सघन वृक्षारोपण किया जाए, जिसके कारण इनके तटों  का कटाव ना हो। नदियों के पानी को गंदा होने से सुरक्षित करना होगा मसलन पशुओं को नदी के पानी में जाने से रोकना होगा।  घरेलू और अनुपचारित जल नदी में नहीं मिलने देना चाहिए। जन जागरूकता के द्वारा विभिन्न नदियों के लिए विशेष कार्य योजना पर जानकारी का उपयोग कर सकते हैं। सीवेज  उपचार संयंत्र पानी की गुणवत्ता की निगरानी और कार्य योजना अभिकरणों के द्वारा जल की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं। विश्व नदी दिवस की उपादेयता