वह आदिवासी बाला…

66
पाश्चात्य सभ्यता से रिश्तों में बदलाव
पाश्चात्य सभ्यता से रिश्तों में बदलाव

—– कहानी —–
डॉ.सतीश “बब्बा”

बांध के काम में तेजी थी। मशीनें चल रही थी, कुछ लेवर भी काम पर थीं। सुमन {काल्पनिक नाम} भी कई दिनों से काम पर आ रही थी। बीस वर्षीय वह आदिवासी बाला जो उसी गांव की थी। छरहरा बदन, गेहुंआ रंग, पतली कमर की वह आदिवासी बाला सभी पुरुष कार्यकर्ता मुंशी, मैनेजर सभी के आकर्षण का केंद्र थी, वह आदिवासी बाला! सुमन भी उसी के साथ काम करती थी।दोनों सगी रिश्तेदार थीं या, पक्की सहेली! राजू {काल्पनिक नाम}नहीं जानता था। राजू भी उसी कंपनी का मुंशी था। अच्छा माल, मालपुआ तो सभी खाना चाहते हैं। अगर सामने है तो लालच आ ही जाती है; मिले या न मिले लार तो टपकाने लगती है, कोई बेसब्र होकर आपा खो देते हैं कोई अंदर ही अंदर बहुत सारे सपने बुनते रहते हैं। वह आदिवासी बाला…
राजू के मन में आकर्षण तो था; फिर भी वह मन की बात मन में ही रखता था।
एक दिन सुमन के साथ वह आदिवासी बाला काम कर रही थी। राजू दूर बैठे उन पर नजर रख रहा था। राजू स्वभावत: संकोची था; ईमानदार, अच्छे चरित्र का मालिक था।
सहसा राजू से वह आदिवासी बाला ने कहा, “राजू जी पास में आकर बैठिए न!”
राजू ने कहा था कि, “ठीक है, मैं देख रहा हूं; आप लोग काम करिए न!”
तब उस आदिवासी बाला ने कहा कि, “देखो जी, हमें लगता है कि, कोई नहीं है हम अकेले हैं! पास आओ तो कुछ अच्छा लगेगा, काम करने में मन लगेगा जी!”
राजू उठकर उनके करीब बैठ गया था। सुमन फावड़ा से तबेले में बालू भरकर उस सुंदरी आदिवासी बाला के सिर पर तबेला रख रही थी। ऐसा नहीं है कि, सुमन सुंदर नहीं थी; सुमन भी खूबसूरत थी, चंचल थी। पर उस आदिवासी बाला की बात ही कुछ और थी!
पतली कमर, बिना किसी गहना के बलखाती, ऐसी थी वह आदिवासी बाला जैसे, बनाने वाले ने उसे बहुत फुर्सत से बनाया है। स्तनों के भार से थोड़ी झुक कर चलती उसके लावण्य में चार चांद लगा रहा था। राजू कभी नहीं विचलित होने वाला इंसान, सोच रहा था कि, ‘काश यह तबेला मैं उठाकर उस आदिवासी बाला के सिर पर रखता!’
आखिर संकोची स्वभाव राजू ने सुमन से कहा, “सुमन इनका नाम क्या है? मेरा मतलब है हाजिरी भरना होगा न!”
सुमन ने मुस्कुरा कर कहा, “अपना नाम तो यही बताएगी जी!”
अब राजू हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि, उस आदिवासी बाला से वह उसका नाम पूछ सके!
चिरई डोंगरी की वह आदिवासी बाला यहां आई थी काम करने के लिए! राजू को उसने कहा, “बहुत शर्मीले हो जी, ऐसे कैसे काम चलेगा? बाहर आए हो तो, कुछ बोलो बतियाओ न!”
राजू से उस आदिवासी बाला ने एक बार फिर से कहा, “तुम्हारे पास फोन है न, मेरा नंबर ले लो जब मन करे तब बात किया करना, मैं बात करूंगी!”
एक रात हिम्मत करके राजू ने उस आदिवासी बाला को मिस कॉल दिया था फिर भी डर रहा था। मिस कॉल तुरंत लौटा दी गई थी। राजू ने कहा, “हेलो!”
उधर से शहद घोलती सी उस आदिवासी बाला की आवाज आई, “ओ पोंगा पंडित जी, फोन किसलिए लगाया रात में लड़की को, पकड़े गए आज!”
राजू ने हकलाते हुए कहा, “ऐ ऐ ऐसी कोई बात नहीं है, मुझे एक जानकारी चाहिए थी!”
लड़की ने कड़क आवाज में कहा, “कौन सी जानकारी चाहिए रात में मुझसे!”
राजू ने संभलते हुए कहा, “ए तुम्हारे गांव में यह कैसी आवाज आती है, ‘बचाओ बचाओ’ की!”
“अजी पोंगा पंडित यह भी कोई प्रश्न है; होगी कोई बेचारी!” उस आदिवासी बाला ने राजू को पढ़ा दिया था।
राजू ने पूछा, “यह जहां हमारी मशीन चल रही है वहां के नीचे खेत में पानी बारहों महीने भरा रहता है?”
“ओ भले मानुष, वह गर्मी में सूख जाता है। जब बरसात होने वाली होती है तो, बरसात के पंद्रह दिन पहले वहां पानी फिर निकल आता है। तब किसान सावधान होकर खेत का काम करते हैं, ताकि वर्षा होने तक सभी काम हो जाए! असली बात दिल की बता न यार कि, फोन क्यों किया था!”
राजू ने कहा, “और कोई बात नहीं थी। कल काम पर आना है कि नहीं?”
वह आदिवासी बाला जोर जोर से हंसने लगी थी। राजू घबड़ा गया था। राजू ने कहा, “हल्ला करोगी तो तुम्हारे पापा – मम्मी जाग जाएंगे, फिर पूंछ लिया कि इतनी रात में किससे बात कर रही हो; तो फिर क्या जवाब दोगी?”
उधर से सधी हुई आवाज प्यार भरी आई, “मैं काम पर आऊं नहीं आऊं, यह मेरी मर्जी है, तुम फोन कभी भी जब मन करे लगा लिया करो, डरने की कोई बात नहीं है! इस बार असली बात करना, ठीक है!”
उस आदिवासी बाला ने फोन काट दिया था। धीरे-धीरे समय बीतता गया था। वह काम में आती थी। राजू से बातचीत करती थी। राजू अब उससे खूब ढीठ हो गया था। वह आदिवासी बाला जिसके घुंघराले बाल मन को मोह लेते थे। जिसके दीवाने पूरी साइड के मुंशी थे, वह दीवानी राजू की हो गई थी।
राजू के लिए कुछ न कुछ अच्छी चीजें खाने के लिए वह लाती थी। राजू को प्यास लगती थी तो राजू की प्यास उसी के पानी से बुझती थी।
कहते हैं बैर एवं प्रेम कभी छिपाने से नहीं छिपते हैं। पूरे गांव में, पूरे कैंप में, साइड में चर्चा का विषय थी तो राजू की उस आदिवासी बाला की! सभी राजू से चिढ़ते थे या उसके भाग्य पर जलते थे; यह तो मैं नहीं जानता हूं, मैं तो इतना जानता हूं कि, राजू को उस आदिवासी बाला से अलग करने की तमाम उपाय लोग सोचने लगे थे।
प्रेम कुछ नहीं देखता है, वह तो हो जाता है। वह आदिवासी बाला राजू को देखे बिना चैन नहीं पाती थी। राजू को भी उसके बिना रातों में नींद दिन में चैन नहीं मिलता था।
प्रेम के बहुत सारे दुश्मन भी होते हैं। कैंप के ही लोग चिरई डोंगरी के लोगों को बहकाने लगे थे। वह आदिवासी बाला के घर वालों तक बात पहुंचा दिया था। एक दूसरी जाति का आदमी आदिवासी बाला से कैसे विवाह रचा सकता है।
राजू के दूर दराज गांव में भी यह खबर आग की तरह फैल गई थी कि, राजू सामान्य जाति का होकर एक आदिवासी बाला से कैसे विवाह कर सकता है।
वह आदिवासी बाला अब राजू के बिना कैसे जीवित रह सकती थी। राजू भी जिससे बोलने में सकुचाता था अब उसके बिना नहीं जी सकता था।
एक दिन वह आदिवासी बाला ने सोचा कि, कहीं कोई मेरे राजू को मुझसे छीन न ले जाए, इसलिए उसने राजू से कहा, “चलो कहीं भाग चलते हैं; यहां हमारे खिलाफ बहुत लोग हो गए हैं। एक अकेली सुमन मेरे साथ है बस; वह अकेली कर भी क्या सकती है!”
राजू ने कहा था कि, “देखो मेरे घरवाले मुझे तुम्हारे साथ कभी नहीं अपनाएंगे; क्योंकि उनके कान खूब भरे गए हैं। यहां प्रेम के दुश्मन सदा – सदा से, युगों – युगों से रहे हैं। इसीलिए मैं मर जाऊं पर तुम्हारे एक खरोंच तक नहीं आए मैं यही चाहता हूं!”
वह आदिवासी बाला ने राजू के मुंह में अपनी हथेली रख दिया था। उसने डांटते हुए कहा कि, “खबरदार, जो अब कभी मरने मराने की बात कही तो! सुनो प्यार मैंने किया है, उसे मैं निभाऊंगी; अंतिम सांस तक निभाऊंगी, मरें तुम्हारे दुश्मन!”
दोनों ने तय किया कि, “कहीं दूर देश चलेंगे, दोनों जन मेहनत – मजदूरी करेंगे; आखिर एक साथ तो रहेंगे!”
दोनों रात में निकल जाने की फुल तैयारी कर ली थी। गांव से लगे चारों ओर हरे-भरे वृक्ष कान्हा राष्ट्रीय उद्यान का हिस्सा, घनघोर जंगल जहां गुम जाने के चांस थे ही!
उन दोनों को क्या पता कि, कैंप का ही एक आदमी उन दोनों की तैयारी को शक पर समझने की कोशिश कर रहा था। वह जो हवस मिटाने के लिए कई बार उस आदिवासी बाला को पकड़ने की कोशिश किया था, जिसे राजू के कारण पकड़ नहीं सका था। इसीलिए वह इनका पक्का दुश्मन बन गया था।
राजू के अंक में वह आदिवासी बाला हमेशा समर्पित हुई है फिर भी; राजू ने उसे कभी अपनी वासना शांत नहीं किया था। राजू में पूरी मर्दानगी थी फिर भी वह कभी उस खूबसूरत आदिवासी बाला को अपनी वासना शांत करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया।
राजू ने उसे अपने अंक में भर – भरकर बहुत प्यार किया करता था। वह आदिवासी बाला उसे सबकुछ समर्पित करने के लिए तैयार थी। राजू जब स्थिति को बेकाबू होते देखता तब उसे समझाकर अपने से अलग कर दिया करता था। वह आदिवासी बाला राजू की इसी काबिलियत, सुंदर विचारों, उसकी मर्दानगी पर मर मिटने के लिए तैयार थी।
उस कैंप के निर्दयी साथी ने शक करके चिरई डोंगरी में कुछ लोगों के अलावा उस आदिवासी बाला के घरवालों को भी अपने शक के बारे में बताया था।
आखिर गांव के वे लोग इसलिए गुस्सा हो गए थे कि, हमारे होते हुए हमारे गांव की इतनी खूबसूरत बाला को कोई दूसरा कैसे ले जा सकता है!
शक के आधार पर चिरई डोंगरी के कुछ लोफड़ों, बेवड़ों के साथ वह कैंप का आदमी, उस आदिवासी बाला के घरवालों के साथ ताक में लग गए थे। इन सभी से अनजान सुमन ने उन दोनों को जब मिलाकर बिदा किया था कि, सभी लोग राजू को उस आदिवासी बाला के साथ घेर लिया था।
घरवालों को बहुत गुस्सा था कि, कोई दूसरी जाति का, दूसरे प्रांत का होकर हमारी इज्जत को लिए जा रहा है। अगर गांव का, दूसरे गांव का अपनी जाति का होता तो चलता। अब उन्हें कौन समझाए; प्यार के दुश्मन तो सभी होते ही हैं!
सामने उन दोनों के मौत खड़ी थी। फिर भी वह आदिवासी बाला जानती थी कि, अब मुझे जूठी मानकर मेरे घरवाले मुझे मार डालेंगे, फिर भी वह अपनी जान की परवाह किए बिना सुमन को इशारों-इशारों में समझाया था, सुमन के साथ वह आदिवासी बाला सभी से भिड़ गई थी।
वह आदिवासी बाला ने राजू से कहा था कि, “राजू तुम भाग जाओ, इस जंगल में कहीं भी गुम होकर निकल जाना!”
राजू ने पूरे होशोहवास में कहा था क्योंकि वह जानता था कि अब ए लोग मेरे प्यार को मार डालेंगे इसीलिए कि, “मैं भागूंगा नहीं मैं तेरे बिना जीकर क्या करूंगा मैं भी तेरे साथ ही मरूंगा!”
वह आदिवासी बाला का हाथ पकड़कर भाग चले थे। सुमन ने गांव वालों को रोकना चाहा था ‘बचाओ बचाओ’ चिल्लाने लगी थी कि, पास में कैंप है शायद कैंप वाले आकर इनको बचा लें!
आखिर सुमन एक ही बर्छी की वार से ढेर हो गई थी। दस – दस आदमी से भागकर राजू व वह आदिवासी बाला कहां निकल पाते; हां, वह दोनों आखिरी सांस तक उन निर्दयी दरिंदों, प्रेम के दुश्मनों से लड़ते रहे थे। आखिरी सांस वह आदिवासी बाला राजू कहकर, राजू ने उसे अपने अंक में भर कर चूमते हुए दम तोड़ दिया था दोनों ने!
आज भी उनकी आत्माएं उस गांव के चारों ओर मडराती रहती हैं। सुमन की आवाज स्पष्ट सुनाई देती है, ‘बचाओ बचाओ!’
उस गांव में गरीबी ने डेरा डाल रखा है। उन प्रेम के दुश्मनों की भगवान ने गति बिगाड़ दिया है। अब बांध का काम खत्म हो गया है; कैंप, कैंप वाले भी जा चुके हैं।
कैंप के लोग अलग-अलग गांवों में से थे। अपने – अपने गांवों में वह उस किस्से को सुनाते हैं। वह बांध दो प्रेमियों की दुर्गति से, गांव वालों की निर्दयता से अभी भी उदास है। वह आदिवासी बाला…