नदियाँ जुडेंगी तो देश भी जुड़ेगा

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नदियाँ जुडेंगी तो देश भी जुड़ेगा
नदियाँ जुडेंगी तो देश भी जुड़ेगा

वीरेन्द्र सिंह परिहार

वस्तुतः नदियों को जोड़ने का विचार सर्वप्रथम प्रमुख समाजवादी नेता डा. राममनोहर लोहिया का था। यद्यपि उस समय जल संकट इस रूप से नहीं था, फिर भी करीब-बरीब प्रत्येक वर्ष देश के एक बड़े हिस्से को बाढ़ और अकाल की विभीषिका से जूझना पड़ता था। निसंदेह यह डा. लोहिया या एक मौलिक और दूरदृष्टि भरा नजरियाँ था। 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सिचाई मंत्री डा के.एल. राव के सुझाव पर नदियों को जोड़ने की दिशा में राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी का गठन किया था, लेकिन इस दिशा में कोई खास कार्य नहीं हो सका। आगे चलकर 1999 में एन.डी.ए. की सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी सरकार ने गम्भीरता के साथ नदियों को जोड़ने के लिये राष्ट्रव्यापी परियोजना बनाने की दिशा में कार्य शुरू किया। नदियाँ जुडेंगी तो देश भी जुड़ेगा

वस्तुतः अटल सरकार ने जिस तरह से देश के चारो हिस्सो को आठ लेन सड़को के माध्यम से जोड़कर परिवहन के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय कार्य किया था, उसी धारा को आगे बढ़ाने हुये यह महत्वकांक्षी योजना की शुरूआत की थी और इस दिशा में कागजी तैयारियाँ भी पूरी हो चुकी थी। नदियों को जोड़ने की दृष्टि से एन.डी.ए.सरकार ने देश की हिमालय से निकलने वाली 14 नदियों और भारतीय प्रायद्वीप की 16 नदियों को जोड़ने का मसौदा तैयार कर लिया था, और 14 प्रमुख नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाना तय किया गया था। निःसंदेह यह लम्बे बजट का काम था, जिसे 2015 तक पूरा किया जाना था और इससे विस्थापन जैसी समस्या से भी सामना करना पड़ता लेकिन 2004 में एन.डी.ए. सरकार के सत्ता में वापसी न होने के चलते यू.पी.ए. सरकार ने इस योजना में कोई रूचि नहीं ली और नदियों को जोड़ने की जगह पर रोजगार गारंटी योजना वर्ष 2006 से शुरू कर दिया। इनके पीछे तुलना करने का आशय यह है कि दोनो ही खरबों रूपये की योजनाएं थी।

नदियों को जोड़ने की योजना देशव्यापी पैमाने पर भले ही रद्द कर दी गई हो, लेकिन इसकी उपयोगिता और महत्व को गुजरात में देखा जा सकता है, जहाँ नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते सरकार ने साबरमती नदी को नर्मदा से जोड़कर इसकी उपयोगिता बहुत पहले सिद्ध कर दी है। पहले जहाँ साबरमती नदी गर्मियों में सूख जाती थी, और नर्मदा का पानी भीषण बाढ़ के साथ व्यर्थ समुद्र में चला जाता था, वहीं दोनो नदियों के जुड़ जाने से नर्मदा का अतिरिक्त पानी अब साबरमती नदी में पहुंच रहा है। इससे अन्य जलाशय भी रिचार्ज हो रहे हैं, क्योंकि नर्मदा में जब भी बाढ़ आती है तो वह पानी नहर के माध्यम से अन्य नदियों में डाल दिया जाता है। गुजरात में इन नदियों को जोड़ने से सिर्फ नदियाँ ही नहीं अन्य जलाशय, कुएँ और ट्यूबबेल भी रिचार्ज रहते हैं।

उत्तर गुजरात का बनासकाठा जिला सदैव सूखा पीड़ित रहता था मगर अब ऐसा नहीं है। नर्मदा परियोजना के माध्यम से गुजरात की 23 नदियाँ जुड़ गई हैं जो पूरे गुजरात को खासा लाभ पहुँचा रही है। इसी को कहा जाता है कि ‘‘प्रत्यक्षं किं प्रमाणम्’’। इसके लिये 2004 से 2014 के मध्य में केन्द्र की यू.पी.ए. सरकार गुजरात से सबक ले सकती थी। वस्तुतः ‘‘नदी जोड़ो परियोजना’’ राष्ट्रीय एकता और एकात्मता की दृष्टि में भी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि तब नदियों के माध्यम से राज्य भी एक-दूसरे से जुड़ जाते, और पानी को लेकर होने वाले झगड़े स्वतः तो रूकते ही, ऐसे मामले में केन्द्र सरकार की भूमिका प्रभावी और निर्णायक हो जाती।

जहाँ तक विस्थापन की समस्या का सवाल है- कोई भी महत्वाकांक्षी और दीर्घकालीन योजना में ऐसी समस्या आती है, लेकिन उसका निदान भी था। समस्याएँ तो किसी भी परियोजना से आती है, तो क्या विकास के कार्य बन्द कर दिये जावेंगे ? बिजली और सड़कों से लोग दुर्घटना में मर जाते हैं तो क्या सड़क और बिजली का उपयोग बन्द कर दिया जायेगा ? वस्तुतः अटल सरकार के समय की 60 हजार अरब रूपये की लागत से इस महत्वपूर्ण परियोजना को रद्द करने के पीछे जहाँ संकीर्ण राजनैतिक सोच मानी जा सकती है।

यह एक अत्यन्त शुभ लक्षण है कि वर्तमान मोदी सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है। जैसा कि 25 दिसम्बर 2024 को प्रधानमंत्री मोदी ने खजुराहो से केन बेतवा महत्वाकांक्षी लिंक परियोजना का शिलान्यास किया। यद्यपि इस परियोजना का शिलान्यास 10 वर्ष पूर्व शिवराज सरकार में भी हुआ था लेकिन तब यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी थी। अब इस परियोजना के पूर्ण होने पर एक ओर तो पूरे बुंदेलखण्ड में सूखे का संकट समाप्त होगा, दूसरी तरफ देश में नदियों की जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना का रास्ता भी खुल गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि एक दिन गंगा और कावेरी आपस में जुड़कर देश में एक नया परिदृश्य उपस्थित करेंगी। यह अपेक्षा की जा सकती है कि मोदी सरकार गुजरात की तरह ही इस तरह से पूरे देश को सूखे और बाढ़ से मुक्ति दिला सकगी। नदियाँ जुडेंगी तो देश भी जुड़ेगा