लखनऊ। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा योगी सरकार की बुल्डोजर नीति को कानून का उल्लघंन बताते हुए स्पष्ट रूप से कहा है कि बिना किसी विधिक प्रक्रिया के किसी भी आरोपी का घर तोड़ना असंवैधानिक है। मा. सुप्रीम कोर्ट ने सम्पत्तियों को ध्वस्त करने से पहले प्रशासन द्वारा पालन किये जाने वाले दिशा निर्देश भी जारी किये हैं। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष, प्रभारी प्रशासन दिनेश सिंह जी ने मा. उच्चतम न्यायालय द्वारा योगी सरकार की बुल्डोजर नीति के खिलाफ दिये गये फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह निर्णय भले ही देर से आया हो लेकिन इस निर्णय के पश्चात प्रदेश में अब योगी सरकार की असंवैधानिक गतितिधियों पर रोक लगाए जाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा। बुल्डोजर नीति पर सुप्रीम ब्रेक
उल्लेखनीय है कि मा.उच्चतम न्यायालय ने बुल्डोजर नीति पर विस्तृत फैसला देने के साथ यह भी आदेश दिया है कि योगी सरकार द्वारा पूर्व में किये गये गैर कानूनी ढंग से ध्वस्तीकरण का आदेश देने वाले प्रशासनिक अधिकारियों पर कार्यवाही की जाए और पीड़ित परिवारों को पहुंचायी गई हानि की भरपाई के लिए उचित मुआवजा प्रदान किया जाए। दिनेश सिंह जी ने सरकार से मांग की है की मा.सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार विधि विरूद्ध तरीके से बुल्डोजर नीति से की गई कार्यवाही से हुए पीड़ित परिवारों को उनके नुकसान का मुआवजा दे तथा दोषी अधिकारियों को तत्काल बर्खास्त किया जाये।
सुप्रीम कोर्ट ने अपराधों में संलिप्त आरोपियों या दोषियों को घर बुल्डोजर से गिराने क चलन पर रोक लगा दी है। बुल्डोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी या दोषी होने पर आप किसी का भी घर गिरा नहीं सकते, अदालत ने तल्ख टिपप्णी करते हुए कहा कि लोकतांत्रित व्यवस्था में बुलडोजर जस्टिस स्वीकार्य नहीं है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने फैसले में कहा कि अदालत ने उन अधिकारों को ध्यान में रखा है, जो राज्य की मनमानी कार्रवाई से लोगों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता।
बेंच ने कहा कि देश में कानून का राज होना आवश्यक है। एक सदस्य आरोपी है तो सजा पूरे परिवार को नहीं मिल सकती। बुल्डोजर का एक्शन होना कानून का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका (सरकारी अधिकारी) किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकती और न ही वह जज बन सकती है, जो किसी आरोपी की संपत्ति तोड़ने पर फैसला करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी व्यक्ति को अपराध का दोषी ठहराने के बाद उसके घर को तोड़ा जाता है, तो यह भी गलत है, क्योंकि कार्यपालिका का ऐसा कदम उठाना अवैध होगा और कार्यपालिका अपने हाथों में कानून ले रही होगी। कोर्ट ने कहा कहा कि आवास का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और किसी निर्दोष व्यक्ति को इस अधिकार से वंचित करना पूरी तरह असंवैधानिक होगा।
कोर्ट ने आगे कहा, अगर कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर केवल इस वजह से तोड़ती है कि वह आरोपी है, तो यह शक्ति के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि जो सरकारी अधिकारी कानून को अपने हाथ में लेकर इस तरह के अत्याचार करते हैं, उन्हें जवाबदेही के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी संपत्ति का विध्वंस तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक उसके मालिक को पंद्रह दिन पहले नोटिस न दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि यह नोटिस मालिक को पंजीकृत डाक के जरिए से भेजा जाएगा और इसे निर्माण की बाहरी दीवार पर भी चिपकाया जाएगा। नोटिस में अवैध निर्माण की प्रकृति, उल्लंघन का विवरण और विध्वंस के कारण बताए जाएंगे। इसके अलावा, विध्वंस की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी की जाएगी और अगर इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन होता है तो यह कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आम नागरिक के लिए अपने घर का निर्माण कई वर्षों की मेहनत, सपने और आकांक्षाओं का परिणाम होता है। घर सुरक्षा और भविष्य की एक सामूहिक आशा का प्रतीक है और अगर इसे छीन लिया जाता है, तो अधिकारियों को यह साबित करना होगा कि यह कदम उठाने का उनके पास एकमात्र विकल्प था। बुल्डोजर नीति पर सुप्रीम ब्रेक