डॉ0 ओ0पी0 मिश्र
राजधानी लखनऊ में आवास विकास एवं लखनऊ विकास प्राधिकरण के प्लाट में कारनर के या या चौड़ी सड़कों पर अच्छे ज्यादातर करके अधिकारियों को ही आवंटित होता है। आखिर लॉटरी में ऐसा क्या सिस्टम होता है जो की सीनियर या वरिष्ठ अधिकारियों को ही कॉर्नर के प्लाट आवंटित होते हैं। इस आवंटन में भी कुछ ना कुछ गेट टूगेदर का खेल होता है। लेकिन कुछ ना कुछ खेल जरूर होता हो।।ता है
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश सरकार ने एक आदेश जारी किया है जिसमें कहा गया है कि 50 वर्ष पार कर चुके उन सरकारी कर्मचारियों को जबरिया सेवानिवृत्त कर दिया जाएगा जो अक्षम हैं तथा भ्रष्टाचार में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लिप्त रहे हैं। वैसे इस तरह का आदेश यह कोई पहला आदेश नहीं है बल्कि इससे पहले भी इस तरह की तमाम कोशिशें हो चुकी हैं। लेकिन नतीजा आज तक कुछ नहीं निकला क्योंकि भ्रष्टाचारियों का काकस इतना सशक्त है कि सरकार चाह कर भी कुछ खास नहीं कर पाती है। आंकड़े गवाह हैं कि इतने बड़े उत्तर प्रदेश में अब तक बमुश्किल 100 के करीब अधिकारी और कर्मचारी मिले हैं जिन्हें समय से पहले रिटायर किया गया। इसका मतलब तो यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में शायद 0.5% से भी कम सरकारी अधिकारी और कर्मचारी बेईमान है। ऐसे में मेरा एक प्रश्न है कि अगर इतने सारे लोग कर्तव्यनिष्ठ ईमानदार तथा कार्य करने में सक्षम हैं और भ्रष्टाचार से मुक्त है। तो फिर लखनऊ के गोमती नगर, वृंदावन योजना, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद और हर बड़े शहर में जो बड़ी-बड़ी कोठियां बनी है वह किसकी है?
लखनऊ के मोहनलालगंज, सरोजनी नगर तथा बख्शी तालाब तहसील में जो बड़े-बड़े फार्म हाउस तथा एजुकेशनल इंस्टिट्यूट है वह किसके हैं? मैं करीब तीन दर्जन अधिकारियों इनमें न्यायिक सेवा, आईएएस, आईपीएस तथा पीसीएस अधिकारियों के बड़े-बड़े फार्म हाउसों को जानता हूं जो लखनऊ के इर्द-गिर्द हैं। क्या यह फार्म हाउस वेतन से खरीदे या बनाए जा सकते हैं? शायद नहीं। लखनऊ जेल में तैनात अधिकारियों के भी शॉपिंग कांप्लेक्सो को भी मैं जानता हूं जो जेल रोड और जेल से नगराम रोड पर बने हैं। कई – कई बीघे जमीन खरीदी गई है। क्या यह वेतन से खरीदी जा सकती है? वर्ष 2015 से 2022 के उन पुलिस इंस्पेक्टरों की कोठियों को भी देखा जा सकता है जो लखनऊ के वृंदावन योजना, गोमती नगर योजना तथा सुल्तानपुर रोड पर बनी है। क्या यह वेतन से बन सकती हैं? शायद नहीं। तो फिर क्या ये अधिकारी या कर्मचारी दूध के धुले हैं? लखनऊ विकास प्राधिकरण आवास विकास परिषद तथा नोएडा कार्यालय कार्यालयों में तैनात मै तमाम ऐसे कर्मचारियों तथा अनुसेवकों को जानता हूं जिनके पास कई- कई प्लाट हैं कई -कई फ्लैट है।
उत्तर प्रदेश के प्रमुख जिलो जिसमें लखनऊ भी शामिल है में 5 तक कार्य कर चुका कोई भी ऐसा लेखपाल नहीं जिसके पास गाड़ी, बंगला और करोड़ों की संपत्ति ना हो। क्या यह उस वेतन से अर्जित किया जा सकता है जो प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापकों से कम वेतन पाता हो। आखिर इंटर कॉलेज का प्रवक्ता अपनी सरकारी नौकरी के अंतिम समय में ही क्यों घर बनवा पाता है? वह भी घर कोठी नहीं। मतलब साफ है कि अगर भ्रष्टाचार की तलाश में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निकलते हैं तो उनके हाथ 20% अधिकारी और कर्मचारी ही लगेंगे जो मौका मिलने के बाद ही भ्रष्ट नहीं है। जबकि 15% ऐसे हैं जिन्हें भ्रष्टाचार का मौका नहीं मिला, इसलिए ईमानदार हैं। कहने का मतलब यह है कि देश का 65% अधिकारी और कर्मचारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार में लिप्त है। तो फिर इनकी छटनी कैसे होगी? और कौन करेगा?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जीरो टॉलरेंस या भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश की चाह जितनी बार करें लेकिन हकीकत यह है कि ज्यो- ज्यो महंगाई बढ़ती जाती है त्यो- त्यो भ्रष्टाचार का रेट बढ़ता जाता है। 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार के समय सरकारी काम अपने पक्ष में करवाने का जो रेट था वह इस समय 3 गुना हो गया। यह अजीब इत्तेफाक नहीं तो और क्या है क्योंकि आम आदमी कहता है कि किससे किसकी शिकायत की जाए क्योंकि सभी भ्रष्ट हैं। जिसकी शिकायत करो उसी को बता दें कि तुम्हारे खिलाफ अमुक ने शिकायत की है। आजकल ईडी का बाजार काफी गर्म है। जिसको चाहो उठा लो, कई दिनों तक पूछताछ करो, फर्जी लिंक जोड़ दो। जब कुछ ना मिले तो भी गिरफ्तार करने की धमकी दो और अंत में सेटेल।मै एक घटना का जिक्र करना यहां आवश्यक समझता हूं जो पूर्ण रूप से सत्य है लेकिन बताने वाले को परेशान न किया जाए इसलिए नाम और स्थान सही नहीं बता रहा हूं ।
ईडी ने वाराणसी में एक व्यक्ति को उठाया जो प्रॉपर्टी डीलर का छोटा-मोटा काम करता है। ईडी उस पर मुख्तार अंसारी गैंग का सदस्य होने की बात थोपना चाहती थी लेकिन जब कोई सबूत नहीं मिला 4 दिन तक पड़ताल करने के बाद। तो जेल भेजने तथा कोठी गिरवा देने का दबाव बनाकर 30 लाख की मांग की गई।अब इसकी शिकायत किससे की जाए? क्योंकि जैसे आपने शिकायत करने का मन बनाया वैसे ही आप पर कहर बरपाया गया। तभी तो आज आम आदमी यह कहते घूम रहा है कि केवल मोदी और योगी के ईमानदार होने से कुछ नहीं क्योंकि बाकी तो बेईमान है। इसके अलावा राजनीति और अफसर शाही दोनों की नींव एक ही मिट्टी से तैयार होती है । अब हम सब जानते हैं कि भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे आता है। इसलिए नीचे वाले के ऊपर सिर्फ शिकंजा कसने या उसे जबरन रिटायर करने से कुछ नहीं होने वाला है क्योंकि वह तो मशीन का एक पुर्जा मात्र है। जब तक मशीन के पेन्च नहीं कसे जाएंगे तब तक कुछ होने वाला नहीं। जबकि सरकार शायद मशीन को ज्यादा टाइट करना नहीं चाहती। जानते हैं क्यों? क्योंकि नेता यदि बिल्ली है तो अधिकारी बिल्ली के बच्चे । यानी बिल्ली अपने बच्चे को पकड़ती जरूर है लेकिन सुरक्षित पकड़ती है, पोले- पोले पकड़ती है। अगर ऐसा ना होता तो आईएएस अफसरों के खिलाफ जांच अनुमति की फाइलें रोकी ना जाती बल्कि फटाफट निपटा दी जाती।
जान ले कि सीबीआई ने उत्तर प्रदेश के दो पूर्व मुख्य सचिवो के खिलाफ सरकार से जांच की अनुमति मांगी थी लेकिन अभी तक उस पर कोई निर्णय नहीं हो सका कि अनुमति देनी है या नहीं देनी है। एक वर्तमान आईएएस के खिलाफ सीबीआई ने जांच की अनुमति चाही लेकिन वह भी अभी लंबित है। पूर्व आईएएस राजीव कुमार, हृदय शंकर तिवारी, सत्येंद्र कुमार सिंह, विमल कुमार वर्मा , शैलेश कृष्ण के अलावा आईएएस बी चंद्रकला, जी एस प्रियदर्शी तथा हरिओम के मामलों में भी सरकार चुप्पी साधे हैं। फिर कैसे उम्मीद की जा सकती है कि सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति कामयाब होगी।
( डॉ0 ओ0पी0 मिश्रा की फेसबुक वॉल से)