कार्यस्थल पर नकारात्मक प्रभाव से कैसे रहे दूर

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कार्यस्थल पर नकारात्मक प्रभाव से कैसे रहे दूर
कार्यस्थल पर नकारात्मक प्रभाव से कैसे रहे दूर
डॉ.मनोज कुमार तिवारी (वरिष्ठ परामर्शदाता ) एआरटी सेंटर, एस एस हॉस्पिटल, आईएमएस, बीएचयू, वाराणसी।

 कार्यस्थल पर दिन प्रतिदिन होने वाले तनाव के नकारात्मक प्रभाव से कैसे रहे दूर। भारत में 21-30 वर्ष की आयु के 64 प्रतिशत कर्मचारी उच्च तनाव के स्तर से जूझ रहे हैं। शोध से पता चलता है कि भारत में 40% कर्मचारी बर्नआउट का अनुभव करते हैं, जबकि 38% मध्यम तनाव का अनुभव करते हैं। कार्यस्थल पर नकारात्मक प्रभाव से कैसे रहे दूर

दुनिया की लगभग 60% आबादी काम करती है उनमें से 80% लोग कार्यस्थल पर काम के दौरान तनाव महसूस करते हैं। कार्यस्थल पर तनाव, कर्मचारियों को काम में आने वाली मांगों, दबावों व चुनौतियों के कारण होने वाले भावनात्मक, शारीरिक व मनोवैज्ञानिक तनाव को कहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कार्यस्थल पर तनाव को 21वीं सदी की वैश्विक महामारी के रूप में मान्यता दी है। वैश्विक स्तर पर  अवसाद व चिंता के कारण प्रतिवर्ष 12 बिलियन कार्य दिवस नष्ट हो जाता हैं, जिससे उत्पादकता में प्रति वर्ष 1 ट्रिलियन डॉलर की हानि होती है। वैश्विक स्तर पर 10 में से 6 कर्मचारी कार्यस्थल पर तनाव का अनुभव करते हैं। 2022 के एक सर्वे के मुताबिक 44% नियोक्ताओं को लगता है कि कर्मचारियों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं बढ़ रही हैं। 

 महिलाओं में काम से संबंधित तनाव का अनुभव करने की दर पुरुषों की तुलना में 25% अधिक है, महिलाएं हर महीने लगभग 10 दिनों तक तनाव महसूस करती हैं जबकि पुरुष लगभग 7 दिनों तक तनाव महसूस करते हैं। एक शोध में लगभग 72.2% महिला ने उच्च तनाव स्तर की बात स्वीकार किया, जबकि 53.64% प्रतिशत पुरुषों ने ऐसा कहा। भारत में 71% कर्मचारी कहते हैं कि वे काम पर अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात कर सकते हैं, लेकिन 10 में से लगभग 6 (लगभग 56%) का यह मानना है कि उनके प्रबंधकों/सहकर्मियों के पास पूर्व धारणाओं के बिना मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बातचीत करने के लिए अवसर नहीं है। भारत में 21-30 वर्ष की आयु के 64 प्रतिशत कर्मचारी उच्च तनाव के स्तर से जूझ रहे हैं। शोध से पता चलता है कि भारत में 40% कर्मचारी बर्नआउट का अनुभव करते हैं, जबकि 38% मध्यम तनाव का अनुभव करते हैं।

 कार्यस्थल पर तनाव कारण- क्षमता से अधिक कार्यभार, लंबे समय तक काम करना, नौकरी की असुरक्षा,  सहकर्मियों/अधिकारी के साथ मतभेद, छोटा समय सीमा, विफलता का डर, मौखिक/शारीरिक दुर्व्यवहार, रूढ़िबद्धता। 

 सामाजिक बहिष्कार– भेदभाव, अतार्किक प्रबंधन शैली,  निर्णय लेने में कर्मचारियों की भागीदारी की कमी, खराब संचार, असुविधाजनक कार्य वातावरण, खराब व्यवहार। 

कार्यस्थल पर तनाव के लक्षण:-

शारीरिक लक्षण- सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द,  नींद की समस्या, कब्ज़ की शिकायत, भूख की कमी, दिल की बीमारी, उच्च रक्तचाप,  मधुमेह, प्रतिरक्षा प्रणाली की समस्याएं।

भावनात्मक लक्षण- चिंता, अवसाद, गुस्सा, चिड़चिड़ापन, थकान, निराशा, आत्म सम्मान की कमी। कार्यस्थल पर नकारात्मक प्रभाव से कैसे रहे दूर

मनोवैज्ञानिक लक्षण- ध्यान की समस्या, स्मृति की कमी, निर्णय लेने में समस्या, प्रेरणा की कमी, सामाजिक गतिविधियों से दूर रहना, नौकरी छोड़ने, सेवानिवृत्त लेने के विचार।

कंपनी/संगठन की हानि- दुर्घटनाओं में वृद्धि, अनुपस्थिति दर में वृद्धि, स्टाफ टर्नओवर दर में वृद्धि, कर्मचारियों में प्रेरणा कमी, कार्य संतुष्टि में कमी, काम के प्रतिबद्धता में कमी, नकारात्मक ब्रांड प्रतिष्ठा, भर्ती प्रक्रियाओं में पेशेवरों की कम रुचि, उत्पादकता में कमी, लाभ में गिरावट, आर्थिक हानि।

 कार्यस्थल पर तनाव का प्रबंध- तनाव को पूरी तरह से खत्म करना तो असंभव है क्योंकि इसके अनगिनत कारक हैं, लेकिन तनाव प्रबंधन से तनाव से होने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम से कम किया जा सकता है। कार्यस्थल पर तनाव को कम करने के लिए स्वस्थ कार्य शैली बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

कार्यस्थल पर तनाव के प्रबंधन के प्रमुख उपाय निम्नलिखित है :-

समय प्रबंधन- कार्यस्थल पर तनाव के कारणों में अत्यधिक कार्यभार व समय सीमा से बधे होने की भावना है। प्रभावी समय प्रबंधन इस दबाव को काफी हद तक कम कर सकता है ।

पदोन्नति के लिए प्रयास करें- एक ही कार्य व एक ही स्थान पर लम्बे समय तक कार्य करना तनाव व नीरसता उत्पन्न करता है पदोन्नति के व्दारा इसे दूर किया जा सकता है।

कार्यों की प्राथमिकता तय करें– कार्यों को उनकी प्राथमिकता एवं महत्व के अनुसार सूचीबद्ध करें तथा महत्वपूर्ण एवं प्राथमिकता वाले कार्यों को पहले निपटाएँ और सूची के अन्य कार्यों को भी समय सीमा के अंदर समाप्त करने का प्रयास करें।

कार्य करने की समय सारणी बनाएं- अलग-अलग कामों के लिए खास समय तथा उसकी सीमा तय करने के लिए एक दैनिक या साप्ताहिक अनुसूची बनाएं। जितना हो सके अपने अनुसूची का पालन करें। कृपया ध्यान रखें की कोई भी व्यक्ति अपने  अनुसूची (शेड्यूल) का 100% पालन नहीं कर पाता है अतः इसको लेकर तनाव न लें।

 तकनीकी का उपयोग करें- कार्य प्रबंधन के लिए डिज़ाइन किए गए डिजिटल टूल और ऐप का उपयोग करें, जैसे कैलेंडर, टू-डू सूची और प्रोजेक्ट प्रबंधन सॉफ़्टवेयर इत्यादि का बुध्दीमत्तापूर्ण प्रयोग करके कार्य के दबाव से बचा जा सकता है।

कार्यों को छोटे-छोटे चरणों में बाँटें- बड़ी परियोजनाए बोझिल हो सकती हैं। बड़े कार्यो को छोटे-छोटे भागों एवं चरणों में बाटकर उन्हें पूरा करना आसान होता है। एक भाग को सफलतापूर्वक पूर्ण कर लेने पर व्यक्ति का आत्मविश्वास एवं साहस बढ़ता है जिससे वह आगे के कार्यों का आसानी से पूर्ण करने में सक्षम होता है तथा तनाव से बचा रहता है।

एक समय पर अनेक कार्यों करने  से बचें- एक समय पर एक ही काम पर ध्यान केंद्रित करें। मल्टीटास्किंग से उत्पादकता में कमी व तनाव में वृद्धि होती है क्योंकि इससे न केवल व्यक्ति दबाव महसूस करता है बल्कि उससे त्रुटि होने की संभावना भी अधिक होती है।

काम की समयावधि तय करें- अपने काम के घंटे स्पष्ट रूप से निर्धारित करें और उनका पालन करें। इन घंटों के बारे में अपने सहकर्मियों और वरिष्ठों को बताएं।

ना कहना सीखें- खुद पर बहुत अधिक कार्य का भार न डालें। अगर आपके पास पहले से ही काम अधिक है, तो विनम्रता से अतिरिक्त कार्यों को मना कर दें।

नियमित विश्राम लें- कार्य दिवस के दौरान छोटे-छोटे विश्राम लें ताकि आप ऊर्जा प्राप्त कर सकें। अपने कार्य स्थल से थोड़ी देर के लिए दूर जाने से ध्यान केंद्रित करने में सुधार होता है और तनाव कम होता है।

काम के बाद खुद को अलग रखें- काम के घंटे खत्म होने के बाद काम से जुड़े ईमेल या मैसेज चेक करने से बचें। खुद को आराम करने और तनावमुक्त रखने का प्रयास करें।

सहकर्मी से बात करें:- अपनी चिंताओं और भावनाओं को किसी भरोसेमंद सहकर्मी के साथ साझा करें। वे आपको उचित जानकारी दे सकते हैं। सहकर्मियों के साथ बातचीत करना तथा मित्रों और परिवार से सहयोग प्राप्त करना कार्यस्थल पर तनाव को कम करने में सहायक होता है।

पेशेवर सहायता- अगर कार्यस्थल पर तनाव बहुत ज़्यादा हो जाए तो अपने मानव संसाधन विभाग या मनोचिकित्सक से विचार करें। प्रशिक्षित परामर्शदाता से परामर्श प्राप्त करें।

सपोर्ट नेटवर्क पर विश्वास रखें- अपने अनुभवों और भावनाओं को दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें। वे कार्यस्थल के बाहर से भावनात्मक समर्थन प्रदान कर सकते हैं। अपने सहकर्मी एवं सहयोगियों द्वारा प्रदान की गई सहयोग के लिए उनका स्वागत करें, उन्हें धन्यवाद दें।

स्व-देखभाल- कार्यस्थल पर तनाव के प्रति समग्र कल्याण और लचीलेपन के लिए आत्म-देखभाल को प्राथमिकता देना आवश्यक है। कार्यस्थल पर अपने व्यक्तिगत आवश्यकताओं को नजर अंदाज न करें, उन्हें भी प्राथमिकता के आधार पर पूर्ण करने का प्रयास करें।

 शारीरिक गतिविधि– नियमित व्यायाम तनाव को कम करता है व मनोदशा को बेहतर बनाता है। अपनी दिनचर्या में शारीरिक गतिविधि को शामिल करें।

संतुलित भोजन करें-संतुलित आहार व पेय पदार्थ लेते रहें। अत्यधिक कैफीन या मीठे खाद्य पदार्थों से बचें जो तनाव को बढ़ा सकते हैं।

माइंडफुलनेस और मेडिटेशन- तनाव को कम करने के लिए माइंडफुलनेस तकनीक और मेडिटेशन का अभ्यास करें। ये विधियाँ व्यक्ति को शांत और केंद्रित रहने में मदद करती हैं।

अच्छी नींद लें- सुनिश्चित करें कि आपको हर रात 7 घंटे की गुणवत्ता पूर्ण व पर्याप्त नींद मिले। अनियमित व खराब नींद तनाव को बढ़ाता है व्यक्ति के कार्य पर प्रदर्शन को भी प्रभावित करता है।

 शौक और अवकाश- काम के अलावा अपनी पसंदीदा गतिविधियों में शामिल हों जिनमें आपको आनंद आता हो। शौक और अवकाश गतिविधियाँ नई उर्जा व रचनात्मकता के लिए एक आवश्यक साधन हैं।

कार्यस्थल पर तनाव से निपटने के लिए ध्यान, गहरी सांस लेना, माइंडफ़ुलनेस, कार्य के बीच कुछ मिनट आराम, चहलकदमी, पसंदीदा भोजन करने, पसंदीदा संगीत सुनने जैसी छोटी-छोटी क्रियाकलापों के माध्यम से कार्य स्थल पर तनाव के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। सरकार को नीति  बनाना चाहिए कि कर्मचारियों का प्रतिवर्ष शारीरिक स्वास्थ्य की जांच के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य की जांच भी किया जाय जिसमें कार्यस्थल पर तनाव व बर्नआउट का विशेष ध्यान रखा जाए। कर्मचारियों को कार्य का प्रशिक्षण देने के साथ-साथ उन्हें मानसिक स्वास्थ्य को सही रखने हेतु उचित परामर्श व रिलक्सेसन एक्सरसाइज सिखाया जाना चाहिए ताकि वे कार्यस्थल पर दिन प्रतिदिन होने वाले तनाव के नकारात्मक प्रभाव से दूर रहते हुए अपना सर्वोत्तम निष्पादन दे सकें। कार्यस्थल पर नकारात्मक प्रभाव से कैसे रहे दूर