गजेंद्र सिंह
हाल के दिनों में कुछ बाजार संबंधी घटनाओं ने आम जनमानस के मन पर गहरा और चिंताजनक प्रभाव डाला है। मार्च में, मोबाइल कंपनियों ने बुनियादी ढांचे की बढ़ती लागत का हवाला देकर मोबाइल डेटा की कीमतों में 40% की वृद्धि कर उपभोक्ताओं को चौंका दिया। यह वृद्धि उस बाजार में हुई जहाँ रिलायंस जियो और भारती एयरटेल दूरसंचार बाजार के 67% हिस्से पर नियंत्रण रखते हैं। अप्रैल में, एपीआई आपूर्ति श्रृंखला की समस्याओं के कारण आवश्यक दवाओं की बाजार में उपलब्धता में भारी कमी देखी गई। मई में, दो बड़े निजी बैंकों के विलय के कारण अनेक ग्रामीण शाखाएँ बंद हो गईं, जबकि जून में कलपुर्जों की कमी के कारण इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की कीमतों में 25% की वृद्धि हुई। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और घरेलू उत्पादन ही हो भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल मंत्र
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग द्वारा जारी किए गए हर्फिंदाल-हिर्शमैन सूचकांक (एचएचआई) सर्वेक्षण 2024 ने विभिन्न उद्योगों में बाजार की कॉर्पोरेट हिस्सेदारी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है। दूरसंचार क्षेत्र में तीन कॉर्पोरेट कंपनियों की कुल हिस्सेदारी 82 प्रतिशत है जिसमें जियो की 35%, एयरटेल की 32% और वी आई की 18% बाजार हिस्सेदारी है। बैंकिंग क्षेत्र में पाँच प्रमुख कॉर्पोरेट की कुल भागीदारी 71 प्रतिशत है जिसमें एसबीआई 23%, एचडीएफसी 16%, आईसीआईसीआई 13%, एक्सिस 11% और कोटक 8% पर हैं। फार्मास्युटिकल एपीआई उत्पादन में 70% आयात निर्भरता दिखाई देती है। ईवी बाजार में तीन कॉर्पोरेट की 86 प्रतिशत भागीदारी के साथ यह क्षेत्र अत्यधिक संवेदनशील है, जहाँ टाटा मोटर्स की 52%, महिंद्रा की 23% और एमजी की 11% हिस्सेदारी है। ई-वाणिज्य क्षेत्र में तीन कॉर्पोरेट की 80 प्रतिशत भागीदारी है, जिसमें अमेज़न 32%, फ्लिपकार्ट 30% और रिलायंस 18% बाजार हिस्सेदारी पर हैं।
आम भारतीय के लिए, इन आँकड़ों का निष्कर्ष महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। इसमें आम जनजीवन की आर्थिक स्थिति और सेवाओं तक पहुँच पर तत्काल प्रभावों के अलावा, बाजार में कॉर्पोरेट की एकाधिकार छोटे, पारंपरिक भारतीय व्यवसायों के लिए चुनौती बन गई है। ये 63 मिलियन उद्यम, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 30% और निर्यात का 45% हिस्सा हैं, बड़े निगमों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए संघर्षरत हैं, और उन्हें विलुप्त होने का खतरा है, जो आगे चलकर बाजार की एकाधिकारशाही को और बढ़ा सकता है।
सर्वेक्षण क्षेत्र-विशिष्ट समस्याओं और समाधानों पर प्रकाश डालता है। दूरसंचार में, नए प्रवेशकों को प्रोत्साहित करना और छोटे खिलाड़ियों के लिए बुनियादी राहत से बाजार को संतुलित किया जा सकता है। दवा क्षेत्र को घरेलू एपीआई उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जिसका लक्ष्य पाँच वर्षों के भीतर आयात निर्भरता को 70% से घटाकर 40% तक लाना होगा । विविध वित्तीय परिदृश्यों को बनाए रखने के लिए पारंपरिक और डिजिटल वित्त सेवाओं के मिश्रण को बढ़ावा देने से वृहद बैंकिंग क्षेत्र लाभान्वित होगा । ऑटोमोबाइल उद्योग को आयात निर्भरता कम करने और 2030 तक टिकाऊ परिवहन को 1.3% से बढ़ाकर 30% तक पहुँचाने के लिए ईवी घटकों के घरेलू उत्पादन हेतु समर्थन की आवश्यकता है। ई-वाणिज्य में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने और आक्रामक मूल्य निर्धारण को रोकने के लिए कठोर नियमों की आवश्यकता है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए, भारत सरकार को प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने वाली नीतियाँ लागू करनी चाहिए, घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिए और छोटे व्यवसायियों के लिए एक उचित वातावरण बनाना चाहिए। लक्ष्य अगले दशक में प्रमुख क्षेत्रों में औसत एचएचआई को कम करना होना चाहिए जिससे आर्थिक विकास के लाभ व्यापक रूप से वितरित हों, नवाचार को बढ़ावा मिले और उपभोक्ताओं को विविध, प्रतिस्पर्धी मूल्य वाले उत्पादों और सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित हो सके।
उपभोक्ताओं की आर्थिक स्थिति को भविष्य के झटकों से बचाने और आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं तक स्थिर पहुँच सुनिश्चित करने के लिए बाजार मे कॉर्पोरेट की हिस्सेदारी को संबोधित करना महत्वपूर्ण है। एक संतुलित बाजार संरचना को बढ़ावा देकर, भारत स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के लाभों का उपयोग कर सकता है, नवाचार को बढ़ावा दे सकता है, उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है और अंततः वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में अपनी यात्रा में व्यवसायों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभान्वित कर सकता है। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और घरेलू उत्पादन ही हो भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल मंत्र
(गजेंद्र सिंह एक सामाजिक निवेश विशेषज्ञ हैं जो पिछले 15 वर्षों से सकारात्मक व्यवस्था परिवर्तन के लिए संगठनों, सरकार और समाज को एकजुट करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।)