अनुमान का आधार…

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अनुमान का आधार...
अनुमान का आधार...
विजय गर्ग
विजय गर्ग

अनुमानों की दुनिया कमाल है। समय अच्छा और स्वस्थ बिताने के लिए दूसरों के बारे कुछ भी अनुमान लगाते रहना हमारी आदतों में शुमार है। माना जाता है कि हमें तो पहले से सब कुछ पता है। आत्मविश्वास बढ़ा हुआ लगता है, लेकिन यह सब कुछ आत्मकेंद्रित ज्यादा होता है। कुछ लोगों के अनुमान सटीक भी होते हैं, जिसमें उनका गहन अनुभव, उनके ज्ञान और विश्लेषण की क्षमता की सक्रिय भूमिका होती है । फिर भी अनुमान अंदाजा ही है। अंदाजा लगाना हमारी जिंदगी का जरूरी हिस्सा बना हुआ है, लेकिन उससे बेहतर है कि हम अपने शरीर और सोच को सक्रिय रखते हुए असलियत जानने की कोशिश करें, ताकि दिमाग अनुमानों का नहीं, वास्तविक जानकारी का खजाना बन सके। अगर कोई परिचित बहुत दिनों बाद मिले, तो लोगों का अनुमान लगाना शुरू हो जाता है। लोग सोचने लगते हैं कि शायद वे बीमार होंगे। मेहमान स्वस्थ रहने के लिए चीनी कम पीए या फीकी चाय के लिए आग्रह करे तो उनकी जिंदगी में चीनी ज्यादा होने का अंदाजा तुरंत लगा लिया जाता है। खुद के वैवाहिक जीवन में कई दर्जन मसले चल रहे होते हैं, लेकिन दूसरों के जीवन और खासतौर पर वैवाहिक जीवन के बारे में संजीदा आकलन कर यह गहन विचार किया जा रहा होता है कि अब उन्हें क्या करना चाहिए। अनेक राजनीतिक, धार्मिक कयास ऐसे होते हैं जो समाज और देश का भला नहीं करते। अनुमान का आधार…

कहीं जाना हो तो लोग कयास लगाते हैं कि इतने समय में वहां पहुंच जाएंगे। कितनी बार ऐसा होता है हम आधुनिक तकनीकी के रूप में जीपीएस की मदद लेते हैं, लेकिन उससे गंतव्य पर जल्दी पहुंचने के बजाय और ज्यादा समय लग जाता है। दरअसल, जीपीएस कई बार जल्दी पहुंचाने की कोशिश में छोटी जगहों में फंसा देता है। सड़कों पर भीड़भाड़ वाले समय में यातायात नियंत्रण के लिए लगाई गई बत्तियों पर गाड़ियों की जुलूसनुमा भीड़ सरक रही होती है और अंदाजा बेहोश हो चुका होता है। भूख के मारे पेट में सही समय पर खाने की आदतें कूद रही होती हैं। खास मौकों पर ठीक वक्त पर पहुंचने में अनेक बार देर हो जाती है ।

हममें से ज्यादातर लोग बच्चों को पैदा होने के कुछ वर्ष बाद ही कोचिंग देना शुरू कर देते हैं। उसे अक्सर यह कहने से नहीं हिचकते कि तुम्हें सबसे आगे रहना है… हमेशा नंबर वन रहना है। इस बीच हम यह अंदाजा लगाना भूल जाते हैं कि इस दुनिया में दूसरे बच्चे भी हैं, जिनके अभिभावक भी यही जरूरी कोचिंग दे रहे होते हैं। बच्चों को हारना या गिरना भी सिखाना जरूरी है। यह अंदाजा लगाना जरूरी है कि तब उन्हें कितनी मेहनत करनी होगी। कोई गलत चीज खरीद लेने पर कयास लगा लेते हैं कि अगर वापस करने गए तो दुकानदार बदलेगा नहीं या वापस नहीं करेगा। उसके बाद वह चीज घर में यों ही पड़ी रह जाती है। एक बार दुकानदार के पास जाकर उससे गुजारिश करने में कोई हर्ज नहीं । शायद वापस ले ले। नहीं तो यह संभव हो सकता है कि बदल कर दूसरी दे दे । ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि वह मना कर देगा ।

कुछ समय पहले तक बैंक के लिए जमा राशियों की बहुत जरूरत होती थी। एक बैंक के शाखा प्रबंधक ने मुख्य द्वार के बाहर बैठे एक बुजुर्ग की बात अनसुनी करते हुए कहा कि दस बजे आइए। उन बुजुर्ग ने एक व्यक्ति को रोका और हाथ में मजबूती से पकड़ा थैला थमाते हुए बोले, ‘इसमें एक लाख रुपए हैं, बड़ी मुश्किल से बचाए हैं, सावधि योजना में जमा करना है। जो बाबू अंदर गए, उन्होंने कहा कि दस बजे आइए बाबा ।’ व्यक्ति एक लाख रुपए वाला साधारण-सा थैला प्रबंधक की मेज पर रखा और कहा कि ये एक लाख रुपए हैं, आप इनका शुक्रिया अदा करें … सुबह-सुबह बिना मेहनत एक लाख रुपए जमा हो रहे हैं। प्रबंधक कुर्सी से उछल पड़े और बुजुर्ग से बोले, गलती हो गई बाबा माफ कर दो। अब यह साफ था कि वे बुजुर्ग व्यक्ति के बारे में सही अनुमान नहीं लगा पाए और उन्हें कम करके आंका |

हाल अभी भी वैसा ही है। कई बार किसी बात की तह में गए बिना हम अंदाजा लगाते रहते हैं। विवाह में सहभोज का आयोजन हो तो पत्नी पति ही आते हैं। कुछ दूसरे लोग पत्नी-पति, बच्चे,माता-पिता और मेहमान को भी ले आते हैं। बाकी लोग यह अटकल लगाते रहते हैं कि शायद उन्हें परिवार सहित बुलाया गया होगा। यह आंकना मुश्किल होता है कि उन्होंने निमंत्रण पत्र पर लिखे बुलावे के अनुसार किया होगा या घर से बाहर खाने के लिए आए हैं । कई बार वास्तव में होता है कि मेजबान ने उचित तरीके से अनुमान नहीं लगाया होता है। मेहमान ज्यादा हो गए, खाना कम पड़ गया, अड़ोस-पड़ोस के रेस्तरां से लाकर भी काम नहीं चला। कुछ खास काम होते हैं जो अनुभवी व्यक्ति से ही करवाने चाहिए। एक परिचित ने कयास लगाया, लेकिन काम करवाने से पहले पूछा नहीं कि कितने पैसे लगेंगे। शौचालय में पुरानी सीट हटाकर नई लगवानी थी। उन्होंने सोचा होगा कि जान-पहचान है, तो ठीक पैसे ही खर्च करने होंगे। लेकिन उनका अंदाजा गलत निकला। उम्मीद के उलट काफी ज्यादा पैसे देने पड़े। हालांकि घर के स्नानघर में कुछ चीजें खुद से भी बदली जा सकती हैं। थोड़ी कोशिश करके सामान्य और आसान काम किए जा सकते हैं। इससे पैसे भी बच सकते हैं और कुछ नया भी सीखा जा सकता है। बल्कि सीख तो कभी भी सकते हैं। अनुमान का आधार…