

आज की दुनिया में अपने आसपास का व्यवहार देख कर यही लगता है कि इंसान बहका हुआ है। उसने हर जगह के लिए एक मुखौटा बना रखा है। भोलेपन के पीछे कड़वाहट का समंदर है, लेकिन वह अपनी कलुषित भावना उसको छिपाना चाहता है। ऐसा करते हुए यह भूल जाते है कि हम एक भीड़ हैं। हमारे हजारों मुखौटे हैं। घर में अलग मुखौटा है। उसमें भी माता-पिता के सामने अलग मुखौटा, बच्चों के सामने अलग, पत्नी के सामने अलग, पेशेवर मित्रों के सामने अलग, लंगोटिया मित्रों के सामने अलग, मालिक के सामने अलग और नौकर के सामने अलग। हमारे कितने चेहरे हैं, शायद हमको खुद ही नहीं पता। समाज में जीने के लिए आज यह आवश्यक हो सकता है, लेकिन जीवन जीने में यह मुखौटा पूरी यात्रा के आनंद को कड़वाहट में बदल देता है। कड़वाहट का कलुष
जीवन में कड़वाहट का मुख्य कारण अपनी इच्छा और विचार को सर्वोपरि रखना है। इस कारण रिश्तों में दरार, बिखराव और टूटन आता है । आजकल अधिकतर लोगों में बर्दाश्त करने की क्षमता की बहुत कमी है। लोग छोटी-छोटी बातों पर प्रतिक्रिया देते हैं। घर से बाहर की बात तो दूर, एक घर के अंदर रहने वाले एक ही परिवार के लोग एक दूसरे को सम्मान नहीं देते और वाद-विवाद में पड़ जाते हैं । बचपन से जो पिलाया जाता है, वही बच्चे की नस-नस में बस जाता है। बच्चे घर से ही रिश्तों की अवहेलना सीख जाते हैं और रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है। रिश्तों को निभाने के लिए झुकना पड़ता है, सहन करना पड़ता है। तब कहीं जाकर रिश्ते मधुर होते हैं । हम एक दूसरे का सम्मान करना बंद कर देते हैं, तब रिश्तों में कड़वाहट आने लगती है। कई बार गलतफहमियां भी रिश्ते में कड़वाहट ले आती हैं। कभी-कभी अगर एक पक्ष गलत हो और दूसरा पक्ष सही होते हुए भी उसे बार-बार दबना पड़े तो भी रिश्ते कड़वे हो जाते हैं । कई बार जब हम छोटे और बड़े का यथायोग्य आदर या स्नेह देना बंद कर देते हैं या फिर फालतू का शक करने लगते हैं, तब भी रिश्तों में कड़वाहट आने लगती है ।
रिश्ते हमारी अमूल्य निधि होते हैं। अगर रिश्तों को बरकरार रखने के लिए हम थोड़ा झुकने के बाद भी रिश्तों को बचा लें, तो यह हमारी एक बड़ी उपलब्धि होगी। मगर आज झुकना कोई नहीं चाहता है, न ही रुकना । इसलिए हर पड़ाव पर हम खुद का ही मोल लगा बैठते हैं। विनम्रता से हर कोई समझ ही जाता है, लेकिन अगर थोड़ा-बहुत मनमुटाव हो भी,तो भी रिश्ता खत्म नहीं किया जाना चाहिए। विडंबना यह है कि ज्यादातर रिश्ते आजकल दिखावटी रह गए हैं। सहनशीलता और एकता खत्म होती जा रही है। रिश्तों में विश्वास जरूरी है,जहां विश्वास होता है, वहीं प्यार पनपता है। बिना विश्वास प्यार की कल्पना नहीं की जा सकती ।
हमारे पूर्वज हमें जीवन और रिश्तों के बारे में एक तरह का खाका या मानसिकता देकर जाते हैं । यह मानसिकता हमारे रिश्तों के खुशहाल होने का एक प्रमुख निर्धारण कारक है । स्थायी परिवर्तन तभी आएगा, जब हम इन वफादारियों के बारे में जागरूक होंगे। जीवन में अपने रिश्ते को ठीक करने के ज्ञान को एकीकृत करने से हमें खुद को ठीक करने की शक्ति और अंतर्दृष्टि मिलेगी और निश्चित रूप से हमारे रिश्ते के कौशल में सुधार होगा। इसके लिए जीवन में सच्चे विश्वास की जरूरत होती है। विश्वास प्राप्त करने का पहला साधन है व्यक्तिगत अनुभव और उससे उभरता भरोसा । यह भरोसा किसी वस्तु या व्यक्ति में भी हो सकता है। विश्वास रूपी गुण को उजागर करने से शारीरिक और आध्यात्मिक शक्तियों की अनुभूति होती है । ये शक्तियां व्यक्ति को अनुशासित और धैर्यवान बनाती हैं।
इन्हीं के बल पर वह इंसान ईश्वरत्व के समीप पहुंचता है। और साथ ही उसके प्रति चिंताएं कम होने लगती हैं और एक पारलौकिक आनंद का अनुभव ज्यादा होने लगता है। संसार में हमारी जो भी यात्रा होती है- काम, धन, पद-प्रतिष्ठा की, उसके केंद्र में आनंद की खोज ही है। लेकिन अगर मार्ग गलत हो तो लक्ष्य कैसे मिल सकता है। उसी तरह ये सारी यात्राएं हालांकि जीवन आनंद की खोज के लिए है, पर यह दौड़ उल्टी दिशा में है। इसलिए आनंद के स्थान पर मिलते हैं असहजता, दुख, उदासी, बेचैनी । मन के निर्मल होने का, उसको निर्मल करने का कोई मार्ग नहीं है। निर्मलता मन के पार जाने की दशा है। शरीर मन और आत्मा- ये तीन परतें हैं हमारे अस्तित्व की । अन्न, जल, कपड़ा और मकान। बड़ी सीमित अवश्यताएं हैं शरीर की । अगर शरीर स्वस्थ हो तो उसकी हम न चिंता करते हैं, न उसे कोई महत्त्व देते हैं।
फिर आता है मन । विचारों और भावनाओं का डेटा संकलित करने वाला यंत्र। यही हमारे समस्त अवसादों, बेचैनियों, और उपद्रवों की जड़ है। मन में हमारे जो भी घटता है, हम उसी के अनुसार काम करते हैं। मन है विचारों की वह भीड़ जो हमने बचपन से आज तक बटोर रखा है। इसमें बहुत सारे विचार एक दूसरे के विरोधी हैं । हम कभी इस विचार के साथ बहते हैं, कभी उस विचार के साथ । इस तरह हम खंड-खंड में जीते हैं । यही विचारों की भीड़ हमें चलाती है, नियंत्रित करती है। जिसका स्वभाव ही मैला होना है, उसे निर्मल करने का कोई तरीका नहीं हो सकता । विचारों से मुक्त मन ही निर्मल मन है, जहां रिश्तों की एक अनमोल यात्रा शुरू होती है । भोलापन नहीं, बल्कि बहुत धैर्य, समझ और आत्मिक ज्ञान के साथ अपने रिश्तों की समस्याओं के मूल कारणों तक जाना होता है। वफादारी से ज्यादा जरूरी है दूसरे को समझने की। इससे संबंध प्रगाढ़ होता है। कड़वाहट का कलुष