
अनारक्षित का मतलब सवर्ण के लिए आरक्षित नहीं। आरक्षित वर्ग का कटऑफ सामान्य के बराबर या अधिक तो आरक्षित कोटे में समायोजन नहीं।
लखनऊ। शीर्ष कोर्ट का 16 मार्च,2021 का निर्णय मेरिट के आधार पर आरक्षित वर्ग का अनारक्षित में समायोजन के सम्बंध में आया था। भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने मण्डल कमीशन से सम्बंधित उच्चतम न्यायालय के निर्णयों को नजरअंदाज कर पिछडेवर्ग के कोटा की हकमारी का आरोप लगाया है।
उन्होंने कहा कि दीपा ईवी के मामले में 21 अप्रैल,2017 के निर्णय के आधार पर उच्चतम कटऑफ मार्क्स/मेरिट के बाद भी ओबीसी,एससी, एसटी को उनके निर्धारित कोटे तक ही सीमित कर संविधान विरुद्ध कार्य किया जा रहा था।उन्होंने उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति जस्टिस एस. रविन्द्र भट और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ के निर्णय के सम्बंध में बताया कि सामान्य श्रेणी का मतलब सामान्य वर्ग की जाति/जनरल कास्ट के लिए आरक्षित नहीं बल्कि अनरिजर्व्ड/ओपन कैटेगरी/अनारक्षित होता है जिसमे कटऑफ मार्क्स/मेरिट के आधार पर किसी भी श्रेणी का अभ्यर्थी स्थान पा सकता है।
उन्होंने मण्डल कमीशन की सिफारिश के हवाले से कहा कि खुली प्रतियोगी परीक्षा में उच्च मेरिट के आधार पर चयनित ओबीसी अभ्यर्थी का समायोजन उसके निर्धारित 27 प्रतिशत कोटे में न कर अनारक्षित कोटा में किया जाना चाहिए।जिस किसी भी अभ्यर्थी की कटऑफ मेरिट/कटऑफ मार्क्स सामान्य वर्ग के बराबर या उससे अधिक हो,का समायोजन उसके कोटे में न कर अनारक्षित में करना चाहिए।उन्होंने कहा कि किसी भी दशा में सामान्य वर्ग व ईडब्ल्यूएस की मेरिट ओबीसी,एससी,एसटी से कम नहीं होनी चाहिए।सामान्य वर्ग से उच्च मेरिटधारी ओबीसी, एससी,एसटी प्रतियोगी का समायोजन उनके लिए आरक्षित कोटा में ही करना पूरी तरह हकमारी व नाइंसाफी है।
श्री निषाद ने कहा कि चयन प्रक्रिया मेरिट की उच्चता के आधार पर की जानी चाहिए।मेरिटधारी ओबीसी का समायोजन 27% में ही करना वर्तमान के लगभग 60% व मण्डल कमीशन के अनुसार 52.10% ओबीसी आबादी को उसके कोटे तक सीमित करना संविधान विरुद्ध है।
निषाद ने बताया कि मण्डल कमीशन के तहत ओबीसी आरक्षण सम्बंधित निर्णयों में भी मेरिट को प्राथमिकता दी गयी है। उच्चतम न्यायालय के संविधान पीठ,पूर्णपीठ के निर्णय के विरुद्ध दो जजों की बेंच व उच्च न्यायालय के एकल जज द्वारा पलटने के निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण व पूर्णतः असंवैधानिक करार दिए जाने का निर्णय 16 मार्च,2021 के आधार पर निष्प्रभावी हो चुका है।ओवरलैपिंग खत्म करने सम्बंधित उच्च न्यायालय प्रयागराज के एकल जज के निर्णय को उच्चतम न्यायालय का मजाक बताया।उन्होंने कहा कि कई प्रतियोगी परीक्षाओं में सामान्य वर्ग का चयन ओबीसी,एससी से कम मेरिट व कटऑफ पर किया गया,जो न्यायसंगत नहीं है।केवल ओबीसी का जाति-प्रमाण पत्र लगाने से चयनित ओबीसी अभ्यर्थियों को उसके निर्धारित कोटे में सीमित करना अनुचित है। उच्चतम न्यायालय के निर्णय में कहा गया है कि यदि ओबीसी अभ्यर्थी कोई अतिरिक्त लाभ(आवेदन शुल्क छूट,उम्र सीमा की छूट,अकादमिक छूट आदि) लेता है,तो उसे ओबीसी आरक्षण कोटे में ही रखा जाएगा।
निषाद ने 16 मार्च,2021 को आये शीर्ष कोर्ट के निर्णय को न्यायसंगत बताया है।मेरिट के आधार पर आरक्षित वर्ग का समायोजन उस वर्ग के लिए आरक्षित कोटे में न कर अनारक्षित में ही करना न्यायसंगत है।