स्त्री: बहुत कुछ पाना शेष अभी…

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लुटती नारी द्वार पर...
लुटती नारी द्वार पर...

स्त्री : बहुत कुछ पाना शेष अभी लड़ी, आगे बढ़ी, पर क्षितिज बहुत दूर। भारी संख्या में महिलाएं किस तरह पुरुषों के द्वारा केवल एक मुखौटे के रूप में या माउथपीस के रूप में प्रयोग में लाई जाती हैं इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

 डॉ. घनश्याम बादल

पहले अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष 1975 के बाद से 8 मार्च स्त्री के ‘पौरुष’ की पहचान का दिन बन गया है. इस दिन सारी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाती है । घर की चारदीवारी से निकलकर विस्तृत कर्म क्षेत्र में उतरने के बाद अब वह अपना धरातल स्वयं बना रही है और विश्व पटल पर छा रही है। आज स्त्री की पहचान किसी पुरुष से नहीं अपितु उसके स्वयं के जज्बे एवं उपलब्धियां से हो रही है। स्त्री: बहुत कुछ पाना शेष अभी…

बेशक, आठ मार्च मर्दों के वर्चस्व वाली दुनिया में कोमलांगी कहे जाने वाली स्त्री की ताकत को पहचानने का दिन है लेकिन स्त्रियों को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि 8 मार्च ने महिलाओं की हालत एकदम बदल दी है। कड़वा सच तो यह है कि जो महिलाएं इन सूचियां में स्थान पाती हैं या सार्वजनिक जीवन में अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल होती हैं, उनमें से अधिकांश किसी बड़े घराने उद्योग या फिर राजनीतिक दल से जुड़ी हुई होती हैं अथवा उनकी पृष्ठभूमि बहुत रईस खानदान से आती है। यदि एक सरसरी निगाह डालें तो स्त्री आज भी वहीं खड़ी नजर आती है जहां बहुत पहले थी। यदि देश में और दुनिया भर में आज भी स्त्री को दोयम माना जा रहा है, उसका वेतन और सम्मान पुरुष के समक्ष नहीं है तो फिर यह विश्व महिला दिवस भी बेमानी हो जाता है।

   यदि भारत की महिलाओं पर एक नजर डालें तो आज भी उन्हें बहुत कम वेतन पर ईंट भट्ठों, खदानों, खेतों और दूसरे स्थानों पर बहुत कम वेतन पर करीब-करीब बंधुआ मज़दूरों के रूप में देखा जा सकता है । इतना ही नहीं, उनका शारीरिक एवं मानसिक उत्पीड़न अभी भी बदस्तूर जारी है। यह समझना मुश्किल नहीं है कि यथार्थ की धरातल पर आम औरत की स्थिति क्या और कैसी है।

हम भारत की महिलाएं एक लंबा और कठिन सफर तय कर चुकी हैं। खेतों से लेकर प्रयोगशालाओं से लेकर संसद तक हर जगह हमने अपनी मेहनत और प्रतिभा से देश को मजबूत बनाया है। आज भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी केवल 14% है जबकि वैश्विक औसत 25% से ऊपर है।देश के ग्रामीण इलाकों से लेकर बड़े शहरों तक हर महिला को बराबरी का सम्मान, सुरक्षा और अवसर मिले। महिलाओं के स्वास्थ्य, पोषण, रोजगार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ठोस कदम उठाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि एक मजबूत और सक्षम नारी शक्ति देश की ताकत बने। 

मणिपुर में एक महिला को नग्न घुमाने का प्रकरण अभी भी मानस पटल से हटा नहीं है। राजस्थान में एक आंगनबाड़ी कार्यकत्री का यौन शोषण बहुत दिनों तक चर्चा में रहा,उत्तरांचल के एक मंत्री पर एक महिला को लंबे समय तक ब्लैकमेल करने एवं उसका मानसिक तथा शारीरिक शोषण करने का प्रकरण भी अखबारों में छाया रहा। केंद्र सरकार के एक स्वर्गीय मंत्री को तो लाई डिटेक्टर तक से गुजरने की हिदायत दी गई और डीएनए टेस्ट करने पर उसे स्त्री को उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करना पड़ा जिससे वह किसी भी संबंध से लंबे समय तक इंकार करते रहे।

    इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि तेज तर्रार व सजग महिलाएं आगे आई हैं लेकिन भारी संख्या में महिलाएं किस तरह पुरुषों के द्वारा केवल एक मुखौटे के रूप में या माउथपीस के रूप में प्रयोग में लाई जाती हैं इससे इनकार नहीं किया जा सकता। साथ ही साथ कैसे उन्हें ‘यूज’ करके अपने राजनीतिक स्वार्थ साधे जाते हैं यह भी अब किसी से छिपा नहीं है। परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है और घड़ी की सुई की तरह समय शिखर से रसातल और रसातल से शिखर तक लाने ले जाने का काम करता रहा है आगे भी करता रहेगा। मुगल काल में हरम की शोभा बनाए जाने वाली या फिर मंदिरों में ‘देवदासी’ अथवा ‘नगरवधू’जैसे नाम देकर स्त्री की आत्मा को उसके शरीर के माध्यम से नोचने खसोटने का कृत्य अब उतना आसान नहीं रह गया है। स्त्री ने इन कृत्यों का पूरे जज्बे के साथ विरोध भी किया है।

    आज की स्त्री संघर्षशील, जुझारू और जज्बे वाली बनकर सामने आई है।  यह अलग बात है कि स्त्री वर्ग में ही ‘लिव इन रिलेशन’ के नाम पर  अपने आप को धोखे में रखने एवं पुरुष के आगे परोसने वाली स्त्रियों की भी कमी नहीं है। आज स्त्री का स्वाभिमान जागा है और सहने या लड़ने के विकल्प में से उसने दूसरा विकल्प चुना है हालांकिइस दूसरे विकल्प पर चलना कोई सरल काम नहीं था क्योंकि छाती पर सवार समाज , प्रथाएं व पुरूष आसानी से उसे उबरने नहीं दे रहे थे । इस षड़यंत्र में नारी जगत का ही एक बड़ा हिस्सा भी डर, अज्ञान या अनजाने में शामिल  हुआ और एक लंबे कालखंड तक यह कुचक्र सफल होता रहा पर समय के साथ स्त्री इस जाल की काट भी सीख गई है।

 स्त्री की उन्नति में सबसे बड़ी भूमिका उसकी शिक्षा व जिजीविषा ने निबाही है तो तकनीक ने भी एक बड़ी भूमिका अदा की है। अब बाहुबल नहीं बल्कि तकनीकी काबिलियत असली ताकत बनकर उभरी है और मांसपेशीय बल पर इतराते पुरूष का वर्चस्व घटा है। तकनीकी युग नारी के लिए यह बड़े काम का सिद्ध हुआ है। उसकी कोमल उंगलियां फर्राटे से कंप्यूटर पर जिस गति से चलती हैं उतनी गति व दक्षता से शायद मर्द की कठोर व लोच रहित उंगलियां नहीं चल पाती और कंप्यूटर के बढ़ते उपयोग व उसके दायरे में आते लगातार विस्तृत होते क्षेत्र ने नारी को नई ताकत दी है।

 तकनीकी कुशलता के चलते आज की स्त्री  बाइक व स्कूटी ही नहीं दौड़ा रहीं हैं बल्कि कार और विमान से होती हुई लड़ाकू जैट तक जा पंहुची हैं और यह उनके लड़ाका होने का सबूत भी है। खेलों में अब वह केवल हल्के फुल्के गेम नहीं खेलती अपितु मुक्केबाजी, कुश्ती से होती हुई सूमो व डब्ल्यू डब्ल्यू ई तथा ग्रीको रोमन कुश्ती, फ्री,स्टाइल,कुश्ती, पर्वतारोहण, भारोत्तलन व एयरडाइविंग तक कर रही है। अमेरिका के बाद यूरोप से होती हुई वह भारतीय सेना के तीनों अंगों में आ चुकी है। बेशक यह नारी शक्ति के उभार का नया दौर है। आज की स्त्री घर बाहर दोनों जगह अपनी छाप छोड़  स्त्री शक्ति का परचम लहरा रही है हालांकि अभी बहुत कुछ पाना शेष है। स्त्री: बहुत कुछ पाना शेष अभी…