पाश्चात्य सभ्यता से रिश्तों में बदलाव

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पाश्चात्य सभ्यता से रिश्तों में बदलाव
पाश्चात्य सभ्यता से रिश्तों में बदलाव
सुनील कुमार महला
सुनील कुमार महला

पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति की ओर बढ़ते कदम, रिश्तों में ला रहे बदलाव। आज व्यक्ति पद-प्रतिष्ठा, पैसे-पदार्थ के पीछे दौड़ता चला जा रहा है जहां संस्कृति-संस्कारों, नैतिकता, आध्यात्मिकता को कोई स्थान नहीं है। पाश्चात्य सभ्यता से रिश्तों में बदलाव

हाल ही में बेंगलुरु के ए.आई. इंजीनियर द्वारा की गई आत्महत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह विडंबना ही है कि आज हम पदार्थवादी होकर पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति का अनुशरण कर रहे हैं और आज हमारे समाज में लगातार सांस्कृतिक बदलाव आ रहे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि हमारी सनातन भारतीय संस्कृति, हमारे सामाजिक और नैतिक मूल्य, हमारे आदर्श, विभिन्न प्रतिमान ; आधुनिकता, शहरीकरण से कहीं आगे हैं। आज व्यक्ति पद-प्रतिष्ठा, पैसे-पदार्थ के पीछे दौड़ता चला जा रहा है जहां संस्कृति-संस्कारों, नैतिकता, आध्यात्मिकता को कोई स्थान नहीं है लेकिन हमें यह बात सदैव अपने जेहन में रखनी चाहिए कि केवल पैसा(धन) और भौतिक उन्नति(पदार्थवादी दृष्टिकोण) ही इंसान को सुखी जीवन जीने के योग्य नहीं बना सकती है।

आज कोई भी संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहते। एकल परिवार की धारणा लगातार बलवती होती चली जा रही है, जहां रिश्ते-नातों को कोई स्थान नहीं है। एकल परिवारों में वह बात नहीं जो संयुक्त परिवार में होती है। मनोवैज्ञानिक पीटर एम. नार्डी यह मानते हैं कि अकेले व्यक्ति को भौतिक, भावनात्मक, मानसिक व आर्थिक सहयोग नहीं मिल पाता। वास्तव में आधुनिक जीवनशैली ने एकल परिवारों को जन्म दिया है और यही कारण है कि आज के इस युग में रिश्तों के प्रति लगातार संवेदनहीनता हमारे समाज में बढ़ती चली जा रही है। आज सोशल नेटवर्किंग साइट्स व्हाट्स एप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब संस्कृति, टीवी, होटल और पब-संस्कृति ने हमारे समाज में रिश्तों में अराजकता के बीज बोये हैं।

कहना ग़लत नहीं होगा कि आज समाज में लगातार बढ़ती नशाखोरी की घटनाएं, आत्महत्याएं, संगीन अपराधों में लगातार हो रहा इजाफा, नस्लभेद, किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, आधुनिक टीवी और मोबाइल संस्कृति, पदार्थवादी दृष्टिकोण, समाज में दरकते पारिवारिक रिश्ते कहीं न कहीं पश्चिमी विचारधारा का प्रदूषण व हमारी विकृत मानसिकता(जैसा कि हम अपनी संस्कृति को लगातार भुलाते चले जा रहे हैं), की देन है। बहरहाल, रिश्ते आपसी सौहार्द, सद्भावना, विश्वास,आदर भावना, ईमानदारी, समर्पण आदि की मांग करते हैं जिनका सामाजिक संरचना को बनाए रखने में बहुत ही महत्वपूर्ण और अहम् स्थान है। हमें यह चाहिए कि हम पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति से बाहर निकल कर पुनः हमारी सनातन भारतीय संस्कृति की ओर लौटें और सत्य, अहिंसा, शिष्टाचार, अध्यात्म व संयम का संदेश देने वाले संस्कारों को अपनायें ताकि हम अपने देश को सपनों का भारत बना सकें और इसे विश्व में उन्नयन के पथ पर अग्रसर कर सकें। पाश्चात्य सभ्यता से रिश्तों में बदलाव