—– आंतरिक शांति से सामाजिक समरसता तक का मार्ग प्रशस्त करता है योग —–
योग मानवता के लिए ऐसा वरदान अथवा उपहार है कि कोई भी इससे वंचित नहीं रहना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को शांति का अधिकार है। प्रत्येक को गहरे प्रेम का अधिकार है और प्रत्येक को स्वस्थ रहने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रेम के सागर (जो कि हम हैं ही) तक पहुँचने का अधिकार है। योग वह है जो व्यक्ति को उच्च चेतना से जोड़ता है। योग आत्मा और परमात्मा को मिलता है। परमात्मा कहीं ऊपर स्वर्गलोक में नहीं बैठे हैं। परमात्मा तो वह सर्वव्यापक परम शक्ति है जो हमारे भीतर गहराई में छिपी हुई है। उस दिव्य ऊर्जा को जागृत करने की कला ही योग है। ‘ईश्वर का निवास मेरे भीतर है (अहम् ब्रह्माऽस्मि)‘ से ‘वासुधैव कुटुंबकम (हम सब एक हैं)’ की यात्रा ही योग है। प्रत्येक के साथ एकता का भाव और प्रत्येक चेहरे से आँसू पोंछ कर उस पर मुस्कान लाने का प्रयास करते रहना – सच्चे अर्थों में यही योग है। इसी को वासुदैव कुटुम्बकम कहते हैं। किसी धर्म विशेष, किसी जाति, लिंग, वर्ग, शैक्षणिक स्तर, आर्थिक स्तर आदि – इन विभिन्न प्रकार के पूर्वाग्रहों ने लोगों के मन को कुंठा से भर दिया है। इन्हीं के कारण समाज में संघर्ष उत्पन्न होते हैं। योग हमें आगे आ कर पूर्वाग्रहों के कारण उत्पन्न संघर्षों का समाधान खोजने में सहायता करता है। अपने आप और सहजता से ही योग हमारे मन को पूर्वाग्रहों से मुक्त करता है। योग सदैव ही विविधता में सामंजस्य को बढ़ाता है। यह विविधता को प्रोत्साहित करता है। वास्तव में ‘योग‘ शब्द का अर्थ ही है ‘जोड़ना’ है।
योग कौशल विकसित करने में मदद करता है। योग के प्रतिपादक, भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद् गीता में कहा है : “योग कर्म में कुशलता है।” योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है, बल्कि यह इस बात का सूचक है कि आप किसी भी परिस्थिति में कितनी कुशलता से संवाद और कार्य कर सकते हैं। सृजनात्मकता, अंतर्ज्ञान, कौशल और बेहतर संचार – ये सभी योग के प्रभाव हैं। योग सदैव विविधता में सामंजस्य को बढ़ावा देता है।आपके भीतर की मौन और शांति सभी कुशलताओं की जननी है। योग पूर्णता की जननी है। कर्म कभी भी पूर्णता की जननी नहीं होती। कर्म से कुशलता नहीं आती है।। कुशलता योग से आती है।किसी व्यक्ति का व्यवहार उसके भीतर के तनाव के स्तर पर निर्भर करता है। योग लोगों में मैत्रीपूर्ण स्वभाव और रुचिकर वातावरण का निर्माण करता है। योग से हमारी तरंगों में सुधार लाता है। शब्दों से भी कहीं अधिक, हम अपनी उपस्थिति से व्यक्त करते हैं। योग हमें तनावमुक्त और चिंता रहित जीवन जीने के उपाय और तकनीकें प्रदान करता है। अपने दैनिक जीवन में आने वाले सभी प्रकार के तनाव और चिंताओं, विषम परिस्थितियों के होते हुए भी हमारे चेहरे पर मुस्कान लाना ही योग का उद्देश्य है।
प्रायः हम अपनी नकारात्मक भावनाओं को लेकर असहाय महसूस करते हैं। हम अपनी नकारात्मक भावनाओं से कैसे निपटें, इस विषय में न तो हमें स्कूल में और न ही घर पर कोई कुछ सिखाता है। यदि हम दुखी होते हैं, तो बस दुखी रहते हैं या समय के साथ ठीक होने की प्रतीक्षा करते हैं। योग में इस मनोस्थिति को बदलने का रहस्य छिपा है। अपनी भावनाओं का शिकार होने अपेक्षा, यह आपको किसी भी समय वैसा अनुभव करने की शक्ति देता है, जैसा आप करना चाहते हो। योग आपको स्वतंत्र कर देता है। योग न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि यह गहरे आध्यात्मिक अनुभवों की ओर भी ले जाता है। इसके आध्यात्मिक लाभों का वर्णन करना कठिन है क्योंकि इन्हें केवल स्वयं अनुभव करके ही जाना जा सकता है। हर व्यक्ति योग से अलग-अलग प्रकार से लाभान्वित होता है। यह आत्मा की गहराई से जुड़ने, आंतरिक शांति पाने और जीवन में संतुलन स्थापित करने का माध्यम बनता है। इसलिए योग को अपनाइए और अपनी मानसिक, भौतिक, आत्मिक तथा आध्यात्मिक सेहत को बेहतर बनाइए।
जब प्राण ऊर्जा कम होती है, तो आत्महत्या की प्रवृत्ति आती है। प्राणायाम और योग की सहायता से आप तुरन्त ही इन प्रवृत्तियों पर नियंत्रण कर सकते हैं। योग हमारी भावनाओं को कोमल और अधिक शांतिमय बनाता है। यह हमारी अभिव्यक्ति और विचारों के स्वरूप में खुलापन लाता है। यही योग के वास्तविक लक्षण हैं।योग का उद्देश्य मात्र शरीर में लचीलापन लाने तक ही सीमित नहीं है। यह सही है कि वह भी योग का ही एक अंग है। इससे शरीर में लचीलापन और मन में विश्वास तथा दृढ़ता बढ़ती हैं। यदि आपके साथ यह सब हो रहा है तो जान लो कि यह योग का उपहार है और आप स्वयं को एक योगी मानें। योग का अर्थ केवल योगासन नहीं है। वे तो वास्तव में योग का एक अंश मात्र हैं। मुख्य भाग स्वयं के बारे में, चेतना के बारे में है। यह एक उच्चकोटि का बौद्धिक अभ्यास है और इसके सूक्ष्म बिंदुओं को समझने के लिए आपका तीक्ष्ण बुद्धि और सजग होना अति आवश्यक है। इसलिए मैं प्रायः योग को ‘चेतना का विज्ञान‘ कहता हूँ।
प्रणायाम क्या है…?
प्राणायाम श्वास पर नियंत्रण रखने की योगिक विधि है। इसमें श्वास को लेने (पूरक), रोकने (कुंभक), और छोड़ने (रेचक) की प्रक्रिया को विशेष तकनीकों के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है।प्राणायाम सिर्फ एक श्वास व्यायाम नहीं, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा के संतुलन की कला है। यह योग के आठ अंगों में से एक प्रमुख अंग है जो व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्तर पर संतुलित करता है।जब मन शांत और स्थिर होता है तो इसमें किसी भी विचार को पूरा करने की शक्ति आ जाती है।
प्राणायाम का मूलतः अर्थ यह है कि प्राण के आयाम में कार्य करना है। प्राण ऊर्जा वह सूक्ष्म, किंतु महत्वपूर्ण शक्ति है जो हमारे अस्तित्व के स्थूल तथा अवचेतन स्तर पर जीवित रहने के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण ऊर्जा है, जिसके बिना यह शरीर नष्ट हो जाएगा। हमारे भीतर यह ‘प्राण’ अर्थात् जीवनी शक्ति ही है जो हमारे मन को पोषित करती है और शरीर को जीवित रखती है।महर्षि पतञ्जलि द्वारा बताए गए योग के आठ अंगों में से एक, चौथे अंग को प्राणायाम कहा गया है और इसका अभ्यास प्रायः प्राणायाम योग में किया जाता है। ऐसा कहा गया है कि अपनी श्वास को नियंत्रित करके आप अपने मन की शक्ति को नियंत्रित कर सकते हैं। ‘प्राणायाम’ शब्द संस्कृत भाषा के दो शब्दों, “प्राण” और “आयाम” से मिल कर बना है जिनका क्रमश: अर्थ है “श्वास” और “विस्तार”। योगिक श्वसन क्रिया के अभ्यास से हम अपनी जीवनी ऊर्जा, अर्थात् प्राण को नियंत्रित कर सकते हैं।
प्राणायाम गहराई से साँस लेने की क्रिया है जो हजारों सालों से भारतीय योग परंपराओं के रूप में चली आ रही है। इसमें श्वास प्रक्रिया को भिन्न भिन्न लम्बाई, आवृतियों तथा अवधियों के लिए विनियमित किया जाता है। इस का उद्देश्य होता है प्राणायाम के अभ्यास से शरीर तथा मन को परस्पर जोड़ना। शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करने के अतिरिक्त प्राणायाम शरीर को प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन संचारित करता है तथा शारीरिक क्रियाओं को प्रभावित करके रोग निदान क्षमता भी बढ़ाता है। किसी भी प्राणायाम चक्र की तीन अवस्थाएँ (तीन भाग) होती हैं:
प्राण क्या है..?
प्राण का श्वास से सम्बंध है, परन्तु प्राण श्वास नहीं है। प्राण एक ऊर्जा है जो शरीर की हजारों सूक्ष्म ऊर्जा नालियों और ऊर्जा केंद्रों, जिन्हें क्रमश: नाड़ियाँ और चक्र कहा जाता है, में निरंतर प्रवाहित हो रही है। यह शरीर के चारों ओर एक आभामंडल बनाता है। इस प्राण शक्ति की मात्रा और गुणवत्ता तथा यह किस ढंग से नाड़ियों और चक्रों में से प्रवाहित हो रही है, हमारे मन की स्थिति का निर्धारण करती है। प्राण की गति और ऊर्जा, जिसे हम अपने भीतर और बाहर, चारों ओर प्रवाहित हो रही ब्रह्मांडीय ऊर्जा भी कहते हैं, हमारे क्रिया कलापों, विचारों तथा विशेष रूप से हमारे साँस लेने के तरीके से प्रभावित होती है।
यदि प्राण का स्तर ऊंचा है और उसका प्रवाह निरंतर,सुचारू और स्थिर है,तो हमारा मन शांत, सकारात्मक और उत्साहपूर्ण बना रहता है। किंतु श्वास के प्रति अनभिज्ञता और ध्यान की कमी है तो इससे नाड़ियों और चक्रों में आंशिक अवरोध उत्पन्न हो सकते हैं। दुर्भाग्यवश, ऐसी अवस्था में प्राण ऊर्जा का प्रवाह झटकेदार और खंडित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप हमारी चिंताएँ, भय, अनिश्चितताएँ, तनाव, द्वंद तथा अन्य नकारात्मक गुण बढ़ जाते हैं। कोई भी समस्या पहले अवचेतन स्तर पर उत्पन्न होती है और बाद में स्थूल स्तर पर दिखाई देती है। कोई भी बीमारी, जिससे आप शारीरिक रूप में ग्रस्त होते हैं, सर्वप्रथम आपके प्राणिक स्तर पर ही दिखाई देती है।
प्राणायाम के प्रकार
प्राचीन भारतीय ऋषि मुनियों को यह ज्ञान था कि गहरी लंबी श्वास लेना सरल है और इनके अभ्यास से शरीर तथा मन को गहन विश्राम दिया जा सकता है। अब जब हमने यह जान लिया है कि प्राणायाम क्या है, तो आइए देखें कि हम विभिन्न प्रकार के प्राणायामों का अभ्यास कर सकते हैं। इन विभिन्न प्रकार की श्वसन तकनीकों का अभ्यास आसानी से, जब हमारा पेट खाली हो, दिन में किसी भी समय पर किया जा सकता है।
आइए हम विभिन्न प्रकार के प्राणायाम और उनके करने की विधि के विषय में एक एक कर के जानें…
भ्रामरी प्राणायाम
क्या आपके मन में विचारों और क्रियाकलापों कि गतिविधि हलचल मचाए रखता है? किसी व्यक्ति ने आपके विषय में कुछ बोला और आप उसे सोच सोच कर दुखी हो जाते हैं? अपने अशांत मन को शांत करने के लिए एक शांत कोना ढूँढो और इस प्राणायाम का अभ्यास करके देखो। यह प्राणायाम उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्तियों के लिए वरदान है। भ्रामरी प्राणायाम, जिसे भिनभिनाने वाली मक्खी की आवाज वाली श्वास भी कहते हैं, एक प्रकार की योगिक श्वास है जो हमारे तंत्रिका तंत्र को शांत करती है और हमें अपने सच्चे स्वरूप से जुड़ने में सहायता करती है। नए लोगों के लिए अनुशंसित प्राणायामों में सम्मिलित इस प्राणायाम का नाम मक्खी की मधुर भिनभिनाहट के पीछे किया गया है और गले के पीछे से आवाज निकाल कर इसका अभ्यास किया जाता है।
भ्रामरी प्राणायाम करने की विधि
भ्रामरी प्राणायाम करनेके लिए हमें किसी हवादार, शांत कोने में आँखें बंद करके सीधे बैठ जाएँ। चेहरे पर एक हल्की मुस्कान बनाए रखें। कुछ समय के लिए अपनी आँखें बंद ही रखें। शरीर में होने वाली संवेदनाओं और भीतरी शांति को अनुभव करते रहें। अपनी तर्जनी उंगली को अपने कानों पर रखें। आपके गाल और कान के बीच में एक उपास्थि (नरम हड्डी) होती है। तर्जनी उंगली को इसी उपास्थि पर रखें। एक गहरी लंबी श्वास लें और जैसे जैसे साँस छोड़ते हैं, मधुमक्खी जैसी तेज भिनभिनाहट वाली ध्वनि निकालते हुए उक्त उपास्थि को धीरे से दबाते रहें। आप उंगली से इसको निरंतर दबा कर रख सकते है अथवा उंगली से उपास्थि को बारी बारी से दबाते और छोड़ते रह सकते हैं। आप धीमी ध्वनि में भी यह प्रक्रिया कर सकते है किंतु श्रेष्ठतर परिणामों के लिए उच्च स्वर वाली ध्वनि निकालना उत्तम विकल्प है। पुनः श्वास लें और यही प्रक्रिया 3 से 4 बार तक दोहराएँ।
भ्रामरी प्राणायाम के लाभ
भ्रामरी प्राणायाम, योग की एक अद्भुत श्वसन तकनीक है जो तनाव, आक्रोश और चिंता जैसी मानसिक अवस्थाओं से तत्काल राहत दिलाने में अत्यंत प्रभावशाली है। इसकी विशेषता यह है कि यह सरल होते हुए भी गहन प्रभाव छोड़ता है। उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह एक वरदान के समान है। भ्रामरी की मधुमक्खी जैसी गूंजती ध्वनि मन को उत्तेजना से मुक्त कर शांति और स्थिरता की ओर ले जाती है। यह प्राणायाम हल्के ज्वर, सिरदर्द और माइग्रेन की स्थिति में भी राहतकारी होता है। नियमित अभ्यास से एकाग्रता, स्मरण शक्ति और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। यही कारण है कि यह विद्यार्थियों और मानसिक कार्य करने वालों के लिए विशेष रूप से उपयोगी माना गया है। भ्रामरी प्राणायाम ध्यान की पूर्व-तैयारी के लिए मन को शांत करने का सर्वोत्तम उपाय है। जब विचारों की गति अधिक होती है या मन अशांत हो, तब भ्रामरी का अभ्यास हमें भीतर की ओर मोड़ता है।
भस्त्रिका प्राणायाम
जब भी हम कोई शारीरिक व्यायाम करते हैं, तो हमारा शरीर अधिक ऑक्सीजन की माँग करता है और उसके लिए यह हृदय को तीव्रता से रक्त संचार करने के लिए संकेत भेजता है। उसके परिणामस्वरूप हमारी हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। परंतु क्या आप जानते हैं कि जब हम भस्त्रिका प्राणायाम करते हैं, तो शारीरिक माँग के बिना भी हम और अधिक मात्रा में ऑक्सीजन पम्प करते हैं। भस्त्रिका प्राणायाम ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें हम तेजी से साँस अंदर लेते हैं और तेजी से ही बाहर छोड़ते हैं, जिससे शरीर में तुरंत ऊर्जा का संचार होने लगता है; इसलिए इस प्राणायाम को “योगिक अग्नि श्वास” भी कहा गया है। भस्त्रिका प्राणायाम, योग की वह शक्तिशाली श्वसन विधि है जो शरीर में प्राण (जीवन ऊर्जा) के प्रवाह को तीव्र कर शरीर, मन और आत्मा को एक नई शक्ति से भर देती है। क्या आप अपनी ऊर्जा में कमी अनुभव कर रहे हैं? भस्त्रिका प्राणायाम (धौंकनी जैसी साँस) के तीन चक्र आपके ऊर्जा स्तर को ऊँचा उठा देंगे! धौंकनी जैसी श्वास, जिसे भस्त्रिका प्राणायाम भी कहा जाता है, एक ऊर्जा बढ़ाने वाली गहन श्वास तकनीक है जो आग भड़काने के लिए दी जाने वाली हवा की निरंतर धारा से मेल खाती है। भस्त्रिका संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है “धौंकनी”, और इस श्वसन क्रिया में फेफड़ों और पेट को बलपूर्वक भरा और खाली किया जाता है। यह शरीर तथा मन की आंतरिक अग्नि को उत्तेजित करता है जो पाचन क्रिया को प्रत्येक स्तर पर स्वस्थ करता है।
भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि
भस्त्रिका प्राणायाम करने के लिए वज्रासन अथवा सुखासन में बैठ जाएँ। (यदि आप वज्रासन में बैठ सकते हैं, तो यह प्राणायाम अधिक प्रभावी रहेगा, क्योंकि आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी रहेगी और डायाफ्राम की गतिविधि सुचारू ढंग से होगी। ) अपने हाथों की मुट्ठियाँ बंद कर के, कोहनियों को मोड़ कर कंधों के पास रख लें। गहरी साँस लेते हुए हाथों को ऊपर ले जाएँ और मुट्ठियाँ खोल दें। अब थोड़ा बलपूर्वक साँस छोड़ते हुए, अपनी भुजाओं को नीचे कंधों तक लाएँ और मुट्ठियाँ पुनः बंद कर लें। इस प्रकार 20 साँसे लें। तत्पश्चात् हथेलियाँ आकाश की ओर खुली, जंघाओं पर रख कर विश्राम करें। कुछ सामान्य साँसे लें। इस प्रक्रिया के दो और चक्र करें।
भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ
भस्त्रिका प्राणायाम शरीर तथा मन को ऊर्जावान करने के लिए उत्तम है। चूँकि इस प्राणायाम को करते समय हम अपने फेफड़ों की पूरी क्षमता का उपयोग कर रहे होते हैं, इसलिए यह फेफड़ों और शरीर से विषैले तत्वों तथा अशुद्धियों को बाहर निकालने में सहायक है। यह साइनस, ब्रोंकाइटिस तथा कुछ अन्य साँस संबंधी समस्याओं के निदान में भी सहायता करता है। इससे सजगता तथा इंद्रियों की ग्रहण क्षमता में सुधार होता है। दोषों और विकृतियों को संतुलित करने में सहायक है।
कपालभाति प्राणायाम
कपालभाति एक योगिक श्वसन प्रक्रिया है जिसका नाम संस्कृत के शब्दों ‘कपाल’, जिसका अर्थ “मस्तक” और ‘भाती’ अर्थात् “चमकना“ से मिल कर बना है। यह योग प्राणायाम सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस प्राणायाम के अनेक लाभों में से एक लाभ यह है कि यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल कर शरीर को शुद्ध करता है तथा ऊर्जा संवाहनियों (नालियों) को साफ करता है। जब कपालभाति प्राणायाम करते हैं तो शरीर से 80% विषैले तत्त्व बाहर जाती सांस के साथ निकल जाते हैं। कपालभाति प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से शरीर के सभी अंग विषैले तत्व से मुक्त हो जाते हैं। किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को उसके चमकते हुए माथे (मस्तक या सिर) से पहचाना जा सकता है। कपालभाति प्राणायाम की उचित व्याख्या है, “चमकने वाला मस्तक”। मस्तक पर तेज या चमक प्राप्त करना तभी संभव है जब आप प्रतिदिन इस प्राणायाम का अभ्यास करें। इसका तात्पर्य यह है कि आपका माथा केवल बाहर से नहीं चमकता परंतु यह प्राणायाम आपकी बुद्धि को भी स्वच्छ व तीक्ष्ण बनाता है। कपालभाती मध्यम से अग्रिम स्तर के योग साधकों के स्तर का प्राणायाम है। यह हमारी रक्त संचार प्रणाली और तंत्रिकाओं को ऊर्जावान बनाता है, फेफड़ा को सशक्त बनाता है तथा पेट के अंगों की सफाई भी करता है।
कपालभाति प्राणायाम करने की विधि
कपालभाति प्राणायाम करने के लिए हमें रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए, आराम से बैठ जाएँ हाथों को आकाश की ओर, आराम से घुटनों पर रखें। एक लंबी गहरी सांस अंदर लसांस छोड़ते हुए अपने पेट को अंदर की ओर खींचे। पेट को इस प्रकार से अंदर खींचे कि वह रीढ़ की हड्डी को छू ले। जितना हो सके उतना ही करें। पेट की मासपेशियों के सिकुड़ने को, पेट पर हाथ रख कर महसूस कर सकते हैं। नाभि को अंदर की ओर खींचे। जैसे ही पेट की मासपेशियों को ढीला छोड़ते हैं , सांस अपने आप ही फेफड़ों में पहुँच जाती है। कपालभाति प्राणायाम के एक क्रम (राउंड) को पूरा करने के लिए 20 सांस छोड़ें। एक राउंड खत्म होने के पश्चात, विश्राम करें और आँखों को बंद कर लें। शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को महसूस करें। कपालभाति प्राणायाम के दो और क्रम (राउंड) को पूरा करें।
कपालभाति प्राणायाम के लाभ
कपालभाति प्राणायाम चयापचय प्रक्रिया को बढ़ाता है और वजन कम करने में मदद करता है। नाड़ियों का शुद्धिकरण करता है। पेट की मासपेशियों को सक्रिय करता है जो कि मधुमेह के रोगियों के लिए अत्यंत लाभदायक है। रक्त परिसंचरण को ठीक करता है और चेहरे पर चमक बढ़ाता है। पाचन क्रिया को अच्छा करता है और शरीर में पोषक तत्वों का संचरण करता है। पेट की चर्बी भी अपने आप कम हो जाती है। मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को ऊर्जान्वित करता है। मन को शांत करता है।
नाड़ी शोधन/अनुलोम विलोम प्राणायाम
क्या आप जिस कार्य को कर रहे होते हो उसमें स्वयं को एकाग्र नहीं कर पाते? तो नाड़ी शोधन प्राणायाम (अनुलोम विलोम प्राणायाम) के नौ चक्र और तदुपरांत दस मिनट तक लघु ध्यान कर के देखें। नाड़ी शोधन प्राणायाम मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्धों में सामंजस्य (संतुलन) स्थापित करके उसे शांत और केंद्रित करता है। अनुलोम विलोम श्वास क्रिया, जिसे प्राय: नाड़ी शोधन के नाम से जाना जाता है, एक शक्तिशाली गहन श्वास क्रिया है जिसके बहुआयामी लाभ हैं। संस्कृत में ‘शोधन’ शब्द का अर्थ है “शुद्धिकरण”, और ‘नाड़ी’ का अर्थ है ‘नाली या प्रवाह’। इसलिए नाड़ी शोधन का मुख्य उद्देश्य शरीर और मन की नाड़ियों का शुद्धिकरण करते हुए समूचे शारीरिक तंत्र को संतुलन प्रदान करना है। यह शरीर की तीनों दोषों को संतुलित करता है और प्रत्येक व्यक्ति के लिए उत्तम व्यायाम है। नाड़ी शोधन केवल एक श्वास प्रक्रिया नहीं, यह आंतरिक शुद्धि और चेतना के संतुलन का प्रभावी माध्यम है। यदि आप अपने दिन की शुरुआत इसे अपनाकर करते हैं, तो निश्चित ही आपका दिन शांत, केंद्रित और ऊर्जावान रहेगा।
नाड़ी शोधन/अनुलोम विलोम प्राणायाम करने की विधि
नाड़ी शोधन/अनुलोम विलोम प्राणायाम करने के लिए हमें अपनी रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए आराम से बैठ जाएँ, कंधों को ढीला छोड़ दें। चेहरे पर एक सौम्य मुस्कान रखें। अपने बायें हाथ को घुटनों पर रखें, हथेलियाँ आसमान की ओर खुली हुई या चिन मुद्रा (अंगूठा और तर्जनी उंगली के पोर आपस में हल्के से स्पर्श करते हुए)। सीधे हाथ की तर्जनी और मध्यमा के पोरों को अपनी दोनो भौहों के बीच रखें, अनामिका और कनिष्ठा को अपने बायीं नासिका और अंगूठे को दायीं नासिका पर रखें। अनामिका और कनिष्ठा को हम बायीं नासिका और अंगूठे को दायीं नासिका को खोलने एवं बंद करने के लिए प्रयोग करेंगे। अपने अंगूठे से दायीं नासिका को दबाएँ और हल्के से बायीं नासिका से श्वास छोड़ें। अब बायीं नासिका से श्वास अन्दर लें और बायीं नासिका को धीरे से अपनी अनामिका और कनिष्ठा से धीरे से दबाएँ। धीरे से दाएँ अंगूठे को दायीं नासिका से हटाते हुए श्वास को दायीं ओर से बाहर छोड़ें। दायीं नासिका से साँस लें और बाएँ से छोड़ें। अब यहाँ आपने नाड़ी शोधन प्राणायाम का एक चक्र पूरा किया। इसी क्रम से बारी बारी नासिकाओं से श्वास लेते और छोड़ते रहें। बारी बारी से दोनों नासिकाओं से ऐसे 9 चक्र पूर्ण करें। हर बार, श्वास छोड़ने के बाद, याद रखें, श्वास को उसी तरफ की नासिका से अंदर लेना है जिस तरफ की नासिका से आपने श्वास को छोड़ा है। इस पूरे दौरान अपनी आँखें बंद रखें और लंबी, गहरी, बिना ज्यादा जोर दिए या बिना अधिक प्रयास के आरामदायक साँस लेते रहें।
नाड़ी शोधन/अनुलोम विलोम प्राणायाम के लाभ
नाड़ी शोधन प्राणायाम से मन को विश्राम मिलता है और इसे ध्यान की अवस्था में जाने के लिए तैयार करता है। प्रतिदिन इसका कुछ क्षणों के लिए अभ्यास करने से मन के शांत, प्रसन्न और स्थिर रहने में मदद मिलती है। संचित तनाव और थकान से मुक्ति में मदद करता है। हमारे मन की प्रवृत्ति है, अतीत के दुखों पर ग्लानि करना या सुखों की स्तुति में लगे रहना, अथवा भविष्य के लिए चिंतित रहना। नाड़ी शोधन प्राणायाम मन को वर्तमान क्षण में लाने में मदद करता है। हमारे संचार और श्वसन प्रणाली की ज्यादातर समस्याओं के लिए उपचारात्मक तौर पर काम करता है। शरीर और मन में संचित तनाव को प्रभावी रूप से मुक्त करता है और विश्राम में सहायक है। दिमाग के दाएँ और बाएँ गोलार्ध में तालमेल बैठाता है, जो हमारे व्यक्तित्व के तर्क और भावनात्मक पक्षों से परस्पर संबंधित हैं। सूक्ष्म ऊर्जा की वाहिकाएँ–नाडियों के संतुलन और शुद्धिकरण में मदद करता है, फलस्वरूप प्राण ऊर्जा (जीवन ऊर्जा) का पूरे शरीर में प्रवाह सुनिश्चित करता है। शरीर के तापमान को बरकरार रखता है।नाड़ी शोधन प्राणायाम केवल एक श्वसन तकनीक नहीं, बल्कि चेतना को विश्राम, संतुलन और शांति में स्थिर करने की दिव्य प्रक्रिया है। यह प्राणायाम ध्यान की अवस्था में सहज रूप से प्रविष्ट कराने में सहायक होता है। जब भी हमारा मन भूतकाल की गलियों या भविष्य की आशंकाओं में उलझता है, नाड़ी शोधन उसे वर्तमान क्षण में टिकाए रखने का प्रशिक्षण देता है।नाड़ी शोधन वह योगिक अभ्यास है, जो श्वास के माध्यम से विचारों की हलचल को शांत करता है, जीवन में ताजगी और स्थिरता लाता है। यह शरीर, मन और आत्मा को जोड़ने वाला सेतु है – और यही तो योग का असली अर्थ है।
प्राणायाम के सामान्य लाभ
शरीर में प्राण ऊर्जा की मात्रा एवं गुणवत्ता, दोनों में सुधार होता है जिससे शरीर के ऊर्जा स्तर में वृद्धि होती है। अवरोधित नाड़ियों और चक्रों को खोलता है जिससे हमारी आभा में विस्तार तथा आत्मा का स्तर ऊपर उठता है। व्यक्ति को ऊर्जावान, उत्साही, शांत और सकारात्मक बनाता है। ऐसी मानसिक अवस्था तथा मानसिक शक्ति बढ़ने से हमें सही निर्णय लेने में सहायता मिलती है तथा चुनौतियों और विपरीत परिस्थितियों का सामना करने हेतु बल मिलता है और हम अधिक प्रसन्न रहते हैं। शरीर, मन तथा आत्मा में अनुकूलतम सामंजस्य स्थापित होता है जो हमें शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर सशक्त करता है। यह मन में स्पष्टता और शरीर में स्वास्थ्य लाता है। योग,विशेष रूप से प्राणायाम, हमारे भीतर स्थित प्राण ऊर्जा – जीवन की मूलभूत शक्ति – को न केवल सक्रिय करता है, बल्कि उसकी गुणवत्ता और मात्रा में भी आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि करता है। यही ऊर्जा हमारे शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्पष्टता और आत्मिक चेतना की आधारशिला है।प्राण ऊर्जा वह सूक्ष्म शक्ति है जो जीवन को केवल जीना नहीं, बल्कि जागरूकता से जीना सिखाती है। योग और प्राणायाम के अभ्यास से यह शक्ति भीतर जागती है और जीवन को स्वास्थ्य, संतुलन और संतुष्टि से भर देती है।