आस्था का महाकुम्भ

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कुम्भ की सफलता में संतों और श्रद्धालुओं की महत्वपूर्ण भूमिका-योगी
कुम्भ की सफलता में संतों और श्रद्धालुओं की महत्वपूर्ण भूमिका-योगी
राजू यादव
राजू यादव

विश्व के सबसे बड़े धार्मिक और मानवीय आयोजन महाकुम्भ मेला को सिर्फ जमीन से ही नहीं बल्कि अंतरिक्ष से भी कैप्चर किया जा रहा है। इंटरनेशनल स्पेस सेंटर (आईएसएस) ने अंतरिक्ष से महाकुम्भ की आश्चर्यचकित कर देने वाली तस्वीरें कैद की हैं। इन तस्वीरों में महाकुंभ मेले का अद्भुत नजारा देखने को मिला। इसमें गंगा नदी के तट पर दुनिया का सबसे बड़ा मानव समागम रौशनी से जगमगा रहा है। महाकुम्भ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जिसमें लाखों श्रद्धालु गंगा नदी में डुबकी लगाकर आध्यात्मिक शांति प्राप्त करते हैं। 10 फरवरी तक महाकुम्भ में स्नानार्थियों की संख्या 45 करोड़ के पार गई है। करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु संगम स्नान कर इस सुखद और धार्मिक अनुभूति को महसूस कर सकें हैं तो वहीं यहां से आ रही तस्वीरों को देखकर पूरी दुनिया विस्मित है।

तीर्थराज प्रयागराज में संगम तट पर सनातन आस्था और संस्कृति के महापर्व महाकुम्भ का आयोजन हो रहा है। इस महाकुम्भ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकता का महाकुम्भ करार दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी विभिन्न मंचों से इस महाकुम्भ को सामाजिक समरसता का सबसे बड़ा समागम बता चुके हैं और इसे चरितार्थ करते हुए उन्होंने इस बार विभिन्न वर्गों एवं संप्रदायों से आने वाले साधु संतों का सम्मान व अभिनंदन कर एक नई पहल और उदाहरण प्रस्तुत किया है। प्रयागराज का महाकुम्भ विश्व का सबसे बड़ा मानवीय और आध्यात्मिक सम्मेलन है। यूनेस्को ने महाकुम्भ को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है। महाकुम्भ भारत की सांस्कृतिक विविधता में समायी हुई एकता और समता के मूल्यों का सबसे बड़ा प्रतीक है। यहां सब एक समान हैं।महाकुम्भ सनातन संस्कृति की अविरल धारा का अद्वितीय प्रतीक है। महाकुम्भ सनातन जीवन-दर्शन और समरसता पर आधारित अखंड परंपरा को दर्शाता है।

नागों के राजा भगवान वासुकी की मदद से समुद्र मंथन के समय निकले ‘अमृत कुंभ’ का महापर्व इस बार प्रयागराज इसी महीने से शुरू होने जा रहा है। प्रयागराज में वैसे तो हर वर्ष एक महीने का माघमेला होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु और साधु-संत आते हैं। पर हर छठे वर्ष अर्धकुंभ और बारहवें वर्ष पर कुंभ में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी की छटा अद्वितीय होती है। प्रयागराज उन चार शहरों में है, जहां हर 12 साल पर कुंभ होता है। कुंभ का संदर्भ वेद-पुराणों में मिलता है। कुंभ का इतिहास सदियों पुराना है। देशभर के शासक धार्मिक पर्व में दान देने प्रयाग आते थे। संगम किनारे स्थित पातालपुरी मंदिर में एक सिक्का दान करना हजार सिक्कों के दान के बराबर पुण्य वाला माना जाता है। प्रयाग में स्नान करने मात्र से ही सारे पाप धुल जाते हैं। महाकुम्भ आस्था और आध्यात्मिकता की त्रिवेणी के साथ-साथ संस्कृतियों, परंपराओं और भाषाओं का एक जीवंत मिश्रण है। यह एक “लघु भारत” को प्रदर्शित करता है, जहां पर करोड़ों धर्मावलंबी बिना किसी औपचारिक निमंत्रण के एक साथ आते हैं।2025 का महाकुंभ मेला प्रयागराज में आध्यात्मिकता, संस्कृति और इतिहास का एक अनूठा मिश्रण होगा। 13 जनवरी से 26 फरवरी तक, तीर्थयात्री न केवल आध्यात्मिक अनुष्ठानों की एक श्रृंखला में शामिल होंगे, बल्कि एक ऐसे सफ़र पर भी निकलेंगे जो भौतिक, सांस्कृतिक और यहाँ तक कि आध्यात्मिक सीमाओं से परे होगा।

प्रयागराज महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं में नई पीढ़ी की नारी शक्ति की संख्या में इस बार अधिक बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है।नारी शक्ति और युवा चेतना से सनातन के मेल का साक्षी बन रहा है प्रयागराज महाकुम्भ। संन्यासिनी अखाड़े में 246 मातृशक्ति ने ली संन्यास दीक्षा, सभी वर्गों से आई नारी शक्ति को मिली सहभागिता। अखाड़ों के महामंडलेश्वर जैसे उच्चस्थ पदों पर नारी शक्ति को मिली जगह। नारी शक्ति की युवा पीढ़ी पर भी चढ़ा सनातन का रंग। महाकुम्भ में इन धर्म गुरुओं के शिविर में सनातन से जुड़ने वालो की कतारें लगी रही। जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी, श्री पंच दशनाम आवाहन अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अरुण गिरी, और वैष्णव संतो के धर्माचार्यों में सनातन से जुड़ने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक रही। सभी प्रमुख अखाड़ों में इस बार सात हजार से अधिक महिलाओं ने धर्माचार्यों से गुरु दीक्षा ली और सनातन की सेवा का संकल्प लिया।

कुंभ का संदर्भ पुराणों में मिलता है। कहते हैं, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कुंभ लेकर प्रकट हुए, तो देव और दानव खुशी से झूम उठे। होड़ मच गई कि कौन पहले अमृत प्राप्त करेगा। भगवान विष्णु ने अमृत को दानवों से बचाने के लिए देवराज इंद्र के पुत्र जयंत को संकेत दिया कि वह कुम्भ लेकर चले जाएं। सबकी नजर बचाकर जयंत अमृत कुंभ लेकर देवलोक की ओर उड़ चले, लेकिन दानवों के गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें देख लिया। देखते ही देखते देव-दानवों में युद्ध शुरू हो गया। अंत में देवता अमृत कुंभ बचाए रखने में तो सफल रहे, लेकिन इस आकाशीय संघर्ष के दौरान देवलोक में 8 और पृथ्वी लोक में 4 स्थानों पर अमृत की बूंदें छलक पड़ीं। पृथ्वी पर अमृत की ये बूंदें प्रयाग और हरिद्वार में प्रवाहमान गंगा नदी, उज्जैन की क्षिप्रा और नासिक की गोदावरी नदी में गिरीं… बस तभी से चारों स्थानों में अमृत कुंभ जागृत करने की परंपरा शुरू हो गई। यह देव-दानव संघर्ष 12 ‘मानवीय वर्ष’ तक चलता रहा। कहते हैं इसीलिए इन नदी तटों पर हर 12 साल पर कुंभ होता है।

एकता, समता, समरसता का उदाहरण है महाकुम्भ

प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी ने महाकुम्भ को एकता का महाकुम्भ बनाने का जो संकल्प लिया है वो अब तक पूरी तरह सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। करोड़ों लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ त्रिवेणी संगम में डुबकी लगा रहे हैं। श्रद्धालु, समस्त साधु,संन्यासियों का आशीर्वाद ले रहे हैं, मंदिरों में दर्शन कर अन्नक्षेत्र में एक ही पंगत में बैठ कर भण्डारों में खाना खा रहे हैं। महाकुम्भ भारत की सांस्कृतिक विविधता में समायी हुई एकता और समता के मूल्यों का सबसे बड़ा प्रदर्शन स्थल है, जिसे दुनिया भर से आये पर्यटक देखकर आश्चर्यचकित हैं। कैसे अलग-अलग भाषायी, रहन-सहन, रीति-रिवाज को मानने वाले एकता के सूत्र में बंधे संगम में स्नान करने चले आते हैं। साधु-संन्यासियों के अखाड़े हों या तीर्थराज के मंदिर और घाट, बिना रोक टोक श्रद्धालु दर्शन,पूजन करने जा रहे हैं। संगम क्षेत्र में चल रहे अनेक अन्न भण्डार सभी भक्तों, श्रद्धालुओं के लिए दिनरात खुले हैं जहां सभी लोंग एक साथ पंगत में बैठ कर भोजन ग्रहण कर रहे हैं। महाकुम्भ मेले में भारत कि विविधता इस तरह समरस हो जाती है कि उनमें किसी तरह का भेद कर पाना संभव नहीं है।

महाकुम्भ में अनवरत जारी है सनातन संस्कृति की परंपरा

महाकुम्भ में सनातन परंपरा को मनाने वाले शैव, शाक्त, वैष्णव, उदासीन, नाथ, कबीरपंथी, रैदासी से लेकर भारशिव, अघोरी, कपालिक सभी पंथ और संप्रदायों के साधु,संत एक साथ मिलकर अपने-अपने रीति-रिवाजों से पूजन-अर्चन और गंगा स्नान कर रहे हैं। संगम तट पर लाखों की संख्या में कल्पवास करने वाले श्रद्धालु देश के कोने-कोने से आए हैं। अलग-अलग जाति,वर्ग,भाषा को बोलने वाले साथ मिलकर महाकुम्भ की परंपराओं का पालन कर रहे हैं। महाकुम्भ में अमीर, गरीब, व्यापारी, अधिकारी सभी तरह के भेदभाव भुलाकर एक साथ एक भाव में संगम में डुबकी लगा रहे हैं। महाकुम्भ और मां गंगा, नर, नारी, किन्नर, शहरी, ग्रामीण, गुजराती, राजस्थानी, कश्मीरी, मलयाली किसी में भेद नहीं करती। अनादि काल से सनातन संस्कृति की समता,एकता कि ये परंपरा प्रयागराज में संगम तट पर महाकुम्भ में अनवरत चलती आ रही है।

महाकुम्भ का एक ही संदेश, एकता से ही अखंड रहेगा देश। देश और दुनिया से आ रहे श्रद्धाल संगम में स्नान करने के बाद अभिभूत नजर आ रहे। महाकुम्भ के माध्यम से विदेशी श्रद्धालु भी सनातन संस्कृति को समझने का कर रहे प्रयास। महाकुम्भ एकता और अखंडता का दे रहा संदेश ,इसी संदेश के साथ हम सभी जुड़ रहे हैं। तीर्थराज प्रयागराज में हो रहा महाकुम्भ 2025 न सिर्फ सांस्कृतिक और सामाजिक बल्कि आर्थिक पुनरोत्थान की दिशा में भी महत्वपूर्ण होने जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी ने भी हाल ही में इसकी ओर संकेत किया था। उन्होंने कहा था कि महाकुम्भ से दो लाख करोड़ का व्यापार होगा। देश और प्रयागराज के अर्थ से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो 45 दिन तक चलने वाले इस महाआयोजन से उत्तर प्रदेश की जीडीपी में एक प्रतिशत या उससे भी ज्यादा की वृद्धि हो सकती है। यही नहीं, जीएसटी कलेक्शन में भी भारी उछाल देखने को मिलेगा। दुनिया भर से आ रहे श्रद्धालुओं द्वारा किए जा रहे खर्च से मांग बढ़ेगी, उत्पादन बढ़ेगा, रोजगार में वृद्धि होगी और छोटे से लेकर बड़े व्यापारियों की जेब में पैसा आएगा। यही नहीं सरकार को भी इस आयोजन से बड़े पैमाने पर आय होगी, जिसका उपयोग प्रदेश के इंफ्रास्ट्रक्चर में होगा। कुल मिलाकर यह आयोजन मुख्यमंत्री योगी के वन ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी के संकल्प को साकार करने की दिशा में एक सकारात्मक पहल साबित होगा।

 महाकुंभ 2025 के दिव्य-भव्य आयोजन के लिए संकल्पबद्ध प्रदेश की योगी सरकार ने इस महाआयोजन को विश्वस्तर पर लोकप्रिय कर दिया है। पूरी दुनिया से लोग प्रयागराज महाकुम्भ की अनुभूति करने आ रहे हैं। नॉर्वे के पूर्व जलवायु एवं पर्यावरण मंत्री एरिक सोलहेम महाकुम्भ के इस महाआयोजन को ‘अद्वितीय और जीवन में एक बार मिलने वाला अनुभव’ बताया। उन्होंने इसे न केवल विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन बल्कि इतिहास का सबसे विशाल मानव समागम भी करार दिया। एरिक सोलहैम ने इस भव्य आयोजन की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि मानव इतिहास में इससे बड़ा कोई आयोजन कभी नहीं हुआ, न अमेरिका में, न यूरोप में, न चीन में और न ही विश्व के किसी अन्य कोने में।महाकुम्भ के जरिए दुनिया देख रही श्रद्धा, भक्ति और अनुशासन का अद्वितीय संगम।

अब मैं आदर्श हिन्दू विकास के एक ऐसे प्रमाण की बात करने जा रहा हूं, जो इस पूरे आयोजन की नींव में ही है। इस पूरे आयोजन की नींव में मेला दिखता है,लेकिन उसका मूल छिपा है ज्ञान को साझा करने में। प्रयाग में प्रतिवर्ष लगने वाले मेले में मूल रूप से दो तरह से ज्ञान का आदान-प्रदान होता है। पहला तो स्पष्ट तौर पर दिखता है कि शंकराचार्य,अखाड़े,साधु-संन्यासी,संत-महात्मा,हिन्दू संस्कृति से जुड़े आचार्य यहां जुटते हैं और धर्म-समाज के सामने आ रही चुनौतियों के समाधान पर विमर्श करते हैं, लेकिन दूसरा स्पष्ट तौर पर नहीं दिखता है। जो नहीं दिखता वह पहले से कम महत्वपूर्ण नहीं है। वह है कल्पवास करने आए लोगों का अपने जीवन-व्यवहार में अर्जित ज्ञान को दूसरे कल्पवासी के साथ साझा करना।घर-परिवार से लेकर समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली समस्या का समाधान एक महीने के कल्पवास में हर कल्पवासी को किसी दूसरे कल्पवासी के साथ गंगा नहाते,प्रवचन सुनते,रामलीला देखते अवश्य ध्यान में आ जाता है। आवश्यक नहीं है कि समस्या बताकर ही उसका समाधान पूछा या बताया जाए। बिना समस्या और समाधान बताए ही ज्ञान साझा हो जाता है।

मान्यता है कि सृष्टि की रचना पूर्ण होने के बाद ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर पहला यज्ञ प्रयाग की भूमि पर ही किया था। भगवान राम अपने भ्राता लक्ष्मण और देवी सीता के साथ महर्षि भारद्वाज के आश्रम में आए थे। विश्व के प्रथम गुरुकुल के तौर पर महर्षि भारद्वाज के आश्रम की प्रतिष्ठा है। ऋषि भारद्वाज के साथ ऋषि दुर्वासा और ऋषि पन्ना की ज्ञानस्थली के तौर पर भी प्रयाग को पहचाना जाता है और यही वजह है कि, आज भी ज्ञान की भूमि के तौर पर प्रयागराज की प्रतिष्ठा है। प्रतिवर्ष लगने वाला माघमेला और 12 वर्ष पर लगने वाला कुम्भ मेला उसी ज्ञान प्राप्ति, ज्ञान शोधन के प्रति हमें तैयार करता है। इसीलिए मैं कहता हूं कि, प्रयागवासियों को कुंभ में गंगा पूजन करते ज्ञान प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए, यही उनका मूल है, यही उनकी प्रतिष्ठा का आधार है। यही सम्पूर्ण विश्व से माघ महीने में प्रयाग खिंचे चले आने की वजह है और इसीलिए मैं कह रहा हूं कि, उत्तर प्रदेश का 76वां जिला प्रयागराज कुंभ मेला क्षेत्र आदर्श हिन्दू विकास का प्रतीक है। 

दुनिया का सबसे बड़ा मेला कुम्भ देखने जब विश्व उमड़ता है तो उसे प्रयागराज एक विश्वस्तरीय आधुनिक शहर के तौर पर दिखता है जो विकास के किसी भी पैमाने पर शीर्ष कतार में खड़ा दिखता है और संगम की रेती पर बने कुम्भ क्षेत्र में हो रहे दिव्य कुम्भ, भव्य कुम्भ में हर ओर हिन्दू धर्म ध्वजा शीर्ष पर पूरी भव्यता के साथ फहरा रही है। यह विशुद्ध रूप से हिन्दू, सनातन को मानने वालों को समागम है। इस समागम से बारंबार पूछे जाने वाले एक प्रश्न का उत्तर किसी को भी आसानी से मिल सकता है कि हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना में दूसरे मतावलम्बियों का क्या स्थान होगा। इस कठिन से लगने वाले प्रश्व का उत्तर भी इसी संगम की रेत पर लगे दिव्य कुम्भ, भव्य कुम्भ में बिना पूछे मिल जा रहा है। संगम की रेती पर लगने वाले माघ मेले और कुम्भ का आधार हिन्दू धर्म को मानने वालों के एक महीने तक घर-परिवार छोड़कर तम्बुओं में रहते, तीन पहर गंगा स्नान करते श्रीचरणों में मोक्ष की परिकल्पना के साथ प्रयागराज के कुम्भ क्षेत्र में कल्पवास करने आते हैं और उसी के इर्द-गिर्द विश्व भर में हिन्दू धर्म की ध्वजा फहराने वाले साधु संत अखाड़े इसी महीने भर के दौरान हिन्दू संस्कार, संस्कृति के उत्थान पर विमर्श के लिए जुटते हैं लेकिन कितने लोगों को पता होगा कि इसी दौरान दुनिया भर से अलग-अलग मत-पंथ के लोग अपना प्रचार करने इस धरती पर जुटते हैं और बाइबल,कुरान से लेकर हर पंथ की सामग्री बांटते मिल जाएंगे।

दिल्ली, मुम्बई में हर सुख सुविधा के साथ जीवन जीते हिन्दुओं को असहिष्णु बताने वाले बुद्धिजीवियों को प्रयागराज के कुम्भ में जरूर आना चाहिए। यहां आकर उन्हें शायद समझ आ सके कि हिन्दू को सेक्युलरिज्म का पाठ पढ़ाने की कोशिश करते कितनी बड़ी गलती उनसे होती है। जानबूझकर गलती करने वालों को तो शायद ही कुछ फर्क पड़ेगा, लेकिन अनजाने में हिन्दू को धर्मान्ध, असहिष्णु बताने वालों को शायद आत्मग्लानि हो जाए। हिन्दू धर्म के इस इतने बड़े मेले में आजतक कभी किसी दूसरे मत का प्रचार करने वालों के साथ कभी, किसी तरह का दुर्व्यवहार नहीं हुआ। इसी कुम्भ को दिव्य, भव्य बनाने के लिए केंद्र की मोदी और योगी सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। दुनिया भर से आए लोगों को विकास के साथ भारतीय संस्कृति का अद्भुत दर्शन हो रहा है।

महाकुंभ भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का सबसे भव्य पर्व है। हर 12 साल में आयोजित होने वाला यह महोत्सव केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था और आध्यात्मिकता का एक विशाल संगम है।महाकुंभ की तिथियां बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा की राशियों में स्थिति के अनुसार तय होती हैं। इन ग्रहों की स्थिति नदियों में अमृत समान ऊर्जा का संचार करती है।महाकुंभ का आयोजन हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में बारी-बारी से होता है। हर स्थान पर यह आयोजन हर 12 साल में होता है, जो एक पूर्ण चक्र को पूरा करता है।पद्मपुराण में कहा गया है कि जैसे ग्रहों में सूर्य और नक्षत्रों में चंद्रमा सबसे ऊंचा स्थान रखते हैं, वैसे ही समस्त तीर्थों में प्रयागराज सर्वश्रेष्ठ है। यह वही पुण्यभूमि है जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है। प्रयागराज न केवल एक तीर्थक्षेत्र है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, धर्म और आध्यात्मिकता का केंद्र बिंदु है।प्रयाग महाकुम्भ एक ऐसा दुर्लभ आध्यात्मिक अवसर है, जहां स्नान, साधु-संतों का सान्निध्य और धार्मिक अनुष्ठान आत्मा को शुद्ध करने का मार्ग प्रशस्त करता है। इस महातीर्थ में कुछ आवश्यक नियमों और अनुशासन का पालन करना चाहिए। जिससे तीर्थ यात्रा आध्यात्मिक रूप से फलदायी हो।नि:संदेह, हर तीर्थ यात्री के मन में श्रद्धा और भक्ति का भाव होना चाहिए। श्रद्धाविहीन यात्रा का न तो धार्मिक लाभ मिलता है, न ही आत्मिक। तीर्थस्थल आत्मा को शुद्ध करने और परमात्मा के निकट जाने का माध्यम हैं। अधिकांश सांसारिक लोग तीर्थों में अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए जाते हैं।

पक्ष-विपक्ष के तमाम नेता,बड़े उद्योगपति के साथ बॉलीवुड हस्तियों ने लगाई आस्था की डुबकी

प्रयागराज में कुंभ को इस बार बेहद भव्य और दिव्य तरीके से आयोजित किया गया। जिसे लेकर लोगों में क्रेज भी दिखाई दे रहे हैं। करोड़ों श्रद्धालुओं के बीच देश के कई वीवीआईपी ने भी कुंभ में स्नान किया, इनमें देश की महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद समेत कई बड़े नेता शामिल रहे। इनके अलावा देश के कई राज्यों के मुखियाओं ने भी महाकुंभ में डुबकी लगाई, कुछ अपने कैबिनेट के साथ आए तो कुछ ने अपने परिवार के साथ संगम में डुबकी लगाई। महाकुंभ के साक्षी बनने वालों में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम भी शामिल हैं। योगी ने दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक पूरी कैबिनेट और सहयोगी दलों के नेताओं के साथ संगम में डुबकी लगाई। उनके अलावा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय,हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने संगम में डुबकी लगाई। सत्ता पक्ष के अलावा विपक्षी दलों के भी कई बड़े नेताओं ने संगम में डुबकी लगाई। इनमें सबसे पहला नाम सपा अध्यक्ष और कन्नौज से सांसद अखिलेश यादव का नाम शामिल है। अखिलेश यादव ने अपने बेटे अर्जुन के साथ संगम में डुबकी लगाई तो उनके कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार भी अपनी पत्नी और बेटी के साथ संगम में डुबकी लगाने पहुंचे। सचिन पायलट और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने अपने बेटे के साथ संगम मे स्नान किया।सियासी हस्तियों के अलावा देश के कई बड़े उद्योगपति और कला जगत से जुड़े लोग भी महाकुंभ के गवाह बने। रिलायंस इंडस्ट्री के मालिक मुकेश अंबानी अपने दोनों बेटे आकाश और अनंत अंबानी के साथ छोटी बहू राधिका,अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी भी पत्नी प्रीति अडानी के साथ,इंफोसिस ग्रुप के संस्थापक नारायण मूर्ति की पत्नी और राज्यसभा सदस्य सुधा मूर्ति और अनिल अंबानी ने भी महाकुंभ में स्नान किया। महाकुंभ पहुंचने वालों में बॉलीवुड और क्रिकेट भी पीछे नहीं रहे. टीम इंडिया के पूर्व क्रिकेटर अनिल कुंबले, सुरेश रैना और मयंक अग्रवाल ने संगम में डुबकी लगाई। वहीं बॉलीवुड अभिनेता सुनील शेट्टी, राजकुमार राव और उनकी पत्नी चंद्रलेखा, विक्की कौशल, नीना गुप्ता, एकता कपूर, ईशा कोप्पिकर, जया प्रदा, अनुपम खेर, हेमा मालिनी, रेमो डिसूजा, मिलिंद सोमन, ईशा गुप्ता, सुनील ग्रोवर, गुरू रंधावा, विद्युत जामवाली, आशुतोष राणा, दिनेश लाल निरहुआ और साउथ फिल्मों की एक्ट्रेस श्रीनिधि शेट्टी ने महाकुंभ में डुबकी लगाई।

सूर्योदय से पूर्व ही कल्पवासी गंगा/संगम स्नान शुरू कर देते हैं और दिन भर कथा-प्रवचन के बाद सारी रात मेला क्षेत्र में किसी न किसी पंडाल में रामलीला/कृष्णलीला या कोई और कार्यक्रम चलता ही रहता है। देश के दूर-दराज के गांवों से आए परिवार सुबह से लेकर रात तक गंगा की रेत पर बसे इस अस्थाई शहर को जी लेना चाहते हैं लेकिन न्यूनतम ऐसे मामले आते हैं जब कहीं से किसी अपराध के मामले सामने आते हैं। मेला क्षेत्र में पुलिस-प्रशासन का जबरदस्त बंदोबस्त होता है, लेकिन उसकी भूमिका मेले में आई भीड़ी प्रबंधन, सुगम स्नान-ध्यान की व्यवस्था के लिए ही होती है।श्रद्धालु मानते हैं कि महाकुंभ के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आस्था का महाकुम्भ