मेरे अंतःकरण की आवाज़…

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मेरे अंतःकरण की आवाज़...
मेरे अंतःकरण की आवाज़...
राजू यादव

शरीर मेरा मिट्टी का सांसे मेरी उधार हैं,घमंड करूं किस बात का यहां सब किराएदार हैं। वक्त दिखाई नहीं देता,पर बहुत कुछ दिखा देता है। मेरे अंतःकरण की आवाज़… हम जीवन में जो कुछ करते हैं कितना सही और कितना गलत करते हैं,यह कोई जान पाए या न जान पाए,हम जरूर जानते हैं कि आखिर हमारी वास्तविकता क्या है। हमारी अंतरात्मा हर बात की गवाही देती है। इसलिए परिस्थितियां कैसी भी हो, हमें तटस्थ भाव से अपनी अंतरात्मा की आवाज सुननी चाहिए। किसी निर्णायक स्थिति पर पहुंचकर अपना कदम निर्धारित करना चाहिए। इसके चलते हम अंतर्मन में असीम आनन्द की दिव्य अनुभूति कर सकते हैं। अन्यथा आकुल-व्याकुल मन के चलते गलत और गलत हो जाता है। सही भी सही रूप में जमाने के सामने नहीं आ पाता।परिणामस्वरूप हमारा चित्त अशांत हो उठता है और एक अजीब प्रकार की बेचैनी मन में घर कर जाती है। यही नहीं हम अपनी प्रामाणिकता भी खो बैठते हैं।

जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि हम ऐसी समस्याओं में उलझकर रह जाते हैं जो किसी विषय पर हमारे एकतरफा विचार के चलते उत्पन्न होती है। यों हर कोई हर किसी को पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं कर सकता, लेकिन प्रयास यह रहना चाहिए कि हमारी अंतरात्मा यह गवाही दे कि हम अपनी जगह एकदम सही हैं। निश्चित रूप से ऐसा होने पर हमारे आत्मबल में वृद्धि होगी,जिसके चलते हम बड़ी से बड़ी उलझनों से पार पा सकते हैं। अन्यथा मानसिक तनाव की अधिकता के कारण साधारण समस्या को सुलझाने की दिशा में भी हम असमर्थ हो सकते हैं। जिसकी वजह से मानसिक और शारीरिक व्याधियां भी घर कर सकती है। इसलिए बेहतर यही है कि हम अनिर्णय की स्थिति में अपने अंतस की आवाज के अनुरूप कदम उठाएं। मेरे अंतःकरण की आवाज़…

किसी समस्या का लंबे समय तक समस्या बने रहना,मूल समस्या को और भी अधिक उलझा कर रख देता है। अनेक अवसरों पर ऐसी स्थिति की अति जिंदगी से हाथ धोने का कारण भी बन जाती है। जब हम किसी विषय को लेकर निर्णायक स्थिति तक नहीं पहुंच पाते, दिल और दिमाग में एक अजीब-सा धर्मसंकट उत्पन्न हो जाता है। ऐसे में अंतरात्मा की आवाज ही हमारा मार्गदर्शन कर सकती है। जटिल समस्याओं के दौर में अपनों का साथ बहुत संबल देता है, लेकिन इसके चलते केवल सहानुभूति मिल सकती है,निर्णय पर तो हमें ही पहुंचना होता है। इन हालात में अंतरात्मा की आवाज हमारा पथ प्रदर्शित करती है, जिसके चलते अंतर्मन में वैचारिक दृढ़ता का भाव जागृत होता है और मन को काफी सुकून मिलता है। नीति और व्यवहार की समझ आम जनमानस में स्वाभाविक रूप से होती है। तकनीकी विषयों को छोड़कर अन्य सभी व्यावहारिक मुद्दों में अंतरात्मा की आवाज दूध का दूध और पानी का पानी करने में पूर्ण रूप से सक्षम होती है।

वास्तव में जिंदगी में आने वाली समस्याओं का समाधान कहीं न कहीं होता ही है। जरूरत महज इस बात की होती है कि ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए हम किसी उचित निष्कर्ष पर पहुंच सकें। इसके लिए कहीं और भटकने की आवश्यकता नहीं है। हमारे अपने जीवन की हर एक समस्या का समाधान हमारे भीतर ही है। अंतरात्मा की आवाज विपरीत परिस्थितियों में भी हमें अकेला नहीं छोड़ती। बस हमारी अंतर्दृष्टि जागृत रहनी चाहिए, जो गलत को गलत और सही को सही करार दे सके। फिर हमें केवल उसका अनुकरण करने की दिशा में ही कदम बढ़ाना है। निश्चित रूप से जब ऐसी मानसिकता बन जाती है तो मन निराकुल हो जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि फिर जीवन में जो कुछ घटित होता है, वह पूर्ण रूप से सकारात्मक होता है।

जब हमारा मन अपनी आत्मा से अलग होकर दूसरी वस्तुओं में अपनी संतुष्टि व सुख खोजने लगता है तो उन वस्तुओं में हमें सुख व संतुष्टि क्षणिक मिलती है इसके बाद फिर दु:ख ही दु:ख दिखाई देते हैं। हमारे पास खूब पैसा हो जाए हमें सम्मान भी मिल जाए लेकिन हमारे अंदर वसा हुआ दु:ख दूर नहीं होता है। इसका कारण यही है कि सुख खोजने की हमारी दिशा गलत है। अपने मन की इसी गलत दिशा के कारण हमारे अंदर दु:ख स्थाई हो जाता है,लेकिन सुख के लिए हम बाहर भटकते रहते हैं। हमारा यह दु:ख हमारे मन की गलत दिशा का परिणाम है। हम जहां पर सुखों को खोज रहे हैं वहां पर सुख न होकर सुख हमारे अंदर ही है। केवल हमारी मन की दिशा से हमारा आत्मसंतुलन बिगड़ा हुआ है इसी संतुलन को संभालने के लिए हम घमंड की प्रक्रिया को अपनाकर दूसरों को अपनी तुलना से हराकर उनके पीछे अपना चेहरा छुपाते हैं।

जीवन में अनावश्यक रूप से उत्पन्न होने वाली राग द्वेष की भावना का शमन होने लगता है। एक प्रकार से व्यक्ति अजातशत्रु की श्रेणी में आ जाता है। ऐसा होने पर जीवन में अनुकूल परिस्थितियों का स्वतः ही सृजन होने लगता है। जिसकी वजह से हमारी मानसिक और शारीरिक श्रम शक्ति में अभूतपूर्व वृद्धि होने लगती है। फिर हमारे लिए कुछ भी असंभव नहीं होता। इस स्थिति तक पहुंचने के लिए अंतरात्मा की आवाज पर विश्वास एक आवश्यक शर्त है। आवश्यकता केवल इस बात की रहती है कि हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनने और समझने की दिशा में गंभीर रहें। इस आवाज को सुनने के लिए किसी विशेष प्रकार के ज्ञान या कौशल की कोई आवश्यकता नहीं होती। साधारण व्यक्ति भी अपने भीतर की आवाज को सुन सकता है। जब हम आत्म की आवाज के अनुरूप किसी दिशा में कोई कदम उठाते हैं, तब हमारे आस-पास का संपूर्ण परिवेश हमें हमारे वांछित लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होने लगता है और सकारात्मक परिस्थितियों का सृजन करता है। इसकी वजह से बड़ी से बड़ी बाधा को पार करना सहज,सरल हो जाता है। अनेक अवसर पर अपने भीतर से निकली आवाज की अनसुनी हमें गंभीर परिस्थितियों की ओर धकेल देती है।

जब हम अपनी आवाज के उलट किसी क्रिया/प्रतिक्रिया को मूर्त रूप देते हैं, तब निश्चित रूप से अपनी मानसिक और शारीरिक क्षमता का उपयोग नहीं कर पाते। तमाम तरह की आशंकाओं के बादल हमारे मनोमस्तिष्क पर मंडराने लगते हैं। इसकी वजह से नकारात्मक परिणाम ही हमारे सम्मुख आते हैं। इसलिए बेहतर यही है कि अपने भीतर से निकली आवाज को नजरअंदाज न करें। एक प्रकार से यही निराकुल जिंदगी जीने का एकमात्र मार्ग है। भटक गए हम उन राहों में, जहां मंजिल का ठिकाना न था।ले गई जिंदगी उन राहों में, जहां हमें जाना ना था। कुछ किस्मत की मेहरबानी, कुछ हमारा कसूर था। हमने खो दिया सब कुछ वहां, जहां हमें कुछ पाना न था। मेरे अंतःकरण की आवाज़…