आर्थिकी को बल देती मन की बात

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आर्थिकी को बल देती मन की बात
आर्थिकी को बल देती मन की बात

डॉ.वेदप्रकाश

मन की बात ने पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति के कला-कौशल,उत्पाद एवं क्षेत्रीय विशेषताओं आदि को नए आयाम दिए हैं। अब इससे लोकल भी ग्लोबल होते जा रहे हैं। मन की बात कार्यक्रम के 115 प्रसारण पूरे हो चुके हैं। अब यह कार्यक्रम जन संवाद का लोकप्रिय पटल बन चुका है। मन की बात कार्यक्रम की लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज यह भारत की 22 भाषाओं व 29 बोलियों के साथ-साथ लगभग 11 विदेशी भाषाओं में भी प्रसारित हो रहा है। आम व्यक्ति की स्थिति, उसके विचार एवं उसकी उपलब्धियां मन की बात को आकार देती हैं। सामान्य व्यक्ति के जीवन पर विविध आयामी प्रभाव इसकी व्यापकता को निरंतर बढ़ा रहा है। प्रत्येक महीने के अंतिम रविवार के दिन विभिन्न आयु एवं कार्य व्यवसायों के लोग इस कार्यक्रम का इंतजार करते हैं। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट रोहतक के 2023 के एक सर्वे के अनुसार 100 करोड़ से अधिक लोग मन की बात को सुन चुके हैं और कार्यक्रम के प्रत्येक प्रसारण को कम से कम 23 करोड़ लोग जरूर सुनते हैं। नागरिक किसी भी समाज एवं राष्ट्र के विकास की मूल धुरी होते हैं। आज मन की बात शोध एवं व्यापक चर्चा का विषय बन चुकी है। क्योंकि यह आरंभ से ही भिन्न-भिन्न रूपों में मानस निर्माण करते हुए राष्ट्र निर्माण की ओर अग्रसर है। आर्थिकी को बल देती मन की बात

   मन की बात आर्थिकी को भी बल दे रही है। कृषि, संस्कृति, पर्यटन, तीर्थाटन, योग, आयुर्वेद,हस्तकौशल, मोटे अनाज, ऑर्गेनिक खेती आदि अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जिसमें प्रतिदिन अनेक नए-नए स्टार्टअप खड़े हो रहे हैं। वोकल फार लोकल का मंत्र व्यापक हो रहा है। सुदूर क्षेत्र में बने छोटे-छोटे उत्पाद आज वैश्विक हो रहे हैं। कला कौशल से जुड़े हुए अनेक लोग जो हाशिए पर थे, मन की बात में उनकी चर्चा होते ही वे वैश्विक होते जा रहे हैं। जन माध्यम रेडियो के जरिए मन की बात से पीएम मुद्रा,पीएम स्वनिधि,सुकन्या समृद्धि, जनधन खाते आदि आर्थिक बदलावों से जुड़े कार्यक्रम एवं अनेक योजनाओं की जानकारी मिलने के कारण उन्हें प्रोत्साहन मिल रहा है। एसबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी जिस किसी योजना का जिक्र मन की बात में करते हैं उस योजना का गूगल सर्च बढ़ जाता है और वह सोशल मीडिया पर तेजी से फैलता है।

03 अक्टूबर 2014 के मन की बात के पहले ही प्रसारण में प्रधानमंत्री ने खादी का आवाह्न किया- हम जब महात्मा गांधी की बात करते हैं तो खादी की बात बहुत स्वाभाविक ध्यान में आती है। आपके परिवार में अनेक प्रकार के वस्त्र होंगे, अनेक प्रकार के फैब्रिक होंगे, अनेक कंपनियों के प्रोडक्ट्स होंगे, क्या उसमें एक  खादी का नहीं हो सकता। इसी प्रकार सितंबर 2015 के प्रसारण में उन्होंने कहा- एक समय था- खादी फॉर नेशन। क्या समय का तकाजा नहीं है की खादी फार फैशन बने। आंकड़ों की बात करें तो वित्त वर्ष 2013-14 में खादी की बिक्री 31,154 करोड़ थी। वहीं यह वित्त वर्ष  2023-24 में लगभग 5 गुना बढ़कर 1. 55 लाख करोड़ पहुंच चुकी है। आंकड़े बताते हैं कि इससे ग्रामीण क्षेत्र की आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है। ग्रामीण इलाकों में 10.7 लाख नए रोजगार पैदा हुए हैं। इसी प्रकार सुकन्या समृद्धि योजना का मन की बात में जिक्र होने से इसके प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ा। परिणाम स्वरुप इस योजना में लगभग 4 करोड़ खाते खुल चुके हैं। इन खातों में लाखों करोड़ रुपए जमा है, जिससे ढांचागत और मूलभूत सुविधाएं तैयार की जा रही हैं।

   रेहड़ी-पटरी और छोटे कार्य व्यवसाय से जुड़े हुए लोगों के लिए सरकारी योजनाएं तो होती हैं, लेकिन उन तक जानकारी नहीं पहुंच पाती। फरवरी 2020 के प्रसारण में प्रधानमंत्री ने पीएम सम्मान निधि योजना का जिक्र किया। इसका परिणाम यह हुआ कि अब लगभग 66 लाख रेहड़ी-पटरी वाले इस योजना के माध्यम से लोन का लाभ उठा चुके हैं। एक समय था जब हमारे हस्त कला- कौशल से जुड़े कारीगर लकड़ी- मिट्टी आदि के स्वदेशी खिलौने बनाकर अपनी आजीविका चलाते थे लेकिन भूमंडलीकरण, औद्योगिक क्रांति और मशीनीकरण ने उनके रोजगार छीन लिए। परिणामत: विश्व खिलौना उद्योग का बड़ा बाजार चीन के पास चला गया। कुछ वर्ष पहले तक अकेले भारत चीन से लगभग 20 हजार करोड़ के खिलौने आयात करता था। मन की बात में स्वदेशी का विचार एवं आत्मनिर्भरता की संकल्पना पर विस्तार से बात हुई, जिससे मानस बदला, स्वदेशी की मांग तेजी से बढ़ी। भारत में खिलौनों का घरेलू बाजार अब लगभग 124.73 अरब रुपए का हो गया है। साथ ही भारत से खिलौनों के निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में 16.81 अरब के खिलौने निर्यात होते थे, जो वर्ष 2022-23 में बढ़कर 27.08 अरब डालर हो गया है। कार्य व्यवसाय को सरल बनाने के लिए सरकार अनेक प्रयास करती है लेकिन जब प्रधानमंत्री मन की बात में ईज ऑफ डूइंग को बहुत सरल ढंग से समझाते हैं तो उद्योग एवं व्यवसाय से जुड़े छोटे-बड़े सभी लोग उससे जुड़कर अधिकाधिक उत्पादन, निर्यात एवं विदेशी बाजार तक पहुंच रहे हैं। आज छोटे बड़े लगभग सभी व्यवसायी डिजिटल तकनीक से जुड़ रहे हैं। देश में 100 से ज्यादा यूनिकॉर्न बन चुके हैं तो वहीं 58000 से ज्यादा स्टार्टअप की संख्या हो चुकी है।

     मन की बात ने आयुर्वेद की राष्ट्रीय और वैश्विक स्वीकार्यता को बढ़ाया है। प्रधानमंत्री मन की बात के अनेक कार्यक्रमों में आयुर्वेद के फायदे बताते हैं। विभिन्न औषधियां जो भारत में उपलब्ध हैं उनकी जानकारी देते हैं। परिणाम स्वरूप आज वर्ष 2013-14 की तुलना में आयुर्वेद का बाजार लगभग आठ गुना बढ़कर 3.20 हजार करोड़ तक पहुंच चुका है। आयुष मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में 53 हजार से अधिक लघु और मझौली इकाइयां आयुर्वेदिक दवाओं के उत्पादन में लगी हैं। इस क्षेत्र में 900 से अधिक स्टार्टअप भी खुल चुके हैं। विश्व के अनेक देशों में आयुर्वेदिक दवाओं का निर्यात हो रहा है। जुलाई 2023 के एक समाचार के अनुसार देश के अकेले सौ जिले लगभग 84 फीसद निर्यात कर रहे हैं। बुनियादी और ढांचागत सुविधाओं में आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं। मन की बात के विभिन्न प्रसारणों में इन विषयों पर विस्तार से चर्चा होती है। मोटे अनाज एवं आर्गेनिक उत्पादों के महत्व एवं उपलब्धता की चर्चा मन की बात के अनेक प्रसारणों में हुई है। परिणाम स्वरूप मोटे अनाजों की राष्ट्रीय और वैश्विक मांग निरंतर बढ़ रही है। दूर दराज क्षेत्रों में उगाए जाने वाले मक्का, बाजरा, ज्वार, मंडवा आदि की मांग अब निरंतर बढ़ रही है।

कश्मीर से कन्याकुमारी और अरुणाचल से गुजरात तक छोटे बड़े हजारों स्वयं सहायता समूह अपने क्षेत्रीय अथवा घरेलू उत्पादों को राष्ट्रीय और वैश्विक पटल पर न केवल प्रसारित कर रहे हैं अपितु धीरे-धीरे एक बड़ा कार्य- व्यवसाय भी खड़ा हो चुका है। सुदूर गांव- अंचलों में घरेलू महिलाएं व अनपढ लोग भी छोटे-छोटे उद्योगों से आजीविका तो कमा ही रहे हैं दूसरे लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। मन की बात के अनेक प्रसारणों में प्रधानमंत्री ऐसे स्वयं सहायता समूहों से जुड़े हुए लोगों से जब बात करते हैं, उनके आचार-पापड़ आदि की चर्चा करते हैं तो उन्हें प्रोत्साहन मिलने के साथ-साथ अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिलती है। मन की बात के पहले प्रसारण में जब प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत अभियान का आवाह्न किया, तब वह केवल स्वच्छता के प्रति जागरूकता था। लेकिन यह मन की बात की ताकत ही है कि आज स्वच्छता के क्षेत्र में भी हजारों स्टार्टअप चल रहे हैं। प्रधानमंत्री मन की बात में जब किसी पर्यटन स्थल अथवा तीर्थ स्थान के बारे में चर्चा करते हैं अथवा वहां के अपने अनुभवों को साझा करते हैं तो देखते ही देखते वह स्थान पर्यटन एवं तीर्थाटन का केंद्र बन जाता है। इससे वहां के लोगों को रोजगार तो मिलता ही है वह स्थान अथवा उसकी विशेषता से भी सब परिचित हो रहे हैं।

     भारतवर्ष पर्व-उत्सवों का देश है। मन की बात के सभी प्रसारणों में प्रधानमंत्री आने वाले महीने के पर्व- उत्सवों की चर्चा अवश्य करते हैं। उनमें प्रयोग की जाने वाली सामग्री और उससे जुड़े छोटे-छोटे कार्य-व्यवसायों की भी व्यापक चर्चा होती है। परिणामस्वरूप घरेलू सामान की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। हाल ही के मन की बात में दिपावली की चर्चा हुई। सर्वविदित है कि दिपावली के अवसर पर दीपक एवं सजावट के सामान की आवश्यकता पड़ती है। इससे उस कार्यक्षेत्र में लोगों को रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। नीलसन इंडिया ताजा रिपोर्ट के अनुसार इस बार त्योहारी सीजन में 12 लाख करोड़ रुपए की खरीदारी की उम्मीद है। इससे घरेलू मांग को प्रोत्साहन मिलेगा। घरेलू उत्पादों से चलते हुए अर्थव्यवस्था का पहिया छोटे बड़े उद्योगों की ओर बढ़ता है। जिससे स्थानीय, प्रादेशिक राष्ट्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था का ताना-बाना आकार लेता है। मन की बात आर्थिकी के ताने-बाने को बल प्रदान कर रही है। आर्थिकी को बल देती मन की बात