नासा ने जताई पराली जलाने और वायु प्रदूषण पर चिंता..!

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नासा ने जताई पराली जलाने और वायु प्रदूषण पर चिंता..!
नासा ने जताई पराली जलाने और वायु प्रदूषण पर चिंता..!

सुनील कुमार महला


इन दिनों दिल्ली समेत भारत के अनेक छोटे-बड़े शहर वायु प्रदूषण की जबरदस्त जद में हैं। सच तो यह है कि देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में तो इन दिनों वायु प्रदूषण अपना कहर बरपा रहा है। दिल्ली तो दिल्ली पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश समेत देश के अनेक राज्य भी इन दिनों प्रदूषण के कहर का लगातार सामना कर रहे हैं। इस संबंध में हाल ही में अमेरिकी एजेंसी नासा ने सैटेलाइट के जरिए अंतरिक्ष से दिल्ली के खतरनाक प्रदूषण और पंजाब और हरियाणा में भीषण आग की तस्वीरें भी शेयर की हैं। एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) लगातार बढ़ रहा है और जहरीली हवा में लोगों का सांस लेना भी दूभर हो गया है।प्रदूषण का स्तर इस कदर बढ़ गया है कि सड़कों पर चीजें दिख नहीं रहीं, एक्सीडेंट्स को बढ़ावा मिल रहा है और लोगों की आंखें जल रही हैं, अस्थमा पीड़ित लोगों को विशेष रूप से सांस लेने में दिक्कत हो रही है और अजीब सी घुटन महसूस होने लगी है। लोग वायु प्रदूषण के कारण बीमार पड़ रहे हैं। नासा ने जताई पराली जलाने और वायु प्रदूषण पर चिंता..!

 दिल्ली एनसीआर क्षेत्र की बात करें तो हाल ही में ओखला दिल्ली, पंजाबी बाग, आनंद विहार का एक्यूआई पांच सौ से भी ऊपर पहुंच गया। आईटीआई शाहदरा  दिल्ली, श्रीनिवासपुरी दिल्ली, नोएडा सेक्टर 62 में स्थिति बेहद ही गंभीर व संवेदनशील बताई जा रही है। इन दिनों मौसम में भी काफी बदलाव आया है और दिन में भी स्मॉग छाया रहता है और इधर मौसम में बदलाव के कारण सूरज की रोशनी भी काफी कम है। गौरतलब है कि तेज हवाओं के बाद भी वायु गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में ही बनी हुई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार, हाल ही में दिल्ली का एक्यूआइ 418 दर्ज हुआ। यह देश में सबसे ज्यादा था। बिहार का हाजीपुर दूसरे स्थान पर था, जहां का एक्यूआइ 417 रिकॉर्ड किया गया। सीपीसीबी के मुताबिक दिल्ली के 36 निगरानी स्टेशनों में से 34 ने वायु गुणवत्ता को ‘गंभीर’ श्रेणी में बताया है।

प्रदूषण तो प्रदूषण, कोहरा भी है और इनके बीच विशेषकर वाहन चालकों को फूंक-फूंक कर अपने वाहन चलाने पड़ रहे हैं। ट्रेनें व अन्य साधन भी कोहरे, प्रदूषण के कारण काफी लेट चल रही हैं। दरअसल, स्मॉग/कोहरे के कारण विजिबिलिटी कम हुई है। वाहनों द्वारा वायु व ध्वनि प्रदूषण के अलावा पराली जलाने की समस्या और भी बड़ी है। पराली जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड और मीथेन जैसे अनेक गैसीय प्रदूषकों के साथ-साथ पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 10 और पीएम 2.5 ) का एक महत्वपूर्ण स्रोत है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाता है। बताया गया कि 63 मीट्रिक टन पराली जलाने से 3.4 मीट्रिक टन CO, 0.1 मीट्रिक टन NO x , 91 मीट्रिक टन CO 2 , 0.6 मीट्रिक टन CH 4 निकलता है।और 1.2 मीट्रिक टन पीएम वायुमंडल में छोड़ा जाता है। हमारे देश में स्थिति और भी विकट है क्योंकि यहां चावल-गेहूं की गहन रोटेशन प्रणाली है जिससे बड़ी मात्रा में पराली उत्पन्न होती है। पराली जलाने की अवधि हमारे यहां अक्टूबर, नवम्बर और दिसम्बर तक चलती है. इधर यही समय कोहरे व धुंध का भी होता है। कोहरे/धुंध के साथ वायु प्रदूषक मिलने से ही स्मॉग की स्थिति बनती है। किसान श्रम बचाने के लिए अक्सर पराली को खेतों में ही जला देते हैं। इससे जहां वायु प्रदूषण होता है, वहीं कई बार इससे आगजनी की घटनाएं भी जन्म लेतीं हैं। मिट्टी की उर्वरता पर भी पराली जलाने से व्यापक असर पड़ता है, खेतों में अनेक लाभदायक जीव-जंतु भी पराली जलाने से मर जाते हैं।

 कहना ग़लत नहीं होगा कि वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभाव त्वचा और आंखों में जलन से लेकर गंभीर न्यूरोलॉजिकल, हृदय और श्वसन रोग, अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों की क्षमता में कमी, वातस्फीति, कैंसर आदि तक होते हैं। उच्च प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से मृत्यु दर में भी वृद्धि होती है। वायु प्रदूषण के कारण धरती के तापमान पर भी असर पड़ रहा है और ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि हो रही है। इधर, हाल फिलहाल जब यह आलेख लिखा जा रहा है तब बाकू, अज़रबैजान में 11 से 22 नवंबर 2024 तक 29 वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन भी आयोजित किया जा रहा है।कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज यानी कि सीओपी ने जलवायु आंदोलन के लिए वैश्विक मील के पत्थर स्थापित किए हैं और अनेक मानक भी निर्धारित किए हैं और कार्बन उत्सर्जन को कम करने, वैश्विक ऊर्जा संक्रमण को गति देने और देशों को जलवायु मुद्दों के लिए अनुकूलन और लचीलापन बनाने में मदद करने समेत अनेक कदम उठाए हैं। सच तो यह है कि जलवायु संकट से निपटने के लिए निजी क्षेत्र, नागरिक समाज, उद्योग और व्यक्तियों को संगठित करने के साथ-साथ सरकारों को एक साथ लाने में सीओपी बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। अतः हाल फिलहाल हमारी सरकारों को समय रहते यह चाहिए कि हम जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण पर एक सकारात्मक सोच के साथ काम करें और कार्बन उत्सर्जन को कम करें।

विकास बहुत जरूरी है लेकिन विकास के साथ हम सभी को पर्यावरण संरक्षण की तरफ भी अपना ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। हमें विभिन्न ऊर्जा स्त्रोतों के समतापूर्ण परिवर्तन का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में काम करने होंगे। ऊर्जा के नये स्त्रोतों को तलाशना होगा। तकनीकी प्रगति करनी होगी। वित्त का भी इस संबंध में उचित और माकूल प्रबंधन करना होगा। वायु प्रदूषण या किसी भी प्रदूषण से निपटने के लिए सामूहिक कदम उठाने होंगे क्योंकि यह समस्या किसी व्यक्ति विशेष, समाज और सरकार विशेष की ही नहीं है। प्रदूषण को रोकने के लिए हमें जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी। नासा ने जताई पराली जलाने और वायु प्रदूषण पर चिंता..!