मुख्य सचिव का आदेश जेल मुख्यालय अफसरों के ठेंगे पर..! चहेते बाबुओ को एक के बजाय दो अनुभागों की सौंपी जिम्मेदारी। तेजतर्रार छवि के बाबुओं को सौंपे गए निष्क्रिय प्रभार। नए महानिदेशक पुलिस/महानिरीक्षक कारागार से बाबुओं की जगी उम्मीदें। मुख्य सचिव का आदेश नहीं मानता मुख्यालय
लखनऊ। मुख्य सचिव का आदेश जेल मुख्यालय अफसरों के लिए कोई मायने नहीं रखता है। कारागार विभाग में इनके आदेश को जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है। कारागार मुख्यालय में लंबे समय से जमे बाबुओं के पटल परिवर्तन ही नहीं किया जाता है। ऐसा तब किया जा रहा है जब मुख्य सचिव का स्पष्ट निर्देश है तीन साल पूरा कर चुके बाबुओं का पटल परिवर्तन किया जाए। मुख्यालय के अफसर ने इस आदेश के विपरीत लंबे समय से एक पटल पर जमे चहेते बाबुओं को कमाऊ और तेजतर्रार छवि वाले बाबुओं को निष्क्रिय पटल पर तैनात कर रखा है। मामले को लेकर मुख्यालय के बाबुओं में तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर मुख्यालय के अफसर इस गंभीर मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से बच रहे है।
मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र के निर्देश पर अपर मुख्य सचिव देवेश चतुर्वेदी ने वर्ष 2022 में एक आदेश जारी किया। प्रदेश के समस्त विभागाध्यक्षों को जारी आदेश में कहा गया कि समूह ग के कर्मियो का तीन वर्ष के उपरांत पटल परिवर्तन किया जाए। इसके साथ ही क्षेत्र (फील्ड) में तैनात/कार्यरत कर्मियों का क्षेत्र परिवर्तन तीन वर्ष के उपरांत प्रतिवर्ष 30 जून तक अनिवार्य रूप से कर दिया जाए। मुख्य सचिव के इस आदेश की कारागार विभाग में जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है।
रबड़ स्टैप की तरह इस्तेमाल हो रहे प्रशासनिक अधिकारी
जेल मुख्यालय के आला अफसर कमाई की खातिर बाबुओं को रबड़ स्टैंप की तरह इस्तेमाल कर रहे है। अनुभवहीन सीमा त्रिपाठी को गोपनीय अनुभाग के साथ अधिष्ठान एक और तीन की जिम्मेदारी दी गई है। इसी प्रकार अर्चना का जनसूचना और उद्योग का प्रभार, संजय श्रीवास्तव, प्रशांत कुमार समेत एक अन्य को गोपनीय का प्रभार दिया गया है। एक एक बाबू को दो दो महत्वपूर्ण अनुभागों की जिम्मेदारी सौंपे जाने ने मुख्यालय अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कारागार मुख्यालय में बाबू संवर्ग के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी, प्रधान सहायकों की तैनाती में जमकर पक्षपात किया जा रहा है। चहेते भ्रष्टाचारी एक बाबू को दो अनुभाग के प्रभार सौंप दिए गए है। सूत्रों के मुताबिक बीते दिनों लंबे समय से गोपनीय का प्रभार संभाल रहे विनोद कुमार सिंह को हटाकर निर्माण में भेजा गया था। हाल ही में बगैर किसी गलती नजारत में तैनात राजेश कुमार को हटाकर यह अनुभाग विनोद कुमार सिंह को सौंप दिया गया। नजारत से हटे राजेश कुमार को प्रशिक्षन (सुपरविजन) की जिम्मेदारी दी गई है। इसी प्रकार आधुनिकीकरण अनुभाग की जिम्मेदारी पिछले करीब चार साल से शांतनु वशिष्ठ के जिम्मे है। इन चारों अनुभागों में प्रतिवर्ष करोड़ों का बजट आता है। इसी प्रकार बाबू अनिल कुमार वर्मा लंबे समय से डिप्टी जेलर संवर्ग में जमे है। यह तो बानगी है इसी प्रकार कई बाबुओं को कमाऊ अनुभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
ब्रॉड सीट में गड़बड़ी करने वालों पर नहीं हुई कोई कार्यवाही
बीते दिनों विभाग में प्रोन्नति के लिए तैयार की गई ब्रॉड सीट में गड़बड़ी का खुलासा विभाग के संयुक्त सचिव शिवगोपाल मिश्र ने किया। उन्होंने पत्र लिखकर गड़बड़ी करने वाले बाबूओ को हटाने के साथ विभागीय कार्यवाही करने का निर्देश दिया। इस निर्देश के बाद मामले की दो स्तर पर जांच कराई गई। जांच में जांच अधिकारी ने प्रशासनिक अधिकारी अनिल कुमार वर्मा, संजय श्रीवास्तव, प्रशांत समेत चार बाबुओं को दोषी ठहराया। दोषी ठहराए जाने के बाद जेल मुख्यालय के अफसरों ने कार्यवाही करने के बजाए शासन को गुमराह करके सभी दोषियों को बचा लिया। यह अभी भी उन अनुभागों में तैनात है जहां गड़बड़ी की थी।
वहीं दूसरी ओर मुख्यालय में तेजतर्रार छवि के लिए चर्चित नजारत के राजेश कुमार को प्रशिक्षण (सुपरविजन) का प्रभार दिया गया है। इनके पास न तो कोई स्टाफ है और न ही इस अनुभाग का कोई कार्यालय है। इसी प्रकार राजेश कुमार मिश्र, कमल कुमार कन्नौजिया और श्रीराम को मानवाधिकार, मानव संपदा, डाक जैसे निष्क्रिय अनुभागों में तैनात किया गया है। हकीकत यह है कि मुख्यालय में भ्रष्टाचारी बाबुओं को कमाऊ और तेजतर्रार छवि के बाबुओं को निष्क्रिय पटल पर रखा गया है। उधर इस संबंध में जब डीजी पुलिस/आईजी जेल पीवी रामाशास्त्री से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा पीआरओ से बात कर लें। पीआरओ अंकित ने तो कई प्रयासों के बाद भी फोन नहीं उठाया। मुख्य सचिव का आदेश नहीं मानता मुख्यालय