
अजीत सिंह
जो अधिक और सर्वोच्च की लालसा मन में रखकर आगे बढ़ने की सोचते रहते हैं, अंत में उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है. एक युवक ने एक संत से कहा महाराज, मैं जीवन में सर्वोच्च शिखर पाना चाहता हूं. लेकिन इसके लिए मैं निम्न स्तर से शुरुआत नहीं करना चाहता. क्या आप मुझे कोई ऐसा रास्ता बता सकते हैं जो मुझे सीधा सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा दे.
संत बोले अवश्य बताऊंगा पहले तुम आश्रम के बगीचे से सबसे सुंदर गुलाब का फूल लाकर मुझे दो. लेकिन एक शर्त है जिस गुलाब को तुम पीछे छोड़ जाओगे उसे पलटकर नहीं तोड़ोगे. युवक यह आसान सी शर्त मानकर बगीचे में चला गया वहां एक से एक सुंदर गुलाब खिले थे जब भी वह एक गुलाब तोड़ने के लिए आगे बढ़ता, उसे कुछ दूर पर उससे भी अधिक सुंदर गुलाब नजर आते और वह उसे छोड़ आगे बढ़ जाता. ऐसा करते-करते वह बगीचे के मुहाने पर आ पहुंचा लेकिन यहां उसे जो फूल नजर आए वे एकदम मुरझाए हुए थे… सर्वोच्च की लालसा में रहे खाली हाथ
आखिरकार वह फूल लिए बिना ही वापस आ गया उसे खाली हाथ देखकर संत ने पूछा क्या हुआ बेटा गुलाब नहीं लाए…? युवक बोला ‘बाबा मैं बगीचे के सुंदर और ताजा फूलों को छोड़कर आगे और आगे बढ़ता रहा मगर अंत में केवल मुरझाए फूल ही बचे थे. आपने मुझे पलटकर फूल तोड़ने से मना किया था इसलिए मैं गुलाब के ताजा और सुंदर फूल नहीं तोड़ पाया’. उस पर संत मुस्करा कर बोले जीवन भी इसी तरह से है इसमें प्रारम्भ से ही कर्म करते रहना चाहिए. कई बार अच्छाई और सफलता प्रारंभ के कामों और अवसरों में ही छिपी रहती है जो अधिक और सर्वोच्च की लालसा मन में रखकर आगे बढ़ने की सोचते रहते हैं. अंत में उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है युवक उनका आशय समझ गया… सर्वोच्च की लालसा में रहे खाली हाथ