

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले तथा इस मामले में पाकिस्तान की करतूत को भारतीय सांसदों ने विदेशी धरती पर पुरजोर तरीके से उठाया है। यही नहीं सर्वदलीय सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने विश्व समुदाय से सीधा और सार्थक “संवाद” करते हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान की संलिप्तता के सबूत देते हुए विश्व समुदाय को भविष्य के लिए भारत की भावी रणनीति के बारे में भी जानकारी दी। इन दौरों का उद्देश्य हालिया पहलगाम आतंकी हमला और ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भारत का पक्ष स्पष्ट करना रहा है, ताकि यह बताया जा सके कि भारत किस तरह से दशकों से पार सीमा आतंकवाद का शिकार रहा है। विदेशी धरती पर भारत का पक्ष रखने वाले सांसदों का सरकार समेत भारतीय जनमानस में स्वागत करते हुए उनके इस कदम की सराहना की है। लेकिन इसके उलट विभिन्न दलों से ताल्लुक रखने वाले सांसदों को उनके ही दल में इस सराहनीय कार्य के लिए परोक्ष और अपरोक्ष तौर पर अलग-अलग कर दिया गया है। सांसदों का विश्व समुदाय से संवाद देश में सियासी विवाद
भारत सरकार ने पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर अपना पक्ष दुनिया के सामने रखने के लिए सांसदों का प्रतिनिधिमंडल विदेश भेजा। यह कूटनीतिक पहल पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के अंतरराष्ट्रीयकरण का जवाब देने के लिए की गई तथा इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं। यह पहली बार है जब भारत सरकार ने एक बहुदलीय सांसद प्रतिनिधिमंडल को किसी संवेदनशील सुरक्षा मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का पक्ष रखने के लिए विदेश भेजा। जाहिरा तौर पर यह दुर्लभ लेकिन महत्वपूर्ण प्रयास यह संदेश देता है कि देश की राजनीतिक पार्टियां भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के मुद्दे पर एकजुट हैं। विदेश मंत्रालय और अन्य संबंधित सरकारी विभागों द्वारा मिलकर की गई पहल से भारत की ओर से एक मजबूत और स्पष्ट संदेश दिया गया है। इन सांसदों का मुख्य उद्देश्य विदेशी सरकारों और सांसदों को पहलगाम आतंकी हमले के बारे में जानकारी देना और पाकिस्तान की धरती से संचालित हो रहे आतंकवादी संगठनों की भूमिका के ठोस सबूत प्रस्तुत करना था, जिसमें वह पूरी तरह से सफल रहे हैं।
विभिन्न दलों के सांसदों की सहभागिता वाले प्रतिनिधि मंडल के माध्यम से भारत में अपना पक्ष रखते हुए आतंकवाद को लेकर भारत की पुरानी पीड़ा, राज्य प्रायोजित आतंकी नेटवर्क के खिलाफ वैश्विक सहयोग की आवश्यकता, और उकसावे के बावजूद भारत की उत्तरदायी सैन्य नीति तथा इस अभियान का उद्देश्य पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर आतंकवाद के मुद्दे पर अलग-थलग करना है, साथ ही यह बताना है कि भारत अपनी संप्रभुता और सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने का पूरा हक रखने का रहा। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में लिए निर्णय के मुताबिक विभिन्न राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार को पाकिस्तान के विरुद्ध कार्रवाई में साथ खड़े रहने तथा पूर्ण सहयोग का भरोसा दिया था। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सीज फायर के मामले पर राजनीतिक दलों ने अपनी परंपरागत राजनीति एक बार फिर से दिखा दी और सरकार के निर्णय को कोसना शुरू कर दिया।
राजनीतिक दलों के इसी पुराने राजनीतिक “प्रलाप” का ही नतीजा था कि विदेशी धरती पर ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान की आतंकी करतूत के बारे में जानकारी देने के लिए गए विभिन्न दलों के सांसदों को उनके खुद के दलों के नेताओं ने ही आड़े हाथों लेकर शुरू कर दिया। इस मामले में सबसे आगे कांग्रेस रही जब कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने सांसदों के दलों के विदेशी दौरे को आतंकियों के घूमने की संज्ञा दे दी कांग्रेस के नेताओं के निशाने पर उनके अपने ही सांसद शशि थरूर, सलमान खुर्सीद एवं मनीष तिवारी रहे। अपने दल के नेताओं की आलोचना का शिकार बने सलमान खुर्शीद और शशि थरूर ने तो यहां तक बयान दे दिए कि वे सभी विदेशी धरती पर भारत के प्रतिनिधि के हैसियत से आए हैं और विश्व समुदाय को आतंकी हमले के बारे में जानकारी देना “दल से पहले देश” की अनिवार्यता को बताता है। ऐसा ही कुछ हाल शिवसेना उद्धव गुट की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी के साथ हुआ। जिनके दौरे को लेकर उनके अपने ही पार्टी के नेता संजय राउत ने उनकी आलोचना की ।
कांग्रेस सांसद एवं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा ऑपरेशन सिंदूर तथा सीज फायर के संबंध में दिए गए बयान “नरेंद्र सरेंडर” की इन दिनों खूब आलोचना हो रही है। इसके साथ ही महाराष्ट्र में शिवसेना यूबीटी के नेता और राज्यसभा के सांसद संजय राउत ने एक बार फिर से ऑपरेशन सिंदूर को निशाने पर लेते गृह मंत्री अमित शाह का इस्तीफा मांगा है। शाह के महाराष्ट्र दौरे के दूसरे दिन राउत ने मुंबई में ऑपरेशन सिंदूर को फेलियर बताया। इसके साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा ऑपरेशन सिंदूर को छिटपुट युद्ध बताना, कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा” इधर आतंकी घूम रहे हैं ..उधर हमारे सांसद घूम रहे हैं” तथा अन्य तथा उदित राज द्वारा की गई टिप्पणी भी कथित तौर पर शर्मनाक है और भाजपा इन टिप्पणियों के लिए कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के नेताओं को आड़े हाथों ले रही है। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस सहित विपक्ष के अन्य नेता ऐसे बयान दे रहे हैं जो पाकिस्तान ने भी नहीं दिए।
भाजपा का यह भी कहना है कि इन बयानों के जरिए कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दल आतंकवाद के विरुद्ध भारत की “निर्णायक लड़ाई” को कमजोर कर रहे हैं तथा परोक्ष रूप से पाकिस्तान का साथ दे रहे हैं क्योंकि गए प्रतिनिधि मंडल में शामिल सांसदों द्वारा दिए गए विदेश में दिए गए बयान और उनकी ही पार्टियों द्वारा भारत में दिए गए बयानों में परस्पर विरोधाभास है। विदेश गए प्रतिनिधि मंडल में शामिल कांग्रेस सहित अन्य दलों के सांसदों ने यह साफ कर दिया कि उनके लिए दल से पहले देश है और वह आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में सरकार,सेना और देश के साथ है। इसके उलट देश में ही कांग्रेस के प्रमुख नेताओं सहित अन्य विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा भारत, सेना और सरकार के विरुद्ध दिए गए बयान उनकी परंपरागत और ओछी राजनीति को ही दर्शाते हैं। राजनीति के जानकारों का मानना है कि मोदी विरोध की राह पर चलते-चलते विपक्ष द्वारा सेना को कोसने के बयान आने वाले समय में इन दलों को राजनीतिक इतिहास से हासिए पर आ सकते हैं।
विपक्ष को इस बात का भी अंदेशा है कि कहीं 1971 के युद्ध के समय मिली भारतीय जीत का लाभ जिस प्रकार इंदिरा गांधी को मिला था, वही इतिहास वर्ष 2025 में बिहार तथा आने वाले अन्य चुनाव दोहराया जाए और नरेंद्र मोदी और भाजपा को इसका श्रेय और राजनीतिक लाभ ना मिल जाए। यही वजह है कि विपक्ष देश और सेना का साथ देने के बजाय अपने राजनीतिक स्वार्थ के चलते झूठी ही सही पर आलोचना में जुटा है। वहीं, संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग कर रहे विपक्ष को इस बात का भी अंदेशा है कि जब संसद के मानसून सत्र में ऑपरेशन सिंदूर के संबंध में विपक्ष सरकार से सवाल जवाब करेगा तो सरकार विदेश गए उनके ही सांसदों के बयानों को सदन के पटल पर रखकर उनकी सरकार पर आक्रामक होने की धार को “कुंद” कर देगी। कुल मिलाकर यह माना जा रहा है कि विदेशी प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के सांसदों को शामिल करके तथा सांसदों द्वारा देश और सेना के पक्ष में बयान देकर मोदी ने विपक्ष के सामने एक ऐसा चक्रव्यूह रच दिया है, जिससे अब विपक्ष की समझ में नहीं आ रहा कि वह सरकार का साथ दे या विरोध करे। सांसदों का विश्व समुदाय से संवाद देश में सियासी विवाद