पारिवारिक विकास के लिए त्याग की चेतना जरूरी

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पारिवारिक विकास के लिए त्याग की चेतना जरूरी
पारिवारिक विकास के लिए त्याग की चेतना जरूरी

—– वैश्विक परिवार दिवस (01 जनवरी) विशेष —–

डा.वीरेन्द्र भाटी मंगल

प्रत्येक वर्ष एक जनवरी को वैश्विक परिवार दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया के सभी देशों, धर्मों के बीच शांति की स्थापना करते हुए युद्ध और हिंसा को टालकर शांतिपूर्ण समाज की स्थापना करना है। इस कार्य के लिए परिवार को काफी महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि परिवार के जरिए ही विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है। वर्तमान दौर में मानव पारिवारिक एवं आध्यात्मिक शांति के लिये हर संभव प्रयास कर रहा है, लेकिन  त्याग की भावना के अभाव में व्यक्ति स्वयं को द्वन्द्वों के बीच महसूस करता है। संयुक्त परिवारों का बिखराव पारिवारिक शांति को गौण कर रहा है। वहीं आंतरिक बिखराब से व्यक्ति आध्यात्मिक शक्तियों से दूर होता जा रहा है। पारिवारिक विकास के लिए त्याग की चेतना जरूरी

स्वार्थ में सिमटे व्यक्ति के लिए आत्मिक शांति संभव नहीं है। आज बिखर रहे परिवारों की मुख्य वजह त्याग का अभाव ही है। त्याग आध्यात्मिक मूल्य है। त्याग से ही आध्यात्मिक शांति का रास्ता खोजा जा सकता है। जहां  त्याग नहीं है वहां शांति की सोच निरर्थक साबित होती है। तेरापंथ धर्मसंघ के प्रणेता संत भिक्षु की ’त्याग धर्म-भोग अधर्म’ त्याग की चेतना का सूत्र मानी जा सकती है। यही सूत्र मानव जाति के लिए शांति का सेतु बन सकती है। आज यह आवश्कता है कि हम अपने में त्याग की क्षमता का विकास करे।

आध्यात्मिक जीवन में प्रगति के लिए त्याग परम आवश्यक है। त्याग से आंतरिक शक्तियों के विकास के साथ शांति को जीवन में समझा जा सकता है। बढ रही तमाम समस्याओं के पीछे  त्याग के प्रति अलगाव ही है। वर्तमान में व्यक्ति आध्यात्मिक प्रगति के लिए बहुत प्रयास करता है लेकिन  त्याग के प्रति जागरूक नहीं है यही कारण है कि मानव पूर्ण आध्यात्मिक जीवन को प्राप्त नहीं कर पा रहा है।  त्याग चेतना के जागरण के लिए जरूरी है कि हम अपने जीवन के प्रति समर्पित होकर शुद्व आत्मिक भावना के साथ भोग, उपभोग की सीमा तय करे तभी हम आध्यात्मिक, पारिवारिक एवं आत्मिक शांति  प्राप्त कर सकता है।

संसार में बढ रही आसक्त चेतना से मानव आध्यात्मिक मूल्यों से विरक्त होता जा रहा है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण को मानव विकास के दौर में विशेष उपक्रम माना जा सकता है। घट रहे आध्यात्मिक मूल्यों की तह में जाने पर हमें जिस तथ्य की जानकारी मिलती है वह है आसक्ति भावना का विकास। जब तक मानव आसक्ति का  त्याग नहीं करता है तब तक  त्याग का मूल्य नहीं समझा जा सकता है।  त्याग जीवन की मौलिक सच्चाई है।  त्याग सबसे बडी शक्ति है । बिना  त्याग के मानव सुख शांति एवं संतोष का अनुभव नहीं कर सकता है। प्रत्येक दृष्टि के पीछे मानव का  त्याग भाव झलके तभी आध्यात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

भारतीय साहित्य एवं संस्कृति में  त्याग का विशिष्ट योगदान रहा है। जिसके माध्यम से जन चेतना को जागृत कर आध्यात्मिक विकास को उजागर किया जा सकता है। आध्यात्मिक दृष्टि से त्याग के विशिष्ट प्रयोगकर्ता आचार्य महाप्रज्ञ क्रांत चेतना के धनी व्यक्तिव थे। तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य रहते हुए महाप्रज्ञ ने मानवीय मूल्यों के विकास एवं शांति के लिए विश्वस्तर पर अपनी चेतना को फैलाया। आज त्याग का सूत्र अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति का सेतु बना हुआ है। आचार्य महाप्रज्ञ का यह त्याग का सर्वग्राही चिंतन जीवन नैतिकता एवं शांति के विकास का पथ है।

किसी व्यक्ति के पास धन है तो उसे तरह तरह के राजकीय कर आदि भी चुकाने पड़ते हैं। उस धन में परिवार का भी हिस्सा है। श्रमिकों का भी हिस्सा है। सेना और सिपाहियों का भाग है लेकिन इस धन का प्रत्यक्ष रूप से मालिक एक व्यक्ति है। इस तरह वह धन का  त्याग कर रहा हैं, वह अनेक का है लेकिन त्याग का श्रेय केवल एक व्यक्ति को ही मिल रहा है। यह लाभ का ही सौदा है। अनेक बार व्यक्ति को लगता है कि कि जब धन हमारे पास नही है, तो उसके लिए इतनी उठा-पटक क्यों करें ? इस तरह की सोच से प्रखर वैराग्य प्रकट होने की संभावना है। धन की बहुत निन्दा से भी समस्या पैदा होती है। इसलिए हमारे यहां दान आदि त्याग की परम्परा चली। मैं और मेरा, तू और तेरा यह भाव ही माया है, दुखदाई है। विजर्सन के समय चिंतन करें तो धीरे-धीरे धन के प्रति आसक्ति कम होती जाएगी। धन के प्रति आसक्ति कम होने का अर्थ यह नहीं है कि धन पैदा करने के नैतिक कत्र्तव्यों के प्रति उपेक्षा भाव जगे। तभी परिवार, समाज एवं देश में शांति स्थापित हो सकती है।

वैश्विक परिवार दिवस की उत्पत्ति दो पुस्तकों के माध्यम से हुई। 1996 में अमेरिकी लेखकों स्टीव डायमंड और रॉबर्ट एलन सिल्वरस्टीन द्वारा लिखित ‘वन डे इन पीस, 1 जनवरी, 2000’ नामक बच्चों की किताब थी। वहीं, दूसरी किताब अमेरिकी शांति कार्यकर्ता और लेखक लिंडा ग्रोवर का 1998 का यूटोपियन उपन्यास ‘ट्री आइलैंडरू ए नॉवेल फॉर द न्यू मिलेनियम’ थी। विशेष रूप से ग्रोवर ने 1 जनवरी को शांति के वैश्विक दिवस के रूप में स्थापित करने काफी अहम भूमिका निभाई थी। इन किताबों के विचारों के आधार पर ही 1997 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1 जनवरी को शांति का एक दिन मनाने की घोषणा की, परिणाम स्वरूप विश्व के अनेक देशें में वैश्विक परिवार दिवस उत्साह के मनाया जाता है। पारिवारिक विकास के लिए त्याग की चेतना जरूरी