
अजीत सिंह
मनुष्य जीवन में अशांति और परेशानियां..! मनुष्य के जीवन में अशांति और परेशानियां तब शुरु होती हैं जब मनुष्य के जीवन मे सत्संग नहीं होता मनुष्य जीवन को जीता चला जा रहा है. लेकिन मनुष्य इस बारे में नहीं सोचता कि जीवन को कैसे जीना चाहिए. मनुष्य ने धन कमा लिया,मकान बना लिया,शादी घर परिवार बच्चे सब हो गये,कार खरीद ली ये सब कर लेने के बाद भी मनुष्य का जीवन सफल नही हो पायेगा क्योकि जिसके लिए ये जीवन मिला उसको तो मनुष्य ने समय दिया ही नहीं और संसार की वस्तुएं जुटाने मे समय नष्ट कर दिया जीवन मिला था. प्रभु का होने और प्रभु को पाने के लिए लेकिन मनुष्य माया का दास बनकर माया की प्राप्ति के लिए ईधर उधर भटकने लगता है और इस तरह मनुष्य का ये कीमती जीवन नष्ट हो जाता है.जिस अनमोल रतन मानव जीवन को पाने के लिए देवता लोग भी तरसते रहते हैं. उस जीवन को मनुष्य व्यर्थ मे गवां देता है.देवता लोगों के पास भोगों की कमी नहीं है. लेकिन फिर भी देवता लोग मनुष्य जीवन जीना चाहते हैं क्योकि मनुष्य देह पाकर ही भक्ति का पूर्ण आनंद और भगवान की सेवा और हरि कृपा से सत्संग का सानिध्य मिलता है.संतो के संग से मिलने वाला आनंद तो बैकुण्ठ मे भी दुर्लभ है कबीर जी कहते है कि….. मनुष्य जीवन में अशांति और परेशानियां ..!
राम बुलावा भेजिया,दिया कबीरा रोय..जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय… रामचरितमानस मे भी लिखा है कि… तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरि तुला एक अंग,तुल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग… हे तात स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाये तो भी वे सब सुख मिलकर भी दूसरे पलड़े में रखे हुए उस सुख के बराबर नहीं हो सकते. जो क्षण मात्र के सत्संग से मिलता है. सत्संग की बहुत महिमा है. सत्संग तो वो दर्पण है जो मनुष्य के चरित्र को दिखाता है ओर साथ साथ चरित्र को सुधारता भी है. सत्संग से मनुष्य को जीवन जीने का तरीका पता चलता है. सत्संग से ही मनुष्य को अपने वास्तविक कर्त्तव्य का पता चलता है. मानस मे लिखा है कि ….सतसंगत मुद मंगल मूला,सोई फल सिधि सब साधन फूला…सत्संग सब मङ्गलों का मूल है, जैसे फूल से फल और फल से बीज और बीज से वृक्ष होता है.उसी प्रकार सत्संग से विवेक जागृत होता है और विवेक जागृत होने के बाद भगवान से प्रेम होता है और प्रेम से प्रभु प्राप्ति होती है…. जिन्ह प्रेम किया तिन्ही प्रभु पाया…सत्संग से मनुष्य के करोड़ों करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं,सत्संग से मनुष्य का मन बुद्धि शुद्ध होती है, सत्संग से ही भक्ति मजबूत होती है…
भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानि,बिनु सत्संग न पावहि प्राणी… भगवान की जब कृपा होती है तब मनुष्य को सत्संग ओर संतों का संग प्राप्त होता है सत्संग में बतायी जाने वाली बातों को जीवन मे धारण करने पर भी आनंद की प्राप्ति और प्रभु से प्रीति होती है.आज मनुष्य की मन और बुद्धि विकारों में फंसती जा रही है.मनुष्य हर पल चिंतित रहने लगता है और हमेशा परेशान रहता है. इन सबका कारण अज्ञानता है. भगवान ने ये अनमोल रत्न मानव जीवन अशांत रहने के लिए नहीं दिया. जब कोई मशीन हम घर पर लेकर आते हैं तो उसके साथ एक बुकलेट मिलती है जिसमे मशीन को कैसे चलाना है. इस बारे में लिखा होता है उसी प्रकार भगवान ने ये मानव जीवन दिया और इस मानव जीवन को सफल कैसे करना है ये हमें सत्संग और शास्त्रों से पता चलता ह. इसलिए जीवन से सत्संग को अलग नहीं करना चाहिए क्योंकि जब सत्संग जीवन में नहीं रहेगा तो संसार के प्रति आकर्षण बढ़ेगा और संसार के प्रति मोह मनुष्य के जीवन को विनाश की तरफ ले जाता है. जीवन में सत्संग को हमेशा बनाये रखना चाहिए और जब भी और जहां भी सत्संग सुनने या जाने का मौका मिले तो लोगों की परवाह किये बिना ही पहुँच जाना चाहिए. क्योंकि सत्संग बहुत दुर्लभ है और जिसे सत्संग मिलता है उस पर भगवान की विशेष कृपा होती है..…
जीवन में शांति या अशांति आपके कर्म पर निर्भर करता है. राजवीर एक बड़ा उद्योगपति था. उसका भरा पूरा परिवार था. माता–पिता, पत्नी, तीन बच्चे, दो भाई और उनके परिवार, सब थे. एक ही बड़ी सी बिल्डिंग के अलग–अलग हिस्से में सारे भाई रहते थे. तीनों भाइयों का अपना–अपना उद्योग था.परंतु, इतने धन के बाद भी खुशहाली नहीं थी. उसका मूल कारण उनकी जीवन शैली एवं भौतिकवाद था. वे सदैव तुलना करते रहते. किसके पास क्या है…? मेरे पास अच्छा है या उसके पास अच्छा है…? यह केवल घर परिवार की बात नहीं थी। बल्कि, पूरे समाज का यही हाल था. सोशल मीडिया के युग मे खुश रहना उतना आवश्यक नही है. बल्कि, हम बहुत ज्यादा खुश हैं, आनंदित है, सुख–विलासिता में हैं, यह दूसरों को दिखाना जरूरी है. परिवार समाज की इकाई है. समाज आईना है. जैसे लोग वैसा समाज. मनुष्य जीवन में अशांति और परेशानियां ..!