बाबा साहब को भगवान बनाने की होड़ क्यों

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बाबा साहब को भगवान बनाने की होड़ क्यों
बाबा साहब को भगवान बनाने की होड़ क्यों
राजेश कुमार पासी

बाबा साहब को भगवान बोलने की होड़ चल रही है लेकिन दिल से कोई उन्हें भगवान नहीं मानता। दलितों की लड़ाई लड़ने वाले बाबा साहब अम्बेडकर सिर्फ दलितों के लिए भगवान हैं। आज जो नेता बाबा साहब को भगवान बनाने में लगे हुए हैं, वो सिर्फ दलितों के वोट पाने की लड़ाई का हिस्सा भर है। पिछले कुछ वर्षों से बाबा साहब दलित राजनीति का चेहरा बन चुके हैं। कांग्रेस आज़ादी से पहले और उसके बाद से बाबा साहब के खिलाफ रही है लेकिन जब से बसपा कमजोर होने लगी है, कांग्रेस दलितों के वोट पाने के लिए बाबा साहब को अपनाने की दौड़ में शामिल हो गई है।   बाबा साहब को भगवान बनाने की होड़ क्यों

राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद मोदी ने बाबा साहब की विरासत को पाने की कोशिश शुरू कर दी थी। उन्होंने ऐसा सिर्फ बाबा साहब अम्बेडकर के साथ नहीं किया है बल्कि उन सभी महत्वपूर्ण नेताओं के साथ किया है जिनकी अनदेखी कांग्रेस करती रही है। मोदी जी ने इस कड़ी में सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री और चौधरी चरण सिंह जैसे कई नेताओं की विरासत को पाने की लड़ाई छेड़ दी है। अगर हम कांग्रेस की अभी तक की राजनीति को देखें तो पता चलेगा कि कांग्रेस ने गांधी परिवार के अलावा किसी और नेता को कोई महत्व नहीं दिया है।

गांधी परिवार के अलावा कांग्रेस ने सिर्फ महात्मा गांधी को महत्व दिया है क्योंकि कांग्रेस उनकी विरासत पर पूर्ण रूप से कब्जा कर चुकी थी। अब कांग्रेस को यह अहसास हो चला है कि बाबा साहब की विरासत पर भाजपा पूर्ण कब्जा कर सकती है क्योंकि बहुजन समाज पार्टी कमजोर हो रही है और उसका प्रभाव सिर्फ यूपी तक रह गया है। अमित शाह के भाषण के 12 सेकंड के अंश का इस्तेमाल करके कांग्रेस भाजपा को अम्बेडकर विरोधी साबित करना चाहती है। वास्तव में सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, समाजवाद की राजनीति करने वाली पार्टियां भी बाबा साहब को भगवान घोषित कर रही है। वास्तव में ये सभी पार्टियां बाबा साहब की विरासत पाने के लिए दंगल में कूद पड़ी हैं। 

      कांग्रेस बाबा साहब से हमेशा डरती रही कि कहीं वो दलितों के नेता न बन जाये।  बेशक कड़वा है लेकिन यह सच है कि कांग्रेस ने बाबा साहब को अपने जीवन में दलितों का नेता बनने नहीं दिया। कांग्रेस दलित, ब्राह्मण और मुस्लिम का एक वोट बैंक बनाकर राजनीति करती रही लेकिन दूसरी तरफ बाबा साहब की पूरी तरह से अनदेखी भी करती रही। नेहरू बाबा साहब से नफरत करते थे क्योंकि बाबा साहब उनसे कहीं ज्यादा काबिल थे। दलित समाज के बुद्धिजीवी और संगठन आज कट्टरता के शिकार हो चुके हैं, इसलिए वो भी सच से दूर होते जा रहे हैं। वो बाबा साहब को संविधान निर्माता मानते हैं लेकिन संविधान निर्माण में डॉ बी. एन. राव के योगदान की अनदेखी करते हैं।डॉ. राव को जब पता चला कि बाबा साहब संविधान सभा में नहीं है तो उन्होंने ही गांधी जी और दूसरे नेताओं को समझाया कि बिना बाबा साहब के संविधान एक निर्जीव वस्तु हो जायेगा।

वास्तव में इस सच को गांधी जी भी जानते थे क्योंकि बाबा साहब न केवल कानून बल्कि इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र के बड़े ज्ञाता थे। डॉ बी. एन. राव ने अपनी मेहनत से संविधान का मूल प्रारूप तैयार करके बाबा साहब को दिया था। बाबा साहब संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष थे तो डॉ बी.एन. राव इसके संवैधानिक सलाहकार थे जिसके लिए उन्होंने कोई वेतन नहीं लिया था। बाबा साहब ने संविधान सभा में अपने समापन भाषण में कहा था कि मुझे जो श्रेय दिया जाता है, वो मेरा नहीं है। यह आंशिक रूप से संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार सर बी.एन. राव का है जिन्होंने मसौदा  समिति के विचार के लिए संविधान का एक मोटा मसौदा तैयार किया था। वास्तव में बाबा साहब और डॉ राव दोनों एक दूसरे को बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने बाबा साहब के बारे में कहा था कि बाबा साहब संविधान के जनक नहीं बल्कि जननी हैं। डॉ. राव ने संविधान का मूल मसौदा तैयार करने के लिए अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड और यूके की यात्रा की थी, जहां उन्होंने विद्वानों, न्यायाधीशों और कानून विशेषज्ञों से चर्चा की थी। 

    दलितों में यह धारणा पैदा करने की कोशिश की गई है कि संविधान को बाबा साहब ने लिखा और देश को समर्पित कर दिया । यही कारण है कि दलित समाज का बड़ा वर्ग संविधान को बाबा साहब की किताब कहता है । उन्हें इस सच्चाई से दूर रखा गया है कि संविधान सभा एक संसद की तरह काम कर रही थी । बाबा साहब को संविधान बनाने की प्रक्रिया के दौरान उनके एक-एक सवाल का जवाब देना पड़ा । संविधान कोई किताब नहीं है जो लिखी और देश को दे दी. देखा जाये तो यह बड़ा आसान काम होता । संविधान सभा में राजनीतिक रूप से ताकतवर और अपने-अपने क्षेत्रों के बड़े-बड़े विद्वान शामिल थे । बाबा साहब की महानता यही है कि ऐसे लोगों से संविधान को पारित करवा सके । इसके बावजूद यह कहना होगा कि संविधान में ऐसा बहुत कुछ है जो बाबा साहब नहीं चाहते थे और बहुत कुछ ऐसा नहीं है जो बाबा साहब चाहते थे । गांधी जी से बाबा साहब का मतभेद था लेकिन नेहरू जी से उनका मनभेद था । नेहरू जी ने अपने मंत्रिमंडल में बाबा साहब को शामिल नहीं किया था लेकिन गांधी जी के आग्रह पर मजबूरी वश उन्हें बाबा साहब को शामिल करना पड़ा ।

नेहरू जी ने उन्हें शामिल तो कर लिया लेकिन महत्वपूर्ण विभाग नहीं दिया जबकि बाबा साहब की योग्यता से पूरा देश वाकिफ था। उन्हें कानून मंत्रालय दिया गया लेकिन उसमें भी काम नहीं करने दिया गया। अपने आपको अपमानित महसूस करते हुए बाबा साहब ने मंत्रिमंडल से बाहर निकलना उचित समझा। बाबा साहब को इस्तीफा देने के बाद संसद में अपनी बात रखने का मौका भी नहीं दिया गया जो कि उनका संवैधानिक अधिकार था । उन्हें मजबूरी में अपनी बात प्रेस के सामने रखनी पड़ी। इसके बाद  नेहरू जी ने बाबा साहब को दो बार संसद में जाने से रोक दिया, उन्हें पहले चुनाव और फिर उपचुनाव में हरवा दिया । जो कांग्रेस उन्हें आज अपना भगवान बता रही है, उसी कांग्रेस ने उन्हें इस लायक नहीं समझा कि उन्हें भारत रत्न दिया जाए । नेहरू जी ने खुद को भारत रत्न दे दिया, इंदिरा जी ने भी खुद को भारत रत्न दे दिया, राजीव जी के निधन के तुरंत बाद उन्हें भारत रत्न दे दिया गया। कांग्रेस  ने नेहरू, गांधी, इंदिरा, राजीव जी का जितना महिमामंडन किया है, उसका एक प्रतिशत भी बाबा साहब का नहीं किया है। 

     बहुजन समाज पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद देश ने बाबा साहब को सही तरह से समझा है। जैसे-जैसे दलित और पिछड़ा समाज बाबा साहब की विरासत से जुड़ता चला गया, वैसे-वैसे राजनीतिक वर्ग को बाबा साहब की अहमियत अंदाजा होता गया है । बाबा साहब को देश का गद्दार और अंग्रेजों का समर्थक कहा जाता था क्योंकि बाबा साहब को सिर्फ दलितों की चिंता थी।  यह सच है कि बाबा साहब को स्वतंत्रता से ज्यादा दलितों की स्वतंत्रता की चिंता थी। आज दलित जहां खड़े हैं, वहां तक पहुंचाने में बाबा साहब का बड़ा हाथ है। मेरा मानना है कि बाबा साहब को भगवान बनाने का मतलब होगा उनके अनुयायियों को उनका भक्त बना देना।

बाबा साहब को भक्त नहीं चाहिए बल्कि अनुयायी चाहिए जो उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाएं। आज जो लोग बाबा साहब को भगवान बनाने की कोशिश कर रहे हैं वो वास्तव में  खुद को दलितों का हितेषी साबित करना चाहते हैं। कांग्रेस और उसके सहयोगी दल भाजपा से दलित वोट छीनना चाहते हैं इसलिए वो भाजपा पर निशाना साध रहे हैं। विपक्ष को लगता है कि बाबा साहब का अपमान, संविधान खत्म करने का विमर्श और आरक्षण खत्म होने का डर दिखाकर वो भाजपा को हरा सकता है। भाजपा को लगता है कि अगर विपक्ष का विमर्श चल गया तो उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। बाबा साहब को भगवान बनाने की कोशिश इसी विमर्श का हिस्सा है जिससे भाजपा से दलित और पिछड़े वर्ग को दूर किया जा सके।

 सच यह है कि आज विपक्ष वामपंथी विचारधारा की ओर चल पड़ा है जबकि बाबा साहब वामपंथी विचारधारा को जंगल की आग कहते थे, जिसमें कुछ नहीं बचता है। उनका कहना था कि वामपंथी विचारधारा देश को बर्बाद कर देगी। बाबा साहब की सोच और विचारधारा से अलग चलने वाले लोग आज उनको भगवान बनाने पर लगे हुए हैं। बाबा साहब भगवान हैं, दलितों के लिए, महिलाओं के लिए और उन लोगों के लिए जिनके लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया। बाबा साहब को भगवान बनाने की होड़ क्यों