
मक्के की खेती के मुरीद हुए यूपी के किसान। एमएसपी से खरीद की सुनिश्चित गारंटी, त्वरित मक्का विकास जैसी योजनाएं बनीं जरिया। हाल ही में सीएम योगी ने भी मक्के की खेती में रुचि लेने के लिए की किसानों की तारीफ। मक्के की खेती के मुरीद हुए यूपी के किसान
लखनऊ। अनाजों की रानी कही जाने वाली मक्के की खेती उत्तर प्रदेश की किसानों को भाने लगी है। बाराबंकी के कुछ किसानों को तो इसकी खेती इतनी पसंद आई कि वह मेंथा की जगह अपेक्षाकृत कम पानी में होने वाली मक्के की खेती करने लगे। वहां इसके रकबे में लगातार विस्तार हो रहा है। मक्के की खेती के यूं ही किसान मुरीद नहीं हुए। इसमें डबल इंजन की सरकार (योगी और मोदी) से मिले प्रोत्साहन की महत्वपूर्ण भूमिका है। खासकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की सुनिश्चित गारंटी और त्वरित मक्का विकास योजना के तहत किसानों को मिलने वाले लाभ की।
प्रति कुंतल 2225 रुपये की दर से एमएसपी पर योगी सरकार खरीद रही मक्का
विपणन वर्ष 2024-2025 के लिए योगी सरकार ने प्रति कुंतल मक्के की एमएसपी 2225 रुपये घोषित की है। 15 जून से इसकी खरीद भी शुरू हो चुकी है। यह खरीद 31 जुलाई तक जारी रहेगी। जिन जिलों में एमएसपी पर मक्के की खरीद होनी है, उनके नाम हैं बुलंदशहर, बदायूं, अलीगढ़, एटा, कासगंज, फिरोजाबाद, हाथरस, मैनपुरी, हरदोई, उन्नाव, कानपुर नगर, औरैया, कन्नौज, इटावा, फर्रुखाबाद, बहराइच, बलिया, गोंडा, संभल, रामपुर, अयोध्या एवं मीरजापुर।
औरैया में सीएम योगी ने भी मक्के की खेती के लिए की किसानों की तारीफ
औरैया के एक कार्यक्रम में सीएम योगी ने मक्के की खेती करने वाले किसानों की तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि उत्तर प्रदेश 20-25 जिलों में मक्के की खेती हो रही है। किसानों को प्रति हेक्टेयर करीब ढाई लाख रुपये की आय हो रही है। यानी एक लाख रुपये प्रति एकड़। यही नहीं प्रगतिशील किसान बेहतर फसलचक्र अपना कर तीन फसलों (आलू, मक्का एवं धान) की खेती कर अपनी आय और बढ़ा सकते हैं। अपने संबोधन में उन्होंने मक्के की बहुउपयोगिता की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह एक पौष्टिक आहार है। इससे स्वीट कार्न, बेबीकॉर्न, बायोफ्यूल व बायो प्लाास्टिक भी इससे बन सकता है।
बहुउपयोगी मक्का प्रोटीन से भी भरपूर
बहुउपयोगी होने के साथ मक्के में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन भी होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा धान, गेहूं ही नहीं रागी, बाजरा, कोदो एवं सावा से भी अधिक होती है। इसके अलावा इसमें खनिज लवण और फाइबर भी भरपूर मात्रा में होती है। कैलेशियम और आयरन भी थोड़ी मात्रा में मिलता है। इसीलिए यह इंसानों के अलावा चारे के रूप में पशुओं और कुक्कुट आहार के लिए भी उपयुक्त है।
बाराबंकी में मेंथा की जगह क्यों मक्के की खेती कर रहे किसान
बाराबंकी। प्रदेश की राजधानी से सटे इस जिले के किसान खासे प्रगतिशील हैं। रामशरण वर्मा जैसे किसान तो पूरे देश के लिए नजीर हैं। इसके लिए इनको 2019 में पद्मश्री पुरस्कार भी मिल चुका है। बाराबंकी की पहचान मेंथा की खेती के लिए रही है। पर हाल के कुछ वर्षों के दौरान जायद के सीजन में यहां के कुछ क्षेत्रों के किसान अपेक्षाकृत कम पानी में होने वाले मक्के की खेती करने लगे हैं। उल्लेखनीय है कि बीते तीन वर्षों से मसौली, रामनगर, फतेहपुर और निंदूरा ब्लॉक में किसानों को मक्का की खेती के लिए प्रेरित किया गया और उन्हें बीज भी उपलब्ध करवाए गए। पहले जायद में खेत खाली रहते थे या मेंथा की खेती होती थी। अब मक्के की खेती हो रही है। उपज अच्छी हो रही है और बहुउपयोगी होने के कारण बाजार में दाम (प्रति कुंतल 2500 रुपये) भी अच्छे मिल जा रहे हैं। कम अवधि की फसल होने के नाते रबी एवं खरीफ की अन्य फसलों की खेती भी किसानों के लिए संभव हो जा रही है। यही वजह है कि किसानों में पिछले कुछ वर्षों से मक्के की खेती का क्रेज बढ़ा है।
बहुउपयोगी मक्के का जवाब नहीं
बहुउपयोगी मक्के की संभावनाओं के मद्देनजर ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने दूसरे कार्यकाल में मक्के का उत्पादन 2027 तक दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप पिछले महीने कृषि विभाग की ओर से लखनऊ में आयोजित राज्य स्तरीय खरीफ गोष्ठी में प्रदेश के कृषि मंत्री ने किसानों से जिन फसलों का उत्पादन बढ़ाने की अपील की उसमें मक्का भी था। यूं भी मक्के की खेती किसानों को खूब रास आ रही है।
तीनों फसली सीजन एवं हर तरह की भूमि में संभव है मक्के की खेती
बात चाहे पोषक तत्वों की हो या उपयोगिता की। बेहतर उपज की करें या सहफसली खेती या औद्योगिक प्रयोग की। हर मौसम और हर तरह की भूमि में पैदा होने वाले मक्के का जवाब नहीं। बस जिस खेत में मक्का बोना है उसमें जल निकासी का बेहतर प्रबंधन जरूरी है।
इथेनॉल, पशु-कुक्कुट आहार एवं औषधीय रूप में उपयोगी है मक्का
मालूम हो कि मक्के का प्रयोग इथेनॉल उत्पादन करने वाली औद्योगिक इकाइयों, पशुओं एवं पोल्ट्री लिए पोषाहार, दवा, पेपर और एल्कोहल इंडस्ट्री में होता है। इसके अलावा भुट्टा, आटा, बेबीकार्न और पापकार्न के रूप में ये खाया जाता है। किसी न किसी रूप में ये हर सूप का अनिवार्य हिस्सा होता है। ये सभी क्षेत्र संभावनाओं वाले हैं।
बेहतर मांग से किसानों को मिल रहे अच्छे दाम
बहुपयोगी होने की वजह से समय के साथ मक्के की मांग भी बढ़ेगी। इस बढ़ी मांग का अधिकतम लाभ प्रदेश के किसानों को हो इसके लिए सरकार मक्के को खेती के प्रति किसानों को लगातार जागरूक कर रही है। उनको खेती के उन्नत तौर तरीकों की जानकारी दे रही है। किसानों को अपनी उपज का वाजिब दाम मिले इसके लिए सरकार पहले ही इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के दायरे में ला चुकी है।
पोषक तत्वों से भरपूर होने के नाले मक्के को बोलते हैं अनाजों की रानी
पक्के में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व भी पाए जाते हैं इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और मिनरल मिलते हैं। इन्हीं खूबियों के नाते इसे अनाजों की रानी कहा गया है।
उन्नत खेती के जरिये उपज बढ़ने की भरपूर संभावना
विशेषज्ञों की मानें तो उन्नत खेती के जरिये मक्के की प्रति हेक्टेयर उपज 100 कुंतल तक भी संभव है। प्रति हेक्टेयर सर्वाधिक उत्पादन लेने वाले तमिलनाडु की औसत उपज 59.39 कुंतल है। देश के उपज का औसत 26 कुंतल एवं उत्तर प्रदेश के उपज का औसत 2021-22 में 21.63 कुंतल प्रति हेक्टेयर था। ऐसे में यहां मक्के की उपज बढ़ने की भरपूर संभावना है।
जून के दूसरे हफ्ते से लेकर जुलाई में बो सकते हैं खरीफ की फसल
कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) प्रभारी डॉ. एसके तोमर के अनुसार खरीफ के फसल की बोआई के लिए 15 जून से 15 जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। अगर सिंचाई की सुविधा हो तो मई के दूसरे या तीसरे हफ्ते में भी इसकी बोआई की जा सकती है। इससे मानसून आने तक पौधे ऊपर आ जाएंगे और भारी बारिश से होने वाली क्षति नहीं होगी। प्रति एकड़ करीब 8 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। अच्छी उपज के लिए बोआई लाइन में करें। लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी एवं पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखें। उपलब्ध हो ती बेड प्लांटर का प्रयोग करें। मक्के की खेती के मुरीद हुए यूपी के किसान